एक महीने पहले अप्रैल में जब पटना जाना हुआ था तो मन ही मन इस बार यात्रा का एक लक्ष्य ये भी रखा था कि घर पर पुरानी रिकार्डिंग वाली कैसेट्स की छानबीन की जाए और ये देखा जाए कि मैंने और मेरी बड़ी दीदी ने मिलकर किसी ज़माने में जो ग़ज़लें गैर फिल्मी गीत रेडिओ से रिकार्ड की थीं वो अब सुरक्षित हैं भी या नहीं। अपनी इस मुहिम के दौरान पुरानी कुछ ग़ज़लें मिलीं पर आज के mp3 की गुणवत्ता के सामने वो कहीं नहीं ठहरती थीं। पर खोज बीन का फायदा ये हुआ कि कुछ प्रिय गीत ग़ज़ल जो ज़ेहन में कहीं दब से गए थे वो एक बार फिर से उभर कर आ गए। उन्हीं मे से एक था राजेंद्र और नीना मेहता का गाया ये नग्मा जो ताजमहल की पृष्ठभूमि में लिखा गया एक अद्भुत प्रेम गीत है।
इस गीत को अपनी बड़ी दी की बदौलत पहली बार मैंने अस्सी के दशक में सुना था। ये वो वक़्त था जब ग़ज़ल गायिकी में एक नई प्रथा विकसित हुई थी युगल जोड़ियों के साथ साथ गाने की। मेहता युगल के आलावा राजकुमार रिज़वी / इन्द्राणी रिज़वी और जगजीत सिंह / चित्रा सिंह की जोड़ी ग़ज़ल गायिकी को एक नया आयाम दे रही थीं। बाद में इस ट्रेंड को अनूप और सोनाली जलोटा (जो अब सोनाली राठौड़ हो गईं हैं और रूप कुमार राठौड़ के साथ कान्सर्ट में नज़र आती हैं) और भूपेंद्र और मीताली मुखर्जी ने खूबसरती से आगे बढ़ाया।
चित्र साभार : हमारा फोरम
एक साथ पुरुष और नारी स्वर को सुनना भाता तो बहुत था पर कुछ एक जोड़ियों को छोड़ दें तो पुरुष स्वर की आवाज़ गुणवत्ता के सामने जोड़ीदार महिला स्वर उस कोटि का नहीं हो पाता था। नब्बे के दशक में फिल्म संगीत जब फिर से उभरने लगा और परिणामस्वरूप ग़ज़ल गायिकी में खासकर युगल जोड़ियों के एलबम की संख्या में तेजी से कमी आई। और अब तो ये देख रहा हूँ कि पिछले दशक में कोई नई जोड़ी ग़ज़ल गायिकी के क्षेत्र में उभर कर सामने नहीं आई।
आज जिस गैर फिल्मी गीत को आपके सामने पेश कर रहा हूँ वो मेहता युगल के आलावा कई अन्य फ़नकारों ने भी गाया है पर मुझे यही वर्सन सबसे ज्यादा पसंद आता है। उस ज़माने में गीत ग़ज़लों का ये गुलदस्ता कैसेट और सीडी के रूप में ना आकर हमसफ़र नाम के LP के रूप में रिकार्ड किया गया था़। नीचे और ऊपर के चित्रों में आप इस LP की आवरण तसवीरें देख सकते हैं
इस गीत को लिखा था प्रेम वारबर्टनी साहब ने। व्यक्तिगत रूप से उनके बारे में मुझे कोई जानकारी नहीं है पर उनका नाम उन शायरों में अक्सर आता रहा जिनके क़लामों को जगजीत ने अपने एलबम में जगह दी। इतना तो स्पष्ट हे कि अपने नाम के अनुरूप प्रेम साहब ने बेहतरीन रोमांटिक ग़ज़ले और नज़्में कहीं। मिसाल के तौर पर ये नज़्म याद है ना आपको
जवानी के हीले हया के बहाने
ये माना कि तुम मुझ से पर्दा करोगी
ये दुनिया मगर तुझ सी भोली नहीं है
छुपाकर मोहब्बत को रुसवा करोगी
ये माना कि तुम मुझ से पर्दा करोगी
ये दुनिया मगर तुझ सी भोली नहीं है
छुपाकर मोहब्बत को रुसवा करोगी
या फिर उनकी ग़ज़ल के इन अशआरों को देखिए
कभी तो खुल के बरस अब्र ए मेहरबाँ की तरह
मेरा वज़ूद है जलते हुए मकाँ की तरह
मेरा वज़ूद है जलते हुए मकाँ की तरह
सुक़ूत ए दिल तो जज़ीरा है बर्फ का लेकिन
तेरा ख़ुलूस है सूरज के सायबाँ की तरह
तेरा ख़ुलूस है सूरज के सायबाँ की तरह
तो आपने देखा कि प्रेम साहब की शायरी किस क़दर रूमानी ख़यालातों से भरपूर है। अपने इसी हुनर का जादू बिखेरा है उन्होंने इस गीत में। ताजमहल को मोहब्बत का मक़बरा मानने वालों के लिए उनकी ये पंक्तियाँ तो सीधे दिल में उतर जाती हैं
ये ताजमहल जो चाहत की आँखों का सुनहरा मोती है
हर रात जहाँ दो रुहों की खामोशी जिंदा होती है
हर रात जहाँ दो रुहों की खामोशी जिंदा होती है
खैर अब आप सुनिए ये पूरा गीत और बताइए मुझे कि इसे सुनकर उन पुराने दिनों के बारे में आपको क्या याद आया....
जब आँचल रात का लहराए और सारा आलम सो जाए
तुम मुझसे मिलने शमा जलाकर ताजमहल में आ जाना
तुम मुझसे मिलने शमा जलाकर ताजमहल में आ जाना
जब आँचल रात का लहराए.....
ये ताजमहल जो चाहत की आँखों का सुनहरा मोती है
हर रात जहाँ दो रुहों की खामोशी जिंदा होती है
इस ताज के साये में आकर तुम गीत वफ़ा का दोहराना
तुम मुझसे मिलने शमा जलाकर ताजमहल में आ जाना
जब आँचल रात का लहराए.....
तुम मुझसे मिलने शमा जलाकर ताजमहल में आ जाना
तुम मुझसे मिलने शमा जलाकर ताजमहल में आ जाना
जब आँचल रात का लहराए.....
ये ताजमहल जो चाहत की आँखों का सुनहरा मोती है
हर रात जहाँ दो रुहों की खामोशी जिंदा होती है
इस ताज के साये में आकर तुम गीत वफ़ा का दोहराना
तुम मुझसे मिलने शमा जलाकर ताजमहल में आ जाना
जब आँचल रात का लहराए.....
तनहाई है जागी जागी सी, माहौल है सोया सोया हुआ
जैसे के तुम्हारे ख़्वाबों में खुद ताजमहल हो खोया हुआ
हो ताजमहल का ख़्वाब तुम्हीं ये राज ना मैंने पहचाना
तुम मुझसे मिलने शमा जलाकर ताजमहल में आ जाना
जब आँचल रात का लहराए.....
जैसे के तुम्हारे ख़्वाबों में खुद ताजमहल हो खोया हुआ
हो ताजमहल का ख़्वाब तुम्हीं ये राज ना मैंने पहचाना
तुम मुझसे मिलने शमा जलाकर ताजमहल में आ जाना
जब आँचल रात का लहराए.....
जो मौत मोहब्बत में आए वो जान से बढ़कर प्यारी है
दो प्यार भरे दिल रौशन हैं गो रात बहुत अँधियारी है
तुम रात के इस अँधियारे में बस एक झलक दिखला जाना
तुम मुझसे मिलने शमा जलाकर ताजमहल में आ जाना
जब आँचल रात का लहराए.....
दो प्यार भरे दिल रौशन हैं गो रात बहुत अँधियारी है
तुम रात के इस अँधियारे में बस एक झलक दिखला जाना
तुम मुझसे मिलने शमा जलाकर ताजमहल में आ जाना
जब आँचल रात का लहराए.....
23 टिप्पणियाँ:
मनीष जी गीत के लिए बेहद शुक्रिया. ये गीत मैं कभी लैपटॉप पर भी सुन पाउंगी कभी नहीं सोचा था, आपके प्रयास के लिए एक बार फिर से हृदय से आभार .
बढिया गीत । इसे एक फिल्म में भी शामिल किया गया था । आपने हमारे दिल की बात कह दी कि बहुधा जोडियों में महिलाएं पुरूष साथी की टक्कर की नहीं रहीं । भूपेंद्र मिताली और जगजीत चित्रा इसके अपवाद हैं ।
प्रेम बारबटोनी की अच्छी याद दिलाई ।
और हां 'जवानी के हीले' का जिक्र आपने किया तो जगजीत की वो कैसेट याद आ गयी ।
मनीश भाई, जो चीजें स्मृतियों के तहखाने में दबी हुई हैं , उन्हें सतह पर लाकर बीते दिनों की खुशबू में सराबोर करने के लिए कुछ दो -चार शब्द ही कहे जा सकते है , मसलन - अद्भुत ... शुक्रिया ..
पहले कभी तो सुना है एक-दो बार. कब याद नहीं. शुक्रिया !
बहुत दिनों बाद इस गज़ल को फ़िर सुनना प्रीतिकर अनुभव रहा। इसे सुनकर तो सच में बहुत कुछ याद आता है।
manishji, aap toh smunder ki gahraiyon se aise-aise moti chun kar late hain jo anmol hain, ye gazal meri bahut hi pasanddida gazlon me se ek hai, iski casettee mere paas thi lekin transfer me tut gayi .aaj kai saalon baad bahut purani yaaden taza ho gayi. aap vishwas nahi karege 10 baar sun chuki hoon,phir bhi aur sunne ka man hai. aap badhai ke patra hain
बड़ी पुरानी कुछ यादें तैर गई जेहन में..बहुत आभार इसे सुनवाने का.
मुझे आपका ब्लॉग बहुत अच्छा लगा! आपने बहुत ही सुंदर लिखा है और साथ में बढ़िया गीत के लिए शुक्रिया! मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है!
बहुत ही खूबसूरत.. गीत..!सुनने की खवाइश थी..आपने तो कमाल का काम किया है...
bahoot achha song sunvya apne dhyanywad.....first time suna mena
manish yah gana pahle main khoob gaya karti thi. aaj is gane ka jikr ker tumne purani yadon ko taja ker diya.
वाह मनीष जी इतने प्यारे पुरानी गजल सुना कर आपने बहुत कमाल का काम किया यह तो कभी न भूलने वाले लफ्ज़ हैं शुक्रिया
ek khubsurat blog pe khubsurat post or khubsurat gazal....
Behad achhaa lagaa ye geet sunnaa...
pehlee baar aapkaa link kaheense milaa..ab to iskaa anusaran kartee rahungee..
ye sabhee geet mujhe pyare hain..
shama
मनीशजी , आपने मेरा आज का दिन बना दिया ये गीत सुना कर.
बडे ही दिनों से इस गीत के जुगाड में था, क्योंकि एक केसेट में था वह खराब हो गयी.
राजेंद्र और नीना मेहता बाकी दो जोडीयों से (जगजीत-चित्र/भुपेन्द्र-मिताली )से क्म प्रतिभाशाली नही है. मगर व्यावसायिक तकाज़ों से परे ये खूबसूरत दिलों की जोडी कला विरुद्ध व्यापार का सामंजस्य नही बिठा पाई. (ऐसा उनका भी मानना है).
राजेन्द्र मेहता की आवाज में मिठास, यौवन की पुरकशिश जगजी से भी बेहतर थी. जगजीत तकनीकी दृष्टि से बेहतर गायक है. दोनों को करीब से जानने के बाद इस निश्कर्ष पर पहुंचा हूं.
अब ये गीत down load हो जाये तो क्या मजा आ जाये!!
क्या आप मेल कर सकते है?
jawani k hilay haya k bahanay .. ye mana k tum mujh se parda karo gay... I could hear that calm, soothing voice in the back of my head whilst reading these lines
... and then was followed by the flash backs
बहुत अच्छा लगा कि ये गीत सुनकर आप में से कुछ पुरानी यादों में खो गए और जिन्होंने पहली बार सुना उन्हें भी ये भाया।
शमा आपका इस चिट्ठे पर स्वागत है। आशा है आगे भी आप अपने विचारों से अवगत कराती रहेंगी।
Zainab Un flash backs ka jikra to keejiye yahan nahin to apne blog par sahi :)
बहुत कुछ याद आ गया ।वैसे भी "मनीष कुमार"
,"राँची" ही मुझे बहुत पीछे ले जाता है। बहुत कुछ जुडा है वहाँ से---- जब ये गज़ल सुनी तो अनायास आँखें नम हो गई।बहुत सुनती थी मैं
तब।
बाकी फ़िर कभी!!!
आभार।
jane kb se talash thi is madhur geet ki,maine kai stores bhi chaan mare the,pr mujhe nahi mila tha,aaj suna to mn aur aankhen dono bhar aayeen...kitna shukriya ada karun aapka....
Manish ji namaskar ye gaana main kitne dino se khoj raha tha . aaj is maine suna keval aapki badaulat. lekin is song ko download kaise karenge ,, link batayen please
Thanks Manish ji,
I had first time listen this song Jab anchal rat ko lahraye on radio 1991. This song is too sweet for my heart.
Regards,
Madhukar
शायर का नाम प्रेम वारबर्टनी है,न कि 'बारबटोनी'।
Prem sahib mere Nana ji hie hum Panchkula haryana me rehte hiek
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