'कहकशाँ' में जगजीत सिंह ने तमाम शायरों की बेमिसाल ग़ज़लों को बड़े दिल से अपनी आवाज़ से सँवारा है। इसमें एक ग़ज़ल थी उन्नाव के पास 'मोहान' में जन्में सैयद फ़ज़ल उल हसन साहब की जिन्हें ये दुनिया मौलाना हसरत मोहानी साहब के नाम से ज्यादा जानती है। मौलाना विभाजन के बाद में भी भारत में ही रहे और मई १९५१ में लखनऊ में उनका इंतकाल हुआ।
तो आइए देखें क्या कहना चाहा है शायर ने अपनी इस रूमानी सी ग़ज़ल में
रौशन जमाल-ए-यार से है अंजुमन तमाम
दहका हुआ है आतिश-ए-गुल से चमन तमाम
हैरत ग़ुरूर-ए-हुस्न से शोखी से इज़्तराब
दिल ने भी तेरे सीख लिये हैं चलन तमाम
तुम्हारे इस रूप से पूरी महफिल गुलशन हो गई है ठीक वैसे ही जैसे सुर्ख दहकते फूल पूरे बगीचे को रौशन कर देते हैं। पर मुझे हैरत होती है तेरे हुस्न का गुरूर देख...घबरा जाता हूँ तेरी इस मदमस्त चंचलता से। अब तो लगता है कि ज़माने के रंग ढंग देख तूने भी अपने सलीके बदल लिए हैं।
अल्लाह रे जिस्म-ए-यार की खूबी के ख़ुद-ब-ख़ुद
रंगीनियों में ड़ूब गया पैरहन तमाम
देखो तो चश्म-ए-यार की जादू निगाहियाँ
बेहोश इक नज़र में हुई अंजुमन तमाम
और तेरी खूबसूरती के बारे में क्या कहूँ तुम्हारे शरीर से लिपटकर सारे लिबास और भी दिलकश लगने लगते हैं। रही बात तुम्हारी आँखों की, तो तुम्हारी हसीन नज़र के एक वार से तो पूरी महफ़िल ही बेहोश हो जाए
शिरीनी-ए-नसीम है सोज़-ओ-ग़ुदाज़-ए-मीर,
‘हसरत’ तेरे सुख़न पे है लुत्फ़-ए-सुख़न तमाम
और मक़्ते में तो मौलाना हसरत मोहानी अपनी पीठ ठोकने का लोभ संवरण नहीं कर पाते। पहले तो मीर की शायरी में वो हवा की सी मिठास, दर्द और कोमलता का जिक्र करते हैं और फिर ये कहने से भी नहीं चूकते कि मेरी शायरी सुने बिना शायरी का पूरी तरह लुत्फ़ उठाना संभव नहीं है।
जगजीत ने इस ग़ज़ल के सिर्फ तीन अशआरों को इस एलबम में इस्तेमाल किया है। वहीं प्रसिद्ध सूफी गायिका आबिदा परवीन ने अपने अलग निराले अंदाज में अपने एलबम रक़्स ए बिस्मिल में इस ग़ज़ल को अपना स्वर दिया है तो आइए पहले सुने जगजीत सिंह को
और ये रहा आबिदा परवीन वाला वर्सन
एक शाम मेरे नाम पर जगजीत सिंह और कहकशाँ
- फि़राक़ गोरखपुरी : अब अक्सर चुप-चुप से रहे हैं यूँ ही कभो लब खोले हैं...
- जोश मलीहाबादी : तुझसे रुख़सत की वो शाम-ए-अश्क़-अफ़शाँ हाए हाए...
- हसरत मोहानी : तोड़कर अहद-ए-करम ना आशना हो जाइए
- मजाज़ लखनवी : देखना जज़्बे मोहब्बत का असर आज की रात..
- मजाज़ लखनवी : अब मेरे पास तुम आई हो तो क्या आई हो
- हसरत मोहानी : रौशन जमाल-ए-यार से है अंजुमन तमाम
17 टिप्पणियाँ:
कहकशा में जगजीत अपने चिपरिचित अंदाज से जुदा नजर आये थे ..मुझे याद है हम तब कॉलेज में थे ओर उर्दू के कुछ लफ्जों को पकड़ने के लिए हमने सहारा लिया था ...किताबो का ताकि गजल ओर नज़्म जो इसकी दोनों कैसेट में थी .समझ सके .....आप सचमुच शानदार आदमी है....कहाँ कहाँ से खीच लाते है कई नायाब मोती
baaz cheezen me jagjeet ki aavaaz bahut khilti hai...thx manish
आबिदा परवीन का यह वर्जन सुना नहीं था..बहुत आभार!!
हसरत मोहानी का जहां जन्म हुआ, उस जगह का नाम मोहन नहीं मोहान है, और इसी जगह के नाम पर उनका नाम पड़ा हसरत मोहानी। ये जगह उन्नाव ज़िले में है और हैरत की बात नहीं कि आज़ादी की लड़ाई में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेने वाले इस सूरमा का नाम तक अब इस ज़िले के कम ही लोगों को याद है। मोहानी साहब उन देशभक्तों में से हैं, जिन्होंने वंदे मातरम् का पुरजोर समर्थन किया था।
कहा सुना माफ़,
पंकज शुक्ल
संगीत और गीत दोनों बढ़िया.
आपकी प्रस्तुति को नमन... बधाई हो
अद्भुत कहने के अलावा और क्या कहा जा सकता है.आप की उम्दा पसंद और स्तरीय प्रस्तुति का कायल हूं मेरे भाई!
aap evam pankaj ji dwara Mohani Saham ke baare me jankari baut achchhi lagi.... unaka Unnao se sambandha evam deshbhakta hona man ko ek achchhi anubhuti de gaya.
really great !! also the translation is praiseworthy..
dono hi version lajawaab hain....lekin isi ko mehndi hasan sahab ne bhi bahut umda gaaya hai...use bhi shaamil kar dete to aur aanand aata.
Bahut khoob likha. I have been reading your blog for a while, but never commented. Very nice! I cam across your blog thru a friend on LJ. :)
इस ग़ज़ल को पसंद करने के लिए आप सब का शुक्रिया !
पंकज जी शुक्रिया इस जानकारी का
Princess Thx for commenting for the first time & appreciating my efforts. BTW what is LJ ?
You are very welcome. LJ is Live Journal. I have a music blog there. http://musicwizards.livejournal.com
Chk it out if you can...have several entries related to hindi music. :)
So after a bit of trial & error reached your site. You have added an extra 's' in your url.
Your blog is nice but option for commenting with an open ID was not there so could not comment there but I have added your blog in my bloglist.
Hi, I cahnged the settings for my blog, so everyone can comment. Hopefully you can comment now. In future I will make my posts public so you can read them too. :)
Oops...forgot to mention that I am sorry for the mistake in my url. Well, finally you got to it. Enjoy it! :)
बहुत बहुत शुक्रिया दोस्त.
संयोग से ये दोनों गज़लें मैंने नही सुनी थी, मगर मेहदी खां साहब की गज़ल सुनते सुनते ही बडा हुआ. दोनों धुनें मधुर हैं ,मगर खां साहब के गज़ल की छाप
दिमाग से जा नहीं रही.
http://www.youtube.com/watch?v=LnlG7YTyLMo
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