मन मायूस हो और दिल बेहद भरा भरा सा तो अपनी आंतरिक पीड़ा बाहर निकालने की छटपटाहट हृदय को व्याकुल कर ही देती है और अपनी हताशा को निकलने के लिए ऍसे ही स्वर प्रस्फुटित होते हैं। बड़ी बखूबी निभाया है मुस्तफा ने इसे। दरअसल मुस्तफा ज़ाहिद ने ये गीत अपने एलबम Rozen-e-deewar (राक्सन) में खुद रचा था और वो २००६ में पाकिस्तान में बेहद लोकप्रिय हुआ था।
राहत फतेह अली खां और उसके बाद आतिफ असलम के संगीत को भारत के लोगों के बीच पहुँचाने वाले निर्देशक महेश भट्ट ने जब मुस्तफा ज़ाहिद का ये एलबम सुना तो उसे वो अपनी फिल्म 'आवारापन' में लेने के लिए तैयार हो गए। संगीत को प्रीतम ने फिर से पुनः संयोजित किया और सईद कादरी ने भी बोलों में और असर लाने के लिए थोड़े बदलाव किए। मैंने इस गीत के दोनों रूप आरंभिक और परिवर्त्तित दोनों सुने हैं और उस हिसाब से प्रीतम और कादरी साहब ने गीत को भावनाओं को और पुरजोर ढ़ंग से रखा है।
पर गीत के असली हीरो मुस्तफा ज़ाहिद हैं। २५ वर्षीय मुस्तफा को जब ये गीत गाने को कहा गया तो उन्होंने स्टूडिओ की पूरी बत्तियाँ बंद करने की मांग की। ज़ाहिद कहते हैं कि फिल्म के निर्देशक मोहित सूरी ने कहा कि ये गीत फिल्म के climax में आता है और तुम्हें इसे इस तरह गाना है कि इसकी हर पंक्ति से वो दर्द उभरे जो नायक का किरदार महसूस कर रहा है। तो मुस्तफा ज़ाहिद ने ये गाना घने अंधकार में गाया और जब वो रिकार्डिंग स्टूडियो से बाहर निकले तो उनकी आँखों की लाली किसी से छुप नहीं रही थी।
तो फिर आओ मुझको सताओ
तो फिर आओ मुझको रुलाओ
दिल बादल बने, आँखें बहने लगें
आहें ऍसे उठें जैसे आँधी चले
तो फिर आओ मुझको सताओ
तो फिर आओ मुझको रुलाओ
आ भी जाओ.....
ग़म ले जा तेरे, जो भी तूने दिए
या फिर मुझको बता, इनको कैसे सहें
तो फिर आओ मुझको सताओ
तो फिर आओ मुझको रुलाओ,
आ भी जाओ, आ भी जाओ,......
अब तो इस मंज़र से, मुझको चले जाना है
इन राहों पे मेरा यार है
उन राहों को मुझे पाना है
तो फिर आओ मुझको सताओ
तो फिर आओ मुझको रुलाओ,
आ भी जाओ, आ भी जाओ......
तो फिर आओ मुझको रुलाओ
दिल बादल बने, आँखें बहने लगें
आहें ऍसे उठें जैसे आँधी चले
तो फिर आओ मुझको सताओ
तो फिर आओ मुझको रुलाओ
आ भी जाओ.....
ग़म ले जा तेरे, जो भी तूने दिए
या फिर मुझको बता, इनको कैसे सहें
तो फिर आओ मुझको सताओ
तो फिर आओ मुझको रुलाओ,
आ भी जाओ, आ भी जाओ,......
अब तो इस मंज़र से, मुझको चले जाना है
इन राहों पे मेरा यार है
उन राहों को मुझे पाना है
तो फिर आओ मुझको सताओ
तो फिर आओ मुझको रुलाओ,
आ भी जाओ, आ भी जाओ......
तो जनाब आप भी शांत माहौल में इस गीत को सुनें इसका असर खुद-ब-खुद महसूस करेंगे
इस संगीतमाला के पिछले गीत
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6 टिप्पणियाँ:
काफ़ी दफ़ा टीवी पर उड़ते-उड़ते ये गीत सुना है…आज आपके सहयोग से पूरा सुन पायी हूं………अजब सी पुकार है -बोल , धुन व आवाज़ में…शुक्रिया मनीष ………
साल भर नहीं सुन पाते इसकी परवाह नहीं।धन्यवाद।
मनीष जी ,कया गीत हे अति सुन्दर ध्न्यवाद
पहली बार पूरा सुना - आम गीतों से अलग हट कर है - अकेले सुना - आवाज़ में अनमना दुःख भी लगा - संयोजन पाश्चात्य rock के पहले सुने की याद दिला गया - शुरू और अंत का गिटार एकदम "scorpions" के "always somewhere" जैसा लगा - thanks n rgds manish
जोशिम भाई इस जानकारी का शुक्रिया ! पाश्चात्य संगीत कॉलेज के दिनों के बाद से ज्यादा नहीं सुन पाया हूँ। वैसे प्रीतम इधर उधर से धुनें लेने में पहले से माहिर रहे हैं। पर मुस्तफा की आवाज दिल में वो मायूसी ले आती है जो वो व्यक्त करना चाहते हैं।
पारुल, अफ़लू और राज भाई गीत पसंद करने का शुक्रिया !
I like this song a lot!! One of my favs of 2007.
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