शनिवार, जून 07, 2008

ज़रा सी आहट होती है तो दिल सोचता है कहीं ये वो तो नहीं ...

जिंदगी में कोई जब इतना करीब हो जाए कि आप उस शख्स के साये में भी उसकी खुशबू महसूस करने लगें.. दूर से आते उसके पदचापों को सुन कर आपके हृदय की धड़कन तीव्र गति से चलने लगे, गाहे-बगाहे आपकी आँखों के सामने उसी की छवि उभरने लगे, तब समझ लीजिए कि आप भगवन की बनाई सबसे हसीन नियामत 'प्रेम' की गिरफ्त में हैं।

ऍसी ही भावनाओं को लेकर मशहूर शायर कैफ़ी आजमी ने १९६४ में फिल्म हक़ीकत में एक प्यारा सा नग्मा लिखा था। 'हक़ीकत' भारत चीन युद्ध के परिपेक्ष्य में चेतन आनंद द्वारा बनाई गई थी जो इस तरह की पहली फिल्म थी। युद्ध की असफलता से आहत भारतीय जनमानस पर इस फिल्म ने एक मरहम का काम किया था। फिल्म तो सराही गई ही इसमें दिया मदनमोहन का संगीत बेहद चर्चित रहा।



वैसे तो सारा गीत ही प्रेम रस से सराबोर है पर गीत का मुखड़ा दिल में ऍसी तासीर छोड़ता है जिसे लफ़्जों से बयाँ कर पाना मुश्किल है।

ज़रा सी आहट होती है तो दिल सोचता है, कहीं ये वो तो नहीं...

इसे कितनी ही दफा गुनगुनाते रहें मन नहीं भरता...दो महान कलाकारों मदनमोहन और लता की जोड़ी की अद्भुत सौगात है ये गीत..

इस गीत को आप यू ट्यूब पर भी देख सकते हैं

ज़रा सी आहट होती है तो दिल सोचता है
कहीं ये वो तो नहीं, कहीं ये वो तो नहीं
ज़रा सी आहट होती है ...

छुप के सीने में कोई जैसे सदा देता है
शाम से पहले दिया दिल का जला देता है
है उसी की ये सदा, है उसी की ये अदा
कहीं ये वो तो नहीं ...

शक्ल फिरती है निगाहों में वो ही प्यारी सी
मेरी नस-नस में मचलने लगी चिंगारी सी
छू गई जिस्म मेरा किसके दामन की हवा
कहीं ये वो तो नहीं ...

आशा है इस गीत को सुन कर आपका मूड रूमानी हो गया होगा। तो क्यूँ ना चलते चलते जानिसार अख़्तर की एक गज़ल भी पढ़ाता चलूँ जिसके भाव बहुत कुछ इस गीत से मिलते जुलते हैं... और जब भी ये गीत सुनता हूँ ये ग़ज़ल खुद ब खुद मन के झरोखों से निकल कर सामने आ जाती है..

आहट सी कोई आए तो लगता है कि तुम हो
साया कोई लहराए तो लगता है कि तुम हो


जब शाख कोई हाथ लगाते ही चमन में
शरमाए, लचक जाए तो लगता है कि तुम हो


रस्ते के धुंधलके में किसी मोड़ पे कुछ दूर
इक लौ सी चमक जाए तो लगता है कि तुम हो


ओढ़े हुए तारों की चमकती हुई चादर
नदिया कोई बल खाए तो लगता है कि तुम हो


जब रात गए कोई किरण मेरे बराबर
चुप चाप से सो जाए तो लगता है कि तुम हो



तो बताएँ कैसी लगी ये ग़ज़ल और गीत आपको ?
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15 टिप्पणियाँ:

कुश on जून 07, 2008 ने कहा…

wakai manbhavn post hai ye to

रंजू भाटिया on जून 07, 2008 ने कहा…

गाना तो यह कमाल का है ही ..पर यह गजल भी कम नहीं है बेहद खूबसूरत है यह
रास्ते के धुंधलके में किसी मोड़ पे कुछ दूर
इक लौ सी चमक जाए तो लगता है कि तुम हो

बहुत उम्मीद है इस गजल में .शुक्रिया इसको यहाँ शेयर करने के लिए

L.Goswami on जून 07, 2008 ने कहा…

khubsuraat gajal.batne ke liye dhanyawad..jari rakhen aisi sundar koshis

mamta on जून 07, 2008 ने कहा…

क्या बात है मनीष जी आपने तो बहुत कमाल का गाया है।

डॉ .अनुराग on जून 07, 2008 ने कहा…

iska doosra geet "mai ye schkar uske dar se utha tha.ke vo rok lengi mana lengi mujhko....mera favorite hai...
shukriya.

Udan Tashtari on जून 07, 2008 ने कहा…

वाह, मनीष बाबू. आभार इन उम्दा गीतों के लिए.

Udan Tashtari on जून 07, 2008 ने कहा…

अरे हाँ आपका गायन भी कमाल का है और मेरी पसंद की गज़ल पढ़वाने का भी आभार.

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` on जून 07, 2008 ने कहा…

बेहद प्यारा गाना है मुझे भी प्रिय है और आपका प्रयास भी बेहतरीन रहा मनीष भाई!
- लावण्या

Abhishek Ojha on जून 09, 2008 ने कहा…

बहुत बढ़िया... और जैसा की मैंने पहले कहा था आप अच्छा गाते हैं.

Dawn on जून 11, 2008 ने कहा…

WOW Manish....kya nazm dhundke sunayee hai tumne...! Ye ek aisee nazm hai and not only this one but iss movie ke other songs also are so so amazing!!!
Thanks for sharing a good moment
Cheers

बेनामी ने कहा…

Bahut badhiya! Abhyas karen apke ander ek Umda gayak chhupa hai.

Anita kumar on जून 13, 2008 ने कहा…

बाह मनीष भाई बहुत सुंदर गीत, मेरा फ़ेवरेट, अब इसी फ़िल्म के दूसरे गाने भी सुन्वाइए

Dawn on जून 16, 2008 ने कहा…

Apni awaz mein gaane record karke radio blog daalne ki sochi hai ;)

Happy Father's Day
CHeers

Manish Kumar on जून 18, 2008 ने कहा…

जानकर खुशी हुई कि ये गीत आप सब की पसंद का निकला।

मदन आपकी सलाह पर अमल करने की कोशिश करूँगा।

DON idea achcha hai...

nimish on अक्तूबर 17, 2012 ने कहा…

ghazal jaa nisar akhtar sahab ki hai

 

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