सुदर्शन साहब ने अपने जीवन का एक अहम हिस्सा पंजाब के शहर जालंधर में बिताया। जालंधर के डी ए वी कॉलेज से राजनीति शास्त्र और अंग्रेजी में परास्नातक की डिग्री प्राप्त करने वाले फ़ाकिर ७३ साल की उम्र में एक लंबी बीमारी के बाद गत सोमवार को अपना शहर छोड़ गए। युवावस्था से फ़ाकिर को रंगमंच और शायरी का शौक था। कॉलेज के जमाने में मोहन राकेश का लिखा नाटक 'आषाढ़ का एक दिन' का उन्होंने निर्देशन किया और वो जनता द्वारा काफी सराहा भी गया। कुछ दिनों तक उन्होंने रेडिओ जालंधर में काम किया और फिर मुंबई चले आए।
अस्सी के दशक में जगजीत-चित्रा की जोड़ी को जो सफलता मिली उसमें सुदर्शन फा़किर की लिखी नायाब ग़ज़लों का एक अहम हिस्सा था। वो कागज़ की कश्ती.. इश्क़ ने गैरते जज़्बात..और पत्थर के ख़ुदा पत्थर के सनम पत्थर के ही इंसां पाए हैं... का जिक्र तो यूनुस अपनी पोस्ट में कर ही चुके हैं । सुदर्शन साहब की जो नज़्में और ग़ज़लें मेरे दिल के बेहद करीब रहीं हैं उनका एक छोटा सा गुलदस्ता मैं अपनी इस प्रविष्टि के माध्यम से श्रृद्धांजलि स्वरूप उन्हें अर्पित करना चाहता हूँ....
बात १९९४ की है जब इनकी ये ग़ज़ल सुनी थी और इसका नशा वर्षों दिल में छाया रहता था । आज भी जब इनकी ये ग़ज़ल गुनगुनाता हूँ तो वही मस्ती मन में समा जाती है।
चराग़-ओ-आफ़ताब ग़ुम, बड़ी हसीन रात थी
शबाब की नक़ाब ग़ुम, बड़ी हसीन रात थी
मुझे पिला रहे थे वो कि ख़ुद ही शम्मा बुझ गयी
गिलास ग़ुम शराब ग़ुम, बड़ी हसीन रात थी
लिखा था जिस किताब में, कि इश्क़ तो हराम है
हुई वही किताब ग़ुम, बड़ी हसीन रात थी
लबों से लब जो मिल गये, लबों से लब जो सिल गये
सवाल ग़ुम जवाब ग़ुम, बड़ी हसीन रात थी
जगजीत जी ने इस ग़ज़ल को गाया भी बड़ी खूबसूरती से है।
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फ़ाकिर ने कुछ फिल्मों के लिए गीत भी लिखे। फिल्म यलगार के संवाद लेखन भी उन्होंने किया। NCC कैम्पस में गाया जाने वाला समूह गान उन्हीं का रचा हुआ है। पर असली शोहरत उन्हें अपनी ग़ज़लों से ही मिली। सीधे सहज शब्दों से गहरी बात कहने का हुनर उनके पास था। अब इन्हीं शेरों पर गौर करें मरी मरी सी जिंदगी को ढ़ोने की मजबूरी पर क्या तंज कसे हैं उन्होंने बिना किसी कठिन शब्द का सहारा लिए हुए
किसी रंजिश को हवा दो कि मैं ज़िंदा हूँ अभी
मुझ को एहसास दिला दो कि मैं ज़िंदा हूँ अभी
मेरे रुकने से मेरी साँसे भी रुक जायेंगी
फ़ासले और बढ़ा दो कि मैं ज़िंदा हूँ अभी
ज़हर पीने की तो आदत थी ज़मानेवालो
अब कोई और दवा दो कि मैं ज़िंदा हूँ अभी
चलती राहों में यूँ ही आँख लगी है 'फ़ाकिर'
भीड़ लोगों की हटा दो कि मैं ज़िंदा हूँ अभी
आइए सुने इस ग़ज़ल को चित्रा सिंह की आवाज़ में
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सुदर्शन फ़ाकिर ने ना केवल अपनी ग़जलों से कमाल पैदा किया बल्कि कई खूबसूरत नज़्में भी लिखीं। उनकी ये नज़्म मुझे सरहद पार के एक मित्र से करीब दस वर्षों पहले पढ़ने को मिली और ये तभी से मेरी प्रिय नज़्मों में एक है।
ये शीशे ये सपने ये रिश्ते ये धागे
किसे क्या ख़बर है कहाँ टूट जायें
मुहब्बत के दरिया में तिनके वफ़ा के
न जाने ये किस मोड़ पर डूब जायें
अजब दिल की बस्ती अजब दिल की वादी
हर एक मोड़ मौसम नई ख़्वाहिशों का
लगाये हैं हम ने भी सपनों के पौधे
मगर क्या भरोसा यहाँ बारिशों का
मुरादों की मंज़िल के सपनों में खोये
मुहब्बत की राहों पे हम चल पड़े थे
ज़रा दूर चल के जब आँखें खुली तो
कड़ी धूप में हम अकेले खड़े थे
जिन्हें दिल से चाहा जिन्हें दिल से पूजा
नज़र आ रहे हैं वही अजनबी से
रवायत है शायद ये सदियों पुरानी
शिकायत नहीं है कोई ज़िन्दगी से
फ़ाकिर की एक और खूबसूरत ग़ज़ल है शायद मैं ज़िन्दगी की सहर जिसे गुनगुनाना मुझे बेहद प्रिय है..
शायद मैं ज़िन्दगी की सहर ले के आ गया
क़ातिल को आज अपने ही घर लेके आ गया
ता-उम्र ढूँढता रहा मंज़िल मैं इश्क़ की
अंजाम ये कि गर्द-ए-सफ़र लेके आ गया
नश्तर है मेरे हाथ में, कांधों पे मैक़दा
लो मैं इलाज-ए-दर्द-ए-जिगर लेके आ गया
"फ़ाकिर" सनमकदे में न आता मैं लौटकर
इक ज़ख़्म भर गया था इधर लेके आ गया
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फ़ाकिर के बारे में उनके मित्र कहते हैं कि वो अपने आत्मसम्मान पर कभी आंच नहीं आने देते थे। छोटी छोटी बातों पर वे कभी समझौता नहीं करते थे। फ़ाकिर ने अपनी शायरी में जिंदगी और समाज के अनेक पहलुओं को छुआ चाहे वो बचपन की यादें हो, युवावस्था के स्वप्निल दिन, समाज की असंवेदनशीलता हो या बढ़ती सांप्रदायिकता। मिसाल के तौर पर उनकी ये ग़ज़ल देखें..
आज के दौर में ऐ दोस्त ये मंज़र क्यूँ है
ज़ख़्म हर सर पे हर इक हाथ में पत्थर क्यूँ है
जब हक़ीक़त है के हर ज़र्रे में तू रहता है
फिर ज़मीं पर कहीं मस्जिद कहीं मंदिर क्यूँ है
अपना अंजाम तो मालूम है सब को फिर भी
अपनी नज़रों में हर इन्सान सिकंदर क्यूँ है
ज़िन्दगी जीने के क़ाबिल ही नहीं अब "फ़ाकिर"
वर्ना हर आँख में अश्कों का समंदर क्यूँ है
फ़ाकिर आज हमारे बीच नहीं हैं पर उनकी भाषाई क्लिष्टता से मुक्त सीधे दिल तक पहुँचने वाली शायरी हमेशा हमारे साथ रहेगी।
सुदर्शन साहब की ग़जलों का संग्रह आप कविताकोश में पढ़ सकते हैं
(सुदर्शन फ़ाकिर के बारे में व्यक्तिगत जानकारी पंजाब के अंग्रेजी अखबार 'दि ट्रिब्यून' से साभार)
22 टिप्पणियाँ:
जानकारी से भरी बड़ी खुबसूरत सी पोस्ट....कहने में थोड़ी शर्म तो आ रही है लेकिन इन सारी प्रसिद्ध गज़लों और नज़्मों मे डूबते हुए एक बार ये नही समझना चाहा कि ये खूबसूरत अल्फ़ाज़ लिखने वाला कौन होगा...?
पोस्ट पढ़ कर काफी चीजें याद आने लगीं आषाढ़ का एक मेरा पसंदीदा नाटक है... सुना है कि रंगमंच पर नसीरुद्दीन और दीप्तिनवल ने भी इसे अभिनीत किया है... बड़ी इच्छा थी कि कभी मै भी देख सकती...!
चराग़-ओ-आफ़ताब ग़ुम,
मुझसे ज्यादा मेरे भइया को पसंद है।
चलती राहों में यूँ ही आँख लगी है 'फ़ाकिर'
भीड़ लोगों की हटा दो कि मैं ज़िंदा हूँ अभी
पीछे रह गए फाकिर साहब के अपने शायद आज भी यही सोच रहे होंगे कि काश उनका ये शेर सच हो जाए...!
ये शीशे ये सपने ये रिश्ते ये धागे
किसे क्या ख़बर है कहाँ टूट जायें
आॡ की आवाज़ में सुन कर बहुत अच्छा लगा..... जगजीत सिंह की आवाज़ मे आयी इस नज़्म की कैसेट का हर गीत मुझे बहुत भाता है......!
आज के दौर में ऐ दोस्त ये मंज़र क्यूँ है
ज़ख़्म हर सर पे हर इक हाथ में पत्थर क्यूँ है
हर संवेदनशील मन के उथते हुए सवाल...!
मेरी श्रद्धांजली......!
मनीषजी,हमारी भावभीनी श्रद्धांजलि सुदर्शन जी को,मनीष जी आपने अच्छी जानकारी दी है,और गज़लें भी चुन चुन के चढ़ाई है,यूनुसजी ने भी अच्छा लिखा है,सहारा समय पर जगजीत सिंह जी ने उनको याद करते हुए कुछ अच्छी गज़लें सुनाई थी,वहीं उनके बारे में बहुत कुछ पता चला, वैसे सुदर्शन जी को जगजीत चित्रा ने गाया भी खूब अच्छा है......अच्छी पोस्ट और इस तरह सुदर्शन जी के बारे में जानकारी दी शुक्रिया
फ़ाकिर साहब को श्रधांजलि।
अषाढ़ का एक दिन नाटक के निर्देशक फ़ाकिर साहब थे । ये बात तो हमे भूल ही गई थी।
इतनी खूबसूरत गजलों को पढ़्कर मन बाग बाग हो गया.
मनीष भाई
लबों से लब जो मिल गये, लबों से लब जो सिल गये
सवाल ग़ुम जवाब ग़ुम, बड़ी हसीन रात थी
ऐसे नायब शायर पर लिखने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद. हम जगजीत- चित्रा जी के शुक्र गुज़ार हैं की उन्होंने सुदर्शन जी की ग़ज़लों से हमें रूबरू करवाया. शायरी की खूबसूरती को जैसा उन्होंने अपने सरल अंदाज़ में निखारा है वो बेमिसाल है. सुदर्शन जी अपने आप को बाज़ार में बेच नहीं पाये इसलिए अवाम शायद उनको उनको उतना नहीं जानता जितने के वो हक़दार थे. मेरी उनको विनम्र श्रद्धांजलि
नीरज
post bahut acchhi lagi manish ji......
सुरीली श्रद्धांजलि पोस्ट। फाकिर साहब के बारे में रवीन्द्र कालिया ने भी कुछ संस्मरण लिखे हैं। ग़ालिब छुटी शराब में भी उनका जिक्र है शायद ...
मनीष बड़ी शिद्दत से याद किया तुमने फाकिर साहब को । पुरानी यादें ताज़ा हो गयीं । ख़ासतौर पर जगजीत सिंह का वो अलबम याद आ गया 'दि लेटेस्ट' जिसमें सारी रचनाएं फाकिर साहब की थीं ।
ऐसी श्रृद्धांजली पोस्ट कम ही देखने में आती है..इतनी सारी जानकारी के साथ..भावभीनी श्रद्धांजलि सुदर्शन जी को.
fakir sahab ki nazmein mujhe hamesha se hi bahut pasand rahi hain. khaaskar ke " main zinda hoon abhi." aapka unhe sraddhanjali dene ka tareeka behad hi pasand aaya. meri unhe bhaavbheeni shradhhanjali.
मनीष - फाकिर साहब को इतना सलीके से जिलाया है कि मायूसी में गर्व मिल गया - अभी यूनुस के यहाँ देखा - एक तरह से जगजीत साहब और चित्रा जी के गाए सबसे पसंदीदा (मेरे) कलाम फाकिर साहब के ही हैं - मनीष
mein to yahan ye sochkar aayee thi ke agle paydan ki geet sun sakoon.. lekin ye kya! Bahut hee dard bhari khabar parhi yahan waqai dil ko laga jaise koi apna juda hogaya !
Meine Faakir ji ki ghazalein aksar Jagjit Singh ki awaz mein suni hai aur ye hamesha ke ghazal hein jo mein sunti hoon...aaj ke baad woh khalipan bana rahega... :(
Mujhe iss waqt oonki likhi ye sher yaad aaraha hai
"aadamii aadamii ko kyaa degaa
jo bhii degaa vahii Khudaa degaa "
Allah oonhein jannat ada karein - ameen
फाकिर साहब के चले जाने की खबर सुनकर दु:ख हुआ. जगजीत जी की गजलों ने मेरा परिचय फाकिर साहब से कराया. ईश्वर फाकिर साहब की आत्मा को शांति प्रदान करे.
सुदर्शन फ़ाकिर के प्रति श्रृद्धांजलि में साथ शरीक होने और उनकी शायरी के प्रति अपने विचार प्रकट करने के लिए तहे दिल से आप सब का शुक्रगुजार हूँ.
Sudarshan Faakir has been with me and I grew up with his Ghazals, sung by many singers. One of my favorite is
Dhal gayaa aafataab ai saaqii
laa pilaa de sharaab ai saaqii
sung by Jugjit Singh.
I am 43, it is so hard to even imagine that creator of such beautiful poetry is no more among us. My heart cries over such an immense loss to Urdu Ghazal. I will not hide my sorrow. It’s unfathomable. We lost a great Urdu poet. God bless his soul in Heavens. Sudarshan Sahib will always be among us and his Ghazals will keep playing in every house around the world.
G.Khan
Peshawar, Pakistan.
Ghaffar Khan sahab
aadaab
I agree with what you have said about Faakir sahab.His demise was a great loss to all poetry lovers. The ghazal you referred is a beautiful one sung by Jagjit ji.
Thanks for expressing your view
Manish
aapki har post kuch anuthi hoti hai.
likhte rahuye
Shukriya Surbhi, hauslafzahi ke liye.
For all Faakir Lovers....
The Famous Dhun "Hey Ram ... Hey Ram" has also been Penned down by Late.Sudarshan Faakir.
Our National Song for NCC - "Hum Sabh Bhartiye Hain" was written by him only.
If you require Any more Info. or details of his Work, Plz contact me at manavfaakir@yahoo.com
My Sincere Regards for Manish Ji.
Love,
Manav Faakir
mai bahut time se ek site ki serch me tha jahan ghazal ki asli tasveer mile but koi nahi mili lekin aap ke blog par aakar mujhe manjil mil gayi. thanks for this great job.
आज अचानक मरहूम सुदर्शन फ़ाकिर साहब की याद आयी और तलाश यहॉं ले आयी। तलाश सफ़ल रही।
कुछ देर ठहर जाईये बन्दा-ऐ-इंसाफ
हम अपने गुनाहों में ख़ता ढूंढ रहे हैं।
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