पिछले तीन चार दिनों से पीसी की ओर देखने का ही दिल नहीं हो रहा। ब्लागिंग ही बेमानी लग रही है। कटक में भारत की जीत की खुशी को दिल में आत्मसात कर ही रहा था कि चैनल सर्फिंग के दौरान रिमोट का बटन हाथ से दब गया। और फिर रात के दस बजे से ढ़ाई बजे तक टीवी के पर्दे सड़क पर गिरती लाशों के मंज़र को देखता रहा। बहुत सी तसवीरें बिल्कुल दिल से नहीं निकाल पा रहा, कार्यालय यंत्रवत जा रहा हूँ पर ज़ेहन में वही बातें उमड़ घुमड़ रही हैं। कुछ प्रश्न हैं जिन्हें हर व्यक्ति पूछ रहा है, ये जानते हुए भी कि उसके प्रश्न का ईमानदारी से जवाब देने वाला यहाँ कोई नहीं...
.......ताज और वीटी स्टेशन पर गोलीबारी शुरु हो गई है। शुरुआती रिपोर्ट में बताया जा रहा है शायद दो गुटों की आपसी रंजिश का नतीजा है। ताज के सामने अफरातफ़री का माहौल है। पुलिस का सिपाही हाथ में डंडा ले कर लोगों को हटा रहा है। पर लोगों को हटाते हटाते अनायास ही बगल की बेंच पर झुक गया है। एक गोली उसके पेट के पास लगी है। जिन लोगों को वो वहाँ से हटा रहा था वही उसे कंधे पर ले कर किसी गाड़ी से उसे हॉस्पिटल भिजवाने का इंतजाम कर रहे हैं। एक तरफ AK47 की अंधाधुंध फायरिंग है तो दूसरी ओर ये पुलिसिया डंडा ! क्या इस नाइंसाफ़ी का जवाब किसी के पास है?
......एक घंटा बीत चुका है। ताज पर पुलिस की और टुकड़ियाँ हथियारो समेत आ गई हैं। उन्हें बस इतना बताया गया है कि ताज में कुछ आतंकवादी घुसे हैं। आतंकवादी कितने हैं, कहाँ छुपे हैं पता नही? पर जैसे ही ये सिपाही अपनी पोजीशन लेने के लिए गाड़ी से उतरते हैं ऊपर से गोलियों की बौछार शुरु हो जाती है। हमारे सिपाहियों को अपने शत्रुओं के बारे में कुछ भी नहीं पता है पर वे संख्या में इतने कम होते हुए भी सारी गतिविधियाँ देख पा रहे हैं। अगले छः घंटों में जब तक NSG कमांडो को कमान सौंपी जाती है तो भी कोई रणनीति नहीं बन पाई है और ना आतंकियों की स्थिति के बारे में जानकारी में इजाफ़ा हुआ है। संभवतः यही वो समय रहा होगा जब गोलीबारी से घायल लोग दम तोड़ रहे होंगे। सहज प्रश्न उठता है कि क्या हमारी पुलिस जिस पर मुंबई की सुरक्षा की पहली जिम्मेदारी है, क्या इस तरह की स्थिति से निपटने के लिए प्रशिक्षित है?
.....वीटी पर तबाही मचाने के बाद आतंकी कामा हॉस्पिटल की ओर चल पड़े हैं। खबर मिलती है कि वहाँ से एक जिप्सी उड़ा ली गई है। मीडिया उस जिप्सी को आते हुए दिखा रहा है। कैमरामैन पुलिस की जिप्सी समझकर उस पर फोकस करता है। पर ये क्या उसकी खिड़कियों से गोलियाँ निकलती दिख रही हैं। जिप्सी कुछ देर में ओझल हो जाती है पर कैमरा जेसे ही अगल बगल घूमता है सड़क पर लाशें गिरी दिखती हैं। एक व्यक्ति सड़क पार से अपने मित्र को बुला रहा है,पर तभी वो खुद भी गोलियों का शिकार हो जाता है। ए टी एस प्रमुख हेमंत करकरे और उनके साथियों को इन्हीं भागते आतंकवादियों ने गोली से छलनी कर दिया है। रात के दो बज गए हैं पर इस खबर को सुन कर मन और बुझ सा गया है।
हेमंत करकरे वहीं हैं जो मालेगाँव के बम धमाकों की जाँच कर रहे थे। कैसी विडंबना और बेशर्मी है कि हमारा प्रमुख विपक्षी दल जो इस जाँच की सत्यता पर सवालिया निशान उठा रहा था आज इस वीर की विधवा को मुआवज़ा देने की बात कर रहा है। हाल के बम धमाकों के बाद मुठभेड़ में दिल्ली में भी जब हमारे जवान शहीद हुए थे तो दूसरे दल अपनी राजनीतिक गोटी सेंकने में पीछे नहीं रहे थे। और प्रदेश के गृह मंत्री की तो बात ही क्या कुछ ही दिनों पहले बिहार से गए एक दिग्भ्रमित छात्र को मारने के बाद उन्होंने बयान दिया था कि मु्बई में गोली का जवाब गोली से दिया जाएगा। आज जब असल के आतंकियों की गोलियों से लड़ने की उनकी तैयारी की पोल खुल गई है तो उनका बयान हे कि ऍसे छोटे मोटे हादसे तो होते ही रहते हैं। क्या कहा जाए ऍसे लोगों के बारे में जिनमें ना नेतृत्व की कूवत है ना किसी तरह की मानवीय संवेदनाओं की समझ। दरअसल, आज मुंबई सँभली है तो अपने जांबाज सिपाहियों की वज़ह से नहीं तो इससे भी बुरे परिणाम हमारे सामने रहते।
पक्ष और विपक्ष के नेताओं में इतनी गंभीर समस्याओं से लड़ने की ना इच्छा शक्ति है ना कोई सोची समझी रणनीति। मीडिया भी मूल प्रश्नों को पीछा करते रहने की जगह टीआरपी के चक्करों में उलझ जाता है। आम आदमी के पास मतदान एक हथियार है पर वो किसको वोट दे? दूर दूर तक कोई ऍसा नेतृत्व नज़र नहीं आता जिसके पास इन परिस्थितियों से निबटने के लिए कोई दिशा हो,कोई दूरदृष्टि हो।
पर हम दबाव जरूर डाल सकते हैं कि कम से कम सुरक्षा के सवाल पर हमारे नेता एक सुर में बात करें। जिस तरह हर प्रदेश के नेता विकास को मुद्दा बनाने पर मज़बूर हुए हैं उसी तरह सुरक्षा भी एक मुद्दा बने। आतंकवाद से निबटने के लिए पुलिस और सुरक्षा बलों के हाथ खोलने होंगे,राजनैतिक दबावों से मुक्त कर उन्हें काम करने देना होगा, उनका संख्या बल बढ़ाना होगा,उन्हें हथियार देने होंगे और प्रशिक्षित करना होगा। पर इतना करने से बात बन जाएगी ये भी नहीं है। हमें अपना घर भी सँभालना होगा, भारत के सारे लोगों को एक जुट करना होगा। और ये हम आप कर सकते हैं। सांप्रादायिकता, क्षेत्रीयता और जातीयता से नफ़रत फैलाने वाले नेताओं का बहिष्कार कीजिए। इन नेताओं के बहकावे में आने से पहले हमें ये सोचना होगा कि ये जो कह रहे हैं वो सारे देश के लिए सही है या नहीं। हमारे वीर शहीदों की कुर्बानी हम यूँ नहीं भूल सकते, हमें आपने आप से हमेशा ये पूछते रहना होगा।
इक लौ इस तरह क्यूँ बुझी मेरे मौला ?
इक लौ जिंदगी की मौला ?
इक लौ जिंदगी की मौला ?
वक़्त के साथ ये प्रश्न मेरे ज़ेहन से दूर ना हो इसलिए इसे मैंने 'आमिर' फिल्म के इस गीत को अपनी रिंग टोन बना लिया है। क्या आप भी इस प्रश्न को अपने दिलो दिमाग के करीब रखना नहीं चाहेंगे?
16 टिप्पणियाँ:
आपने हम सब की भावनाओं को अभिव्यक्ति दी है।
आपने तफसील से घटाना का विवरण दिया और विश्लेषण किया है -हमारी भावनाओं को भे अभिव्यक्ति दी है कृपया इसे भी देखें-
http://mishraarvind.blogspot.com/
मनीष , राजनैतिक इच्छा-शक्ति भी प्रदर्शित करनी होगी । भावुकता नहीं विवेक से सही राजनीति का साथ देना होगा ।
आह और उफ्फ के अलावा फिलहाल कुछ कह नहीं पा रहा हूँ !
हम भी 26 की रात को 10 बजे से रात को तीन बजे तक टी वी से चिपके रहे, वही सवाल हमारे भी जहन में उठे जो आप के मन में उठे, हमारी भावनाओं को शब्द देने के लिए धन्यवाद
न भी चाहें तो अब यह एक अमिट निशान बन ही चुका है दिलो दिमाग पर.
एनडीटीवी पर लगातार आते इस गीत को सुन कर मन में आ रहा था कि पहले कभी नही सुना ये गीत...! लेकिन मेरे साथ घर में सबको हिला रहा था ये गीत..! द्रवित करने वाला गीत...!
बेमानी सा लगता है न सब ! बस एक निवेदन है ये तस्वीर हटा दे ....
क्या कहूं... इसे भुलाना नहीं चाहता. हर बात समय के साथ भूल जाते हैं हम पर ये नहीं भुलाया जा सकता. मैं तो टीवी देखता ही नहीं और इसबार बस २ दिन और रात में बस २ घंटे सो पाया... लगातार टीवी चलता रहा. इसे नहीं भूलना !
such kahun toh ek avyaqt sa aakrosh pa rahi hoon apne ander aur apne aas-paas ke logon me bhi, uper se in rajnetaoo ke bhavna vihin swarthi byan hamare dukh aur shok ko aur badha rahe hain. aapne hamari bavnaoon ko abhivyaqti di hai.
आहत करनेवाला रहा ये सबकुछ।
लोकतंत्र के नाम पे धब्बा खूब रहा
आपने मुम्बई की घटना को आगे लाके छोड़ दिया । बहुत खूब लिखा है आपने । धन्यवाद
नमस्ते मनीष जी!
इस गीत के लिये खास ध्न्यवाद और आपकी अभिव्यक्ति के लिये भी ..मेरे और मेरी दीदी और भाइयों की ओर से भी!
मुंबई में शहीद हुए हमारे जवानों और मासूम लोगों की याद में मैं एक बार फिर से यह सब को याद दिलाना चाहूँगा:
अमन-अमन हम रटते आये, घाव पुराने भरते आये ,
झूठी पेश दलीलों पर , शत्रु को मित्र समझते आये ।
झूठी है यह "अमन की आशा", फिर काँटों भरी एक चमन की आशा,
अमन-चैन के मिथ्या-भ्रम में , शीश के मोल चुकाते आये । - प्रकाश 'पंकज'
http://pankaj-patra.blogspot.com/2010/02/jhoothi-hai-yeh-aman-ki-asha-prakash.html
हलक में कुछ अटका सा मालूम हो रहा है....आँखों में नमी की वजह याद आयी....
:-(
जाने एक लौ इस तरह क्यूँ बुझी....
अनु
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