शनिवार, अक्टूबर 25, 2008

सुनो अच्छा नहीं लगता कि कोई दूसरा देखे ..क्या आप भी Possessive हैं ?

क्या आप अपने किसी प्रिय के प्रति Possessive हैं?
वैसे तो हम सभी होते हैं कभी छोटी सी किसी वस्तु के लिए तो कभी अपने किसी खास के लिए। पर ये Possessiveness कुछ ज्यादा हो जाए तो वही हाल होता है जो इस शायर का हो रहा है.... दिल की मजबूरियों को भला कौन लगाम दे सकता है।
पर ऍसा रोग ना ही लगे तो बेहतर वर्ना Possessiveness का ये कीड़ा दुख भी बहुत देता है।

इस रचना का एक हिस्सा बहुत पहले मुझे अपनी एक पोस्ट पर टिप्पणी के रूप में मिला था। जब पूरा पढ़ा तो लगा कि है तो सादी सी नज़्म पर दिल को छूती हुई इसीलिए इसे आज आप सब के साथ बाँट रहा हूँ

सुनो अच्छा नहीं लगता
कि कोई दूसरा देखे
तुम्हारी शरबती आँखें
लब ओ रुखसार1 और पलकें
सियाह लंबी घनी जुल्फें
सराहे दूसरा कोई
मुझे अच्छा नहीं लगता

सुनो अच्छा नहीं लगता
करे जब तज़किरा2 कोई
करे जब तबसरा3 कोई
तुम्हारी जात को खोजे
तुम्हारी बात को सोचे
मुझे अच्छा नहीं लगता

सुनो अच्छा नहीं लगता
तुम्हारी मुस्कराहट पर
हजारों लोग मरते हों
तुम्हारी एक आहट पर
हजारों दिल धड़कते हों
किसी का तुम पे यूँ मरना
मुझे अच्छा नहीं लगता

सुनो अच्छा नहीं लगता
हवा गुजरे तुम्हें छू कर
ना होगा ज़ब्त4 ये मुझसे
करे कोई ये गुस्ताखी
तुम्हारी जुल्फ़ें बिखर जाएँ
तुम्हारा लम्स5 पा जाएँ
मुझे अच्छा नहीं लगता

सुनो अच्छा नहीं लगता
कि तुमको फूल भी देखें
तुम्हारे पास से महकें
या चंदा की गुजारिश हो
कि अपनी रोशनी बख्शूँ
रुख ए जानां कोई देखे
मुझे अच्छा नहीं लगता

1. गाल, 2. चर्चा, 3. विस्तार से घटना का विवरण देना, 4. बर्दाश्त, 5. स्पर्श

इस नज़्म की भावनाओं को अपनी आवाज में उतारने की कोशिश की है। पढ़ते वक़्त दो जगह भूलें हुई हैं क्योंकि रिकार्डिंग के समय सही बोल मेरे पास नहीं थे बाद में जब नज़्म उतारने बैठा तो देखा कि तज़करा की जगह तज़किरा और तुम्हारे लम्स पे जाएँ की जगह अर्थ के हिसाब से तुम्हारा लम्स पा जाएँ होना चाहिए। आशा है आप इसे नज़रअंदाज कर देंगे।

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11 टिप्पणियाँ:

अमिताभ मीत on अक्टूबर 25, 2008 ने कहा…

बहुत बढ़िया है मनीष.

Udan Tashtari on अक्टूबर 25, 2008 ने कहा…

एक सुन्दर नज्म..पढ़ा भी आपने खूब है.

आपको एवं आपके परिवार को दीपावली की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाऐं.

डॉ .अनुराग on अक्टूबर 25, 2008 ने कहा…

possesive हर इंसान होता है बस अपने अहम् की वजह से मानता नही है....ओर जहाँ प्यार होगा वहां ईष्या स्वाभिक है....हाँ ओवर possesive जरूर ग़लत बात है....जगजीत सिंह की वो गजल याद आ रही है.....

उन्हें ये जिद के मुझे देख कर किसी को न देख
मेरा ये शौक की सबको सलाम करता चलूँ ......
हजूर आपका भी एहतराम करता चलूँ ....









आपको एवं आपके परिवार को दीपावली की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाऐं.

शायदा on अक्टूबर 25, 2008 ने कहा…

बढि़या है, बहुत बढि़या।

पारुल "पुखराज" on अक्टूबर 25, 2008 ने कहा…

kya baat hai!!! bahut badhiyaa..aur aanaa chahiye

Abhishek Ojha on अक्टूबर 26, 2008 ने कहा…

बड़े मूड में पढ़ा है मनीषजी. पसंद आई.
और पोसेसिव तो सभी होते ही हैं... कोशिश करने के पहले ही पोसेसिव हो जाते हैं.. 'ये कहाँ से आ गया सा...' खैर छोडिये :-)

बेनामी ने कहा…

पढ़कर अच्छा लगा

कंचन सिंह चौहान on अक्टूबर 27, 2008 ने कहा…

क्या बात है...बहुत खूब....!

सबने कहा कि possesive तो सभी होते हैं.... सही कहा ... लेकिन मैं इसके साथ ये जोड़ना चाहूँगी कि हद से ज्यादा तो खैर हर चीज बुरी लगती है, लेकिन किसी का अपने लिये थोड़ा बहुत possesive होना अच्छा भी लगता है ....!

तो मेरी कल्पना में जब आशिक साहब ये फरमा रहे होंगे कि उन्हे क्या क्या अच्छा नही लगता, तो कही मन में महबूबा को सब कुछ बड़ा अच्छा सा लग होगा, शायद......!

बेनामी ने कहा…

bahut ghatiya hai

menghanivijay on अप्रैल 19, 2012 ने कहा…

IS kavita ko pad kar ek purna geet yaad aa raha hai mahinder Kapoor song

Tumara chahene wala khuda ki duniya me mere siwa bhi koi aur ho khuda na kare

tumahere husn ki tariff Aaina be kare to me tumhari kasam hai ki tod du usko
karib dil ke tumahare kisi bhi halat me mere siwa bhi koi aur ho khuda na kare

बेनामी ने कहा…

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