उत्तरप्रदेश के लोक गीतों का अपना ही एक इतिहास है। शायद ही ऍसा कोई अवसर या विषय हो जिस पर इस प्रदेश में लोकगीत ना गाए जाते हो। चाहे वो बच्चे का जन्म हो या प्रेमियों का बिछुड़ना, शादी हो या बिदाई, नई ॠतु का स्वागत हो या खेत में हल जोतने का समय सभी अवसरों के लिए गीत मुकर्रर हैं और इनका नामाकरण भी अलग अलग है, जैसे सोहर, ब्याह, बन्ना बन्नी, कोहबर, बिदाई, ॠतु गीत, सावन, चैती आदि। आपको याद होगा कि IIT Mumbai में जब हम सब ने गीत संगीत की महफिल जमाई थी तो हमारे साथी चिट्ठाकार अनिल रघुराज ने चैती गाकर हम सबको सुनाया था। उसका वीडिओ आप यूनुस के ब्लॉग पर यहाँ देख सकते हैं।
उत्तरप्रदेश के लोक गीतों के बारे में अपनी किताब 'Folk Songs of Uttar Pradesh' में लेखिका निशा सहाय लिखती हैं....
"...राज्य के लोकगीतों को मुख्यतः तीन श्रेणी में बाँटा जा सकता है
- ॠतु विशेष के आने पर गाए जाने वाले गीत
- किसी खास अवसर पर गाए जाने वाले गीत
- और कभी कभी गाए जाने वाले गीत
कुछ गीत केवल महिलाओं द्वारा गाए जाते हैं तो कुछ केवल मर्दों द्वारा। इसी तरह कुछ गीत सिर्फ समूह में गाए जाते हैं जब कि कुछ सोलो। समूह गान में रिदम पर ज्यादा जोर होता है जिसे लाने के लिए अक्सर चिमटा और मजीरा जैसे वाद्य यंत्रों का प्रयोग किया जाता है। इसके आलावा इन गीतों में बाँसुरी, शंख, रबाब, एकतारा, सारंगी ओर ढोलक का इस्तेमाल भी होता है। वैसे तो ये गीत ज्यादातर लोक धुनों पर ही रचित होते हैं पर कई बार इनकी गायिकी बहुत कुछ शास्त्रीय रागों जैसे पीलू, बहार, दुर्गा और ख़माज से मिलती जुलती है......."
आषाढ खत्म होने वाला है और सावन आने वाला है तो क्यूँ ना आज सुने जाएँ वे लोकगीत जो अक्सर सावन के महिने में गाए जाते हैं।
प्रस्तुत गीत में प्रसंग ये है कि नायिका को सावन की मस्त बयारें अपने पीहर में जाने को आतुर कर रही हैं। वो अपनी माँ को संदेशा भिजवाती है कि कोई आ के उसे पीहर ले जाए पर माँ पिता की बढ़ती उम्र और भाई के छोटे होने की बात कह कर उसकी बात टाल जाती है। नायिका ससुराल में किस तरह अपना सावन मनाती है ये बात आगे कही जाती है।
अम्मा मेरे बाबा को भेजो री
कि सावन आया कि सावन आया कि सावन आया
अरे बेटी तेरा, अरे बेटी तेरा, अरे बेटी तेरा,
बेटी तेरा बाबा तो बूढ़ा री
कि सावन आया कि सावन आया कि सावन आया
अम्मा मेरे भैया को भेजो री
अरे बेटी तेरा, अरे बेटी तेरा, अरे बेटी तेरा,
बेटी तेरा भैया तो बाला री
कि सावन आया कि सावन आया कि सावन आया
अम्मा मेरे भैया को भेजो री
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नन्ही नन्ही बुँदिया रे, सावन का मेरा झूलना,
हरी हरी मेंहदी रे ,सावन का मेरा झूलना
हरी हरी चुनरी रे ,सावन का मेरा झूलना
पर इन गीतों के मनोविज्ञान में झांकें तो ये पाते हैं कि घर से दूर पर वहाँ की यादों के करीब एक नवविवाहिता को अपनी खुशियों और गम को व्यक्त करने के लिए सावन के ये गीत ही माध्यम बन पाते थे। मेरी जब इन गीतों के बारे में कंचन चौहान से बात हुई तो उन्होंने बताया कि
"उनकी माँ की शादी जुलाई १९५३ मे हुई थी और वो बताती हैं कि वे उन दिनों यही गीत गा के बहुत रोती थी...! और शायद उन्होने भी ये गीत अपनी माँ से ही सुना होगा, कहने का आशय ये है कि बड़ी पुरानी धरोहरे हैं ये कही हम अपने आगे बढ़ने की होड़ मे इन्हें खो न दे...! .."
इस गीत के आगे की पंक्तियाँ कंचन की माताजी ने अपनी स्मृति के आधार पर भेजा है।
एक सुख देखा मैने मईया के राज में,
सखियों के संग अपने, गुड़ियों का मेरा खेलना
एक सुख देखा मैने भाभी के राज में,
गोद में भतीजा रे, गलियों का मेरा घूमना
एक दुख देखा मैने सासू के राज में,
आधी आधी रातियाँ रे चक्की का मेरा पीसना
एक दुख देखा मैने जिठनी के राज में,
आधी आधी रतियाँ रे चूल्हे का मेरा फूँकना
इस गीत को गाया है लखनऊ की गायिका मालिनी अवस्थी ने। मालिनी जी ने जुनूँ कुछ कर दिखाने का कार्यक्रम में में उत्तरप्रदेश के हर तरह के लोकगीतों को अपनी आवाज़ दी है। कल्पना की तरह वो भी एक बेहद प्रतिभाशाली कलाकार हैं। तो आइए देखें उनकी गायिकी के जलवे..
13 टिप्पणियाँ:
ahaan! kya baat hai...hum sun nahi paaye the ab tak...aaj suna...shukriyaa..manish
बहुत सुन्दर, भावपूर्ण व जीवन्त गीत। सुनवाने के लिए धन्यवाद।
घुघूती बासूती
आज की बिटिया तो ऐसा आग्रह भी नहीं कर सकती।
घुघूती बासूती
अच्छा तो आप बलिया और कानपूर दोनों से जुड़े हुए हैं, रांची से तो हैं ही... चलिए सुनवाते रहिये.
जी हाँ .उत्तर प्रदेश के लोकगीतों की परम्परा धनी है .बिना लोकगीतों के कोई भी अवसर सूना सा लगता है. चाहे शादी के बन्ना बन्नी हो या गाली. जन्म के समय का सोहर हो या लड़की के विदाई गीत.
uttar pradesh me rahkar manish ji maine kabhi itni gaur se lok geeto ko nahi suna bas thodi thodi dhundhli yaade hai ,nani ke ghar ki jahan kabhi shadi byaah ke mauke par gaanv pe dholak par kuch geet gaaye jate the ,aor kamal ki baat ye hai ki purvi uttar pardesh aor paschimi uttar pardesh me alag alag geet prachalit hai.
छा गये..काहे को ब्याहे बिदेस--मेरी पत्नि बहुत रस लेकर गाती हैँ..आज यह सुनकर शायद धुन बदल ले..गजब!! वाह वाह!! कोई शब्द नहीँ..
mujhe to khair bahut din se pasand hai ye geet aur sare lokgeet
Very touching and emotional! Shabdon ka impact bahut bhari padta hai dil per :)
Thanks for sharing
Cheers
अद्भुत गीत हैं. जितना धन्यवाद दूं कम होगा.
शुक्रिया आप सब का मालिनी जी के गाए इस गीत को सराहने के लिए
घुघूती जी ..सही कहा आपने आज की बिटिया सायद ही ऍसा आग्रह करे...
समीर जी.. मालिनी जी ने इस कार्यक्रम में काहे को ब्याही..भी सुनाया था पर चूंकि वो हमारे साथी दिलराज कौर की आवाज़ में पहले ही सुना चुके हैं इसलिए उसे पोस्ट नहीं किया। वो भी बड़ा मर्मस्पर्शी गीत है।
अभिषेक लिखते समय खास आपका ही ध्यान था ज़ेहन में है ना दिलचस्प coincidence
अनुराग रुड़की में रहते हुए पश्चिमी उत्तर प्रदेश की बोलचाल का तो अंदाजा है पर उधर के लोकगीतों को सुनने का मौका नहीं मिला।
पूनम जी सही कहा आपने...
thanks manish uncle for helping me in the hindi project.hume ek lokgeet par project diya gaya tha jisme apke blogspot ne hume madad ki.lokgeet bhi bahut madhur hai.
Bilkul sahi kaha apney lock geet u p ki Shaan h
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