चार साल पहले अंतरजाल पर एक नज़्म पढ़ने को मिली थी, शायरी के एक मंच पर। लिखने वाले थे विनय जी जिनके बारे में मुझे बस इतना मालूम था कि वो कानपुर से हैं। अक्सर उनकी ग़ज़लों और नज्मों को उस मंच पर हम सराहा करते थे।
आज अचानक उनकी एक सादी सी मगर बेहद असरदार नज़्म की कुछ पंक्तियाँ याद आ गईं जो पहली बार पढ़ने के बाद अक्सर गाहे बगाहे फिर से लौट कर होठों पर आ जाती हैं। इसीलिए आज सोचा कि क्यूँ ना फिर पुरानी संचिकाओं से निकाल कर उन्हें आप तक लाया जाए।
पूरी नज़्म में शायर अपनी माशूका से दूर जाने की बात करता है, पर नज़्म की आखिरी दो पंक्तियाँ उस की मानसिक स्थिति को बेहद खूबसूरती से व्यक्त कर देती हैं...
मेरे सर खामोशी का कोई इलजाम भी नहीं
तुम्हारे नाम अब मेरा कोई पैगाम भी नहीं
वक़्त ए माज़ी की अब कोई तसवीर नहीं है
तुम्हारे वास्ते कागज़ पे कोई तहरीर नहीं है
अब दूर से मुझको तुम सदा मत देना
बुझते हुए शोलों को हवा मत देना
जो मसायल हैं मेरे सुलझाने दो मुझे
जाता हूँ अगर दूर तो जाने दे मुझे
मंजिलें और भी तो हैं जिन्हें पाना है तुम्हें
चाँद तारों से भी ऊपर जाना है तुम्हें
मेरे वास्ते कभी कोई गम नहीं करना
हौसला अपना कभी भी कम नहीं करना
अब हमेशा के लिए तुम भुला देना मुझको
दिल के खाली किसी कोने में सुला लेना मुझको
ये अलग बात है ज़रा नाशाद हूँ मैं
पंख कट गए मेरे पर आजाद हूँ मैं
विनय जी से पिछले चार सालों से मेरी नेट पर मुलाकात नहीं हुई। आशा है वो जहाँ भी होंगे सकुशल होंगे। चलते चलते उनका एक बेहतरीन शेर अर्ज है
ये तो नहीं कहता कि मैं शख्स बदनसीब था
मगर हारा हूँ जब कभी मैं जीत के करीब था
चित्र साभार
कुन्नूर : धुंध से उठती धुन
-
आज से करीब दो सौ साल पहले कुन्नूर में इंसानों की कोई बस्ती नहीं थी। अंग्रेज
सेना के कुछ अधिकारी वहां 1834 के करीब पहुंचे। चंद कोठियां भी बनी, वहां तक
पहु...
6 माह पहले
11 टिप्पणियाँ:
बहुत सुंदर कविता सराहनीय है.धन्यवाद
ये अलग बात है ज़रा नाशाद हूँ मैं
पंख कट गए मेरे पर आजाद हूँ मैं
बेहतरीन नज्म है ओर उतना ही खूबसूरत शेर......बाँटने के लिए शुक्रिया......
बेहद खूबसूरत दिल को छूती हुई नज़्म और शेर भी लाजवाब...
itni sundar gghazal padhwaane ke liye shukriya....
वाह!! आनन्द आ गया. इनकी और गज़लें हैं तो सुनवायें:
ये अलग बात है ज़रा नाशाद हूँ मैं
पंख कट गए मेरे पर आजाद हूँ मैं
क्या बात है!! गजब!
क्या बात है भाई मनीष .... क्या नज़्म पढ़वाई है. वाह ! दिल खुश कर दिया. बहुत ख़ूब. और ये शेर तो बस ....
"ये तो नहीं कहता कि मैं शख्स बदनसीब था
मगर हारा हूँ जब कभी मैं जीत के करीब था"
बहुत बढ़िया.
बहुत खूबसूरत गझल और उतने ही खूबसूरत शेर।
ये तो नहीं कहता कि मैं शख्स बदनसीब था
मगर हारा हूँ जब कभी मैं जीत के करीब था"
ज्यादा तर लोगों की हकीकत ।
पंख कट गए मेरे पर आजाद हूँ मैं
वाह!!!
***राजीव रंजन प्रसाद
Beautiful lyrics --
Thanx 4 posting Manish bhai
- Lavanya
yu.n puri nazm khubsurat hai... par alag se diya gaya sher mujhe apne bahut karib laga.....! thanks
wah! Akhiri sher to waqai bahut hee gehari hai ....
umeed hai aapko aapke Vinay ji phir se mil jayein aur dua hai ke woh sakushal hon jahan bhi hon (ameen)
Cheers
एक टिप्पणी भेजें