दसविदानिया (Dasvidaniya)! है ना अज़ीब नाम एक भारतीय फिल्म के लिए। निर्देशक सुशांत शाह ने अपनी फिल्म के लिए इस रशियन जुमले का इस्तेमाल किया जिसका अर्थ होता है goodbye यानि अलविदा! खैर, अभी वार्षिक संगीतमाला २००८ को अलविदा कहने में तो काफी वक़्त बाकी है पर आज बारी है प्रथम दस पायदानों में से
नौवीं पायदान की, जहाँ इसी फिल्म से लिया गया वो गीत है जिसमें व्यक्त की गई भावनाओं को हम सब अपनी माँ के लिए महसूस करते हैं।
नौवीं पायदान की, जहाँ इसी फिल्म से लिया गया वो गीत है जिसमें व्यक्त की गई भावनाओं को हम सब अपनी माँ के लिए महसूस करते हैं।
एक आम आदमी के किरदार में विनय पाठक का काम इस फिल्म में तो बेहतरीन है ही साथ ही कैलाश खेर का दिया संगीत भी मन को लुभाता है। कैलाश ने इस गीत की पूरी धुन में गिटार का प्रमुखता से प्रयोग किया है जो बोलों के साथ सरसता से घुलता नज़र आता है। कैलाश खेर के रचित गीतों की खासियत है कि उनमें ज्यादा कविताई नहीं होती.. वे सहज भाषा का प्रयोग करते हैं । पर जब यही सीधे सच्चे बोल उनके स्वर में उभरते हैं तो दिल का कोना कोना गीत की भावनाओं से पिघलता प्रतीत होता है। उनकी आवाज़ में एक दिव्यता है जो उनके गाए गीतों को एक अलग ही मुकाम पर ले जाती है। मुझे कैलाश जी की इस अंतरे की अदायगी सबसे बेहतरीन लगती है जब वो गाते हैं ...
दुनिया में जीने से ज्यादा उलझन है माँ
तू है अमर का ज़हां
तू गुस्सा करती है, बड़ा अच्छा लगता है
तू कान पकड़ती है बड़ी जोर से लगता है
मेरी माँ..प्यारी माँ..मम्मा
.....बचपन की ढ़ेर सारी यादें एक साथ आँखों के सामने घूम जाती हैं। तो आप भी सुनिए ना ये गीत। खुद बा खुद माँ की ममतामयी छवि आपकी आँखों के सामने आ जाएगी...
माँ मेरी माँ
प्यारी माँ..मम्मा
हो माँ..प्यारी माँ..मम्मा
हाथों की लकीरें बदल जाएँगी
गम की ये जंजीरें पिघल जाएँगी
हो खुदा पे भी असर, तू दुआओं का है घर
मेरी माँ..प्यारी माँ..मम्मा
बिगड़ी किस्मत भी सँवर जाएगी
जिंदगी तराने खुशी के गाएगी
तेरे होते किसका डर , तू दुआओं का है घर
माँ मेरी माँ...प्यारी माँ..मम्मा
यूँ तो मैं सबसे न्यारा हूँ
तेरा माँ मैं दुलारा हूँ
दुनिया में जीने से ज्यादा उलझन है माँ
तू है अमर का ज़हां
तू गुस्सा करती है, बड़ा अच्छा लगता है
तू कान पकड़ती है बड़ी जोर से लगता है
मेरी माँ..प्यारी माँ..मम्मा
हाथों की लकीरें बदल जाएँगी,
ग़म की ये जंजीरें पिघल जाएँगी
हो ख़ुदा पे भी असर, तू दुआओं का है घर
माँ मेरी माँ...प्यारी माँ..मम्मा
विनय पाठक पर फिल्माए इस गीत को आप यू ट्यूब पर भी देख सकते हैं..
6 टिप्पणियाँ:
मीठा प्यारा सा गाना सुनवाने के लिए शुक्रिया मनीष जी।
पहली बार दीपावली में घर जाने पर भतीजे ने अपबने लैपटॉप पर सुनवाया था ये गीत और मुझे
तू गुस्सा करती है, बड़ा अच्छा लगता है,
तू कान पड़ती है बड़ी जोर से लगता है
बड़ी अजीब सी तुकबंदी लगी थी...!
लेकिन लखनऊ आने पर थोड़े दिन में ये गाना भांजे के आईपॉड पर दिन भर बजने लगा और मेरी हर नाराजगी का जवाब
यूँ तो मैं सब से न्यारा हूँ,
पर तेरा माँ मैं दुलारा हूँ,
और
दुनिया में जीने से ज्यादा उलझन हैं माँ
तू है अमर का जहाँ
और
तू गुस्सा करती है, बड़ा अच्छा लगता है,
तू कान पड़ती है बड़ी जोर से लगता है
जैसी पंक्तियों से मिलने लगा।
वो मुझे सिर्फ अपने साथ ये फिल्म दिखाने ले गया...! तो इस गीत से भावनात्मक लगाव हो गया। अब ये गीत चलता है तो विनय पाठक की जगह मुझे अपना विजू दिखाई देता है..और मन से दुआ निकलती है कि दुनिया के हर कष्ट उसको दसविदानिया बोल कर चले जायें
ये तो सच में बहुत अच्छा गीत है. फ़िल्म भी बड़ी अच्छी लगी थी.
मनीष जी, बेहद बढियां गीत सुनाया. और सुनवायें
प्यारका सा हृदय स्पर्शी गीत.
This is a sweet song. I especially like the way it is picturized. :)
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