पर क्या सारे बच्चे ऍसा कर पाते हैं?
अगर ऍसा हो पाता तो अवसाद, अलगाव और यहाँ तक की अपने जीवन को समाप्त करने की निरंतर होती घटनाओं को अपने सामने घटते हुए हम नहीं देख रहे होते।
गीत के पहले हिस्से में जहाँ लायक कहलाने वाले बच्चों की जीवनशैली का चित्रण है तो दूसरे में ठीक इससे पलट वैसे बच्चों का जो अपनी ही दुनिया में जीने की तमन्ना रखते हैं पर ये शिक्षा प्रणाली और ऊपर उठने की ये दौड़ उन्हें वैसा करने नहीं देती। शंकर-अहसॉन-लॉए ने अपने संगीत को गीत के मूड के हिसाब से बदलते रखा है।
गीत के पहले हिस्से में जहाँ लायक कहलाने वाले बच्चों की जीवनशैली का चित्रण है तो दूसरे में ठीक इससे पलट वैसे बच्चों का जो अपनी ही दुनिया में जीने की तमन्ना रखते हैं पर ये शिक्षा प्रणाली और ऊपर उठने की ये दौड़ उन्हें वैसा करने नहीं देती। शंकर-अहसॉन-लॉए ने अपने संगीत को गीत के मूड के हिसाब से बदलते रखा है।
ये गीत मुझे अगर इतना पसंद है तो वो इस वज़ह से कि बच्चों के इस दर्द को इतनी सहजता से ऊपर लाते हुए ये दिल पर सीधी चोट करता है। ये अहसास दिलाता है कि समाज के एक हिस्से के रूप में चाहे माता-पिता या अध्यापक की हैसियत से, इस तंत्र को फलने फूलने में हमारा भी कुछ दोष बनता है।
तो पहले पढ़ें प्रसून जोशी के उठाए गए इन मासूम से सवालों को..
कस के जूता कस के बेल्ट
खोंस के अंदर अपनी शर्ट
मंजिल को चली सवारी
कंधों पे जिम्मेदारी
हाथ में फाइल मन में दम
मीलों मील चलेंगे हम
हर मुश्किल से टकराएँगे
टस से मस ना होंगे हम
दुनिया का नारा जमे रहो
मंजिल का इशारा जमे रहो
दुनिया का नारा जमे रहो
मंजिल का इशारा जमे रहो
ये सोते भी हैं अटेन्शन
आगे रहने की हैं टेंशन
मेहनत इनको प्यारी है
एकदम आज्ञाकारी हैं
ये आमलेट पर ही जीते हैं
ये टॉनिक सारे पीते हैं
वक़्त पे सोते वक़्त पे खाते
तान के सीना बढ़ते जाते
दुनिया का नारा जमे रहो
मंजिल का इशारा जमे रहो...
***********************************************************
यहाँ अलग अंदाज़ है
जैसे छिड़ता कोई साज़ है
हर काम को टाला करते हैं
ये सपने पाला करते हैं
ये हरदम सोचा करते हैं
ये खुद से पूछा करते हैं
क्यूँ दुनिया का नारा जमे रहो ?
क्यूँ मंजिल का इशारा जमे रहो ?
ये वक़्त के कभी गुलाम नहीं
इन्हें किसी बात का ध्यान नहीं
तितली से मिलने जाते हैं
ये पेड़ों से बतियाते हैं
ये हवा बटोरा करते हैं
बारिश की बूंदे पढ़ते हैं
और आसमान के कैनवस पे
ये कलाकारियाँ करते हैं
क्यूँ दुनिया का नारा जमे रहो ?
क्यूँ मंजिल का इशारा जमे रहो ?
शायद आपके पास इन प्रश्नों का कोई सीधा सादा हल ना हो पर ये गहन चिंतन का विषय है इस बात से आप इनकार नहीं कर सकेंगे।
कस के जूता कस के बेल्ट
खोंस के अंदर अपनी शर्ट
मंजिल को चली सवारी
कंधों पे जिम्मेदारी
हाथ में फाइल मन में दम
मीलों मील चलेंगे हम
हर मुश्किल से टकराएँगे
टस से मस ना होंगे हम
दुनिया का नारा जमे रहो
मंजिल का इशारा जमे रहो
दुनिया का नारा जमे रहो
मंजिल का इशारा जमे रहो
ये सोते भी हैं अटेन्शन
आगे रहने की हैं टेंशन
मेहनत इनको प्यारी है
एकदम आज्ञाकारी हैं
ये आमलेट पर ही जीते हैं
ये टॉनिक सारे पीते हैं
वक़्त पे सोते वक़्त पे खाते
तान के सीना बढ़ते जाते
दुनिया का नारा जमे रहो
मंजिल का इशारा जमे रहो...
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यहाँ अलग अंदाज़ है
जैसे छिड़ता कोई साज़ है
हर काम को टाला करते हैं
ये सपने पाला करते हैं
ये हरदम सोचा करते हैं
ये खुद से पूछा करते हैं
क्यूँ दुनिया का नारा जमे रहो ?
क्यूँ मंजिल का इशारा जमे रहो ?
ये वक़्त के कभी गुलाम नहीं
इन्हें किसी बात का ध्यान नहीं
तितली से मिलने जाते हैं
ये पेड़ों से बतियाते हैं
ये हवा बटोरा करते हैं
बारिश की बूंदे पढ़ते हैं
और आसमान के कैनवस पे
ये कलाकारियाँ करते हैं
क्यूँ दुनिया का नारा जमे रहो ?
क्यूँ मंजिल का इशारा जमे रहो ?
शायद आपके पास इन प्रश्नों का कोई सीधा सादा हल ना हो पर ये गहन चिंतन का विषय है इस बात से आप इनकार नहीं कर सकेंगे।
और हाँ एक बात और, तारे जमीं पर फिल्म के इस गीत को देखते हुए सबको अपने घर के सुबह वाली भागमभाग के दृश्य जरूर याद आएँगे।
इस संगीतमाला के पिछले गीत
- पायदान १० - आमि जे तोमार... गीत - समीर संगीत - प्रीतम चलचित्र - भूलभुलैया
- पायदान ११ - धागे तोड़ लाओ चाँदनी से नूर के... गीत - गुलज़ार संगीत- शंकर-अहसान-लॉए चलचित्र- झूम बराबर झूम
- पायदान १२ - हम तो ऐसे हैं भैया.. गीत - स्वानंद किरकिरे संगीत- शान्तनु मोइत्रा चलचित्र - लागा चुनरी में दाग
- पायदान १३ - ना है ये पाना, ना खोना ही है गीत - इरशाद कामिल संगीत- प्रीतम चलचित्र - जब वी मेट
- पायदान १४ - चंदा रे चंदा रे धीरे से मुसका.. गीत - स्वानंद किरकिरे संगीत- शान्तनु मोइत्रा चलचित्र - एकलव्य दि रॉयल गार्ड
- पायदान १५ - जब भी सिगरेट जलती है.. गीत - गुलज़ार संगीत - विशाल भारद्वाज चलचित्र - नो स्मोकिंग'
- पायदान १६ - रोज़ाना जिये रोज़ाना मरें.. गीत - मुन्ना धीमन संगीत - विशाल भारद्वाज चलचित्र - निशब्द
- पायदान १७ - बम बम बोले..... गीत - प्रसून जोशी संगीत - शंकर-अहसान-लॉए चलचित्र - तारे जमीं पर
- पायदान १८ - हलके हलके रंग छलके ..... गीत - जावेद अख्तर संगीत - विशाल-शेखर चलचित्र - हनीमून ट्रैवल्स प्राइवेट लिमिटेड
- पायदान १९ - लमहा ये जाएगा कहाँ..... गीत - प्रशांत पांडे संगीत - अग्नि चलचित्र - दिल दोस्ती ईटीसी
- पायदान २० - जिंदगी ने जिंदगी भर गम दिए... गीत - सईद क़ादरी संगीत - मिथुन चलचित्र - दि ट्रेन
7 टिप्पणियाँ:
सुंदरतम गीत । मुझे ये गीत कुछ ज्यादा ही पसंद है । बच्चों के नजरिये से बहुत कम गीत लिखे जाते हैं । बहुत पहले मजरूह ने लिखा था--वो तो है अलबेला हजारों में अकेला सदा तुमने ऐब देखा हुनर तो ना जाना । और तमाम होपलेस चिल्ड्रन के लिए ये गीत एक एन्थेम बन गया था । अब तारे जमीं पर ने भी इसी तरह का एंथेम दिया है । शुक्रिया मनीष ।
अच्छी लगी आपकी पसंद । वैसे इस फिल्म के तो सभी गाने अच्छे है।
प्रसूनजी की कलम से झरने वाली संवेदनाओं के हम भी कायल हैं.
शुक्रिया इस गीत के लिए.
I just love this song!!!
यार मुझे भी ये कविता खासी पसंद है [ हॉल में झटका लगा था देखते वक्त ] - इसका पहला सफा जवानी / नौकरी की याद देता है और दूसरा स्कूल हॉस्टल की लेफ्ट राईट की [ तीसरा सपने में रहा] - - दूसरी बात पता नहीं क्यों इसे मैं pink floyd के another brick in the wall से मिलता सुनता हूँ - [कान बजते होंगे[:-)] ] - rgds - मनीष
in sawaalon ke jawab to shayad hi kisi ke paas hon. alag andaz me zindagi jeene walon ke saath aksar duniya yahi salook karti hai.
यूनुस यथार्थ केइतना करीब लगता है इसीलिए दिल पर इसका असर ज्यादा होता है।
जोशिम बिलकुल मेरी भी ऍसी ही भावनाएँ हैं। आपने Pink floyd के जिस गीत का जिक्र किया उसकी लिंक दीजिएगा ।
रचना जी, भुवनेश गीत और प्रसून जोशी के बोल आपको भी अच्छे लगे जानकर खुशी हुई।
चारु सही कहा तुमने। तकलीफ़ तो ज्यादा होती है लीक से हट कर चलने वालों को पर उनमें से ही कुछ नया रास्ता भी देते हैं समाज को।
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