शनिवार, अप्रैल 26, 2008

तमाम फिक्र ज़माने की टाल देता है - सुनिए शोमा बनर्जी की बेहतरीन ग़ज़ल गायिकी को

आज छुट्टी का दिन था। अपनी केरल की यात्रा के बारे में आगे लिखने की सोच रहा था। पर कुछ मूड नहीं बन पाया। मन कुछ गाने और सुनने का कर रहा था। अपनी पसंदीदा गज़लों की किताब खोली तो ये ग़ज़ल सामने थी जो शायद आपमें से बहुतों ने नहीं सुनी होगी। इसे बहुत दिनों से आप सब से बाँटने की इच्छा थी। पर मामला किसी ना किसी वज़ह से टल रहा था। ग़ज़लों का असली लुत्फ़ उठाया तभी जा सकता है, जब आप थोड़ी फुर्सत में हों ।

जो सुनने बैठा इसे तो ना जाने कितनी बार फिर से सुना। दिल को छूते शब्द, खूबसूरत संगीत, मन गुनगुना उठा


तमाम फिक्र ज़माने की टाल देता है
ये कैसा कैफ़ तुम्हारा ख़याल देता है


आप सबने ये कभी गौर किया है तमाम परेशानियों से भरी इस जिंदगी में किसी ख़ास का ख्याल आता है और मन अंतरनिर्मित उर्जा से आनंदित हो उठता है। उन अनमोल क्षणों में सारी फिक्र, सारी परेशानियाँ काफ़ूर हो जाती हैं। इन्ही भावनाओं को लफ्जों में समाकर शायरा इंदिरा वर्मा ने इस ग़ज़ल का मतला रचा है जो इस ग़ज़ल के मूड को बना देता है।

इस ग़ज़ल को अपनी आवाज़ से संवारा है शोमा बनर्जी ने। ग़ज़ल गायिकी के लिए शोमा की आवाज़ बिलकुल उपयुक्त लगती है। इस ग़ज़ल को जिस ठहराव के साथ उन्होंने अपना स्वर दिया हे वो काबिले तारीफ है। शोमा बनर्जी का नाम बतौर गायिका के रूप में आपने ज्यादा ना सुना हो पर AIR और दूरदर्शन के लिए उन्होंने कई कार्यक्रम किए हैं। खैर वहाँ पर तो नहीं पर फिल्म ताल में इनका गाया हुआ दिल ये बेचैन है ....और फिर साथियाँ में छलका छलका रे कलसी का पानी.... तो आपने जरूर सुना होगा।

इस ग़ज़ल को लिखा है इंदिरा वर्मा ने। पेशेवर तौर पर वो पर्यटन उद्योग से जुड़ी रही हैं पर दिल्ली में गज़ल गायिकी से जुड़े लोगों में एक शायरा के रूप में उन्होंने अपनी पहचान बनाई है। ये ग़ज़ल उनकी किताब 'हम उम्र ख़याल' से ली गई है जो उनकी ६४ ग़ज़लों का संग्रह है। इन ग़जलों में से ८ को संग्रहित कर म्यूजिक टुडे ने इसी नाम से करीब तीन चार साल पहले एक एलबम निकाला था जिसकी सीडी आप यहाँ से खरीद सकते हैं।
तो आइए सुनें ये खूबसूरत ग़ज़ल


तमाम फिक्र ज़माने की टाल देता है
ये कैसा कैफ़1 तुम्हारा खयाल देता है

1.नशा, आनंद

हमारे बंद किवाड़ों पे दस्तकें दे कर
शब-ए-फ़िराक2 में वहम-ए-विसाल3 देता है

2.वियोग भरी रात 3 मिलन

उदास आँखों से दरिया का तस्किरा कर के
ज़माना हमको हमारी मिसाल देता है

बिछुड़ के तुमसे यकीं हो चला है ये मुझको
कि ये इश्क़ लुत्फ़-ए-सजा बेमिसाल देता है।


तो बताइए कैसी लगी आपको ये ग़ज़ल ?
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8 टिप्पणियाँ:

rakhshanda on अप्रैल 26, 2008 ने कहा…

उदास आँखों से दरिया का तस्किरा कर के
ज़माना हमको हमारी मिसाल देता है

बहुत खूबसूरत है,पहली बार आपके ब्लॉग पर आई,बहुत अच्छा लगा.

डॉ .अनुराग on अप्रैल 26, 2008 ने कहा…

वल्लाह हजूर....वाकई खूबसूरत है....

Manas Path on अप्रैल 26, 2008 ने कहा…

बहुत अच्छा.

Yunus Khan on अप्रैल 27, 2008 ने कहा…

वाह जी वाह

रवीन्द्र प्रभात on अप्रैल 27, 2008 ने कहा…

वाह जी वाह , आपने तो मन मोह लिया !

Dawn on अप्रैल 29, 2008 ने कहा…

Wah! Manish….bahut hee khubsurat sama cher diya tumne iss ghazal ke bahane :)
Bahut accha laga…! Meine pehale kabhi nahi suna tha inhein …shayad!!!!

Shukriya iss acchi see pyari se jaankari ke liye!
Umeed hai ab tum behatar feel kar rahe ho tabiyat-wise ;)
Cheers

Charu on अप्रैल 29, 2008 ने कहा…

badi hi khoobsoorat ghazal hai. dil ko choone wale lafz hain aur atyant madhur aawaz. apki pasand waqai kabile tareef hai.

Manish Kumar on अप्रैल 30, 2008 ने कहा…

ग़ज़ल पसंद करने के लिए आप सब का शुक्रिया !

डॉन अब पूरी तरह स्वस्थ हूँ।

 

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