रविवार, जुलाई 20, 2008

सुनो जानां चले आओ तुम्हें मौसम बुलाते हैं : आतिफ़ सईद की एक खूबसूरत नज़्म Suno Jana Chale Aao

पिछले साल अगस्त महिने में मैंने एक नज़्म पोस्ट की थी जिसका शीर्षक था अज़ब पागल सी लड़की है....। उसे किसने लिखा ये उस वक़्त नहीं पता था। आज मै जब इस नज़्म को पढ़ रहा था तो पता चला कि इसके लेखक वहीं हैं जिन्होंने अज़ब पागल सी लड़की है.... लिखी थी। जी हाँ, इन दोनों नज़्मों को लिखा है पाकिस्तान के नौजवान शायर आतिफ़ सईद साहब ने। आतिफ़ साहब का अपना एक जाल पृष्ठ भी है जिसका लाभ आप तभी उठा सकते हैं जब आप उर्दू लिपि के जानकार हों। आज उनकी जो नज़्म आप के साथ बाँट रहा हूँ वो यकीं है कि आपके लिए नई होगी।



ये नज़्म उन्होंने अपनी नई किताब 'तुम्हें मौसम बुलाते हैं' के उन्वान में लिखी है। नज़्म प्यार के हसस जज़्बातों से लबरेज़ है। अपने प्रेम और मौसम की बदलती रुतों को आपस में बेहद बेहतरीन तरीके से गुँथा है शायर ने। विश्वास नहीं होता तो खुद ही पढ़कर देखिए ना..  


मेरे अंदर बहुत दिन से
कि जैसे जंग जारी है
अज़ब बेइख्तियारी है

मैं ना चाहूँ मगर फिर भी, तुम्हारी सोच रहती है
हर इक मौसम की दस्तक से तुम्हारा अक़्स बनता है
कभी बारिश, तुम्हारे शबनमी लहजे में ढलती है
कभी शर्मा के ये रातें
तुम्हारे सर्द होठों का, दहकता लम्स लगती हैं
कभी पतझड़.तुम्हारे पाँवों से रौंदे हुए पत्तों की आवाज़ें सुनाता है

कभी मौसम गुलाबों का
तुम्हारी मुस्कुराहट के सारे मंज़र जगाता है
मुझे बेहद सताता है

कभी पलकें तुम्हारी धूप ओढ़े जिस्म ओ जान पर शाम करती हैं
कभी आँखें, मेरे लिखे हुए मिसरों को अपने नाम करती हैं
मैं खुश हूं या उदासी के किसी मौसम से लिपटा हूँ
कोई महफ़िल हो तनहाई में या महफ़िल में तनहा हूँ
या अपनी ही लगाई आग में बुझ-बुझ कर जलता हूँ

मुझे महसूस होता है
मेरे अंदर बहुत दिन से
कि जैसे जंग ज़ारी है
अज़ब बेइख्तियारी है

और इस बेइख्तियारी में
मेरे जज़्बे, मेरे अलफाज़ मुझ से रूठ जाते हैं
मैं कुछ भी कह नहीं सकता, मैं कुछ भी लिख नहीं सकता
उदासी ओढ़ लेता हूँ
और इन लमहों की मुठ्ठी में
तुम्हारी याद के जुगनू कहीं जब जगमगाते हैं
ये बीते वक़्त के साये
मेरी बेख्वाब आँखों में, कई दीपक जलाते हैं
मुझे महसूस होता है
मुझे तुम को बताना है
कि रुत बदले तो पंछी भी घरों को लौट आते हैं
सुनो जानां चले आओ तुम्हें मौसम बुलाते हैं....


उनकी इस प्यारी नज़्म को आवाज़ देने की कोशिश की है सुनिएगा..



अगर आपको ये नज़्म पसंद आई तो यकीनन आप इन्हें भी पढ़ना पसंद करेंगे...
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14 टिप्पणियाँ:

रंजू भाटिया on जुलाई 20, 2008 ने कहा…

ये बीते वक़्त के साये
मेरी बेख्वाब आँखों में, कई दीपक जलाते हैं
मुझे महसूस होता है
मुझे तुम को बताना है
कि रुत बदले तो पंछी भी घरों को लौट आते हैं
सुनो जानां चले आओ तुम्हें मौसम बुलाते हैं..

बेहद खुबसूरत एक एक लफ्ज दिल में उतर गया ...शुक्रिया इसको यहाँ पढ़वाने का

rakhshanda on जुलाई 20, 2008 ने कहा…

और इस बेइख्तियारी में
मेरे जज़्बे, मेरे अलफाज़ मुझ से रूठ जाते हैं
मैं कुछ भी कह नहीं सकता, मैं कुछ भी लिख नहीं सकता
उदासी ओढ़ लेता हूँ
और इन लमहों की मुठ्ठी में
तुम्हारी याद के जुगनू कहीं जब जगमगाते हैं
ये बीते वक़्त के साये
मेरी बेख्वाब आँखों में, कई दीपक जलाते हैं
मुझे महसूस होता है
मुझे तुम को बताना है
कि रुत बदले तो पंछी भी घरों को लौट आते हैं
सुनो जानां चले आओ तुम्हें मौसम बुलाते हैं....


ये कुछ लाइनें लिखने का ये मतलब नही की यही मुझे पसंद हैं,ये पूरी नज़्म जैसे दीवाना कर गई...कितने अहसास जगा गई,मैं उसका इज़हार नही कर सकती,बस कर सकती हूँ तो शुक्रिया,इतने खूबसूरत नज़्म मुझे पढ़वाने के लिए...तारीफ़ के लिए अल्फाज़ नही मिल रहे....

डॉ .अनुराग on जुलाई 20, 2008 ने कहा…

shukriya is nazm ko sanjo kar rakh liya hai,sach aapne aaj is barish bhare sunday ko aor khushnuma bana diya hai.

Abhishek Ojha on जुलाई 20, 2008 ने कहा…

abhi mumbai mein hoon aur mausam ka kya kahein ! garmi se pareshaan ho gaya hoon, jaldi se bhaagne ke mood mein hoon.par is mausam mein b hi: 'हर इक मौसम की दस्तक से तुम्हारा अक़्स बनता
है' :-)

Sajeev on जुलाई 20, 2008 ने कहा…

भाई साब जवाब नही कहाँ कहाँ से ढूढ़ लाते है नये सब, तीनो नज्में पढ़ी बहतरीन ....

पारुल "पुखराज" on जुलाई 20, 2008 ने कहा…

pehley bhi padhin hai..aaj bhi bahut acchhi lagin..shukriyaa

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` on जुलाई 20, 2008 ने कहा…

Nehad sunder Nazm ko sajha karvane ka abhut aabhaar jee ~~

pallavi trivedi on जुलाई 20, 2008 ने कहा…

bahut hi behtareen nazm hai...shukriya ise yaha laane keliye.

Udan Tashtari on जुलाई 21, 2008 ने कहा…

तीनों एक से बढ़ कर एक..वाह!! बहुत सही कलेक्शन है जनाब!

Harshad Jangla on जुलाई 21, 2008 ने कहा…

Nice presentation.
Dhanyavaad.

-Harshad Jangla
Atlanta, USA

कंचन सिंह चौहान on जुलाई 21, 2008 ने कहा…

"Ajab Pagal si Ladki hai" bhi mujhe bahut pasand aai thi, aabhasi jagat ke ek Pakistani mitra se poonchha bhi tha shayar ka naam magar unhe bhi nahi maloom tha aur unhonme Agrah bhi kiya thai ki shayar ka naam pata chal jaye to zarur batau.n...khair ab bata du.ngi

ye bhi nazm bahut hi behatarin thi... aapne jo lines bold ki vo mujhe khskar pasand aai.n..lekin ashcharya aap par ho raha hai ki jo banda kavi na hone ka dava karta hai, use kaise pata ki kabhi kabhi halat itane havi ho jate hai, ki aap ke shabda, aapke ahsaas aapko dhokha de jaate hai.n aur aap kuchh likh bhi nahi paate :) khair aap ki understanding ko daad deti hu.n.. aur Nazm ba.ntane ka Shuriya.

Unknown on जुलाई 25, 2008 ने कहा…

बहुत ही खूब - बेख्वाब आंखों की जैसे ख्वाब जैसी बात - वाह

Manish Kumar on जुलाई 26, 2008 ने कहा…

आप सबों को ये नज़्म पसंद आई जानकर खुशी हुई।

बेनामी ने कहा…

hey


just registered and put on my todo list


hopefully this is just what im looking for looks like i have a lot to read.

 

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