मत कहो, आकाश में कुहरा घना है,
यह किसी की व्यक्तिगत आलोचना है
सूर्य हमने भी नहीं देखा सुबह से,
क्या करोगे, सूर्य का क्या देखना है
इस सड़क पर इस क़दर कीचड़ बिछी है,
हर किसी का पाँव घुटनों तक सना है
पक्ष औ' प्रतिपक्ष संसद में मुखर हैं,
बात इतनी है कि कोई पुल बना है
रक्त वर्षों से नसों में खौलता है,
आप कहते हैं क्षणिक उत्तेजना है
हो गई हर घाट पर पूरी व्यवस्था,
शौक से डूबे जिसे भी डूबना है
दोस्तों ! अब मंच पर सुविधा नहीं है,
आजकल नेपथ्य में संभावना है
निश्चय ही ये ग़ज़ल हमारे और आपके आसपास के सामाजिक और राजनीतिक हालातों की प्रतिध्वनि करती दिखती है। कितने सहज शब्द और सच्चाई की ओट से चलते ऍसे तीखे व्यंग्य बाण कि मन बस वाह वाह कर उठता है।
इस चिट्ठे पर प्रस्तुत कविताओं की सूची आप यहाँ देख सकते हैं।
16 टिप्पणियाँ:
बिलकुल !! यह आज के हमारे समाज का ही सच है .
दोस्तों! अब मंच पर सुविधा नहीं है,
आजकल नेपथ्य में सम्भावना है.
कहीं आप अमर सिंह, अहमद पटेल आदि की बात तो नहीं कर रहे.
दुष्यंत जी की गजले आज के सच को उजागर करती है
यूँ तो साये में धूप की कोई सी भी गज़ल उठा लें..आनन्द आ जाता है किन्तु इसकी बाद भी निश्चित ही जुदा है:
मत कहो, आकाश में कुहरा घना है,
यह किसी की व्यक्तिगत आलोचना है
बढ़िया गजल प्रस्तुति के लिए धन्यवाद
दुष्यंत जी से तब मिलना होता था जब हम बच्चे थे और उनकी विदुषी पत्नी से पढते थे. तब ये पता नही था कि हम इस युग के एक आला दर्ज़े के शायर से मुखातिब थे. अब उनकी गज़लें पढने और समझने का शऊर हमें भगवान नें दिया तो ये बात कचोटती है.
शुक्रिया!! आपके सौजन्य से एक और उम्दा गजल हम तक पहुंची...
और आपने उपलब्ध कराई कविता की सूची भी जब तब देखती रहती हूं.. :)
बिल्कुल मन वाह!वाह! कर उठता है!
हाईस्कूल के ज़माने में 'साये में धूप' ख़रीदी थी । उसके बाद कई बार खरीदनी पड़ी । हर बार कोई उठाईगीर मित्र ले गया ।
एक ग़ज़ल बेहद पसंद है ।
एक जंगल है तेरी आंखों में जिसमें मैं गुम हो जाता हूं ।
तू किसी रेल सी गुजरती है मैं किसी पुल सा थरथराता हूं ।
शायद मीनू पुरूषोत्तम ने गाई भी है ।
अब याद आया है तो खोजते हैं और सुनवाते हैं मनीष ।
दुष्यंत कुमार के तो अपन भी फैन हैं...पर अब तक उन्हें इंटरनेट पर ही पढ़ रहे थे...अब खरीदकर पढ़ना शुरू करते हैं...
jaisa Yunusji ne kaha, kai baar kharidani pari ye kitab. kisi mitra ne lautai nahi.
thanks for giving an opportunity to remember dushyant
इस गज़ल का पहला शेर एक अलग तरह से आकर्षित करता है.....! दुष्यंत जी ने जो भी लिखा , वो अपनी ओर खींचता है...!
’साये मे धूप’ एक ऐसी किताब है जिस की कोई गज़ल तो क्या , कोई एक ’शेर’ भी हल्का या भरती का नहीं है ।
दुष्यन्त जी नें अपने युग की पीड़ा को पूरी शिद्दत के साथ महसूस किया है और उसे पूरी इमानदारी के साथ कागज़ पर उतारा है ।
युनुस भाई ! आप की जानकारी के लिये मीनू पुरुषोत्तम जी आजकल यहां (अमेरिका में) बस गई हैं , कुछ ही दिन पहले उन से मिलना हुआ था । अगली बार मिला तो उन से पूछूँगा दुष्यन्त जी की गज़ल के बारे में ।
वैसे दुष्यन्त जी की एक गज़ल (कहां तो तय था ....) नीना मेहता’ जी ने गाई है, वह मेरे पास है ।
साये में धूप मेरी प्रिय पुस्तक है
गजल पढ़वाने के लिए धन्यवाद
वीनस केसरी
yadi aap Dushyant Kumar aur hindi sahitya ke kaaljayee sahityakaron ki hastlikhit dharohar ka avalokan karna chahte hai to BHOPAL k DUSHYANT KUMAR SMARAK PANDULIPI SANGRAHALAY aaiye.
Mob 9425007710
मुझे बहुत पसंद है हर ग़ज़ल कामयाब ग़ज़ल है समाज का,देशकाल का हर आईना स्पष्ट है
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