रविवार, फ़रवरी 24, 2008

वार्षिक संगीतमाला २००७ : पायदान संख्या ४ - पूछ रहे हैं स्वानंद कि क्यूँ नये नये से दर्द की फिराक़ में, तलाश में, उदास है दिल ?

वार्षिक संगीतमाला की चौथी कड़ी समर्पित है गीतकार, गायक और संवाद लेखक, रंगमंच कर्मी स्वानंद किरकिरे को जिन्होंने 'परिणिता 'और 'हजारों ख्वाहिशें ऍसी' के गीतों से मेरे दिल में पिछले तीन सालों से एक विशेष जगह बना ली थी। खोया खोया चाँद के इस गीत को जब मैंने उड़ते उड़ते सुना तो मैं आवाक रह गया कि इन्होंने तो मज़ाज लखनवी की नज़्म आवारा की पंक्तियाँ ही इस्तेमाल कर ली हैं। उस वक्त ये ध्यान नहीं रहा कि गीत की अगली पंक्ति में बकायदा स्वानंद ने 'मज़ाज' की प्रेरणा को चिन्हित किया था। वैसे तो मुझे पूरा गीत ही भाता है पर इसका ये हिस्सा मेरे लिए बेहद खास है ,लगता है अपनी ही भावनाओं को शब्द मिल गए हैं

दिल को समझाना कह दो क्या आसान है,
दिल तो फ़ितरत से सुन लो ना बेईमान है
ये खुश नही है जो मिला, बस माँगता ही है चला
जानता है हर लगी का, दर्द ही है बस इक सिला।
जब कभी ये दिल लगा, दर्द ही हमें मिला,
दिल की हर लगी का सुन लो दर्द ही है इक सिला !
क्यूँ नये नये से दर्द की फिराक़ में, तलाश में, उदास है दिल,
क्यूँ अपने आप से खफा-खफा ज़रा ज़रा सा नाराज़ है दिल

और जब कोई लेखक या गीतकार बार-बार ये एहसास दिलाते रहे कि वो आपकी बात कर रहा है तो दिल में उसकी जगह विशिष्ट हो जाती है। चाहे वो रात हमारी तो चाँद की सहेली हो..... या फिर बावरा मन देखने चला एक सपना..... स्वानंद ने हमेशा मेरी अनुभूतियों को छुआ है। आखिर स्वानंद में ये खासियत कहाँ से आई? चलिए ढ़ूंढ़ते हैं इस जवाब का हल उन्ही के कथ्यों द्वारा.. ..

क्या आपको पता है कि स्वानंद वाणिज्य के स्नातक हैं और उनके माता पिता खुद कुमार गंधर्व के शिष्य रहे हैं। पर स्वानंद का कहना है कि उन्होंने कभी संगीत के क्षेत्र में जाने का सपना नहीं देखा था। युवावस्था में वो यही सोचा करते कि माता पिता तो संगीत से जुड़े हैं ही, मैं कुछ नया क्यूँ ना करूँ ? उनकी ये सोच उन्हें ले गई नेशनल स्कूल आफ ड्रामा में। आज जिस बहुमुखी प्रतिभा का जौहर वो दिखा रहे हैं वो बहुत कुछ रंगमंच से जुड़े उनके दिनों की देन हैं। वो खुद कहते है कि नाटक में तो हमें सब करना होता था। धारावाहिक की कहानियों से लेकर संवाद लेखन तक, निर्देशन से गीतकार तक का ये सफ़र स्वानंद के लिए अपने विरासत मे मिले संस्कारों की तरफ बढ़ना भर है।

हाल ही में स्वानंद ने अपने एक साक्षात्कार में कहा
" मैं अभी भी बोलचाल की भाषा और दैनिक जीवन में दिखने वाले बिंबों का प्रयोग करता हूँ। नए जमाने के गीतकार की हैसियत से मैं सिर्फ तितलियों और नदी जैसे रुपकों का इस्तेमाल बारहा नहीं कर सकता। एक लेखक मूलतः अपने लिए लिखता है पर व्यवसायिक बंदिशों की वज़ह से ऐसा हमेशा नहीं हो पाता। आप भले ही खाना अच्छा बनाते हों पर एक खानसामे की हैसियत से ये भी जरूरी हे कि अगर आप ५ व्यंजन अपने ग्राहकों को खिलाएँ तो सात अपनी ओर से भी परोसें।"

गुलज़ार की तरह उनका मानना है कि गीत ऍसे ना हों जिनमें सब स्पष्ट हो, कुछ ऍसा भी होना चाहिए जो सुनने वाले को सोचने को मज़बूर करे उसे बार बार उस गीत को सुनने के लिए विवश करे। स्वानंद गीतकार का किरदार किसी भी हालत में संगीतकार से कम नहीं मानते। वो कहते हैं कि मैं खुद एक गीतकार बना क्यूंकि गाने सुनते वक्त मेरा ध्यान सबसे ज्यादा गीत के बोलों पर रहता था। आखिर सही तो कहते हें वो, ज्यादातर गीत जो हमें याद रह जाते हैं वो उनके बोलों की वज़ह से।

तो चलिए अब सुनते हैं ये गीत 

आज शब जो चाँद ने है रूठने की ठान ली,
गर्दिशों में है सितारे बात हमने मान ली!
अंधेरी स्याह जिंदगी को सूझती नही गली,
कि आज हाथ थाम लो इक हाथ की कमी खली
क्यूँ खोये खोये चाँद की फिराक़ में, तलाश में, उदास है दिल,
क्यूँ अपने आप से खफा-खफा ज़रा ज़रा सा नाराज़ है दिल
ये मंजिलें भी खुद ही तय करे,
ये फासले भी खुद ही तय करे
क्यूँ तो रास्तों पे फिर सहम सहम सम्हल सम्हल के चलता है ये दिल
क्यूँ खोये खोये चाँद की फिराक़ में, तलाश में, उदास है दिल,

जिंदगी सवालों के जवाब ढूँढ़ने चली,
जवाब में सवालों की इक लंबी सी लड़ी मिली।
सवाल ही सवाल हैं सूझती नही गली,
कि आज हाथ थाम लो इक हाथ की कमी खली!

जी में आता है, मुर्दा सितारे नोच लूँ
इधर भी नोच लूँ, उधर भी नोच लूँ !
एक दो का ज़िक्र क्या मैं सारे नोच लूँ !
इधर भी नोच लूँ, उधर भी नोच लूँ !
सितारे नोच लूँ मैं सारे नोच लूँ

क्यूँ तू आज इतना वहशी है, मिज़ाज में मज़ाज़ है ऐ गम ए दिल
क्यूँ अपने आप से खफा-खफा ज़रा ज़रा सा नाराज़ है दिल
ये मंजिलें भी खुद ही तय करे,
ये फासले भी खुद ही तय करे
क्यूँ तो रास्तों पे फिर सहम सहम सम्हल सम्हल के चलता है ये दिल
क्यूँ खोये खोये चाँद की फिराक़ में, तलाश में, उदास है दिल,

दिल को समझाना कह दो क्या आसान है,
दिल तो फ़ितरत से सुन लो ना बेईमान है
ये खुश नही है जो मिला, बस माँगता ही है चला
जानता है हर लगी का, दर्द ही है बस इक सिला।
जब कभी ये दिल लगा, दर्द ही हमें मिला,
दिल की हर लगी का सुन लो दर्द ही है इक सिला !
क्यूँ नये नये से दर्द की फिराक़ में, तलाश में, उदास है दिल,
क्यूँ अपने आप से खफा-खफा ज़रा ज़रा सा नाराज़ है दिल
ये मंजिलें भी खुद ही तय करे,
ये फासले भी खुद ही तय करे
क्यूँ तो रास्तों पे फिर सहम सहम सम्हल सम्हल के चलता है ये दिल
क्यूँ खोए खोए चाँद की फिराक़ में, तलाश में, उदास है दिल,
कयूँ अपने आप से खफा-खफा ज़रा ज़रा सा नाराज़ है दिल
ये मंजिलें भी खुद ही तय करे,
ये फासले भी खुद ही तय करे
क्यूँ तो रास्तों पे फिर सहम सहम सम्हल सम्हल के चलता है ये दिल
क्यूँ खोये खोये चाँद की फिराक़ में, तलाश में, उदास है दिल,


खोया खोया चाँद के इस गीत की धुन बनाई शान्तनु मोइत्रा ने और स्वानंद के साथ सहयोगी स्वर है उनके पुराने जोड़ीदार अजय झींगरन
 


इस संगीतमाला के पिछले गीत



  • पायदान १८ - हलके हलके रंग छलके ..... गीत - जावेद अख्तर संगीत - विशाल‍-शेखर चलचित्र - हनीमून ट्रैवल्स प्राइवेट लिमिटेड
  • पायदान १९ - लमहा ये जाएगा कहाँ..... गीत - प्रशांत पांडे संगीत - अग्नि चलचित्र - दिल दोस्ती ईटीसी
  • पायदान २० - जिंदगी ने जिंदगी भर गम दिए... गीत - सईद क़ादरी संगीत - मिथुन चलचित्र - दि ट्रेन
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    13 टिप्पणियाँ:

    Yunus Khan on फ़रवरी 24, 2008 ने कहा…

    बस समझिये कि इस गाने को सुनकर इप्‍टा जबलपुर 'वि‍वेचना' के जनगीतों की याद आ जाती है या फिर सफदर हाशमी के ग्रुप सहमत के गीतों के कैसेट याद आ जाते हैं । जनगीत शैली है ये । बल्कि नुक्‍कड़ नाटकों के गीतों जैसा स्‍वाद है इसमें । दूसरी बात ये कि हाल ही में ममता ने विविध भारती पर स्‍वानंद किरकिरे और शांतनु मोईत्रा को साथ में इंटरव्‍यू किया था आपने सुना हो शायद । नहीं सुना तो मिस किया ।

    mamta on फ़रवरी 24, 2008 ने कहा…

    आज का गीत हमे बहुत पसंद है और इस गाने का अंदाज भी।

    हाँ गायक का नाम हम नही जानते थे पर आपकी पोस्ट से पता चल गया। वैसे भी आजकल बहुत सारे नए गायक आ रहे है।

    bhuvnesh sharma on फ़रवरी 24, 2008 ने कहा…

    बेहतरीन गीत. अक्‍सर कहीं-कहीं से सुना है ये गीत पर आज ठीक से सुना.

    शुक्रिया.

    पारुल "पुखराज" on फ़रवरी 24, 2008 ने कहा…

    picture me kaffi acchha lagaa ye geet.......different

    बेनामी ने कहा…

    शुक्रिया मनीष भाई. यह गीत मुझे भी बहुत प्रिय है और बहुत ही खूबसूरती के साथ स्वानन्द किरकिरे ने
    मजाज साहब की पंक्तियां जोड कर उनका नाम भी जोडा है इस गीत में.

    आप सुनवाते रहिये, हम यूं ही सुनते रहेंगे.

    रवीन्द्र प्रभात on फ़रवरी 24, 2008 ने कहा…

    सुनकर अच्छा लगा ,मजा आ गया,धन्यवाद।

    Unknown on फ़रवरी 25, 2008 ने कहा…

    मेरा भी पसंदीदा - गीत भी - गीतकार भी -मनीष [मिस किया ]

    singh on फ़रवरी 25, 2008 ने कहा…

    पहली बार सुना ,गीत के बोल संगीत ,गायन बेहद पसन्द आया.
    विक्रम

    Sneha Shrivastava on फ़रवरी 25, 2008 ने कहा…

    muzey bhi y geet kafi pasand hai

    Unknown on फ़रवरी 25, 2008 ने कहा…

    याद है आपको..? मैने ये गीत सुनने के तुरंत बाद आपको स्क्रैप किया था कि मेरा वश चले तो मैं आपकी संगीतमाला में इसे प्रथम स्थान दे दूँ.... अभी भी माँ वाले गाने के अतिरिक्त मैं किसी अन्य को इसके समकक्ष नही feel करती...शुक्रिया जी मामूली फेर बदल के बाद ही सही हमारा नाम तो आया आपके चिट्ठे पर औ ):

    Charu on फ़रवरी 25, 2008 ने कहा…

    its my favourite too. khaskar ki ye lines-
    "jab kabhi ye dil laga dard hi hame mila,
    dil ki har lagi ka sun lo dard hi hai ek sila."

    Manish Kumar on फ़रवरी 27, 2008 ने कहा…

    जानकर खुशी हुई की मेरी तरह आप सबका भी ये चहेता गीत है।

    Urvashi on मार्च 09, 2008 ने कहा…

    I like this song too!

     

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