फिल्मों में हास्य कविता का प्रयोग होते मैंने बहुत कम ही देखा है। एक ऍसी ही कविता पर मेरी नज़र तब पड़ी, जब इससे संबंधित जानकारी इस चिट्ठे की पाठिका अंबिका पंत जी ने अपनी टिप्पणी के माध्यम से माँगी। अंतरजाल पर खोजने पर पता चला कि ये कविता तो वी शांताराम की १९५९ में प्रदर्शित हुई मशहूर फिल्म नवरंग का हिस्सा थी।
मैंने ये फिल्म दूरदर्शन पर अस्सी के दशक में देखी थी। भरत व्यास के लिखे आधा है चंद्रमा रात आधी... और जा रे जा नटखट.... जैसे नायाब गीतों के बीच कोई कविता भी फिल्माई गई थी, इसका ख्याल तो मुझे बिल्कुल नहीं था। एक रोचक तथ्य ये भी है कि रचनाकार भरत व्यास ने खुद इस हास्य कविता के लिए स्वर दिया था ।
तो देखिए भरत व्यास जी कवियों को किस तरह धन संग्रह करने के लिए उद्यत कर रहे हैं।
कविराजा कविता के मत अब कान मरोड़ो
धन्धे की कुछ बात करो कुछ पैसे जोड़ो
शेर शायरी कविराजा ना काम आयेगी
कविता की पोथी को दीमक खा जायेगी
भाव चढ़ रहे अनाज हो रहा मँहगा दिन दिन
भूखे मरोगे रात कटेगी तारे गिन गिन
इसी लिये कहता हूँ भैय्या ये सब छोड़ो
धन्धे की कुछ बात करो कुछ पैसे जोड़ो
अरे छोड़ो कलम चलाओ मत कविता की चाकी
घर की रोकड़ देखो कितने पैसे बाकी
अरे कितना घर में घी है कितना गरम मसाला
कितने पापड़, बड़ी, मंगोड़ी, मिर्च मसाला
कितना तेल नोन, मिर्ची, हल्दी और धनिया
कविराजा चुपके से तुम बन जाओ बनिया
अरे! पैसे पर रच काव्य भूख पर गीत बनाओ
पैसे,अरे पैसे पर रच काव्य भूख पर गीत बनाओ
गेहूँ पर हो ग़ज़ल, धान के शेर सुनाओ
नोन मिर्च पर चौपाई, चावल पर दोहे
सुकवि कोयले पर कविता लिखो तो सोहे
कम भाड़े की
अरे! कम भाड़े की खोली पर लिखो क़व्वाली
झन झन करती कहो रुबाई पैसे वाली
शब्दों का जंजाल बड़ा लफ़ड़ा होता है
कवि सम्मेलन दोस्त बड़ा झगड़ा होता है
मुशायरों के शेरों पर रगड़ा होता है
पैसे वाला शेर बड़ा तगड़ा होता है
इसी लिये कहता हूँ मत इस से सर फोड़ो
धन्धे की कुछ बात करो कुछ पैसे जोड़ो
अगर आप हास्य कविता के शौकीन हैं तो इसे भी पढ़ना पसंद करेंगे..
16 टिप्पणियाँ:
मनीष जी क्या आपके पास अशोक चक्र धर जी की भ्रष्ट चरम प्रणमामि कविता है? यदि है तो यहाँ पोस्ट कीजियेगा/ सस्नेह..
बड़ी तगडी प्रस्तुति... फ़िल्म तो नहीं देखी ... पर विविधभारती की दया से सुना हुआ है.
बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति। इस फिल्मी हास्य कविता के चुनाव पर कायल हो गया।
(आपने नोन की जगह गल्ती से लौंग लिख दिया है। नोन यानी नमक। नोन और लौंग-ये दोनों क्रमश:अमीर-गरीब के भोजन का फर्क दिखाते हैं।)
जितेन्द्र भाई हमारी तरफ नोन को नून कहते हैं वो कहावत है ना सारी जिंदगी आदमी नून, तेल और लकड़ी की तालाश में ही घूमता रहता है। पहले कविता में नोन आ चुका था इसलिए लगा कि शायद दूसरी बार कुछ अलग शब्द इस्तेमाल किया होगा। फिर से सुना तो आपकी बात सही पाई। सुधार कर दिया है ध्यान दिलाने का शुक्रिया।
बेहतरीन ।
ये कविता हमने विविध भारती से खूब बजाई है ।
मजा आ गया ।
आनँदम्` ...:)
are waah..badi achchi kavita hai. maine to pahli baar hi suni.
अदभुत रचना है मनीषभाई और क्या लाजवाब कहन के साथ पं.व्यास ने अपने कवित्त को निभाया है. शायरों की भीड़ में इस अनुपम काव्य शिल्पी ने अपनी विशिष्ट छाप छोड़ी. बहुत आभार इस स्मृति के लिये.
bahut pahale ye film dekhi thi... doordarshan par..! tooto tooti yaad aa rahi hai is gane ki bhi.
पिक्चर तो देखि थी .....पर ये याद नही था .शुक्रिया यहाँ बांटने के लिए
बहुत मजेदार गीत, इससे पहले भी कई हास्य गीत हिन्दी फिल्मों में आये हैं।
अरे, इस हास्य कविता के बारे में तो हमें भी पता नहीं था, मजेदार रचना, आभार
Excellent song!
क्या बात है भई
मजा आ गया
फिल्म बहुत पहले देखी थी कतई ध्यान में नहीं था
आपका शुक्रिया
bhadhiya
दीपावली की हार्दिक शुबकामनाएं
manish jee koti koti dhanyawad. isi kavita ko bahut dino se dhoond raha tha
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