जैसा कि मैंने आपसे कहा था कि 15 से 22 पायदानों तक के गीतों के स्तर में ज्यादा फर्क नहीं था। पर अब शुरु हो रहा है इस संगीतमाला का वो दौर जिसमें आते हैं 14 वीं से छठी पायदान तक के गीत जो मेरी रेटिंग में बेहद आस पास हैं। तो आइए दूसरे दौर का आगाज़ करें गुलज़ार के लिखे युवराज फिल्म के इस गीत से जिसकी धुन बनाई ए.आर. रहमान ने और जिसे आवाज़ दी अलका यागनिक और जावेद अली ने ....
तू मुस्करा जहाँ भी है तू मुस्कुरा
तू धूप की तरह बदन को छू जरा
शरीर* सी ये मुस्कुराहटें तेरी
बदन में सुनती हूँ मैं आहटें तेरी
* नटखट
गीत का इतना हिस्सा सुनते ही आप गुलज़ार के शब्द जाल में बँध जाते हैं और गीत की रूमानियत के साथ बहते चले जाते हैं। इसमें मदद करता है रहमान का बेहतरीन संगीत संयोजन। चार मिनट तक अलका की मीठी आवाज़ सुनने के बाद ज़ावेद का स्वर गीत में प्रेम के अहसास को पूर्णता देता प्रतीत होता है। उसके बाद की शास्त्रीय बंदिश और पार्श्व से आता अलका जी का आलाप मन को मोह लेता है। खुद गुलज़ार, युवराज में रहमान के दिए गए संगीत को उनके सबसे अच्छे काम में से एक मानते हैं।
अब हमारी छोड़िए खुद ही महसूस कीजिए मोहब्बत की चाशनी में डूबे इस गीत को रहमान की मधुर धुन के साथ...
तू मुस्करा जहाँ भी है तू मुस्कुरा
तू धूप की तरह बदन को छू जरा
शरीर सी ये मुस्कुराहटें तेरी
बदन में सुनती हूँ मैं आहटें तेरी
लबों से आ के छू दे अपने लब जरा
शरीर सी.................आहटें तेरी
ऍसा होता है खयालों में अक्सर
तुझको सोचूँ तो महक जाती हूँ
मेरी रुह में बसी है तेरी खुशबू
तुझको छू लूँ तो बहक जाती हूँ
तेरी आँखों में, तेरी आँखों में
कोई तो जादू है तू मुस्करा
जहाँ भी है तू मुस्कुरा......
तू मुस्करा.......आहटें तेरी
तेज चलती है हवाओं की साँसें
मुझको बाहों में लपेट के छुपा ले
तेरी आँखों की हसीं नूरियों में
मैं बदन को बिछाऊँ तू सुला ले
तेरी आँखों में, तेरी आँखों में
कोई तो नशा है तू मुस्कुरा
तू मुस्करा.......आहटें तेरी
तू धूप की तरह बदन को छू जरा
शरीर सी ये मुस्कुराहटें तेरी
बदन में सुनती हूँ मैं आहटें तेरी
लबों से आ के छू दे अपने लब जरा
शरीर सी.................आहटें तेरी
ऍसा होता है खयालों में अक्सर
तुझको सोचूँ तो महक जाती हूँ
मेरी रुह में बसी है तेरी खुशबू
तुझको छू लूँ तो बहक जाती हूँ
तेरी आँखों में, तेरी आँखों में
कोई तो जादू है तू मुस्करा
जहाँ भी है तू मुस्कुरा......
तू मुस्करा.......आहटें तेरी
तेज चलती है हवाओं की साँसें
मुझको बाहों में लपेट के छुपा ले
तेरी आँखों की हसीं नूरियों में
मैं बदन को बिछाऊँ तू सुला ले
तेरी आँखों में, तेरी आँखों में
कोई तो नशा है तू मुस्कुरा
तू मुस्करा.......आहटें तेरी
वार्षिक संगीतमाला 2008 में अब तक :
7 टिप्पणियाँ:
माफ़ी चाहते है कि उस दिन हम टिप्पणी नही कर पाये थे इसलिए देर से सही मनीष जी लखपति होने की बधाई ।
आपकी संगीतमाला अच्छी लगती है क्योंकि इससे साल भर के गीतों की सूची भी मिल जाती है ।
श्रीमान मनीष जी,
बहुत खूब, गीत तो सुना था पर शब्दों कि भावभंगिमा को आज आपके ब्लॉग के जरिये ही जान पाया हूँ, संगीत के प्रति आपका ये लगाव निरंतर मुझे आपके ब्लॉग की ओर खींचता रहेगा, इसी तरह हमें इस सुर संगीत की दुनिया से रूबरू करवाते रहिएगा, जब भी हमें इसकी ललक होगी आपकी ओर खींचते चले आयेंगे यारा !
बहुत धन्यवाद !
सस्नेह !
दिलीप गौड़
गांधीधाम
अब तो उत्सुकता होने लगी है की ऊपर कौन से गाने होंगे. ये इस साल के सबसे पसंदीदा गानों में से है. इससे अच्छे १३ गाने कौन से होंगे !
पहली बार सुना यह गीत, वाक़ई बहुत ही सुंदर गीत शब्द भी और आवाज़ भी....! गुलज़ार जी का कोई जवाब नही।
I like all songs from Yuvvraaj. I like the bandish part the best in this song.
My fav songs from Yuvvraaj are 'Dil ka Rishta' and 'Manmohini'. They are awesome!
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ममता जी माफी किस बात की। बधाई के लिए आभार
दिलीप और जिम्मी इस ब्लॉग पर पधारने और अपनी राय से अवगत कराने का शुक्रिया!
कंचन अच्छा ये गीत पहली बार सुना ! पसंद आया जानकर प्रसन्नता हुई
अभिषेक मुझे ऍसा लग रहा है कि शायद प्रथम पाँच में ज्यादातर गीत आपने ना सुने हुए निकलें
PR Out of two songs u referred one is my fav too :)
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