क्या आपके साथ कभी ऍसा हुआ है कि किसी शायर की एक रचना ने बहुत दिनों तक आप पर प्रभाव छोड़ा हो पर फिर कभी आप उसका लिखा ना पढ़ पाए हों, ना सुन पाए हों। आज की नज़्म एक ऍसे ही शायर की है जिनका नाम था सलाम मछली 'शेहरी'। अब शायरों के नाम इस तरह के हो सकते हैं ये न तो तब समझ पाया था और ना आज ही।
आठवीं या नौवीं कक्षा में रहा हूँगा जब बड़ी दी ने एक कैसेट खरीदी थी। नाम था Ecstasies . सच पूछिए तो जिंदगी में पहली बार ग़ज़लों को सुनना इसी समय शुरु हुआ था। ग़ज़लों की कैसेट में ये नज़्म भी थी और जहाँ तक मुझे याद पड़ता है इसे सुनने के पहले तब तक की जिंदगी में सिर्फ मैंने एक और नज़्म बात निकलेगी तो दूर तलक जाएगी सुनी थी। और जैसी की उम्र थी इसे एक बार सुनकर ही मन ऍसा द्रवित हो उठा था, मानो शायर ने जो कहा वो मेरे साथ हुआ हो। सालों ये कैसट घिस घिस कर तब तक सुनी जाती रही जब तक वो खराब नहीं हो गई।
आज सलाम मछली शेहरी की इस नज़्म को दोबारा पढ़ता हूँ तो शायर को सलाम करने को जी चाहता है, लगता है कि शायर ने कितनी सादी जुबान में एक जज़्बाती नज़्म लिखी थी जो बड़ी सहजता से छुटपन में दिल में उतर गई थी।
आप ने भी जगजीत सिंह की दिलकश आवाज़ में इसे सुना ही होगा और नहीं सुना तो एक बार जरूर सुनिए....
बहुत दिनों की बात है
फिज़ा को याद भी नहीं
ये बात आज की नहीं
बहुत दिनों की बात है
शबाब पर बहार थी
फिज़ा भी खुशगवार थी
ना जाने क्यूँ मचल पड़ा
मैं अपने घर से चल पड़ा
किसी ने मुझको रोककर
बड़ी अदा से टोककर
कहा के लौट आइए
मेरी कसम न जाइए
पर मुझे खबर न थी
माहौल पे नज़र न थी
ना जाने क्यूँ मचल पड़ा
मैं अपने घर से चल पड़ा
मैं शहर से फिर आ गया
ख़याल था के पा गया
उसे जो मुझसे दूर थी
मगर मेरी ज़रूर थी
और इक हसीन शाम को
मैं चल पड़ा सलाम को
गली का रंग देखकर
नयी तरंग देखकर
मुझे बड़ी ख़ुशी हुई, ख़ुशी हुई
मैं कुछ इसी ख़ुशी में था
किसी ने झाँककर कहा
पराये घर से जाइए
मेरी कसम न आइए
वही हसीन शाम है
बहार जिसका नाम है
चला हूँ घर को छोड़कर
न जाने जाऊँगा किधर
कोई नहीं जो रोककर
कोई नहीं जो टोककर
कहे के लौट आइये
मेरी कसम न जाइये
मेरी कसम न जाइए....
'शेहरी' इस नज़्म के रिकार्ड होने के ग्यारह साल पूर्व यानि १९७३ में ५१ वर्ष की अल्पायु में इस दुनिया जहान से रुखसत हो चुके थे। इस गुमनाम से शायर की मृत्यु के बीस साल बाद इनकी रचनाओं की सुध ली गई। नब्बे के दशक में उत्तर प्रदेश उर्दू अकादमी से इनकी रचनाओं का पहला संग्रह प्रकाशित हुआ था। और १९९८ में दिल्ली के एक प्रकाशक ने इनके बारे में अज़ीज इंदौरी की लिखी एक किताब भी छापी, नाम था सलाम मछली शेहरी : शख्सियत और फ़न। मैं अब तक इनकी कोई किताब नहीं पढ़ पाया हूँ, पर उम्मीद है जल्द ही पढ़ूँगा।
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6 माह पहले
23 टिप्पणियाँ:
उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले का एक कस्बा ,तहसील मुख्यालय है मछली शहर । सलाम साहब यहीं के रहे होंगे ।
जी हाँ तब कैसेट आती थी मनीष ......इस नज़्म को हमने भी खूब सुना है पर आज इससे जुड़े शायर की बात आपने बाँट कर आपने इस नज़्म के लिखने वाले से भी ताररुफ़ करा दिया
@Afloo Bhai सलाम साहब उत्तर प्रदेश से ताल्लुक रखते हैं ये तो पता चला था पर आपने जो जानकारी दी है उससे उनके नाम का रहस्य खुल गया। बहुत बहुत धन्यवाद इस जानकारी के लिए।
दिल को छू लेने वाली नज्म है। सुनवाने का शुक्रिया।
jitney saadey bol utni saadgi aur itminaan se gaayii gayi hai....pehley bahut suni hui....aapney yaad dilayi aaj
loved it!! heard it for the first time here only...and as always heard it so many times!! :)
at first I thought it is our very own "fiza" :) and i was like "unhone sunee nahee hogee, nahee to wo jaroor yaad rakhatee! :)
guess who am I? :)
maine to pahali baar suni ye nazm..lekin bahut khub ...!
मनीष आप खुशकिस्मत थे कि आपके पास बड़ी दी थीं । हम तो खुदै बड़े थे हमने ये सौभाग्य अपने छोटे भाई बहनों को दिया । लेकिन तुम्हारी इस पोस्ट से अपने स्कूली दिन याद आ गये । और हां उन्हीं दिनों जब तुम ये कैसेट सुन रहे होगे हमें सागर म.प्र. की लाइब्रेरी में पुराने पन्नों वाली वही किताब मिली जिसमें सलाम मछलीशहरी की चुनिंदा रचनाएं थीं और उनमें से कुछ को अपनी डायरी में उतार लिया गया था ।
तब हैरत होती थी कि मछलीशहर पर और इस बात पर भी कि ये शहर उत्तरप्रदेश में कैसे हो सकता है । इसे तो समंदर के किनारे होना चाहिए
और हां जगजीत के बेहतरीन दिन और बेहतरीन गायकी को भी सलाम ।
अब तो उनकी गायकी के अंश ही बचे हैं ।
मनीष जी इसको सुनवाने का और इतनी सारी नई बातें बताने का शुक्रिया
बहुत खूब. बहुत, बहुत, बहुत दिनों बाद सुना ..... वाह भाई ...
शायर शाहब का नाम तो सच में कमाल का है और आपकी ये लाइन:
"मानो शायर ने जो कहा वो मेरे साथ हुआ हो" बहुत सारे गाने/ग़ज़ल ख़ुद के लिए ही लिखे गए लगते है... नौवी-दसवी में हम भी डूब जाया करते थे... !
मनीषभाई
कभी न सुनी हुई ग़ज़ल सुनके बहुत आनंद आया |
मछली नाम से सम्बध्धित जानकारी भी अच्छी लगी |
धन्यवाद |
-हर्षद जांगला
एटलांटा , युएसए
"क्या आपके साथ कभी ऍसा हुआ है कि किसी शायर की एक रचना ने आपको बहुत दिनों तक आप पर प्रभाव छोड़ा हो पर फिर कभी आप उसका लिखा ना पढ़ पाए हों, ना सुन पाए हों।"
ऐसा कई बार हो चुका है. आज का अलेख पढ कर बहुत सी बातें मन में एक दम से उमड पडी!!
-- शास्त्री जे सी फिलिप
-- समय पर प्रोत्साहन मिले तो मिट्टी का घरोंदा भी आसमान छू सकता है. कृपया रोज कम से कम 10 हिन्दी चिट्ठों पर टिप्पणी कर उनको प्रोत्साहित करें!! (सारथी: http://www.Sarathi.info)
क्या खूबसूरत नज़्म याद दिला दी आपने....सुनी तो बहुत थी आज इसके शायर से भी परिचय हो गया!शुक्रिया.....
हिन्दी दिवस पर सभीको हमारी शुभकामनाएँ !
बेहद सुँदर शब्द और अदायगी
शुक्रिया मनीष भाई
इसे सुनवाने का ~~
- लावण्या
वाह मनीष भाई, पहली बार सुना..आनन्द आ गया. आपका बहुत आभार.
वाकई अच्छी नज़्म...
आपकी प्रस्तुति को साधुवाद...
बहुत-बहुत धन्यवाद, मनीष! बहुत ही सुंदर रचना है.
शक्रिया इसे पसंद करने का..
रचना जी आगर आप याहू पर मेसेज ना छोड़तीं तो थोड़ा सोचना होता।:)
वो तो अच्छा हुआ कि मैंने छुटपन में सुनने की बात लिख दी नहीं तो आप को और खिंचाई करने का अवसर याद लग जाता। :p
really loved it.
शायद बात है साथ के दशक के शुरूआती दिनों की...रेडियो के दिन थे ... हमारे स्कूली दिन थे ... रेडियो नाटक खूब सुने जाते थे ... आकाशवाणी दिल्ली से एक नाटक प्रसारित हुआ था जिसमे नायिका को आवाज़ दी थी माशू मालती ने ... नाटक था ... आवाज़ कि दुल्हन ... यह नाटक आज भी याद आता है ... यह नाटक लिखा था जनाब सलाम मछली शेहरी साहब ने ...
उनकी यह नज़्म अक्सर सुनी जाती है ... आपका आभार कि उनकी चर्चा की ...
विभा जी
कमाल की बात है कि इतने दिनों बाद भी ये बात याद रही आपको !
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