पिछली पोस्ट में मैंने जिक्र किया था कि तीसरी कसम के तीन गीत मुझे विशेष तौर पर प्रिय हैं। आशा जी के मस्ती से भरे गीत के बाद आज बात करते हैं इस फिल्म में मुकेश के गाए हुए मेरे दो प्रिय गीतों में से एक की। तीसरी कसम में बतौर नायक राज कपूर के अलग से रोल में थे। मैंने दूरदर्शन की बदौलत राज कपूर की अधिकांश फिल्में देखी हैं। बतौर अभिनेता वे मुझे औसत दर्जे के कलाकार ही लगते रहे पर तीसरी कसम में गाड़ीवान का उनका किरदार मुझे बेहद प्यारा लगा था और जीभ काटकर इस फिल्म में उनके द्वारा बोले जाने वाले उस इस्स........ को तो मैं आज तक भूल नहीं पाया।
राजकपूर ने जहाँ गाड़ीवान के किरदार हीरामन को बेहतरीन तरीके से निभाया वहीं उनकी आवाज़ कहे जाने वाले गायक मुकेश ने भी उन पर फिल्माए गीतों में अपनी बेहतरीन गायिकी की बदौलत जान फूँक दी। उनसे जुड़े एक लेख में मैंने पढ़ा था कि मुकेश ने अपने मित्रों को ख़ुद ही बताया था कि जब शैलेंद्र ‘तीसरी कसम’ बना रहे थे तब उन्होंने राजकपूर अभिनीत गीतों की आत्मा में उतरने के लिए फ़णीश्वर नाथ रेणु की कहानी ‘तीसरी कसम उर्फ़ मारे गए गुलफ़ाम’ को कई बार पढ़ा था। ये बात स्पष्ट करती है कि उस ज़माने के गायक गीत में सही प्रभाव पैदा करने के लिए कितनी मेहनत करते थे।
अब सजनवा बैरी हो गए हमार की ही बात करें। शैलेंद्र ने इस गीत की परिपाटी लोकगीतों के ताने बाने में बुनी है। पिया के परदेश जाने और वहाँ जा कर अपने प्रेम को भूल जाने की बात बहुतुरे लोकगीतों की मूल भावना रही है। शैलेंद्र के बोल और मुकेश की आवाज़ विरहणी की पीड़ा को इस पुरज़ोर तरीके से हमारे सामने लाते हैं कि सुनने वाले की आँखें आद्र हुए बिना नहीं रह पातीं। और शंकर जयकिशन का संगीत देखिए सिर्फ उतना भर जितनी की जरूरत है। जब मुकेश गा रहे होते हैं तो सिर्फ और सिर्फ उनकी आवाज़ कानों से टकराती है और दो अंतरे के बीच दिया गया संगीत बोलों के प्रभाव को गहरा करते चलता है।
शायद इसीलिए ये गीत मुझे इस फिल्म का सर्वप्रिय गीत लगता है। तो पहले सुनिए इस गीत को गुनगुनाने का मेरा प्रयास..
सजनवा बैरी हो गए हमार
चिठिया हो तो हर कोई बाँचे
भाग ना बाँचे कोए
करमवा बैरी हो गए हमार
जाए बसे परदेश सजनवा, सौतन के भरमाए
ना संदेश ना कोई खबरिया, रुत आए, रुत जाए
डूब गए हम बीच भँवर में
कर के सोलह पार, सजनवा बैरी हो गए हमार
सूनी सेज गोद मेरी सूनी मर्म मा जाने कोए
छटपट तड़पे प्रीत बेचारी, ममता आँसू रोए
ना कोई इस पार हमारा ना कोई उस पार
सजनवा बैरी हो गए हमार...
चिठिया हो तो हर कोई बाँचे
भाग ना बाँचे कोए
करमवा बैरी हो गए हमार
जाए बसे परदेश सजनवा, सौतन के भरमाए
ना संदेश ना कोई खबरिया, रुत आए, रुत जाए
डूब गए हम बीच भँवर में
कर के सोलह पार, सजनवा बैरी हो गए हमार
सूनी सेज गोद मेरी सूनी मर्म मा जाने कोए
छटपट तड़पे प्रीत बेचारी, ममता आँसू रोए
ना कोई इस पार हमारा ना कोई उस पार
सजनवा बैरी हो गए हमार...
तो आइए सुनें और देखें मुकेश के गाए इस गीत को
और हाँ एक रोचक तथ्य ये भी है कि जिस गाड़ी में राज कपूर और वहीदा जी पर ये गीत फिल्माया गया वो गाड़ी रेणु जी की खुद की थी और वो आज भी उनके भांजे के पास यादगार स्वरूप सुरक्षित है।
अगली बार बात उस गीत की जिसे मैंने इस फिल्म देखने के बहुत पहले अपने पापा के मुँह से सुना था और जो आज भी वक़्त बेवक़्त जिंदगी की राहों में आते प्रश्नचिन्हों को सुलझाने में मेरी मदद करता आया है...
16 टिप्पणियाँ:
मनीश जी , क्या याद दिला दिया ! .
’ तीसरी कसम ’ , सेल्यूलयिड पर लिखी एक सुकुमार कविता . गज़ब की प्रेम कथा . और फ़िर सजनवां बैरी ...??
गीत , सन्गीत , गायन , द्रिश्यन्कन , कथा वस्तु के दर्द को सिर्फ़ एक गीत मे ही पूरा उन्डेल देता , हीरामन और हीराबाई के मन के भीतरी संवादो को बिना कहे कह जाता .......
कितना भी कह लो , कुछ तो फ़िर भी बचा ही रह जायेगा ......
डूब गये हम बीच भंवर मे.........
जाने कितनी बार . क्या याद करा गये यार !
मनीष भाई, आप तो बहुत सुरीले निकले
आपका गुनुगुनाना मुझे तो बहुत भाया
तीसरी कसम इतिहास का एक बेरहम दस्तावेज है .शैलेन्द्र की मौत का सच....दोस्ती में बाजार की आमद ....फिल्म लाइन में एक लेखक का अपने असूलो पे अडे रहने का सबक...उस वक़्त की पीती हुई फिल्म आज हिंदी क्लासिक में शुमार है ....अजीब है न फिल्म गणित भी....कर्ज में डूबे शैलेन्द्र ये अमर रचना दे गए.....
गीत भी बेमिसाल है ....ये भी ......
मनीष जी,कितना ही कहूँ,पर तीसरी कसम हिंदी सिनेमा का जीवंत` दस्तावेज़ है.एक जूनून के साथ फिल्म बनाना एक सृष्टि को रचने जैसा है,जो इस फिल्म में साफ झलकता है.उपन्यास पर फिल्म बनी है और मानो उपन्यास में जीवन आ गया हो.सिनेमा की दुनिया में ऐसा कम ही हुआ है,जहाँ फिल्म उपन्यास से ज्यादा सशक्त बन पड़ी हो और उसने उपन्यास को एक नया आयाम दिया हो.बहरहाल,आपको धन्यवाद.इस विषय पर पूरा लेख शीघ्र ही प्रस्तुत करता हूँ.
मनीष जी ,,,,
ये भी एक अजब इत्तेफाक रहा
अभी कल ही १ जून को दिल्ली में
मै , मनु बेत्खाल्लुस , और दर्पण साह आपस
में बैठे यही गीत गुनगुना रहे थे
मैंने उन्हें पूरा गीत सुनाया और उसके बाद
उनसे गुजारिश की कि कुछ देर के लिए
मिझे अकेला रहने दें ...
खैर... एक बहुत ही नायाब प्रस्तुति के लिए
बधाई स्वीकारें
और हाँ !! इसी फिल्म से अगर वो गीत भी
सुनवा पाएं ...
"लाली लाली डोलिया में लाली रे ..."
इंतज़ार रहेगा
अभिवादन
---मुफलिस---
'तीसरी कसम'तब देखी थी जब दूरदर्शन पर राजकपूर की फिल्मों का उत्सव हुआ था । दिसंबर 88-89 की बात है शायद । हम एन एस एस के कैंप में किसी गांव में डेरा डाले हुए थे और वहीं ब्लैक एंड व्हाइट टी वी पर पूरी टोली फिल्में देखती और उन पर शास्त्रार्थ करती ।
इस फिल्म का संगीत अलग से व्याख्या की मांग करता है ।
गीतकार शैलेंद्र के लिए तीसरी कसम एक त्रासदी साबित हुई थी । पर उनके गाने जीवन के सच को उजागर करते हैं ।
आपके गाने पर टिप्पणी क्या करें । हम आपको पक्का और सच्चा गायक मानते हैं मनीष
बैकग्राउंड में आपका गाया गीत बजता रहा और पोस्ट के साथ टिपण्णीयों में भी उमड़ पड़ी भावनाएं पढता रहा. अब क्या कहा जाय फिर वही पिछले पोस्ट वाली बात इस फिल्म से जुडी एक-एक बात कमाल की है और क्या कमाल का कॉम्बिनेशन है यह फिल्म !
बहुत ही मीठा गाया है। पृष्ठ संगीत के अभाव ने इस में कुछ और उदासी भर दी।
पोस्ट पढ़ने के पहले शीर्षक पढ़ कर ही सोचा था कि आप को बताऊँगी कि इसे गुनगुनाना बहुत अच्छा लगता है मुझे...! और जब आपको गुनगुनाते पाया तो बहुत अच्छा लगा। ये गीत पता नही क्यों हमेशा से बहुत अच्छा लगता है..! इसे गुनगुनाते हुए एक अलग दुनिया में जाने का अहसास होता है..!
रेणु जी की गाड़ी वाली जानकरी अच्छी लगी।
और जो अगली पोस्ट का गीत है...उसके लिये अभी से बता दूँ कि उसके साथ क्या क्या भाव आते हैं, न समझ पाती हूँ, ना समझा...!
बेहतरीन!!
आपकी पकड की दाद देने को जी चाहता है.
शैलेंद्र नें इस गीत में दर्द की जो पराकाष्ठा य्वक्त की है, उसमें हताशा का जो रंग भरा है, उसे मुकेश जी नें बखूबी अपने कंठ के माध्यम से दिल के कोने से निकाला है.
"चिठिया हो तो हर कोई बांचे
भाग ना बांचे कोए!
गीत का दर्द सिर्फ़ भिगो नहीं जाता, बल्कि अन्तर्मेन को झझकोर जाता है। शैलेन्द्र, मुकेश, राज, श.ज. की चौकड़ी ने बहुत अमर गीतों क सृजन किया है, मगर ये एक गीत उन सब पर भी भारी पड़ता है"
Wow...a very beautiful song.
Maine aaj tak is gaane ko itni gaur se suna nahin hai...itni dard aru birah hai gaane ke sangeet ur bol, aur gaayak Mukesh ji ke awaaz mein bhi...
Beautiful melody!
"waah waah...teesri kasam ke baaki gaane bhi laga den to maza aa jaaye"
"अदभुत फ़लसफ़ा रचता है ये गीत मनीष भाई.इंटरल्यूड में ग़ौर कीजेइयेगा सितार,सरोद और बाँसुरी से कैसा समाँ रचा है संगीतकार ने जो गीत की मूल भावना को विस्तार देता है.रिद्म भी ऐसी जो बैलगाड़ी की लय से मेल खाती हो . अब कहाँ रहा वैसा दृष्य विन्यास और शोध.ये प्यारा गीत रविवार बना गया."
aapki awaj me gajab ka jaadoo hai
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