पर लोगों की बात मैं क्यूँ मानूँ ?
मेरी नज़रों ने तो कुछ और ही देखा है... कुछ और ही महसूस किया है...
ज़ेहन की वादियों से कभी उन लमहों को चुन कर देखें...
दिल जब कहीं भटक रहा हो निरुद्देश्य और दिशाविहीन..
अपने चारों ओर की दुनिया जब बेमानी लगने लगी हो ....
यहाँ तक की आप अपनी परछाई से, अपने साये से भी दूर भागने लगे हों .....
किसी से बात करने की इच्छा ना हो....
ऍसे हालात में अपना गम अपनी कुंठा ले के आप कहाँ जाएँगे..
सोचिए तो?
पर मुझे सोचने की जरूरत नहीं...
ऍसे समय मेरा हमदम, मेरा वो मित्र हमेशा से मेरे करीब रहा है..
अपनी विशाल गोद में काली चादर लपेटे आमंत्रित करता हुआ..
पहली बार इससे दोस्ती तब हुई थी जब मैंने किशोरावस्था में कदम रखा था। ये वो वक़्त था जब छुट्टी के दिनों में सात बजे के बाद घर की बॉलकोनी में मैं और मेरा दोस्त घंटों खोए रहते थे। जाने कैसी चुम्बकीय शक्ति थी मेरे इस सहचर में कि शाम से ही उसके आने का मैं बेसब्री से इंतजार करता फिरता।
कॉलेज के दिनों में ये दोस्ती और गहरी होती गई। फ़र्क सिर्फ इतना था कि हॉस्टल के उस बंद कमरे में घुप्प अँधेरे के साथ कोई और साथ हो आया था।
अरे ! अरे ! आप इसका कोई और मतलब ना निकाल लीजिएगा।
वो तीसरा कोई और नहीं..वो गीत और गज़लें थीं जिनके बोल उस माहौल में एक दम से जीवंत हो उठते थे।
कभी वे दिल को सुकून देते थे...
तो कभी आँखों की कोरों को पानी...
इसलिए २००५ में फिल्म परिणीता का ये गीत जब भी मैं सुनता हूँ तो लगता है कि अरे ये तो मेरा अपना गीत है..अपनी जिंदगी में जिया है इसके हर इक लफ़्ज़ को मैंने...
गीत शुरु होता है स्वान्द किरकिरे की गूँजती आवाज से.. पार्श्व में झींगुर स्वर रात के वातावरण को सुनने वाले के पास पहुँचा देता है। शान्तनु मोइत्रा का संगीत के रूप में घुँघरुओं की आवाज़ का प्रयोग लाजवाब है और फिर स्वानंद किरकिरे के शब्द चित्र और गायिका चित्रा का स्वर मन की कोरों को भिंगाने में ज्यादा समय नहीं लेता।
रतिया कारी कारी रतिया
रतिआ अँधियारी रतिया
रात हमारी तो चाँद की सहेली है
कितने दिनों के बाद आई वो अकेली है
चुप्पी की बिरहा है झींगुर का बाजे साज
रात हमारी तो चाँद की सहेली है
कितने दिनों के बाद आई वो अकेली है
संध्या की बाती भी कोई बुझा दे आज
अँधेरे से जी भर के करनी है बातें आज
अँधेरा रूठा है,अँधेरा ऐंठा है
गुमसुम सा कोने में बैठा है
अँधेरा पागल है, कितना घनेरा है
चुभता है डसता है, फिर भी वो मेरा है
उसकी ही गोदी में सर रख के सोना है
उसकी ही बाँहों में चुपके से रोना है
आँखों से काजल बन बहता अँधेरा
तो सुनें रात्रि गीतों की श्रृंखला में परिणीता फिल्म का ये संवेदनशील नग्मा..
|
(ये गीत २००५ की वार्षिक संगीतमाला जो उस वक्त मेरे रोमन हिंदी चिट्ठे पर चला करती थी का सरताज गीत था और ये प्रविष्टि भी तभी लिखी गई थी।)
9 टिप्पणियाँ:
बहुत ही ठहराव वाला शांत, मधुर गीत!
बहुत बढ़िया लगता है हर बार सुनने में....
बहुत ही सुंदर गीत.
गाड़ी में अक्सर इसे सुनता हूं
आपका किसी गीत को सुनवाने का निराला अंदाज गीत को और भी खूबसूरत बना देता है, बहुत बढ़िया.
khubsurat geet ! parineeta ke saare gaane achchhe the... kasto mazaa ka video ... mere sapno ki raani waale video ki yaad dilaa deta hai. parineeta ke gaane se aise hi dimaag mein aa gaya :-)
हमारा मनपसंद गीत है ये ।
computer me problem hai to aaj kal roman script me logo ke blog padhane pad rahe hai.n is liye geet to nahi sun saki. lekin andaz-e-baya.n bahut khubsurat laga... shayad har bhavuk dil andhere me hi apna suku.n dhudhata hoga... kam se kam mai to unme shamil hi hu.n
गीत बहुत सुंदर है ओर इसका असली मजा चाँद को देखकर सुनने मे है......
सागर भाई सही कहा !
समीर जी, भुवनेश, अभिषेक, यूनुस गीत पसंद करने के लिए शुक्रिया !
कंचन जानकर खुशी हुई कि अँधेरे के बारे में हम हमखयाल हैं !
रात हमारी तो चाँद की सहेली है
कितने दिनों के बाद आई वो अकेली है
अनुराग भाई गीत के लफ़्जों पर गौर करें
गीत में एक ऍसी रात का जिक्र है जो बिना चाँद के साथ यानि अमावस्या आई है। यहाँ हम उस घुप्प अँधेरे की बात कर रहे हैं जो चाँदनी की स्निग्धता नहीं देता बल्कि एक चुभन देता है..इसीलिए स्वानंद कहते हैं
अँधेरा पागल है, कितना घनेरा है
चुभता है डसता है, फिर भी वो मेरा है
एक टिप्पणी भेजें