पिछली पोस्ट में आपने सुनी चंदन दास की आवाज़ में जनाब मुराद लखनवी की ग़ज़ल। इससे पहले इस क्रम को आगे बढ़ाते हुए आज की ग़ज़ल की चर्चा की जाए कुछ बातें चंदन दास के बारे में।
अक्सर देखा गया है कि संगीत से जुड़े फ़नकार एक सांगीतिक विरासत के उत्तराधिकारी होते हैं पर चंदन दास को ऍसा सौभाग्य प्राप्त नहीं हुआ। उन्हें तो ग़ज़ल गायिकी के क्षेत्र में आने के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ी।
उनके पिता चाहते थे कि चंदन उनका मुर्शीदाबाद का व्यापार सँभाले। चंदन इस बात के लिए राजी नहीं हुए और ग्यारहवीं कक्षा के बाद वो अपने चाचा के यहाँ पटना आ गए। १९७६ में उन्हें दिल्ली के ओबेरॉय होटल में काम करने का मौका मिला। दिल्ली आने के बाद दो साल बाद उनकी किस्मत तब खुली जब गाने के लिए मुंबई की संगीत कंपनी का न्योता उन्हें मिला। चंदन की खुशकिस्मती थी कि उनकी पहली एलबम में उनका परिचय खुद ग़ज़ल गायक तलत अज़ीज ने दिया।
अपने इन्हीं अनुभवों को ध्यान में रख कर चंदन दास ने एक साक्षात्कार में कहा था कि ...."नए गायकों को संगीत के क्षेत्र में और संयम से अपनी दिशा तय करनी चाहिए। आज की पीढ़ी सफलता का स्वाद जल्दी चखने के लिए संगीत की उस विधा को चुन लेती हे जहाँ आसानी से नाम और पैसा कमाया जा सके। दरअसल उन्हें निरंतर रियाज़ करते हुए ये तय करना चाहिए कि वे अपनी काबिलियत के बल पर किस क्षेत्र में अपना मुकाम हासिल कर सकते हैं।"
इस श्रृंखला में
चंदन दास ने गंभीर और हल्की फुल्की (जिसमें गीत का मिज़ाज ज्यादा और बोलों का वज़न कम हो) दोनों तरह की ग़ज़ले गाई हैं। आज की ग़ज़ल कौ मैं इन दोनों श्रेणियों के बीच की मानता हूँ। यानि अच्छे अशआरों के साथ गाई एक ऍसी ग़ज़ल जिसे सुनते ही मन प्रफुल्लित हो जाता है। दरअसल जब इब्राहिम अश्क़ जैसा मँजा हुआ गीतकार ग़ज़ल लिखता है तो उसकी गेयता तो अच्छी होगी ही। इस ग़ज़ल में चंदन दास ने संगीत भी लफ़्जों के उतार चढ़ाव के अनुरूप ही रखा है जिसे इसे सुनने का आनंद बढ़ जाता है। शायद ही कोई ग़ज़ल प्रेमी हो जो इसे सुनकर साथ ही साथ इसे गुनगुनाने का लोभ संवरण कर सके।
और अब सुनिए चंदन दास की मोहक आवाज़ में ये ग़ज़ल
जब मेरी हक़ीकत जा जा कर उनको जो सुनाई लोगों ने
कुछ सच भी कहा कुछ झूठ कहा कुछ बात बनाई लोगों ने
ढाए हैं हमेशा जुल्म ओ सितम दुनिया ने मोहब्बत वालों पर
दो दिल को कभी मिलने ना दिया दीवार उठाई लोगों ने
आँखों से ना आँसू पोंछ सके, होठों पे खुशी देखी ना गई
आबाद जो देखा घर मेरा तो आग लगाई लोगों ने
तनहाई का साथी मिल ना सका रुसवाई में शामिल शहर हुआ
पहले तो मेरा दिल तोड़ दिया फिर ईद मनायी लोगों ने
इस दौर में जीना मुश्किल है ऐ अश्क़ कोई आसान नहीं
हर एक कदम पर मरने की अब रस्म चलाई लोगों ने
इस श्रृंखला की अगली कड़ी में होगी निदा फाज़ली की एक संवेदनशील ग़ज़ल और साथ में जानेंगे कि चंदन दास क्या सोचते हैं ग़ज़ल गायिकी के भविष्य के बारे में..
और अब सुनिए चंदन दास की मोहक आवाज़ में ये ग़ज़ल
जब मेरी हक़ीकत जा जा कर उनको जो सुनाई लोगों ने
कुछ सच भी कहा कुछ झूठ कहा कुछ बात बनाई लोगों ने
ढाए हैं हमेशा जुल्म ओ सितम दुनिया ने मोहब्बत वालों पर
दो दिल को कभी मिलने ना दिया दीवार उठाई लोगों ने
आँखों से ना आँसू पोंछ सके, होठों पे खुशी देखी ना गई
आबाद जो देखा घर मेरा तो आग लगाई लोगों ने
तनहाई का साथी मिल ना सका रुसवाई में शामिल शहर हुआ
पहले तो मेरा दिल तोड़ दिया फिर ईद मनायी लोगों ने
इस दौर में जीना मुश्किल है ऐ अश्क़ कोई आसान नहीं
हर एक कदम पर मरने की अब रस्म चलाई लोगों ने
इस श्रृंखला की अगली कड़ी में होगी निदा फाज़ली की एक संवेदनशील ग़ज़ल और साथ में जानेंगे कि चंदन दास क्या सोचते हैं ग़ज़ल गायिकी के भविष्य के बारे में..
14 टिप्पणियाँ:
बहुत आभार इस प्रस्तुति का.
मनीष भाई, इस कडी के लिये बहुत आभार।
हमारे पास भी चन्दन दास की एक कैसेट हुआ करती थी जिसकी अब बहुत याद आती है क्योंकि वो किसी के घर गयी और वापिस न आयी। उसमें कुछ गीत थे जो अब ढूंढे भी नहीं मिल रहे हैं:
१) नये घडे के पानी से जब मीठी खुशबू आती है, यूँ लगता है मुझको जैसे तेरी खुशबू आती है।
२) पिया नहीं जब गांव में, आग लगे सब गांव में
३) यूँ रंग जिन्दगानी में भरता चला गया, एक बेवफ़ा से प्यार में करता चला गया।
इसी गजल का मक़ता है:
दुनिया की बेवफ़ाई का किया जो मैने जिक्र,
चेहरा ये तुम्हारा क्यूँ उतरता चला गया।
इस पोस्ट को केवल पढ सके, प्लेयर न फ़ायरफ़ोक्स में चल रहा है और न ही इंटरनेट एक्स्प्लोरर में :-(
नीरज फाइल तो *.wma फार्मट में है। मेरे घर और आफिस के पीसी पर तो बड़े आराम से बज रही है। हमारे यहाँ ब्राउसर IE है।
पिया नहीं गाँव में तो दूरदर्शन के जमाने में बेहद लोकप्रिय हुई थी। आपने जो तीसरी ग़ज़ल लिखी है वो मैंने नहीं सुनी पर बेहतरीन लग रही है कोशिश करूँगा उसे खोजने की।
geet to yahaN mai bhi nahi sun paa rhi, magar ye geet suna bahut hai...!
aur ek gana Chandan das ka MINAE MUNH KO QUAFAN SE CHHUPA JAB LIYA bhi bahut pasand tha mujhe...vo bhi kya isi cassete me hai..??
Chandan Das yuN bhi mujhe bahut pasand haiN..sunvaane ka shukriya
Kanchan ji lagta hai uploading site par bandwidth ki problem ki wazah se filhaal player nahin chal raha.
Isiliye ab divshare par upload kar raha hoon.I hope ki ab aap sab ise sun payenge.
aapne jis ghazal ka jikra kiya hai wo Sitam mein nahin hai ek doosre album mein jiska naam mujhe nahin yaad aa raha
सुन तो हम भी नहीं पाए. शाम को फिर से ट्राई करता हूँ.
बहुत सुंदर लगा चंदन दास को सुनकर। वैसे मुझे चंदन दास की आवाज में एक मीठी रचना पसंद है-
कल ख्वाब में देखा सखी मैंने पिया का गांव रे
कांटा वहां का फूल था धूप जैसे छांव रे
*****
सबसे सरल भाषा वही सबसे सरल बोली वही
बोले जो नयना बावरे समझे जो सईंया सांवरे
unki gayi ye lines aaj bhi yaad hain.....tum kaho to mar bhi jaun main magar ik shart hai, bus kafan ke waaste aanchal tumhara chahiye!
Je haan wo ghazal thi Khelne ke waste Dil kisi ka chahiye jise pichhli post mein ne aap sab ko sunaya tha
चन्दन दास की आवाज़ मुझे भी बहुत पसंद है. इधर बहुत दिनों से उनका कोई नया एलबम नहीं आया?
Durga ji unka sabse haal philhaal ka album Ik Parinda Abhi Udan Mein Hai jiski link neeche dee hai.
http://www.musicindiaonline.com/music/ghazals/s/album.6257/
चन्दन दास की ये ग़ज़ल मुझे बेहद पसंद है :
"इस सोच में बैठा हूँ, क्या ग़म उसे पहुंचा है,
बिखरी हुई जुल्फें हैं, उतरा हुआ चेहरा है"
और यह भी :
"हालात मयकदे के करवट बदल रहे हैं,
साकी बहक रहा है, मयकश संभल रहे हैं."
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