वार्षिक संगीतमाला 2007 के रनर्स अप यानि उपविजेता का खिताब गीतकार प्रसून जोशी संगीतकार शंकर-एहसान-लॉए और गायक शंकर महादेवन के सम्मिलित प्रयासों से फलीभूत 'तारे जमीं पर' के शीर्षक गीत को जाता है।
बच्चों की दुनिया कितनी उनमुक्त, कितनी सरल कितनी मोहक होती है ये हम सभी जानते हैं। फिर भी हमारा सारा प्यार अपने करीबियों तक ही सीमित रह जाता है। अपनी-अपनी जिंदगियों में फँसे हम उससे ज्यादा दूर तक देख ही नहीं पाते। पर बिना किसी पूर्वाग्रह के जब आप किसी भी बच्चे की हँसते खेलती जिंदगी में झांकते हैं तो मन पुलकित हुए बिना नहीं रह पाता।
पर सारे बच्चे इतने भाग्यशाली नहीं होते। जीवन की परिस्थितियाँ वक़्त के पहले उनसे उनका बचपन छीन लेती हैं। क्या हम बेवक़्त अपनी जिंदगियों से जूझते इन बच्चों से अपना कोई सरोकार ढूँढ पाते हैं। नहीं...क्यूँकि बहुत कुछ देखते हुए भी हमने अपने आप को भावशून्य बना लिया है। वो इस लिए भी कि इस भागती दौड़ती जिंदगी के तनावों के साथ साथ अगर जब ये सब सोचने लगें तो हमारी खीझ बढ़ जाती है। खुद से और इस समाज से भी। पर मन ही मन हम भी जानते हैं कि हमारा ये तौर तरीका सही नहीं। ये गीत हमें एक सामाजिक संवेदनशील प्राणी की हैसियत से अपनी जिम्मेदारी का अहसास दिलाता है।
प्रसून जोशी ने इस गीत में जो कमाल किया है उसके बारे में जावेद अख्तर साहब ने अपनी हाल ही में अंग्रेजी वेब साइट पर की गई संगीत समीक्षा में लिखा है...
प्रसून जोशी के गीत को अपने संगीत से दिल तक पहुँचाया है शंकर-एहसान-लॉए की तिकड़ी ने। ये कहने में मुझे कोई संदेह नहीं कि मेरे लिए इस साल का सर्वश्रेष्ठ संगीतकार, यही तिकड़ी रही है। गीत के मूड को समझते हुए उसी तरीके का संगीत देना उनकी खासियत है। तो चलिए सुनते हैं ये प्यारा सा नग्मा...
".....खो न जाएँ ये..तारे ज़मीं पर.. एक बेहद भावनात्मक और प्रभावशाली गीत है। इस गीत की ईमानदारी और सहजता को जिस तरीके से शंकर महादेवन ने अपनी गायिकी में उतारा है वो आपको इसके हर शब्द पर विश्वास करने पर मजबूर करता है। प्रसून ने अपनी सृजनात्मक प्रतिभा का परिचय देते हुए बेमिसाल रूपकों का प्रयोग किया है। गीत के बोल आपको हर रूपक की अलग-अलग विवेचना करने को नहीं कहते पर वे आपके इर्द-गिर्द एक ऍसा माहौल तैयार करते हैं जिससे आप प्यार, कोमलता और दया की इंद्रधनुषी भावनाओं में बहे चले जाते हैं। ये गीत एक धमाके की तरह खत्म नहीं होता ..बस पार्श्व में धीरे धीरे डूबता हुआ विलीन हो जाता है..कुछ इस तरह कि आप इसे सुन तो नहीं रहे होते पर इसकी गूंज दिलो दिमाग में कंपन करती रहती है।...."
प्रसून जोशी के गीत को अपने संगीत से दिल तक पहुँचाया है शंकर-एहसान-लॉए की तिकड़ी ने। ये कहने में मुझे कोई संदेह नहीं कि मेरे लिए इस साल का सर्वश्रेष्ठ संगीतकार, यही तिकड़ी रही है। गीत के मूड को समझते हुए उसी तरीके का संगीत देना उनकी खासियत है। तो चलिए सुनते हैं ये प्यारा सा नग्मा...
देखो इन्हें ये हैं
ओस की बूँदें
पत्तों की गोद में ये
आस्मां से कूदें
अंगड़ाई लें फिर
करवट बदल कर
नाज़ुक से मोती
हँस दे फिसल कर
खो न जाएँ ये..तारे ज़मीं पर..
यह तो हैं सर्दी में
धूप की किरणें
उतरें जो आँगन को
सुनहरा सा करने
मॅन के अँधेरों को
रौशन सा कर दें
ठिठुरती हथेली की
रंगत बदल दें
खो न जाएँ ये..तारे ज़मीं पर..
जैसे आँखों की डिबिया में निंदिया
और निंदिया में मीठा सा सपना
और सपने में मिल जाये फरिश्ता सा कोई
जैसे रंगों भरी पिचकारी
जैसे तितलियाँ फूलों की क्यारी
जैसे बिना मतलब का प्यारा रिश्ता हो कोई
यह तो आशा की लहर है
यह तो उम्मीद की सहर है
खुशियों की नहर है
खो न जाएँ ये..तारे ज़मीं पर..
देखो रातों के सीने पे ये तो
झिलमिल किसी लौ से उगे हैं
यह तो अम्बिया की खुशबू हैं बागों से बह चले
जैसे काँच में चूड़ी के टुकड़े
जैसे खिले खिले फूलों के मुखड़े
जैसे बंसी कोई बजाए पेड़ों के तले
यह तो झोंके हैं पवन के
हैं ये घुँघरू जीवन के
यह तो सुर हैं चमन के
खो न जाएँ ये..तारे ज़मीं पर..
मोहल्ले की रौनक
गलियाँ हैं जैसे
खिलने की जिद पर
कलियाँ हैं जैसे
मुट्ठी में मौसम की
जैसे हवाएँ
यह हैं बुजुर्गों के दिल की दुआएँ..
खो न जाएँ ये..तारे ज़मीं पर..
कभी बातें जैसे दादी नानी
कभी छलके जैसे मम्मम पानी
कभी बन जाएं भोले सवालों की झड़ी
सन्नाटे में हँसी के जैसे
सूने होठों पे ख़ुशी के जैसे
यह तो नूर हैं बरसे गर तेरी किस्मत हो बड़ी
जैसे झील में लहराए चन्दा
जैसे भीड़ में अपने का कन्धा
जैसे मन मौजी नदिया झाग उडाये कुछ कहीं
जैसे बैठे बैठे मीठी से झपकी
जैसे प्यार की धीमी सी थपकी
जैसे कानों में सरगम हरदम बजती ही रहे..
खो न जाएँ ये..तारे ज़मीं पर..
इस श्रृंखला की समापन किश्त में सुनना ना भूलिएगा वार्षिक संगीतमाला 2007 का सरताज गीत...
17 टिप्पणियाँ:
मनीष मैं तो सोच में पड़ गया । ये रनर अप है तो फिर विनर कौन है भाई । शानदार गीत । हाल ही में मैंने अमोल गुप्ते को इंटरव्यू किया है । तारे जमीं पर के लेखक ।
माँ...गीत और तारे ज़मीं पर शीर्षक गीत उस मासूमियत को रिडिफ़ाइन करते हैं मनीष भाई जिसको हम लगभग भूलते जा रहे हैं. ज़िन्दगी की दौड़भाग में कितना कुछ पीछे छूट गया ये गीत याद दिलाते हैं. हमारे घर में भी एक विशेष बच्चा है(ताऊजी का पोता) यह फ़िल्म देखने के बाद उसके प्रति हमारे परिवार का नज़रिया ही बदल गया है.
बहुत उम्दा चयन. अब विनर का इन्तजार है. :)
हूँ ..अब तो पहली पायदान का इंतजार है।
sundar prtiko.n ke sath khubsurat sa geet
फ़िस्स्स्स. . . . लगता है मेरी भविष्यवाणी (जो कि मैंने अपने आप से की थी) फ़िस्स्स्स हो गई, क्योंकि मुझे लगा था कि ये गीत प्रथम स्थान पर होगा आपकी गीतमाला में! अब मैं सोच रहा हूँ कि क्या सोचूँ!
इस गीत के बारे में जावेद साहब ने अपनी समीक्षा में बिल्कुल सही लिखा है ’कुछ इस तरह कि आप इसे सुन तो नहीं रहे होते पर इसकी गूंज दिलो दिमाग में कंपन करती रहती है।..’ वास्तव में एक बार सुनने के बाद बहुत समय तक ज़हन से इसका असर नहीं जाता.
वैसे अगर ये दूसरे पायदान पर है तो पहले पर भी मेरे विचार में इसी फिल्म का गीत ’तुझे सब है पता मेरी माँ’ ही हो सकता है. आप क्या कहते हैं? :)
- अजय यादव
http://merekavimitra.blogspot.com/
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http://intermittent-thoughts.blogspot.com/
गीत तो बढिया है ही, ये पन्क्ति भी--
"ये गीत हमें एक सामाजिक संवेदनशील प्राणी की हैसियत से अपनी जिम्मेदारी का अहसास दिलाता है। "
और हाँ! प्रसून जोशी के लिये जावेद साहब की तारीफ, तारीफ-ए-काबिल है! :)
Manish woh line ' kabhi cheekhe jaise mammmma paani hai ya kabhi chhalke jaise mammamm paani hai'
Main jab bhi sunti hoon mujhe woh chhalke lagta hai hai cheekhe nahin...
Excellent song... aur kya kahein!
Beautiful song and great lyrics, everything adds up to the mood of the song.
Please remove so many ads and other things from blog,its taking a lot of time to load, so many times i am finding it difficult to open the blog.
meri choice #1 "maa" from Taare Zameen Par....
मेरे ख्याल से भी लगता है स्मिता का ख्याल सही है - या फ़िर खोया खोया चाँद से (ये निगाहें ?) अटकलें, अटकलें [:-)] - मनीष
यूनुस भाई रनर अप और विनर दोनों ही बेहद प्यारे गीत हैं और एक ही फिल्म से हैं।
संजय पटेल सही कहा आपने इसीलिए इन्हें सर्वोच्च स्थानों से नवाज़ा है मैंने
समीर भाई, ममता जी आपका इंतजार अब खत्म हो गया।
कंचन सराहने का शुक्रिया।
अमित ये गीत भी बेहद खूबसूरत है और पहले वाला भी। तमगा किसी एक को देना था...
अजय यादव, मनीष जोशी, स्मिता आप सब ने सही पहचाना :)
ओझा और रचना जी गीत सराहने का शुक्रिया।
नीलिमा कैसी हैं आप ? आपको यहाँ देख कर खुशी हुई। अगर आपको रोमन चिट्ठे पर परेशानी हो रही है तो
http://ek-shaam-mere-naam.blogspot.com/
को खोलें। यहाँ ads नहीं हैं।
नंदिनी अरे आप ने फिर शुरु कर दी blogging. बेहतर है। आपने बहुत सही कहा, मैंने वो पंक्ति सुधार दी है. शुक्रिया !
This is a lovely song.
Seems like you like the 'Taare Zameen Par' album a lot.. :)
एक एक बात से सहमत हैं इसमें कोई दो राय हो ही नहीं सकती न जी
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