शनिवार यानि तीस नवंबर को मुझे वापस जाना था। गुरुवार यूनुस से बात हुई.. कहने लगे मैंने तुमसे वादा किया था कि सत्या और माचिस का बैकग्राउंड स्कोर देना है। अब जून में किए इस वादे को मैं तो भूल ही चुका था पर वे नहीं भूले थे। मैंने कहा कि कहाँ मिला जाए? अनीता जी के यहाँ या फिर किसी और जगह। यूनुस का तपाक से जवाब आया कि अभी तो तुम्हारे यहाँ ही बैठक जमाते हैं..हाँ बाद में जब हम अनीता जी के यहाँ डिनर खाएँगे तो तुम्हें फोन से सूचित कर देंगे कि क्या क्या खाया...और फिर सुनाई दिया एक जोर का ठहाका जो भीतर तक मुझे जला गया। फिर विमल भाई से बात हुई। मैंने उनसे कहा कि आपकी गायिकी से दिल नहीं भरा। एक बार फिर अवश्य आईए और उनका आने का आत्मीय आश्वासन भी तुरत मिल गया। अभय जी (जो बेहद व्यस्त थे) को छोड़ कर बाकी सारे लोगों ने पुनः आने की सहर्ष स्वीकृति दे दी।
इस बार विमल, यूनुस और विकास छः बजे तक आ चुके थे। गप्पों का दौर शुरु हुआ। शुरुआत निजी चैनल्स में धारावाहिक निर्माण के तौर तरीकों पर शुरु हुई। विमल जी ने अपने अंदाज में सारा किस्सा बयां किया यानि पूरी ग्राफिक डिटेल्स के साथ। उनकी बातों का निचोड़ यही था कि सारा कुछ टी. आर. पी. का खेल है। बाकी कहानी क्या है, स्क्रिप्ट कैसी है, उस से ज्यादा ध्यान इस बात पर है कि कैसे जनता को सफाई से मूर्ख बना कर उसे बाँधे रखा जाए। फिर विमल भाई ने क्रिकेट में अपनी अंपायरी का एक बेहद दिलचस्प किस्सा सुनाया, जिसे यहाँ कार्यालय में सुनाकर मैं कईयों को हँसा चुका हूँ।
विमल भाई से प्रमोद जी के बारे में बताने को कहा गया क्योंकि वो खुद अपने बारे में ज्यादा कहते नहीं। कॉलेज के समय प्रमोद जी के कमरे और उसकी अनूठी साज सज्जा का जिक्र हुआ। विमल भाई रंगमंच के उन दिनों की याद करने लगे जब दिल्ली का 'मंडी हाउस' के पास का इलाका उनका और प्रमोद जी का अड्डा हुआ करता था। ये वो ज़माना था जब मनोज बाजपेयी विमल जी के रूममेट हुआ करते थे। विमल जी ने वो मज़ेदार प्रकरण भी सुनाया कि किस तरह पहली मुलाकात में ही प्रमोद जी ने मनोज की क्लॉस ले ली थी।
फिर यूनुस भाई से मैंने पूछा कि विविध भारती की अपनी दिनचर्या के बारे में बताएँ। बातों-बातों में ये जानकर मुझे आश्चर्य हुआ कि विविध भारती में सिर्फ ८ उद्घोषक हैं जिनमें से एक शिफ्ट में सिर्फ चार लोग होते हैं। यूनुस ने भी अमीषा पटेल से हाल ही में लिए गए साक्षात्कार के बारे में बताया कि कितनी मुश्किल से उन्होंने अमीषा के दिये गए ५ मिनटों को करीब आधे घंटे तक खींचा। इस दौरान अमीषा की बचकानी (मेरा और विकास का मत था कि उसे चुलबुली कहना ज्यादा सही रहेगा :)) अदाओं से यूनुस बेहद परेशान रहे। रेडिओ की बात पर यूनुस ने बताया कि एक बार उनकी बात हृशिकेष दा से हुई और उन्होंने पूछा कि दादा ये बताइए कि आपकी हर फिल्म में रेडियो क्यूँ बजता दिखता है ? दादा का उत्तर था कि रेडिओ ऍसा माध्यम है जो जितना दिखता नहीं उससे ज्यादा बैक आफ माइंड (यानि अंडरकरेंट) में रहता है और इसीलिए मैं उसे दिखाता हूँ।
गपशप कब गीत-संगीत पर आ गई ये मुझे भी याद नहीं पर फिर ऍसा समा बँधा कि बँधता ही चला गया। यूनुस की फ़र्माइश पर शुरुआत हुई इसी गीत से.."जब आपकी प्लेट खाली है तो सोचना होगा कि खाना कैसे खाओगे".. जिसके बोल आप विमल जी के ब्लॉग पर पढ़ सकते हैं। विमल भाई की आवाज़ का कायल तो मैं पिछली मुलाकात में ही हो चुका था। अब आप इस वीडियो को देखें और मुझे पूरा विश्वास है कि आप की राय मेरे से भिन्न नहीं होगी।
वीडियो ठीक से देखने के लिए स्क्रीन की ब्राइटनेस लेवल बढ़ा लें।
इसे सुनकर फ़ैज की नज़्म सब ताज उछाले जाएँगे, सब तख्त गिराए जाएँगे..की याद आ गई। यूनुस ने उसकी कुछ पंक्तियाँ सुनाईं। विमल जी ने फिर एक और गीत सुनाया। पुराने दिनों की याद करते हुए कहने लगे कि इसका असर ये होता है था
कि आस पास खड़े लोग भी ला....लल...ला... की तान में शामिल हो जाते थे। ऍसा ही हाल हमारे साथ भी हुआ। यहाँ देखें..
इसके बाद विमल जी ने मेरे पसंदीदा कवि गोपालदास नीरज की ये कविता खास 'नीरज' के अंदाज में सुनाईं
अब के सावन में शरारत भी मेरे साथ हुई
मेरे घर छोड़ के सारे शहर में बरसात हुई
इसी बीच प्रमोद जी, अनीता जी और अनिल भाई भी गीतों की इस महफ़िल में शामिल हो चुके थे। आते के साथ, अनिल रघुराज को हॉट सीट पर बैठा दिया गया और उन्होंने जो लोकगीत सुनाए वो यूनुस के चिट्ठे पर यहाँ मौजूद है।
गीतों का सिलसिला फिर विकास और मैंने आगे बढ़ाया। इस दोरान तीन घंटे कैसे बीते ये पता ही नहीं चला। सबने अनीता जी की लाई पूड़ी-सब्जी पर हा्थ साफ किया। अनीता जी के जाने के बाद महफ़िल गीतों से हटकर गंभीर चर्चा पर मुड़ी। घड़ी की सुईयाँ बढ़ती गईं। तकनीकी समस्याएँ, वेब रेडिओ, फिल्म निर्देशन, रोमन में हिंदी ब्लॉगिंग, सिनेमा देखने वाला दर्शक वर्ग, तरह-तरह के नए मुद्दे उछलते गए। रात्रि के बारह बजे तक ये सिलसिला चलता रहा और फिर सबने एक दूसरे से विदा ली।
दोस्तों, बहुत अच्छा लगा आप सब के साथ बिताई इन दो शामों का साथ। आशा है फिर आपसे मुलाकात होती रहेगी। तो चलते-चलते उस शाम का आनंद उठाएँ इन चित्रों के माध्यम से...
लो भई शुरु हो गया गप्पों का दौर...
पीली कमीज, लटकता चश्मा, चढ़ी आँखें..बालक तो बिना पिये मदहोश हो गया..
आओ बिखेरें फोटोजेनिक मुसकान !
मैं क्या जानूँ , क्या जानूँ क्या जादू है !
देखो कैसे बदले मेरे रंग चिट्ठाकारी के पहले...और अब चिट्ठाकारों के संग :) !
अरे अब तो मेमोरी कार्ड भी पूरा भर गया !
अब हर संडे के संडे, लेंगे तुमसे फंडे
किस्सा कुर्सी का...
रात होती गई..गुफ़्तगू चलती रही
पका डाला सालों ने...
इस बार विमल, यूनुस और विकास छः बजे तक आ चुके थे। गप्पों का दौर शुरु हुआ। शुरुआत निजी चैनल्स में धारावाहिक निर्माण के तौर तरीकों पर शुरु हुई। विमल जी ने अपने अंदाज में सारा किस्सा बयां किया यानि पूरी ग्राफिक डिटेल्स के साथ। उनकी बातों का निचोड़ यही था कि सारा कुछ टी. आर. पी. का खेल है। बाकी कहानी क्या है, स्क्रिप्ट कैसी है, उस से ज्यादा ध्यान इस बात पर है कि कैसे जनता को सफाई से मूर्ख बना कर उसे बाँधे रखा जाए। फिर विमल भाई ने क्रिकेट में अपनी अंपायरी का एक बेहद दिलचस्प किस्सा सुनाया, जिसे यहाँ कार्यालय में सुनाकर मैं कईयों को हँसा चुका हूँ।
विमल भाई से प्रमोद जी के बारे में बताने को कहा गया क्योंकि वो खुद अपने बारे में ज्यादा कहते नहीं। कॉलेज के समय प्रमोद जी के कमरे और उसकी अनूठी साज सज्जा का जिक्र हुआ। विमल भाई रंगमंच के उन दिनों की याद करने लगे जब दिल्ली का 'मंडी हाउस' के पास का इलाका उनका और प्रमोद जी का अड्डा हुआ करता था। ये वो ज़माना था जब मनोज बाजपेयी विमल जी के रूममेट हुआ करते थे। विमल जी ने वो मज़ेदार प्रकरण भी सुनाया कि किस तरह पहली मुलाकात में ही प्रमोद जी ने मनोज की क्लॉस ले ली थी।
फिर यूनुस भाई से मैंने पूछा कि विविध भारती की अपनी दिनचर्या के बारे में बताएँ। बातों-बातों में ये जानकर मुझे आश्चर्य हुआ कि विविध भारती में सिर्फ ८ उद्घोषक हैं जिनमें से एक शिफ्ट में सिर्फ चार लोग होते हैं। यूनुस ने भी अमीषा पटेल से हाल ही में लिए गए साक्षात्कार के बारे में बताया कि कितनी मुश्किल से उन्होंने अमीषा के दिये गए ५ मिनटों को करीब आधे घंटे तक खींचा। इस दौरान अमीषा की बचकानी (मेरा और विकास का मत था कि उसे चुलबुली कहना ज्यादा सही रहेगा :)) अदाओं से यूनुस बेहद परेशान रहे। रेडिओ की बात पर यूनुस ने बताया कि एक बार उनकी बात हृशिकेष दा से हुई और उन्होंने पूछा कि दादा ये बताइए कि आपकी हर फिल्म में रेडियो क्यूँ बजता दिखता है ? दादा का उत्तर था कि रेडिओ ऍसा माध्यम है जो जितना दिखता नहीं उससे ज्यादा बैक आफ माइंड (यानि अंडरकरेंट) में रहता है और इसीलिए मैं उसे दिखाता हूँ।
गपशप कब गीत-संगीत पर आ गई ये मुझे भी याद नहीं पर फिर ऍसा समा बँधा कि बँधता ही चला गया। यूनुस की फ़र्माइश पर शुरुआत हुई इसी गीत से.."जब आपकी प्लेट खाली है तो सोचना होगा कि खाना कैसे खाओगे".. जिसके बोल आप विमल जी के ब्लॉग पर पढ़ सकते हैं। विमल भाई की आवाज़ का कायल तो मैं पिछली मुलाकात में ही हो चुका था। अब आप इस वीडियो को देखें और मुझे पूरा विश्वास है कि आप की राय मेरे से भिन्न नहीं होगी।
वीडियो ठीक से देखने के लिए स्क्रीन की ब्राइटनेस लेवल बढ़ा लें।
इसे सुनकर फ़ैज की नज़्म सब ताज उछाले जाएँगे, सब तख्त गिराए जाएँगे..की याद आ गई। यूनुस ने उसकी कुछ पंक्तियाँ सुनाईं। विमल जी ने फिर एक और गीत सुनाया। पुराने दिनों की याद करते हुए कहने लगे कि इसका असर ये होता है था
कि आस पास खड़े लोग भी ला....लल...ला... की तान में शामिल हो जाते थे। ऍसा ही हाल हमारे साथ भी हुआ। यहाँ देखें..
इसके बाद विमल जी ने मेरे पसंदीदा कवि गोपालदास नीरज की ये कविता खास 'नीरज' के अंदाज में सुनाईं
अब के सावन में शरारत भी मेरे साथ हुई
मेरे घर छोड़ के सारे शहर में बरसात हुई
इसी बीच प्रमोद जी, अनीता जी और अनिल भाई भी गीतों की इस महफ़िल में शामिल हो चुके थे। आते के साथ, अनिल रघुराज को हॉट सीट पर बैठा दिया गया और उन्होंने जो लोकगीत सुनाए वो यूनुस के चिट्ठे पर यहाँ मौजूद है।
गीतों का सिलसिला फिर विकास और मैंने आगे बढ़ाया। इस दोरान तीन घंटे कैसे बीते ये पता ही नहीं चला। सबने अनीता जी की लाई पूड़ी-सब्जी पर हा्थ साफ किया। अनीता जी के जाने के बाद महफ़िल गीतों से हटकर गंभीर चर्चा पर मुड़ी। घड़ी की सुईयाँ बढ़ती गईं। तकनीकी समस्याएँ, वेब रेडिओ, फिल्म निर्देशन, रोमन में हिंदी ब्लॉगिंग, सिनेमा देखने वाला दर्शक वर्ग, तरह-तरह के नए मुद्दे उछलते गए। रात्रि के बारह बजे तक ये सिलसिला चलता रहा और फिर सबने एक दूसरे से विदा ली।
दोस्तों, बहुत अच्छा लगा आप सब के साथ बिताई इन दो शामों का साथ। आशा है फिर आपसे मुलाकात होती रहेगी। तो चलते-चलते उस शाम का आनंद उठाएँ इन चित्रों के माध्यम से...
लो भई शुरु हो गया गप्पों का दौर...
पीली कमीज, लटकता चश्मा, चढ़ी आँखें..बालक तो बिना पिये मदहोश हो गया..
आओ बिखेरें फोटोजेनिक मुसकान !
मैं क्या जानूँ , क्या जानूँ क्या जादू है !
देखो कैसे बदले मेरे रंग चिट्ठाकारी के पहले...और अब चिट्ठाकारों के संग :) !
अरे अब तो मेमोरी कार्ड भी पूरा भर गया !
अब हर संडे के संडे, लेंगे तुमसे फंडे
किस्सा कुर्सी का...
रात होती गई..गुफ़्तगू चलती रही
पका डाला सालों ने...
11 टिप्पणियाँ:
मनीष जी,
इस ब्लॉग वार्ता को पढ़कर मन प्रसन्न हो गया. देखें आपसे रूबरू होने का मौका कब मिलता है |
बढ़िया विवरण के लिए साधुवाद |
वाह,वाह मनीष जी……आपका आँखों देखा हाल हम तक बखूबी पहुंचाने का बहुत आभार्……
मनीष जी जितना मजा आपको इन लोगों से मिलकर आया उतना ही मजा हमे आपकी पोस्ट पढ़कर आया।
भाई साहब एक बात तो तय है,वो यह कि विवरण देने में आपका कोई सानी नही!!
बहुत बढ़िया विवरण दिया है आपने!!
भैय्या पहली बार आपने मेरी अच्छी फोटो लगायी है. दिल गद्गद हो गया. ;)
मनीष भाई विमल जी के बारे में इतनी जानकारी पहली बार मिली, यह भीम खुशी हुई जान कर की उनका सम्बन्ध में साढे मंडी होउस से रहा है, बढ़िया विवरण
भई मनीष मजा आया । और हां ये कहना चाहते हैं कि खाना तो हम अनीता जी के घर खायेंगे ही और आपको जलाएंगे भी । वहीं से फोन करेंगे और सारा ब्यौरा देंगे कि हम क्या क्या खा रहे हैं । है ना विकास, तुम भी शामिल हो ना इसमें ।
मनीष जी, कितना अच्छी कमेंट्री कर लेते हैं आप !!और कितना कुछ याद रहता है आपको !पर आपने कुछ छोड़ा नहीं, कितने अच्छे हैं आप हम चीख चीख कर गाते रहे और आप इतने धैर्य से हमें सुनते रहे,थैकस कहने का मन हो रहा है, मै थोड़ा इन दिनों कुछ अलग कामों में व्यस्त था इसीलिये थोड़ा विलम्ब से आया हूं, पर सबकी खिचाई बड़ी सफ़ाई से किया है आपने, शुक्रिया, उस शाम की याद आपने वाकई ताज़ा कर दी,
hmmm....Manish jee, varshik sangeet mala 2007 ka aarambh kab hoga?
विवरण पसंद करने के लिए आप सबका शुक्रिया !
अनाम आप तो जानते ही हैं कि ये सिलसिला जनवरी के प्रारंभ में शुरु होता है।:)
bahut khoob Manish...pics bhi aur on per comments :)
Cheers
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