जगजीत सिंह और गुलज़ार दो ऍसी शख्सियत रहे हैं जिन्होंने तीस से चालिस की पीढ़ी को ग़ज़ल और गीतों से जोड़े रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। जहाँ जगजीत ने आम आदमी को ग़ज़ल की खूबसूरती से सरल अलफ़ाजो में परिचित कराया वहीं गुलज़ार ने फिल्मी गीतों में बोलो की सार्थकता और उनसे पैदा होने वाली जादूगरी को जिलाए रखा।
२००६ में गुलज़ार और जगजीत के सम्मिलित प्रयासों से से एक खूबसूरत एलबम कोई बात चले (जिसकी विस्तार से चर्चा मैंने (यहाँ की थी) की रचना हुई थी। ये एलबम जगजीत की गायिकी से कहीं ज्यादा गुलज़ार की त्रिवेणियों की वज़ह से चर्चित रही थी।
पर इससे पहले भी गुलज़ार और जगजीत २००२ में एक फिल्म में आ चुके थे। ये फिल्म थी लीला और इस का संगीत भी जगजीत सिंह ने दिया था। मुझे इस फिल्म के लगभग सारे गीत और ग़ज़ल अच्छे लगते हैं। पर इस गीत की बात ही कुछ अलग है। गुलज़ार के बोल जी को बेध जाते हैं जब वो कहते हैं
जाग के काटी सारी रैना
नयनों में कल ओस गिरी थी
ओस का रूपक के तौर पर कितना बेहतरीन इस्तेमाल किया उन्होंने और फिर गीत की ये पंक्ति
करवट करवट बाँटी रैना
जाग के काटी सारी रैना....
बस होठ निःशब्द हो जाते हैं शब्दों में गूँजती अनुभूतियों को महसूस कर के...
वही जगजीत अपनी गायिकी से गीत के बोलों की बेचैनी और दर्द को और उभार देते हैं। उनकी आवाज़ का जादू शास्त्रीयता के रंगों में रंग कर सिर चढ़ कर बोलता है। गौर कीजिएगा जगजीत जी ने ग़ज़ल गायिकी के साथ गिटार की संगत कर एक नया प्रयोग किया है
तो आइए सुनें रात्रि गीतों की श्रृंखला के इस दूसरे गीत को
जाग के काटी सारी रैना
नयनों में कल ओस गिरी थी
जाग के काटी सारी रैना....
प्रेम की अग्नि बुझती नहीं है
बहती नदिया रुकती नहीं है
सागर तक बहते दो नैना
जाग के काटी सारी रैना....रुह के बंधन खुलते नहीं हैं
दाग हैं दिल के धुलते नहीं हैं
करवट करवट बाँटी रैना
जाग के काटी सारी रैना....
नयनों में कल ओस गिरी थी
जाग के काटी सारी रैना
लीला फिल्म में ये गीत डिंपल कपाड़िया और विनोद खन्ना पर अभिनीत इस गीत को आप यहाँ देख सकते हैं
10 टिप्पणियाँ:
आपके गीत वाले पोस्ट पर बार-बार एक ही बात कहना अच्छा नहीं लग रहा .... लेकिन क्या करें.. फिर से वही बात कहनी पड़ रही है: बहुत खूबसूरत गीत है,
और हाँ हमारी गीतों की पसंद बहुत मिलती है, शुक्रिया. .
वाह, क्या बात है. अभीषेक के साथ स्वर मिलाता हूँ. :)
अब एक निवेदन (आपसे तो अधिकारपूर्वक कह सकता हूँ :)):
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आप हिन्दी में लिखते हैं. अच्छा लगता है. मेरी शुभकामनाऐं आपके साथ हैं इस निवेदन के साथ कि नये लोगों को जोड़ें, पुरानों को प्रोत्साहित करें-यही हिन्दी चिट्ठाजगत की सच्ची सेवा है.
एक नया हिन्दी चिट्ठा किसी नये व्यक्ति से भी शुरु करवायें और हिन्दी चिट्ठों की संख्या बढ़ाने और विविधता प्रदान करने में योगदान करें.
शुभकामनाऐं.
-समीर लाल
(उड़न तश्तरी)
मनीष जी हमारा तो पूरा जीवन गुलज़ार ओर जगजीत सिंह जी के सहारे गुजरा है ओर खुस्किस्मती से इन दोनों से रूबरू होने का मौका भी.......ये गजल शायद आमजनमानस तक कम पहुँची है.....पर बेहद खूबसूरत है...भला हो इन u tube वालो का की ऐसी ऐसी चीजे एक बटन की दूरी पे रहती है.....ओर आपका शुक्रिया.
Bahut aanad ki anubhuti de gaya yeh geet. Jagjitsinghji aur Gulzar ji ka sanyukt jugalbani sada hi sukh dayi rahi hai.apse is adhyam se pahali baar judaav hua hai,jaari rahega.
vinod khare
रुह के बंधन खुलते नहीं हैं
दाग हैं दिल के धुलते नहीं हैं
Bhavpurna shabdo.nke sath sundar geet
मधुर गीत।
oh ho ye post pehley kyu nahi sun paayi mai? gazab hai ..
amazing.. i have been obsessing over this song for the last few days too! has always been a favourite since the album released.. isi film ke aur gaane bhi suniyega- jab se kareeb hoke chale zindagi se hum etc. ek shaadi wala gaana hai, par punjaabi mein hai isiliye theek se samajh nahin aata. zaroor suniyega aap.
also Tere Khayal Ki..
इस गीत को पसंद करने के लिए आप सब का शुक्रिया !
विनोद भाई आपका यहाँ स्वागत है। आप भी जगजीत और गुलज,ार को पसंद करते हैं ये जानकर खुशी हुई।
Suparna I have heard this album many times & apart from this song Khume gham hai mehakti fiza mein jeete hain is my fav ghazal & incidently that was my next post on Hindi Blog..
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