मैंने सोचा कि तब तो हमारे मित्र गणों में कई इन्हें बखूबी जानते होंगे। तुरंत हमने जाँच पड़ताल शुरु की। तहकीकात के बाद पता चला कि जनाब हमारे कार्यालय के सामने वाले G Block के बाशिंदे रह चुके हैं। उनके मित्र अभी भी चाव से उन दिनों की कहानियाँ सुनाते हैं। कहानियों का सार ये ही रहा कि संगीत और सुरापान पर उनकी अनन्य भक्ति थी और शायद ही उनकी कोई रात इसके बिना गुजरती थी। पर ये बातें बारह साल पुरानी हो चुकीं थीं । मन ही मन सोचा कि जब उनसे मुलाकात होगी तो देखूँगा उनके स्वरूप में कितना बदलाव आया है।
फरवरी के अंतिम सप्ताह की बात है। शाम के साढ़े छः बजने वाले थे। मैं अभी ओफिस में ही था कि मोबाइल की घंटी बज उठी। आवाज़ सुनते ही समझ आ गया कि उधर कौन सी बला :) है। पता चला हुजूर हमारे कार्यालय के बगल में स्थित ट्रेंनिंग सेंटर में पधारे हैं। मैं अपने काम निबटा कर सवा सात के करीब उनके कक्ष में पहुँच गया।
कमरे में मद्धम प्रकाश जल रहा था। दूर किनारे वाली कुर्सी पर अमिताभ बैठे मिले..दाँयी तरफ क़ाग़ज में लिपटी बोतल और हाथ में जाम। कुशल प्रेम पूछने के बाद तुरंत ही पूछा
...लोगे?
मैंने नकारा तो कह उठे कि कहीं औपचारिकतावश तो ऍसा नहीं कह रहे। मैंने कहा नहीं अमिताभ साहब मैं नहीं पीता। छूटते ही जवाब आया
तो फिर जीते कैसे हो? :)
खैर, हमारी बातें शुरु हुईं रामधारी सिंह 'दिनकर' की कविताओं से। दिनकर से अमिताभ जी के परिवार का अर्से से जुड़ाव रहा है। दिनकर की जिंदगी के सुखद और दुखद पहलुओं से जुड़ी बातें हुईं। मीत बताने लगे कि किस तरह उन्होंने दिनकर को खुद करीब से काव्य पाठ करते सुना है और तकरीबन उनकी सारी पुस्तकें पढ़ी हैं। हाल ही में उन्होंने अपने चिट्ठे पर दिनकर की कविताओं का सस्वर पाठ कर एक नायाब श्रृंखला शुरु की है। अभी तक चिट्ठाजगत में पॉडकॉस्ट पर जितनी कविताओं को सुना है उनमें मीत का अंदाजे बयाँ मुझे सबसे अनूठा लगता है। मीत एक बुलंद आवाज़ के मालिक तो हैं ही, साथ ही अपनी आवाज़ में वो कविता की भावनाओं को हूबहू उतारने में सबसे सक्षम नज़र आते हैं।
सूफ़ी या भक्ति संगीत की बात चली । हम दोनों ने इस बात से सहमत थे कि जब आबिदा परवीन, नुसरत, पंडित जसराज और कैलाश खेर जैसे कलाकार गाते हैं तो लगता है कहीं ना कहीं ऊपरवाले तक बात पहुँच रही है। मीत के भाई कैलाश खेर के काफी नजदीकी रहे हैं। कैलाश अपनी निजी जिंदगी में सादगी और संगीत के प्रति पूर्ण समर्पण रखते हैं, इससे जुड़ी बातें मीत ने बताईं।
फिल्म संगीत के मामले में हमलोगों की पसंद और विचार एक जैसे नहीं हैं। मीत को पचास और साठ के बीच ही का संगीत ही भाता है जबकि मेरी पसंद के गीतों की फेरहिस्त में पुराने से लेकर नया संगीत भी शामिल है। मेरा मानना है कि अच्छे गीतों की संख्या में कमी भले आई हो पर वे विलुप्त किसी काल में नहीं हुए। वैसे संगीत के बारे में चर्चा गुलज़ार से शुरु हुई। मीत कहने लगे कि गुलज़ार से उन्हें खासी नाराजगी है। गुलज़ार मेरे पसंदीदा गीतकार हैं इसलिए उत्सुकता हुई कि मीत का अभिप्राय क्या है? मीत ने पहला गोला दागा
"क्या जरूरत थी गालिब की ज़मीन से उस शख्स को दिल ढूंढ़ता है फुरसत के रात दिन लिखने की... जबकि वो इतना talented है कि ऍसे कितनी रचनाएँ स्वयम् कर सकता है?"
मैंने कहा कि गालिब की शायरी से प्रेरित होकर किसी गीत की रचना करना कोई गलती नहीं है, हाँ इस बात का जिक्र गीत की credits में अवश्य होना चाहिए था और अगर ऍसा नहीं किया गया तो वो ग़लत था। रही talented होने की बात तो हुनरमंद होने का मतलब ये नहीं कि आप किसी से प्रेरित होकर कुछ रचने का अधिकार भी खो दें। शायरी जगत में ऍसे बहुतेरे उदहारण मौजूद हैं। इस पोस्ट को लिखते वक्त मुझे फ़ैज की वो ग़ज़ल याद आ रही है जो मोइनुद्दीन मखलूम की गजल से प्रेरित होकर उन्होंने लिखी थी
आपकी याद आती रही रात भर
चाँदनी दिल दुखाती रही रात भर
पर क्या आपकी सारी नाराज़गी सिर्फ इसी वज़ह से है? मीत कुछ और खुले
गुलज़ार ने बाज़ार के सामने अपने आप को बेच दिया है।
सही कहूँ तो मुझे उनकी बात समझ नहीं आई। सत्तर के दशक की हमारी पीढ़ी को लेकर चालिस साल बाद आज की पीढ़ी को भी अपने गीतों से प्रभावित करने वाले गुलज़ार एक ऍसे गीतकार हैं जिन्होंने बाजार की प्रतिबद्धताऔं के बाद भी अपनी पहचान क़ायम रखी है.
मीत ने दूसरा सवाल संख्या का उठाया कि गुलज़ार ने अब तक कितने गीतों की रचना की है सत्तर से लेकर आज तक। उनके कहने का अभिप्राय था कि इस हिसाब से शौकत जयपुरी भी गुलज़ार से कहीं आगे ठहरेंगे। यही तर्क उन्होंने रफी और मुकेश की तुलना में लगाया। मैंने कहा कि इस हिसाब से तो आप मन्ना डे को भी घटिया गायक साबित कर देंगे।
मुझे तो एक कलाकार की दूसरे कलाकार से तुलना और कौन ज्यादा महान की बहस व्यर्थ की क़वायद लगती है। इसीलिए मैंने कहा कि ये हिसाब किताब मुझे नहीं रुचता। क्या बेहतर ये नहीं कि इन्होंने जो भी अच्छा रचा है उसी में हम अपना सुकून खोंजें। मीत भी सहमत दिखे। इस पूरी बात चीत में दो घंटे निकल चुके थे और मीत की रात की महफिल जहाँ जमने वाली थी वहां से फोन आने लगे थे। सो हमारी बहस वहीं खत्म हो गई।
अगले दिन भी उनसे मुलाकात की मंशा थी पर कार्यालय की व्यस्तता और लखनऊ जाने के कार्यक्रम की वजह से ये पूरी ना हो पाई। खैर, मीत चिट्ठाजगत में संगीत और कविता की स्वरलहरियाँ छेड़ते रहेंगे ऍसी आशा है...
(अगली कड़ी में बात होगी कंचन चौहान की जिनसे लखनऊ से लौटते वक्त मुलाकात हुई।)
11 टिप्पणियाँ:
मीत मेरे पसंदीदा चिट्ठाकारों में है...उनके ब्लॉग की किसी भी पोस्ट को मैने मन से न सराहा हो ऐसा याद नही आता... उनके लिये इस पूर्वाग्रह से ग्रसित हूँ कि कहीं बहुत बड़ा गम किसी रूप में छिपाए बैठे है, जो उनकी लेखनी को इतनी संवेदना देता है..."लेकिन पिये बिना जी नही सकते" ये सुन कर थोड़ा दुःख हुआ ...! खैर हमें तो मतलब है उनकी लेखनी से जो बहुत असरदार है और साथ में आवाज़ जो मुझे उन गुलजार की ही याद दिलाते हैं जिन्हे शायद वो पसंद नही करते
रोचक भेंटवार्ता और हमेशा की तरह आपका अंदाजे बयां अच्छा लगा.आप यूँ ही भेंट करते रहिये और हमें चिट्ठों के पीछे के चेहरों को जानने का मौका मिलता रहे.
यह तो मनीष मियां अच्छी बात नहीं कर रहे.. बंबई में हमारे पैसों से ओल्ड मांक की बोतल खरीदवाई थी, उस किस्से को इतनी जल्दी हजम कर गए?..
गीतमाला के बाद ये अच्छी श्रृंखला शुरू की आपने, बहुत दिनों से आपने किसी यात्रा का वर्णन नहीं किया. जल्दी से किसी जगह के बारे में बताइए... हमारी छुट्टियों की प्लानिंग हो जायेगी. वैसे मैं भी रांची का ही हूँ, कभी पुणे आना हुआ तो बिना मिले मत जाइयेगा !
मुलाकात अच्छी लगी, इन दिनों ब्लॉग में एक से एक प्रयोग हो रहे हैं, यह भी इसी की एक कडी है, इसे जारी रखना
कंचन जहाँ तक मुझे लगा मीत गुलज़ार के हुनर की कद्र करते हैं पर वो उनके लिए मन में वो दर्जा नहीं देते जो हमारे मन में है। कारण उन्होंने बताए हैं। रही बात पीने की तो अब इतना सुधार जरूर हुआ है कि पुराने दिनों वाली आज़ादी अब उन्हें घर से निकलने के बाद ही नसीब होती है।
पूनम जी पसंदगी का शुक्रिया...
प्रमोद जी हमने कब कहा नहीं खरीदवाई थी पर सारी तो आप अकेले ही गटक गए थे , बाकी लोग तो आपको देखते ही रह गए थे , वो भूल गए बड़े भाई ...
ओझा क्या कहें मित्र थोड़ा रेस्ट कर रहे हैं इसलिए केरल के अपने यात्रा वृत्तांत को आगे सरका रखा है। पर आप को उसकी प्रतीक्षा है ये जानकर मन खुश हुआ। जरूर मिलूँगा अगर कभी मौका मिला और अगर आप इस तरफ आते हैं तो जरूर सूचित कीजिएगा।
आशीष इससे पहले दिल्ली, मुंबई और बनारस में भी ऍसी मुलाकातें की थीं और सचित्र विवरण दिया था। शायद आपने वो नहीं देखा होगा। हौसलाफजाही का शुक्रिया..
अच्छी ब्लॉगर मीट है । वैसे हमारे भी कुछ परिचित हैं जो गुलज़ार के नाम से ही बिदक जाते हैं ।
मेरे वाली मीटिंग के बारे में भी लिखिये. और मुझ्से जो १०००० उधार लिये थे, उसका भी जिक्र किजिये.;)
सही गुरू - मीत का ब्लॉग मेरे भी फेवरेट ब्लॉगस में से है - कविताओं को पढने का मीत का प्रयोग बहुत ही ज़बरदस्त है, खासकर दिनकर जी कि वो कविताएँ जो अलग हैं- फौलाद की फौलाद से बात ज़ोरदार रही - वैसे गुलज़ार साहब के चाहने वाले और न चाहनेवाले दोनों सख्त हैं - अपुन तो गुलज़ार साहब किताब पुस्तक मेले से ले आए - [यूनुस और संदीप की बात समझने के लिए] - rgds - manish
मीत का ब्लॉग मैंने परसों पहली बार देखा. बहुत ही पसंद आया कि वो कुछ अच्छी कविताओं से पाठकों को परिचित करा रहे हैं. पढ़ने का वक़्त तो अब तक नहीं मिला पर ज़ल्द ही वो भी होगा.
शुक्रिया इस पोस्ट का!
- अजय यादव
http://merekavimitra.blogspot.com/
http://ajayyadavace.blogspot.com/
http://intermittent-thoughts.blogspot.com/
मनीष जी अच्छा लगा आप की इस ब्लोगर मीट का विवरण पढ़ कर्। एक तरफ़ अजीत जी अपने ब्लोग पर ब्लोगरों से सही मायनों में परिचय करवा रहे है और दूसरी तरफ़ आप, आप अलग अलग शहरों में ब्लोगरों से मिलने के लिए जितना समय और ऊर्जा खर्च पाते है वो काबिले तारिफ़ है।
नीरज जी के गाने से खिचती हुई मीत जी के ब्लोग पर कुछ दिन पहले ही गयी थी, मेरा पसंदीदा गीत है वो और बहुत दिनों बाद सुनने को मिला था। तब उनकी पुरानी पोस्ट भी देखी और मानना पड़ेगा कि वो एक बहुत ही प्रभावशाली आवाज के मालिक है और हां उनका कविता पढ़ने का ढंग भी बहुत बड़िया है। अब आप से उनके बारे में वो जानने को मिला जो उनके प्रोफ़ाइल में नहीं लिखा, इसे हमारे साथ बांटने का धन्यवाद्।
आप की कंचन जी से मुलाकात के ब्यौरे का इंतजार रहेगा
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