कई बार आप सब ने गौर किया होगा। रोजमर्रा की जिंदगी भले ही कितने तनावों से गुज़र रही हो, किसी से हँसी खुशी दो बातें कर लेने से मन हल्का हो जाता है। थोड़ी सी मुस्कुराहट मन में छाए अवसाद को कुछ देर के लिए ही सही, दूर भगा तो डालती ही है। पर दिक्कत तब होती है जब ऐसे क्षणों में आप बिलकुल अकेले होते हैं। बात करें तो किससे , मुस्कुराहट लाएँ तो कैसे ?
पर सच मानिए अगर ऍसे हालात से आप सचमुच गुजरते हैं तो भी किसी का साथ हर वक़्त आपके साथ रहता है। बस अपनी दिल की अँधेरी कोठरी से बाहर झाँकने भर की जरूरत है। जी हाँ, मेरा इशारा आपके चारों ओर फैली उस प्रकृति की ओर है जिसमें विधाता ने जीवन के सारे रंग समाहित किए हैं।
चाहे वो फुदकती चिड़िया का आपके बगीचे में बड़े करीने से दाना चुनना हो...
या फिर बाग की वो तितली जो फूलों के आस पास इस तरह मँडरा रही हो मानो कह रही हो..अरे अब तो पूरी तरह खिलो, नया बसंत आने को है और अभी तक तुम अपनी पंखुड़ियां सिकोड़े बैठे हो ?
या वो सनसनाती हवा जिसका स्पर्श एक सिहरन के साथ मीठी गुदगुदी का अहसास आपके मन में भर रहा हो....
या फिर झील का स्थिर जल जो हृदय में गंभीरता ला रहा हो...
या उफनती नदी की शोखी जो मन में शरारत भर रही हो..
या बारिश की बूदें जो पुरानी यादों को फिर से गीला कर रहीं हों...
या फिर बाग की वो तितली जो फूलों के आस पास इस तरह मँडरा रही हो मानो कह रही हो..अरे अब तो पूरी तरह खिलो, नया बसंत आने को है और अभी तक तुम अपनी पंखुड़ियां सिकोड़े बैठे हो ?
या वो सनसनाती हवा जिसका स्पर्श एक सिहरन के साथ मीठी गुदगुदी का अहसास आपके मन में भर रहा हो....
या फिर झील का स्थिर जल जो हृदय में गंभीरता ला रहा हो...
या उफनती नदी की शोखी जो मन में शरारत भर रही हो..
या बारिश की बूदें जो पुरानी यादों को फिर से गीला कर रहीं हों...
हम जितने तरह के भावों से अपनी जिंदगी में डूबते उतराते हैं, सब के सब तो हैं इस प्रकृति में किसी ना किसी रूप में...मतलब ये कि अपने आस पास की फ़िज़ा को जितना ही महसूस करेंगे, अपने दर्द, अपने अकेलेपन को उतना ही दूर छिटकता पाएँगे।
कुछ ऍसी ही बातें प्रसून जोशी ने अपने इस गीत में करनी चाही हैं फिल्म फिर मिलेंगे से लिया गया है। ये एक ऐसे युवती की कहानी है जिसे अचानक पता चलता है कि वो AIDS वॉयरस से संक्रमित है। प्रसून की लेखनी इस गीत में उसके इर्द गिर्द की ढहती दुनिया के बीच उजाले की किरण तलाशने निकलती है। मुझे हमेशा जानने का मन करता था कि इस गीत को लिखते हुए प्रसून के मन में क्या भाव रहे होगे। मुझे अपनी जिज्ञासा का उत्तर उनकी किताब धूप के सिक्के पढ़ते वक़्त मिला जहाँ उन्होंने इस गीत के बारे में लिखा..
"दुख और दर्द तो प्रकट हैं, पर मैं उन्हें उम्मीद के समक्ष बौना दिखाना चाहता था। यह ऐसा नहीं था कि कोई निराशा के अँधेरों में हो और उसे बलपूर्वक सूरज की रोशनी के सामने खड़ा कर दिया जाए। यहाँ भाव था हौले से मनाने का। यह कहने का कि देखो वह झरोखे से आती धूप की किरणें कितनी सुंदर दिखती हैंन? यह वैसे ही था कि आप दर्द से गुजर रहे व्यक्ति के गले में हाथ डालकर, धीरे से पूरी संवेदनशीलता के साथ उन छोटी छोटी मगर खूबसूरत बातों की ओर उसका ध्यान ले चलें, जिसे देख उसके मन में उम्मीद को गले लगाने की चाह जागे।"
मुझे ये गीत बेहद बेहद पसंद है और प्रसून के काव्यात्मक गीतों में ये मुझे सबसे बेहतरीन लगता है। इसे बड़ी संवेदनशीलता से गाया है बाम्बे जयश्री ने और इसकी धुन बनाई है शंकर एहसान और लॉ॓ए ने जो कमाल की है।
खुल के मुस्कुरा ले तू, दर्द को शर्माने दे
बूँदों को धरती पर साज एक बजाने दे
हवाएँ कह रही हैं आजा झूमें ज़रा
गगन के गाल को चल, जा के छू लें ज़रा
झील एक आदत है तुझमें ही तो रहती है
और नदी शरारत है, तेरे संग बहती है
उतार ग़म के मोजे जमीं को गुनगुनाने दे
कंकरों को तलवों में, गुदगुदी मचाने दे
खुल के मुस्कुरा ले तू, दर्द को शर्माने दे...
बाँसुरी की खिड़कियों पे सुर ये क्यूँ ठिठकते हैं
आँख के समंदर क्यूँ बेवजह छलकते हैं
तितलियाँ ये कहती हैं अब वसंत आने दे
जंगलों के मौसम को बस्तियों में छाने दे
खुल के मुस्कुरा ले तू, दर्द को शर्माने दे...
बूँदों को धरती पर साज एक बजाने दे
हवाएँ कह रही हैं आजा झूमें ज़रा
गगन के गाल को चल, जा के छू लें ज़रा
झील एक आदत है तुझमें ही तो रहती है
और नदी शरारत है, तेरे संग बहती है
उतार ग़म के मोजे जमीं को गुनगुनाने दे
कंकरों को तलवों में, गुदगुदी मचाने दे
खुल के मुस्कुरा ले तू, दर्द को शर्माने दे...
बाँसुरी की खिड़कियों पे सुर ये क्यूँ ठिठकते हैं
आँख के समंदर क्यूँ बेवजह छलकते हैं
तितलियाँ ये कहती हैं अब वसंत आने दे
जंगलों के मौसम को बस्तियों में छाने दे
खुल के मुस्कुरा ले तू, दर्द को शर्माने दे...
खूबसूरत बोल और बेहतरीन संगीत के इस संगम को कभी फुर्सत के क्षणों में सुनें, आशा है ये गीत आपको भी पसंद आएगा।
15 टिप्पणियाँ:
मनीषजी,
इस गीत को आज पहली बार सुना और बार बार सुना । पिछ्ले कई वर्षों से (~५) नयी फ़िल्मों के संगीत से एकदम बेखबर हूँ । आज ही पारूल जी के चिट्ठे पर पहेली फ़िल्म का एक मधुर गीत सुना था ।
लगता है दर्द-ए-डिस्को जैसे गीतों के साथ साथ अभी भी कुछ अच्छे गीत बन रहे हैं जिनको सुनना आनन्ददायक होता है :-)
मेरा प्रिय गीत है ये । प्रसून जी से विविध भारती पर जब इंटरव्यू किया था तब इस गीत पर लंबी चर्चा हुई थी । ये उनके भी पसंदीदा गीतों में से है । मुझे जो पंक्ति सबसे ज्यादा पसंद है वो है 'उतार गम के मोजे जमीं को गुनगुनाने दो' । बॉम्बे जयश्री ने मेरी जानकारी में केवल दो हिंदी गीत गाये हैं । इसके अलावा दूसरा गीत है 'जरा जरा बहकता है' फिल्म रहना है तेरे दिल में । उनके बारे में ज्यादा जानकारी ये रही
http://www.musicalnirvana.com/carnatic/bombay_jayashri.html#Profile
फिर से धन्यवाद इस गाने को लाने के लिए । तुमने बढि़या गुनगुनाया है । मजा आया ।
bahut sundar geet...aapney gaya bhi bahut khuub hai......shukriyaa
गीत बढिया है और आपका गुनगुनाना भी!!
बहुत खूबसूरत गीत.
प्रसून बाबू के काम का तो पहले से ही प्रशंशक रहा हूँ. आपको भी धन्यवाद.
very nice one... Manish jee....I heard first time but added in my fav...thanks for sharing...
बहुत ही शानदार गीत पहली बार ही सुना और अब बारिशो के मौसम में तो यही गाने सुनने में सुकून देते है
Bahut khoob. Prerak evam anukaraniya blog.
Waah ! Maine suna nhi tha...Par wakai bahut khoobsoorat hai
bahut achi post hai
प्रसून के गाने किसी अलग ही मिट्टी से गुंधे होते हैं.. ये तो हमारा पसंदीदा है... और आपने क्या ख़ूब लिखा है।
@Richa Gupta सही कहा आपने..प्रसून के लिखे गीतों में सबसे ज्यादा पसंद है ये मुझे। इस गीत में जो कविता है, उदासी में जो प्राकृतिक बिंबों से गुजरता उम्मीद भरा रास्ता है वो बेहद आकर्षित करता है।
इस गीत के बारे में जो कुछ भी कहा जा सकता है सब कह दिया आपने । हम तो बस इतना कह सकते हैं कि हर बार सुनकर निराश होता मन जीवित हो जाता हैं ।
गुलशन व दिशा आपने ये गीत पहली बार सुना और पसंद किया जानकर खुशी हुई क्यूँकि ये मेरे भी बेहद पसंदीदा नग्मा है। गीतों में इतनी प्यारी कविता कम ही दिखती है।
यदुनाथ जी शुक्रिया !
आशुतोष बिल्कुल सही कहा आपने। आलेख पसंद करने के लिए धन्यवाद !
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