चाँद को देख के किसी के मन में क्या ख्याल आता है ये तो निर्भर करता है उस शख्स के मानसिक हालातों पर अब यही देखिये ना पंडित विनोद शर्मा की लिखी हुई ये पंक्तियाँ चाँदनी रात की रूमानियत का जादू सा जगा देती हैं मन में
एक नीली झील सा फैला अचल
आज ये आकाश है कितना सजल
चाँद जैसे रूप का उभरा कँवल
रात भर इस रूप का जादू जगाओ
प्राण तुम क्यूँ मौन हो कुछ गुनगुनाओ
सच ही तो हे कि जब दिल में प्यार का बीज अंकुरित हो जाए तो इस चाँद में ही हमें अपने प्रियतम की छवि नजर आने लगती है ।और अगर ना भी नजर आए तो उनसे निगाहें मिलाने की एक तरकीब है हमारे पास :)
मैं चाँद देखता हूँ
चाँद उन को देखता है
गर वो भी चाँद देखें
मिल जाए दो निगाहें
क्या कहा नहीं पसंद आया ये तरीका! हम्म.. चलिए कोई बात नहीं मेरी बात न सही तो कम से कम युवा शायर वासी शाह की बात तो आप जरूर मानेंगे । अपने महबूब से जुड़ी यादों को संजोए रखा था इन्होंने पर जब ये चाँद सामने आया तो दिल में छुपे हर गिले शिकवे की परत दर परत खुलती चली गई। और क्यूँ ना खुले भाई ? आखिर ये चाँद ही तो अपनी प्रेयसी के साथ बिताये हुए उन यादगार लमहों का राजदार है
मैं हूँ तेरा खयाल है और चाँद रात है
दिल दर्द से निढाल है और चाँद रात है
आखों में चुभ गयीं तेरे यादों की किरचियाँ*
कान्धों पर गम की शाल है और चाँद रात है
* छोटे टुकड़े
दिल तोड़ के खामोश नजारों को क्या मिला?
शबनम का ये सवाल है और चाँद रात है
फिर तितलियाँ सी उड़ने लगीं दश्त- ए- ख्वाब में
फिर ख्वाहिश- ए- विसाल* है और चाँद रात है
*मिलन
कैम्पस की नहर पर है तेरा हाथ, हाथ में
मौसम भी लाजवाल है और चाँद रात है
हर एक कली ने ओढ़ लिया मातमी लिबास
हर फूल पर मलाल है और चाँद रात है
मेरी तो पोर- पोर में खुशी सी बस गई
उस पर तेरा खयाल है और चाँद रात है
छलका सा पड़ रहा है वासी, वहशतों *का रंग
हर चीज पर जवाल** है और चाँद रात है
* डर, चिंता **उतार
पर ये भी गौर करने की बात है कि कभी तो हम अपनी बीती हुई यादों को चाँद के साथ बाँटते हैं तो चाँदनी रात की खूबसूरती में ही अपने महबूब का अक्स देखने लगते हैं जैसा कुछ साहिर साहब यहाँ देख रहे हैं
ये रात है या तुम्हारी जुल्फें खुली हुई हैं
है चाँदनी या तुम्हारी नजरों से मेरी रातें धुली हुई हैं
ये चाँद है या तुम्हारा कंगन
सितारे हैं या तुम्हारा आँचल.....
पर चाँद को लेकर सिर्फ प्यार मोहब्बत की बातें हों ऐसी भी बात नहीं, इसकी आड़ में उलाहने भी दिये जाते हैं । लता जी के गाए इस नग्मे की बानगी लें....नायिका को शिकायत है कि मुआ ये चाँद तो बिना कहे वक्त पर मिलने रोज चला आता है और एक तुम हो जो वादा कर के भी अपनी शक्ल नहीं दिखाते ।
चाँद फिर निकला
मगर तुम ना आए...
जला फिर मेरा दिल
करूँ क्या मैं हाए...
सच तो ये है कि जब चाँद अपने पूरे शबाब पर रहता है तो हमारे आँखे इसकी रंगत में कुछ इस क़दर घुल जाती हैं कि सपनों और वास्तविकता की लकीर ही धूमिल सी लगने लगती है इसीलिए तो किसी शायर ने कहा है
कहो वो चाँद कैसा था
फ़लक से जो उतर आया तुम्हारी आँख में बसने
कहा वो ख़्वाब जैसा था
नहीं ताबीर1 थी उसकी, उसे इक शब2 सुला आए
1.परिणाम, फल 2. रात्रि
आज के लिये तो बस इतना ही.. ! अगली बार बात करेंगे उस अधूरे उदास चाँद की......तब तक के लिये इजाजत !
अब तक इस श्रृंखला में
12 टिप्पणियाँ:
रंगीनियाँ बरस रही हैं!
बेहतरीन सफर चाँद का .बहुत उम्दा लिखा है आपने इस पर
chand ka nasha hone laga,chandani ka jadu chane laga bahut khubsurat post.
bahut sunder bhaaw hain
चलिए चाँद पर हम भी आपको अपनी पसंदीदा शायरा का लिखा कुछ बाँट देते है
puuraa dukh aur aadhaa chaa.Nd
hijr kii shab aur aisaa chaa.Nd
[hijr=separation; shab=night]
itane ghane baadal ke piichhe
kitanaa tanhaa hogaa chaa.Nd
[tanhaa=lonely]
merii karavaT par jaag uThe
niind kaa kitanaa kachchaa chaa.Nd
seharaa seharaa bhaTak rahaa hai
apane ishq me.n sachchaa chaa.Nd
[seharaa=desert]
raat ke shaayad ek baje hai.n
sotaa hogaa meraa chaa.Nd
चाँद होगा जमीं की बात करो,
हमसे उस महजबीं की बात करो।
बात उस पर ही ख़त्म होती है,
हमसे चाहे कहीं भी बात करो।
bahut sundar dhanyvad!
mausam chandmay ho gaya hai....! ham doob utaraa rahe hai.n
चाँद को क्या मालुम चाहता है उसको... एक ब्लोगर !
जितना सुंदर वर्णन उतना ही सुंदर चित्र !
Behtreen bhav....
Badhaiiiiii...
wah manishji, aapne toh chandni me sarabor kar diya hai,saari candni toh yahan bikhri padi hai tabhi toh'' aadhi raat ki chhat pe kitna tanha hoga chand, aangan wale neem pe jake atka hoga chand''.
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