मंगलवार, अप्रैल 21, 2009

पीनाज़ मसानी से जुड़ी यादें : यूँ उनकी बज्म-ए-खामोशियों ने काम किया

पीनाज मसानी अस्सी के दशक में एक ऍसी आवाज़ थी जिसे बारहा हम और आप दूरदर्शन पर सुना करते थे और सराहा करते थे। उस वक्त घर में ग़ज़लों की कैसेट कम ही आ पाती थीं क्यूँकि उनके दाम उस जमाने में भी अस्सी रुपये से ऊपर हुआ करता थे और वो हमारे उस वक़्त के जेब खर्च से कहीं ज्यादा था।

शायद आठवीं क्लॉस में रहा हूंगा जब घर में नेपाल सीमा पर रहने वाले एक रिश्तेदार वहाँ से कुछ कैसेट लाए थे। उन्हीं में से एक कैसेट थी जिसकी एक साइड में पीनाज मसानी और दूसरी साइड में तलत अज़ीज की गज़ले थीं। वो कैसेट मुझे बेहद पसंद आई। लिहाज़ा उसे रिवाइंड कर कर इतना सुना गया कि उसका टेप रगड़ खाकर टूट गया। बाद में पीनाज को सुनते रहे पर उतना आनंद कभी नहीं आ पाया।

मुंबई यूनिवर्सिटी से स्नातक, पीनाज़ मसानी आगरा घराने की शागिर्द रही हैं और ग़ज़ल गायिकी उन्होंने उस्ताद मधुरानी जी से सीखी। १९८१ में बतौर ग़ायिका के रूप में उन्हें पहचान मिली। पर इसका एक बड़ा श्रेय संगीतकार जयदेव को भी जाता है जिन्होंने पीनाज की प्रतिभा को १९७८ में एक संगीत प्रतियोगिता के दौरान पहचाना। इस प्रतियोगिता में पीनाज अव्वल रही थीं। जयदेव ने इस युवा प्रतिभा के कैरियर में काफी दिलचस्पी ली जिसकी वज़ह से पीनाज़ दूरदर्शन पर ग़ज़ल गायिका के रूप में पहचानी जाने लगीं।

अस्सी का दशक ग़ज़ल गायकों के लिए स्वर्णिम काल कहा जा सकता है। क्या पंकज उधास, क्या अनूप जलोटा सब के सब गोल्ड और प्लेटिनम डिस्क जीत रहे थे। इस दौर में पीनाज के भी दर्जनों एलबम आए और वो भी प्लेटिनम डिस्क की हक़दार बनीं। पर ज्यों ही फिल्म संगीत नब्बे के दशक से फिर अपने को स्थापित करने लगा, म्यूजिक कंपनियों की रुचि इन कलाकारों में कम होने लगी। पिछले दस सालों में पीनाज ने बहुत कम ही गाया है, पर उनके पुराने समय को याद कर, सरकार ने हाल ही में उन्हें पद्मश्री सम्मान से विभूषित किया।

आज जो ग़ज़ल आपके सामने पेश कर रहा हूँ ये उसी कैसट का हिस्सा थी जिसका जिक्र, मैंने इस प्रविष्टि के शुरु में किया है।। इस ग़ज़ल का संगीत संयोजन किया था मधुरानी जी ने तो और इसके बोल लिखे थे सईद राही ने। पीनाज़ की गायिकी का अंदाज़ कुछ ऐसा है कि सामान्य से लगने वाले अशआरों मे उनकी आवाज़ की खनक से एक नई चमक आ जाती है



यूँ उनकी बज्म-ए-खामोशियों ने काम किया
सब ही ने मेरी मोहब्बत का एहतराम किया

हमारा नाम भी लेने लगे वफ़ा वाले
हमें भी आ के फरिश्तों ने सलाम किया

तेरे ही ख़त, तेरी तसवीर ले के बैठ गए
ये हमने काम यही सुबह शाम किया

ज़माना उनको हमेशा ही याद रखेगा
वो जिसने इश्क़ की दुनिया में अपना नाम किया

तू बेवफ़ा है मगर मुझको जां से प्यारा है
इसी अदा ने राही तेरा गुलाम किया

पर अचानक पीनाज मसानी मुझे क्यूँ कर याद आ गईं? दरअसल कुछ दिनों पहले वो राँची आई थीं, हमारा यानि सेल परिवार का मनोरंजन करने और मैंने भी उस कार्यक्रम में भाग लिया था। अगली पोस्ट में आपको बताऊँगा कि आज की पीनाज मसानी मुझे क्यों निराश करती हैं ? साथ ही होगी उसी कैसट की मेरी एक और पसंदीदा ग़ज़ल जिसकी कुछ पंक्तियाँ उन्होंने मेरे अनुरोध पर कार्यक्रम में गाकर सुनाईं...
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11 टिप्पणियाँ:

Udan Tashtari on अप्रैल 21, 2009 ने कहा…

अरे वाह!! क्या याद दिलाया..पिनाज़ के तो हम दीवाने थे अपने समय में. बड़े पुराने जख्म कुरेद दिये आपने. :)

रंजू भाटिया on अप्रैल 21, 2009 ने कहा…

पीनाज मसानी के बारे में बहुत दिनों बाद पढ़ा सुना ..इन्तजार रहेगा जानने का कि आपकी पसंद पर उन्होंने क्या सुनाया

Ashish Khandelwal on अप्रैल 21, 2009 ने कहा…

पीनाज मसानी का नाम पढ़कर वाकई दूरदर्शन के दिनों की याद ताजा हो गईं.. शायद पिछले साल उन्हें किसी सिंगिग रियलिटी शो के जज के रूप में भी देखा था.. यहां उनके बारे में पढ़कर अच्छा लगा..

Neeraj Rohilla on अप्रैल 21, 2009 ने कहा…

बहुत आभार इसे सुनवाने का। हमारे घर पर रूना लैला, चन्दन दास और पंकज उदास की गजलों के कई कैसेट हैं जो अब धूल फ़ांक रहे हैं, इस बार घर जाकर उन्हें संभाला जायेगा।

Abhishek Ojha on अप्रैल 21, 2009 ने कहा…

हमने तो पहली बार ही सुना... आभार !

Yunus Khan on अप्रैल 22, 2009 ने कहा…

उस ज़माने की पीनाज़ वाक़ई कमाल थीं । हमें उनका इंटरव्‍यू लेने का मौक़ा मिला है ।

रविकांत पाण्डेय on अप्रैल 22, 2009 ने कहा…

पीनाज मसानी को सुनना प्रीतिकर लगा। अगली गज़ल का इंतज़ार रहेगा।

दिलीप कवठेकर on अप्रैल 24, 2009 ने कहा…

पीनाज़ मसानी एक बेहद सुरीला और मधुर स्वर की मलिका हैं. वैसे ये गीत मधुरानी की आवाज़ में सुना था , जो स्वयं बहुत अच्छा गाती है.

Manisha Dubey ने कहा…

Manishji, Peenaaz ji ko yaad karne ke liye shukriya, unki gazal sunna sukhad laga.ek bahut pahle suni hui chand panqtiyan zahan me aa rahi hain''aankh jab bhi band kiya karte hain,saamne aap hua karte hain. aap jaisa hi muze lagta hai khawab me jisse mila karte hain''. agar gazal sunwa saken toh bahut aabhari rahugi. aur haan aapne bhi bade dino se swyam ki aawaz me kuch nahi sunaya hai ho sake toh pleeeeeeeeez hamari ye farmaish bhi puri kijiyega.

Manish Kumar on मई 01, 2009 ने कहा…

आप सब की टिप्पणियों का शुक्रिया !

नीरज भाई कमाल है पिछले हफ्ते पटना में यही काम कर के लौटा हूँ यानि पुराने केसेटों में कहाँ क्या है की खोज बीन...

मनीषा जी आपके पसंद की ग़ज़ल को सुनवाने का प्रयास करूँगा

N.Raviprakash on दिसंबर 25, 2009 ने कहा…

Excellent song! Dear Manish, I am an ardent fan of Ms.Peenaz masani. Kindly upload her songs if any. Thanks a lot!

 

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