वार्षिक संगीतमाला के एक महिने से चल रहे सफ़र में अब तक आप मेरे साथ गीत संख्या २५ से लेकर १२ तक का सफ़र तय कर चुके हैं। अब तक आपने कभी उदासी तो कभी मुस्कुराहट के रंगों से भरे गीत सुनें। पर आज ११ वीं पायदान पर चढ़ा है माहौल सूफी संगीत का। और एक रोचक तथ्य ये कि इस पॉयदान के संगीतकार, गीतकार और सारे गायकों के लिए मेरी किसी भी संगीतमाला में ये पहली इन्ट्री है।
ग्यारहवीं पायदान का ये गीत है फिल्म आमिर से। इसके संगीतकार हैं अमित त्रिवेदी और गीतकार हैं अमिताभ। इस गीत को अपनी आवाज़ दी है अमित त्रिवेदी, मुर्तजा कादिर और अमिताभ की तिकड़ी ने।
आमिर का संगीत मुझे अद्भुत लगता है । विभिन्न प्रकार के ताल वाद्यों (Percussion instruments) का प्रयोग अमित ने ताली की संगत के साथ जिस तरह किया है वो मुझे मंत्रमुग्ध कर देता है। मज़े की बात ये है कि २९ वर्षीय अमित त्रिवेदी को इस गीत की धुन तब दिमाग में आई जब वो एक 20-20 मैच देखने के लिए दोस्तों की प्रतीक्षा करते हुए सैंडविच खाने की योजना बना रहे थे। अमित त्रिवेदी के बारे में विस्तार से चर्चा होगी पर उसके लिए आपको कुछ और पॉयदानों तक प्रतीक्षा करनी होगी।
अमिताभ के बोल गीत के मूड के अनुरूप सूफियाना रंग से रँगे दिखते हैं। अब इस अंतरे को देखें ...हमारे जीवन की सारी डोरियाँ ऊपरवाले के हाथ में हैं इस सीधी सच्ची बात को अमिताभ ने बड़ी खूबसूरती से यहाँ पेश किया है।
सोने चमक में सिक्के खनक में
मिलता नहीं मिलता नहीं
धूल के ज़र्रों में, ढूँढे कोई तो
मिलता वहीं मिलता वहीं
क्या मजाल तेरी मर्जी के आगे बंदों की चल जाएगी
ताने जो उँगली तू, कठपुतली की चाल बदल जाएगी... जाएगी
गीत के अंत तक पहुँचने तक गीत की धुन, बोल और गायिकी तीनों मिलकर ऍसा असर डालते हैं कि मन इसे गुनगुनाए बिना रह नहीं पाता। तो चलिए सुनते हैं मन को शांत करता ये सूफ़ियाना नग्मा
आनी जानी है कहानी
बुलबुले सी है जिंदगानी
बनती कभी बिगड़ती
तेज हवा से लड़ती भिड़ती
हाँ रहम हाँ रहम फरमाए ख़ुदा
महफूज़ हर कदम करना ऐ ख़ुदा
ऐ ख़ुदा....
साँसों की सूखी डोर अनूठी
जल जाएगी जल जाएगी
बंद जो लाए थे हाथ की मुट्ठी
खुल जाएगी खुल जाएगी
क्या गुमान करें काया ये उजली
मिट्टी में मिल जाएगी
चाहें जितनी शमाए रोशन कर लें, धूप तो ढ़ल जाएगी... जाएगी
हाँ रहम हाँ रहम फरमाए ख़ुदा...
सोने चमक में सिक्के खनक में
मिलता नहीं मिलता नहीं
धूल के ज़र्रों में, ढूँढे कोई तो
मिलता वहीं मिलता वहीं
क्या मजाल तेरी मर्जी के आगे बंदों की चल जाएगी
ताने जो उँगली तू, कठपुतली की चाल बदल जाएगी... जाएगी
हाँ रहम हाँ रहम फरमाए ख़ुदा...
बुलबुले सी है जिंदगानी
बनती कभी बिगड़ती
तेज हवा से लड़ती भिड़ती
हाँ रहम हाँ रहम फरमाए ख़ुदा
महफूज़ हर कदम करना ऐ ख़ुदा
ऐ ख़ुदा....
साँसों की सूखी डोर अनूठी
जल जाएगी जल जाएगी
बंद जो लाए थे हाथ की मुट्ठी
खुल जाएगी खुल जाएगी
क्या गुमान करें काया ये उजली
मिट्टी में मिल जाएगी
चाहें जितनी शमाए रोशन कर लें, धूप तो ढ़ल जाएगी... जाएगी
हाँ रहम हाँ रहम फरमाए ख़ुदा...
सोने चमक में सिक्के खनक में
मिलता नहीं मिलता नहीं
धूल के ज़र्रों में, ढूँढे कोई तो
मिलता वहीं मिलता वहीं
क्या मजाल तेरी मर्जी के आगे बंदों की चल जाएगी
ताने जो उँगली तू, कठपुतली की चाल बदल जाएगी... जाएगी
हाँ रहम हाँ रहम फरमाए ख़ुदा...
5 टिप्पणियाँ:
wording bahoot kamal h, bahoot sach h song m, aapki post k dwara sunne ko mila bahoot achha.
pahali hi baar suna bahut hi umda geet....!
शानदार प्रस्तुति है भाई...
Sangita, Kanchan aur Yogendra bhai aap sab ko geet pasand aya jaan kar khushi huyi.
कहना चाहूंगी न सिर्फ गाना व्न पूरी फिल्म लाजवाब है। हर इंसान को ये देखना अर इसके संदेश से सीखना चाहिए।
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