पर ये भी एक दिलचस्प तथ्य है कि उत्तराखंड की माटी से निकली इस प्रतिभा ने विज्ञापन जगत और फिल्म उद्योग में कदम रखने के पहले मात्र सत्रह साल की उम्र में ही कविता लिखना शुरु कर दिया था। प्रसून कहते हैं कि आज भी उनका ९० प्रतिशत समय कार्यालय में और दस प्रतिशत काव्य और गीत लेखन में बीतता है। पर इन दोनों क्षेत्रों में कुछ अच्छा करने से उन्हें बराबर का संतोष मिलता है।
अपने काव्य लेखन के बारे में हाल ही में दिए एक साक्षात्कार में प्रसून ने कहा कि
वो एक बार में अपनी कविता पूर्ण नहीं कर लेते । उसमें तब तक वो सुधार करते रहते हैं जब तक उन्हें लगता है कि वो पूरी तरह उनके विचारों को अभिव्यक्त करने में समर्थ नहीं हो पाई है।
आज आपके सामने पेश है प्रसून जोशी की ही एक कविता जिसमें नायिका अपने किसी खास का बेसब्री से इंतजार कर रही है....
रात के पहरेदार की सीटी
साथ हवा के सैर को निकली
जागते रहना, जागते रहना
रास्तों से आवाजें गुजरीं
और हँस के मैं खुद से बोली
जन्मों से मैं जाग रही हूँ
इंतजार को साध रही हूँ
कोई तो आए, कोई तो बोले तू सो जा इक बार
इंतजार, इंतजार, बोलो कब तक करूँ मैं इंतजार ?
सुबह सुबह आँगन में अपने गीले ख़्वाब सुखाती हूँ
कानों में खुद डाल के उँगली ऊँचे सुर में गाती हूँ
शाख गुलमोहर की हसरत से कितनी बार हिलाती हूँ
कभी तो खुशबू से भर जाए ये दामन इक बार
इंतजार, इंतजार, बोलो कब तक करूँ मैं इंतजार ?
पहले थोड़ा जिया जलाया
फिर आँगन में दिया जलाया
नर्म घास पर चल कर देखा
इक बुलबुल को पास बुलाया
और उसने कानों में गाया
आएगा वो धूप का टुकड़ा, इक दिन मेरे द्वार
इंतजार, इंतजार, जिसका मुझे इंतजार.....
18 टिप्पणियाँ:
प्रसून जी की एक सुन्दर कविता पढवाने के लिए शुक्रिया ।
मनीष जी बहुत बहुत शुक्रिया आपका.. इतनी सुंदर कविता पढ़वाने के लिए.. प्रसून की लिखावट मुझे हमेशा से पसंद है.. और भी पढ़वाए..
बहुत ही सुंदर ....इसको यहाँ पढ़वाने के लिए शुक्रिया
ye kavita pasand ayi
क्या बात है भाई. बहुत बढ़िया. बहुत ही बढ़िया ...
hamse bantane ka dhanyvaad
प्रसूनजी के बारे में मैंने भी कुछ दिन पहले पढ़ा था, उनके प्रचार तो सही में बहुत लोकप्रिय है ख़ास कर कोका कोला के... जैसा की आपने कहा है, इसके अलावा वो 'यारा दा टशन' वाला प्रचार भी तो है, वो प्रचार तो भूलता ही नहीं... हमारे पहले सेमेस्टर के भौतिकी की परीक्षा में एक सवाल आया था इस प्रचार पर... :-)
और आज कल गाने तो लिख ही रहे हैं बहुत अच्छे, इस कविता के लिए धन्यवाद.
मैंने विविध भारती के लिए प्रसून को इंटरव्यू किया था, बेहद संवेदनशील समझदार और गंभीर व्यक्ति हैं । उनकी संवेदना काफी व्यापक है । सुंदर कविता पढ़वाई । आपसे यही उम्मीद रहती है । :)
behad khubsurat kavita...aur phir apki prastuti,subhan allah!
बढ़िया कविता. धन्यवाद.
वाह मनीष भाई, गजब कविता निकाल कर लाये प्रसून जी की. आभार.
सुन्दर कविता पढवाने के लिए धन्यवाद
प्रसून भाई ने मध्यवर्गीय अवाम को ध्यान में रख कर अपना रचनाकर्म किया है सो उनकी बात अपनी सी लगती है. इश्तेहारों की दुनिया में भी वे कविता रचते हैं.ये रचना भी मर्मस्पर्शी है.
सुबह सुबह आँगन में अपने गीले ख़्वाब सुखाती हूँ
कानों में खुद डाल के उँगली ऊँचे सुर में गाती हूँ
शाख गुलमोहर की हसरत से कितनी बार हिलाती हूँ
कभी तो खुशबू से भर जाए ये दामन इक बार
इंतजार, इंतजार, बोलो कब तक करूँ मैं इंतजार ?
बहुत सुंदर।
मनीष जी शुक्रिया।
मेरे पसंदीदा गीतकारों मे से एक है....आपका शुक्रिया.......
dil ko chune wali kavita.
dil ko chune wali kavita
nehayti kabile-Taarif ye umda khyal or alfaz. thnks sir. i m dead of it sir
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