सोमवार, फ़रवरी 09, 2009

वार्षिक संगीतमाला 2008 - पायदान संख्या 10 : ख्वाज़ा मेरे ख्वाज़ा सुनिए ये सूफियाना कव्वाली और इसकी बेहतरीन धुन

कार्यालय के दौरों ने वार्षिक संगीतमाला की गति मंथर कर दी है। बोकारो से लौटकर अब भिलाई की ओर प्रस्थान कर रहा हूँ पर जाने के पहले आपको इस संगीतमाला की पॉयदान की ये सूफ़ी कव्वाली और इसकी निराली धुन जरूर सुनवाते जाऊँगा। पिछली पोस्ट में फिल्म आमिर के गीत ने जो सूफ़ियाना माहौल रचा था, वो इस पायदान पर भी बरक़रार है। जोधा अकबर के इस सूफ़ी कलाम को संगीतबद्ध किया रहमान और गाया भी रहमान ने।


दरअसल इस गीत से मेरा जुड़ाव इसकी पिक्चराइजेशन देखने के बाद हुआ। उसके बाद जब मैंने इस सूफ़ी क्ववाली का इनस्ट्रूमेंटल वर्सन सुना मन ऐसी शांति और सुकून में डूब गया कि इस धुन को बार बार सुनने की इच्छा होती रही। फिर पिछले साल के बड़े हिस्से तक ये धुन मेरी मोबाइल की रिंग टोन बनी रही। अल्लाह रक्खा रहमान को लोग यूँ ही संगीत समीक्षक जीनियस की उपाधि नहीं देते। क्या धुन बनाई है उन्होंने !




इस धुन को उन्होंने वुडविंड श्रेणी के वाद्य oboe का बखूबी इस्तेमाल किया है जो बहुत हद तक क्लारिनेट से मिलता जुलता वाद्य यंत्र है सिवाए इसके कि इसमें माउथपीस नहीं होता। इस वाद्य यंत्र के बारे में विस्तार से जानना चाहते हों तो यहाँ देखें ।अगर ये गीत मेरी इस गीतमाला के प्रथम दस में जगह पा सका है तो इसके पीछे इस धुन का बहुत बड़ा हाथ है।

अब धुन तो आपने सुन ली अब जरा इसके बोलों पर ज़रा गौर फरमाएँ । इसे दोहराते हुए आपका मन भी उस ऊपरवाले की खिदमत में झुक जाएगा।



ख्वाज़ा जी.. ख्वाज़ा
या गरीबनवाज़ या गरीबनवाज़ या गरीबनवाज़
या मोइनुद्दीन या मोइनुद्दीन या मोइनुद्दीन
या ख्वाज़ा जी या ख्वाज़ा जी...

ख़्वाजा मेरे ख़्वाजा
दिल में समा जा
शाहों का शाह तू
अली का दुलारा

ख़्वाजा मेरे ख़्वाजा
दिल में समा जा
बेकसों की तक़दीर
तूने है सँवारी
ख़्वाजा मेरे ख़्वाजा

तेरे दरबार में ख़्वाजा
नूर तो है देखा
तेरे दरबार में ख़्वाजा
सर झुकाते हैं औलिया
तू है हिमलवली ख़्वाजा
रुतबा है न्यारा
चाहने से तुझको ख़्वाजा जी
मुस्तफ़ा को पाया
ख़्वाजा मेरे ख़्वाजा

मेरे पीर का सदक़ा मेरे पीर का सदक़ा
है मेरे पीर का सदका
तेरा दामन है थामा
ख़्वाजा जी.... टली हर बला हमारी
छाया है ख़ुमार तेरा
जितना भी रश्क़ करें बेशक तो कम हैं ऍ मेरे ख़्वाजा
तेरे कदमों को मेरे रहनुमा नहीं छोड़ना गवारा
ख़्वाजा मेरे ख़्वाजा


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6 टिप्पणियाँ:

कंचन सिंह चौहान on फ़रवरी 09, 2009 ने कहा…

मन को बड़ा सुकूँ मिलता है इस गीत को सुनने के बाद....! बहुत पाक़ीज़ा अल्फाज़ और संगत भी..!

Abhishek Ojha on फ़रवरी 09, 2009 ने कहा…

बेहतरीन !

mamta on फ़रवरी 09, 2009 ने कहा…

शुरू मे हमें ज्यादा पसंद नही आया था पर बाद मे बहुत अच्छा लगने लगा था । इसे रहमान ने गाया है ये नही जानते थे ।

डॉ .अनुराग on फ़रवरी 09, 2009 ने कहा…

जोधा अकबर पर संगीत देना वाकई मुश्किल काम था .पर ऐ आर रहमान ...अपने नाम के मुताबिक है.....अच्छा गाना है.

एस. बी. सिंह on फ़रवरी 09, 2009 ने कहा…

बहुत सुंदर। एक बार फ़िर सुनवाने का शुक्रिया।

Urvashi on फ़रवरी 16, 2009 ने कहा…

Lovely song! :)

 

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