बहुत दिनों पहले एक ग़ज़ल पढ़ी थी और उसे उतारा था अपनी डॉयरी में। पर इसके शायर का नाम पता नहीं था। पर कुछ ही दिन पहले कहीं पड़ा कि इसे लिखा है पाकिस्तान के मक़बूल शायर इकबाल अज़ीम साहब ने। साथ ही ये भी जानकारी मिली कि इसके के कुछ हिस्से को गाया है पाकिस्तान की मशहूर ग़ज़ल गायिका नैयरा नूर ने। अब इकबाल अज़ीम के बारे में तो मुझे भी ज्यादा मालूम नहीं पर उनकी पढ़ी इस ग़ज़ल का ये वीडिओ मिला तो सोचा शायर की पहचान के लिए इस ग़ज़ल को सुनाने के पहले ये वीडियो दिखाना मुनासिब रहेगा
वैसे बड़े कमाल के अशआर हैं इस ग़जल के। अब मतले पर गौर करें तो आप पाएँगे कि कितनी बार आपके साथ खुद ऍसा हो चुका होगा कि लाख आपने अपनी भावनाओं पर काबू करने की कोशिश की होगी, पर ना चाहते हुए भी किसी के सामने आँसुओं का सैलाब बह निकला होगा। इसी बात को शायर किस खूबसूरती से कहते हैं
मुझे अपने ज़ब्त पे नाज था, सर ए बज़्म रात ये क्या हुआ
मेरी आँख कैसे छलक गई, मुझे रंज है ये बुरा हुआ
मेरी आँख कैसे छलक गई, मुझे रंज है ये बुरा हुआ
बाकी की ग़ज़ल को पढ़ें और फिर सुनें नैयरा नूर की खूबसूरत अदाएगी, खुद बा खुद इस ग़ज़ल के रंग में रंग जाएँगे
मेरी जिंदगी के चराग का ये मिज़ाज कोई नया नहीं
अभी रोशनी, अभी तीरगी1, ना जला हुआ ना बुझा हुआ1.अँधेरा
अभी रोशनी, अभी तीरगी1, ना जला हुआ ना बुझा हुआ1.अँधेरा
मुझे जो भी दुश्मन ए जाँ मिला वही पुख्ता कार जफ़ा 2 मिला
ना किसी की ज़र्ब हलक पड़ी 3 ना किसी का तीर खता हुआ
2. क्रूरता की हद, 3. वार गलत होना
ना किसी की ज़र्ब हलक पड़ी 3 ना किसी का तीर खता हुआ
2. क्रूरता की हद, 3. वार गलत होना
मुझे आप क्यूँ ना समझ सके कभी अपने दिल से पूछिए
मेरी दास्तान ए हयात4 का है वर्क5 वर्क खुला हुआ
4.जिंदगी की किताब, 5. पन्ना,
जो नज़र बचा के गुजर गए मेरे सामने से अभी अभी
ये मेरे ही शहर के लोग थे, मेरे घर से घर है मिला हुआ
हमें इस का कोई हक़ नहीं कि शरीक ए बज्म खुलूस हों
ना हमारे पास नक़ाब है, ना कुछ आस्तीं में छुपा हुआ
मेरे एक गोशा ए फिक्र 6 में मेरी जिंदगी से अज़ीज़ तर
मेरा एक ऍसा भी दोस्त है, जो कभी मिला ना जुदा हुआ
6.दिमाग एक कोने में
मुझे एक गली में पड़ा हुआ, किसी बदनसीब का खत मिला
कहीं खून ए दिल से लिखा हुआ, कहीं आँसुओं से मिटा हुआ
मुझे हमसफ़र भी मिला कोई तू शिकस्ता हाल मेरी तरह
कई मंजिलों का थका हुआ, कहीं रास्ते में लुटा हुआ
हमें अपने घर से चले हुए सर ए राह उम्र गुजर गई
कोई जुस्तज़ू का सिला मिला, ना सफ़र का हक़ अदा हुआ
12 टिप्पणियाँ:
kayi duffa suni hui pehley bhii...kamaal bol aur saadi gaayaki..ehsaas har baar duubney jaisaa...thx manish
bahot khub maza aagaya ... dhero badhai aapko...
बहुत उम्दा पेशकस। शुक्रिया
शुक्रिया मनीष मैंने इसे पहली बार सुना है ..एक गजल है किस ने गायी है .मालूम नही ...उसके कुछ शेर याद है ...अगर उसे ढूंढ कर ला सको तो.....शराब पर है......कुछ कुछ इस तरह है
आज कुछ तो नशा आपकी बात का है
ओर थोड़ा नशा धीमी बरसात का है
हमें आप यूँ ही शराबी न कहिये
कुछ तो असर ये मुलाकात का है
कल जो पि थी अजी ये तो इसका नशा है
तुम्हारी कसम मै ने पी ही नही ....
ओर .....
बैठ कर खुदा के सामने पढ़कर शराब पीता हूँ
बेनियाज जनाब पीता हूँ
ढूंढ कर लायेगे ?
हमने तो पहली बार सुना.... बात तो वही है, पर कहने का अंदाज तो इन शायरों के पास ही होता है.
मनीष नैयरा नूर के हम बेहद दीवाने हैं ।
उनकी आवाज़ में आप कुछ भी सुनवाएंगे हम सुनेंगे । शुक्रिया । इसे चुरा लिया है जी ।
एक और शानदार पेशकश....शुक्रिया
haal hi main ittefaq se mujhey in ke geet sunNey ko miley aur bahut hi pasand aaye--
Nayyara noor ke filmi gaane bhi bahut hi mash.hoor hue hain...ye ghazal bhi un ki popular ghazals mein se ek hai--shukriya is khubsurat ghazal ke liye
iqbaal azeem ji ke baare nahin jaantey they--is jaankari ke liye shukriya
कमाल की प्रस्तुति.. आपको बधाई..
चाह रही थी कि गीत सुन कर कमेंट करूँ, लेकिन कुछ हिसाब बन नही पाया। परंतु बोल.बहुत सुंदर।
पहला, तीसरा और अंतिम के चारों शेर बहुत गहरी भावना लिये.... तो फिर बचा ही क्या..ग़ोया पूरी गज़ल ही लाज़वाब
teri har aik baat par jaanisaar
kyunki aapki har aik baat me hai mahak pholo jaisi
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