कायस्थ पाठशाला में बच्चन जी ने अपनी पहली पूरी हिंदी कविता लिखी, किसी अध्यापक के विदाअभिनंदन पर जब वे सातवीं में थे। अपनी आत्मकथा में बच्चन ने लिखा है
".....स्कूल में शिक्षक जब निबंध लिखाते तब कहते, अंत में कोई दोहा लिख देना चाहिए। विषय से सम्बन्ध दोहा याद ना होने पर मैं स्वयं कोई रचकर लगा देता था। इन्हीं दोहों से मेरे काव्य का उदगम हुआ। 'भारत भारती' से गुप्त जी की पद्यावली, 'सरस्वती' के पृष्ठों से पंत जी की कविता और 'मतवाला' के अंकों से निराला जी के मुक्त छंदों से मेरा परिचय हो चुका था। नवीं, दसवीं कक्षा में तो मैंने कविताओं से एक पूरी कापी भर डाली। पर मेरी ये कविताएँ इतनी निजी थीं कि जब मेरे एक साथी ने चोरी से उन्हें देख लिया तो मैंने गुस्से में पूरी कॉपी टुकड़े टुकड़े करके फेंक दी। मेरे घर से खेत तक कॉपी के टुकड़े गली में फैल गए थे, इसका चित्र मेरी आँखों के सामने अब भी ज्यों का त्यों है। कविताएँ मैंने आगे भी बिल्कुल अपनी और निजी बनाकर रखीं और मेरे कई साथी उनके साथ ताक झांक करने का प्रयत्न करते रहे।....."
वक़्त के पहिए की चाल देखिए....एक बालक जो अपने सहपाठियों में अपनी कविताएँ दिखाते हिचकता था, ने ऍसी कृतियों की रचना की जिसे सारे भारत की हिंदी प्रेमी जनता पूरे प्रेम से रस ले लेकर पढ़ती रही।
बच्चन की ये कविता हर उस स्वाभिमानी मनुष्य के दिल की बात कहती है जिसने अपने उसूलों के साथ समझौता करना नहीं सीखा। उनके सुपुत्र अमिताभ बच्चन ने एलबम बच्चन रिसाइट्स बच्चन (Bachchan Recites Bachchan) में बड़े मनोयोग से इस कविता को पढ़ा है। तो आइए सुनें अमित जी की आवाज़ में हरिवंश राय बच्चन जी की ये कविता....
मैं हूँ उनके साथ,खड़ी जो सीधी रखते अपनी रीढ़
कभी नही जो तज सकते हैं, अपना न्यायोचित अधिकार
कभी नही जो सह सकते हैं, शीश नवाकर अत्याचार
एक अकेले हों, या उनके साथ खड़ी हो भारी भीड़
मैं हूँ उनके साथ, खड़ी जो सीधी रखते अपनी रीढ़
निर्भय होकर घोषित करते, जो अपने उदगार विचार
जिनकी जिह्वा पर होता है, उनके अंतर का अंगार
नहीं जिन्हें, चुप कर सकती है, आतताइयों की शमशीर
मैं हूँ उनके साथ, खड़ी जो सीधी रखते अपनी रीढ़
नहीं झुका करते जो दुनिया से करने को समझौता
ऊँचे से ऊँचे सपनो को देते रहते जो न्योता
दूर देखती जिनकी पैनी आँख, भविष्यत का तम चीर
मैं हूँ उनके साथ, खड़ी जो सीधी रखते अपनी रीढ़
जो अपने कन्धों से पर्वत से बढ़ टक्कर लेते हैं
पथ की बाधाओं को जिनके पाँव चुनौती देते हैं
जिनको बाँध नही सकती है लोहे की बेड़ी जंजीर
मैं हूँ उनके साथ, खड़ी जो सीधी रखते अपनी रीढ़
जो चलते हैं अपने छप्पर के ऊपर लूका धर कर
हर जीत का सौदा करते जो प्राणों की बाजी पर
कूद उदधि में नही पलट कर जो फिर ताका करते तीर
मैं हूँ उनके साथ, खड़ी जो सीधी रखते अपनी रीढ़
जिनको यह अवकाश नही है, देखें कब तारे अनुकूल
जिनको यह परवाह नहीं है कब तक भद्रा, कब दिक्शूल
जिनके हाथों की चाबुक से चलती हें उनकी तकदीर
मैं हूँ उनके साथ, खड़ी जो सीधी रखते अपनी रीढ़
तुम हो कौन, कहो जो मुझसे सही ग़लत पथ लो तो जान
सोच सोच कर, पूछ पूछ कर बोलो, कब चलता तूफ़ान
सत्पथ वह है, जिसपर अपनी छाती ताने जाते वीर
मैं हूँ उनके साथ, खड़ी जो सीधी रखते अपनी रीढ़
बच्चन की ये कविता सार्वकालिक है। आज जब हमारे समाज , हमारी राजनीति में नैतिक मूल्यों के ह्रास की प्रक्रिया निरंतर जारी है, जरूरत है हमारे नेताओं, प्रशासकों में अपने आत्म सम्मान को जगाने की, सही और गलत के बीच पहचान करने की। अगर वे इस मार्ग पर चलें तो देश की संपूर्ण जनता खुद ब खुद उनके पीछे खड़ी हो जाएगी।
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18 टिप्पणियाँ:
ultimate collection manish ji.. sach anand bibhor ho gaye is kavita ko sunkar...
वाह यह तो पूरी पहली बार पढ़ी , लिखे हुए लफ्ज़ और आवाज़ दोनों ही कमाल है सही कहा यह आज के वक्त पर सही है
आप जानते है मनीष इस दो कैसेट की सीरीज़ को कितनी मुश्किल से मैंने ढूँढा था फ़िर इसके साथ एक एक्सपेरिमेंट किया आप करके देखिये ....एक कविता अमिताभ की आवाज में फ़िर एक अपना पसंदीदा गाना....मैंने ऐसे दो कैसेट बनायीं......आज आपने उन दिनों की याद दिला दी......अपन की पसंद मिलती है बीडू ......
ये तो मेरे collection में पड़ी है ... बहुत अच्छी कविता है.
बहुत अच्छी कविता है.आनन्द आ गया. आभार.
बेहतरीन संग्रह है, आपका !
ऎसे ही सुनवाते रहें, और यश लूटते रहें !
लाजवाब....बहुत अच्छा लगा पढ़कर और सुनकर तो आनन्द कई गुना बढ़ गया.. आभार
aisi saari kavitae.n jo atma shakti ki baate kare mujhe bahut achchhi lagti hai, ye bhi bahut achchi lagi
maine to ye kavita pahli baar padhi...aanad aa gaya.
आनन्दम आनन्दम सुमधुरम सुमधुरम
मेरे पसंदीदा कवि को सुनवाने के लिए धन्यवाद
बच्चन की ये कविता को पसंद कर अपने विचार देने का आप सबको शुक्रिया !
अनुराग भाई वाकई गीत और कविता का वो संगम एक अनूठा कलेकश्न बन गया होगा।
This is the first time I came to know about this poem....liked it a lot..and is always wonderful to listen the poem in the voice, which has all the grace and dignity..
pahle kabhi suni nahi thi?kya ye kisi c.d me bhi uplabdh hai?kis nam se ?aor kis company ke?kripya bataye.
रचना जी शुक्रिया इस कविता को पसंद करने का।
नीलिमा जी जैसा मैंने पोस्ट में लिखा है ये कविता Bachchan Recites Bachchan एलबम से ली गई है। इसकी सीडी सा रे गा मा पर है और उसका विवरण आप यहाँ देख सकती हैं।
http://www.7digital.com/artists/amitabh-bachchan/amitabh-bachchan-recites-dr-harivansh-rai-bachchan/
बढिया !
सुनके शरीर रोमांचित हो उठा... हरिवंशजी के प्रतिभा
को और अमितजी के स्वर को शतशत प्रणाम..
Manish Ji, main aapke is chitthe pe pehli baar aaya hun..par is page ko chhodne ki ichcha nahi ho rahi...na kabhi chhodunga. Main dono bachchano ka bahut bada prasanshak hun. Bharsak prayas ke bawajud yeh clip download nahi ho rahi. kripya sahayta karen. main bada abhari hounga..
कौशलेंद्र जी ब्लाग पर पधारने और अपने विचारों से अवगत कराने का शुक्रिया। आपका अगर कोई मेल ID हो तो बतायें मैं वहाँ भेज दूँगा
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