दफ़्तर के दौरों की वज़ह से ये संगीतमाला अटकती हुई आगे बढ़ रही है और इसके लिए मैं क्षमाप्रार्थी हूँ। आज सुबह ही नागपुर से लौटा हूँ और रात में फिर एक दूसरे काम से प्रस्थान करना है। खैर ये सब तो चलता ही रहेगा । तो आज आपके सामने है इस संगीतमाला की पायदान १७ जिस पर एक ऐसी फिल्म का गीत है जिसके गाने इस पूरी श्रृँखला में दो तीन बार नहीं बल्कि पूरे चार बार बजने वाले हैं। जी हाँ मैं बात कर रहा हूँ 'तारे जमीं पर' कि जिसका मूल विषय नन्हे बच्चों की जिंदगी से जुड़ा है। अब जहाँ बच्चे हों और मौज मस्ती का माहौल ना हो ऍसा कहीं हो सकता है।
मेरे प्रिय गीतकार प्रसून जोशी ने बच्चों की इसी उमंग को बनाए रखा है अपने खूबसूरत बोलों के लिए। बच्चे कितना खुले दिमाग से सोचते हैं..उनकी कल्पनाएँ बिना किसी पूर्वाग्रह के रचित होती हैं..इस ख्याल को प्रसून इतने बेहतरीन अंदाज़ में शब्दों का जामा पहनाते हैं कि मन उनकी इस काबिलियत को नमन करने को होता है।
अब देखिए तो बारिश को आसमान के नल खुले होने से जोड़ना , या पेड़ की जगह किसी व्यक्ति के लबादा ओढ़ खड़े होने की बात हो। ये सोच सहज ही एक बाल मन को सामने ले आती है। प्रसून ने साथ ही इस गीत और इस फिल्म के अन्य गीतों में भी वर्तमान शैक्षिक प्रणाली में रट्टेबाजी की अहमियत को आड़े हाथों लेते हुए मौलिक चिंतन को तरज़ीह देने पर बल दिया है। उनकी ये सोच निश्चय ही प्रशंसनीय है और इस गीत के माध्यम से एक अच्छा संदेश देने में सफल रहे हैं।
इस गीत को संगीतबद्ध किया है शंकर-अहसान-लॉए की तिकड़ी ने और इसे स्वर दिया है शान के साथ खुद आमिर खान ने। कुल मिलाकर ये एक ऍसा गीत है जो बच्चों के साथ साथ बड़ों को भी गुनगुनाने में बेहद आनंद देता है। मैंने इसके बोलों को गीत के साथ सुनते हुए लिखने की कोशिश की है ताकि गीत सुनते सुनते आप भी आमिर की तरह अक्को टक्को करते चलें :)।
चका चका ची चा चो चक लो रम
गंडो वंडो लाका राका टम
अक्को टक्को इडि इडि इडि गो
इडि पाई विडि पाई चिकी चक चो
गिली गिली मल सुलु सुलु मल
माका नाका हुकू बुकू रे
टुकू बुकू रे चाका लका
बिक्को चिक्को सिली सिली सिली गो
बगड़ दुम चगड़ दुम चिकी चका चो
देखो देखो क्या वो पेड़ है
चादर ओढ़े या खड़ा कोई
बारिश है या आसमान ने
छोड़ दिए हैं नल खुले कहीं
हो... हम जैसे देखें ये ज़हां है वैसा ही
जैसी नज़र अपनी
खुल के सोचें आओ
पंख जरा फैलाओ
रंग नए बिखराओ
चलो चलो चलो चलो
नए ख्वाब बुन लें
हे हे हे........
सा पा, धा रे, गा रे, गा मा पा सा
बम बम बम, बम बम बम बोले
बम चिक बोले, अरे मस्ती में डोले
बम बम बोले.....मस्ती में डोले
बम बम बोले..मस्ती में तू डोल रे
भला मछलियाँ भी क्यूँ उड़ती नहीं
ऐसे भी सोचो ना
सोचो सूरज, रोज़ नहाए या
बाल भिगोके ये, बुद्धू बनाए हमें
ये सारे तारे, टिमटिमाए
या फ़िर गुस्से में कुछ बड़बड़ाते रहें
खुल के सोचें आओ
पंख जरा फैलाओ
रंग नए बिखराओ
चलो चलो चलो चलो
नए ख्वाब बुन लें
हे हे हे........
बम बम बोले.....मस्ती में डोले
बम बम बोले..मस्ती में तू डोल रे
ओ रट रट के क्यूँ टैंकर फुल
...टैंकर फुल टैंकर फुल...
आँखें बंद तो डब्बा गुल
... डब्बा गुल डब्बा गुल...
ओए बंद दरवाजे खोल रे
...खोल रे खोल रे खोल रे...
हो जा बिंदास बोल रे
...बोल बोल बोल बोल रे
मैं भी हूँ तू भी है
मैं भी तू भी हम सब मिल के
बम चिक, बम बम चिक, बम बम चिक, बम बम चिक
बम बम बम
ऍसी रंगों भरी अपनी दुनिया हैं क्यूँ
सोचो तो सोचो ना
प्यार से चुन के इन रंगों को
किसी ने सजाया ये संसार है
जो इतनी सुंदर, है अपनी दुनिया
ऊपर वाला क्या कोई कलाकार है
खुल के सोचें आओ
पंख जरा फैलाओ
रंग नए बिखराओ
चलो चलो चलो चलो
नए ख्वाब बुन लें
बम बम बोले.....मस्ती में डोले
बम बम बोले..मस्ती में तू डोल रे
तो आइए सुनें १७ वीं पायदान का ये गीत
6 टिप्पणियाँ:
ध्न्य्वाद इस गीत के लिये
बॉस - यही नही - इसके सारे गाने टोटल ज़बरदस्त रहे - आजकल धिनगाना में हर शाम इसका पार्श्व संगीत चल रहा है [खोया खोया चाँद के साथ ] - rgds - manish
इस बार आपकी इस संगीत माला मे साथ नही चल सकी....बच्चों वाला ये गीत बहुत अच्छा है और आपकी समीक्षा भी...
राज भाई आपका भी शुक्रिया गीत पसंद करने का।
जोशिम बिलकुल सही कहा आपने पूरा एलबम ही जबरदस्त है और इसीलिए मैंने लिखा है कि इस पूरी श्रृंखला में इस फिल्म के चार गीत हैं और पाँचवा भी आते आते रह गया।
रचना जी कोई बात नहीं ,अब से साथ हो लीजिए :)
I hv never seen the movie like TZP in bollywood before.This is an exceptional movie with lovely music.
Hi Nandu
I have not seen the movie yet but it seems to be promising. As far as its music is concerned I totally agree that its fabulous.
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