मंगलवार, जून 30, 2009

मेरे सराहने जलाओ सपने : आखिर क्या करे कोई जब ख्वाब डसने लगें नीदों को !

सपने देखने चाहिए..यही तो विचारक सदियों से कहते आए हैं पर साथ में वो ये भी पुछल्ला जोड़ देते हैं कि अपने सपनों को पूरा करने की दिशा में मनुष्य को ठोस कदम भी उठाने चाहिए। और ये तभी संभव है जब इंसान में अदम्य इच्छा शक्ति, बाधाओं से लड़ने का दृढ़संकल्प और मेहनत से दूर भागने की फितरत ना हो।

पर ये बातें कहना आसान है और इसे अपने जीवन में कार्यान्वित कर पाना बेहद मुश्किल। अपने आस पास की दुनिया में रोज़ कई पात्र ऍसे नज़र आते हैं जिनकी ख्वाबों की उड़ान तो काफी लंबी होती है पर उसके अनुरूप उनके कर्मों की फेरहिस्त बेहद छोटी। और ऊपर से उन्हें इस बात का अहसास तक नहीं होता। असफलता का एक वार ऐसे लोगों का उत्साह ठंडा कर देता है। अपने भाग्य को कोसते वो अपना समय दुनिया में नुक़्स निकालने में ही व्यर्थ कर देते हैं। पर ख्वाब हैं कि फिर भी बेचैन किये रहते हैं और लोग बाग सफलता के शार्ट कर्ट की तलाश में कुछ ऍसे भटक जाते हैं कि वापस जिंदगी की गाड़ी पटरी पर लगा पाना बेहद दुष्कर हो जाता है।


ये तो नहीं कहूँगा कि बिल्कुल ऍसा ही, पर कुछ कुछ मिलता हुआ एक जटिल चरित्र था मैडम बोवेरी (Madame Bovary) का जिन्हें नब्बे के दशक में केतन मेहता ने अपनी फिल्म माया मेमसॉब में माया के भारतीय रूप में रूपांतरित किया था। फिल्म की कथा में माया ने भी अपनी ख्वाबों की उड़ान बिना वांछित कर्मों की लटाई के आसमां में बेलगाम छोड़ दी थी। इन ख्वाबों ने जब माया की जिंदगी के मकाँ में अपने लिए कोई आशियाना नहीं देखा तो सर्पों की केंचुल चढ़ा नींद में अपन फन फैलाए चले आए उसे डसने.. अब ऍसे सपनों का क्या करे माया, शायद उनके दहन से ही उसे मुक्ति मिले..

ख्वाबों खयालों की भाषा को अगर किसी गीतकार द्वारा विविध कोणों से देखे परखे और रचे जाने की बात आती है तो सबसे पहले गुलज़ार का नाम ज़ेहन में उभरता है। और शायद इसीलिए केतन मेहता ने फिल्म माया मेमसाब की स्वछंद व्यक्तित्व स्वामिनी माया के मन को पढ़ने का काम गुलज़ार को सौंपा। और देखिए किस खूबसूरती से इस गीत में गुलज़ार ने माया की भावनाओं को अपने लफ़्ज़ दिये है..

मेरे सराहने जलाओ सपने
मुझे ज़रा सी तो नींद आए

खयाल चलते हैं आगे आगे
मैं उनकी छाँव में चल रही हैं
ना जाने किस मोम से बनी हूँ
जो कतरा कतरा पिघल रही हूँ
मैं सहमी रहती हूँ नींद में भी
कहीं कोई ख्वाब डस ना जाए
मेरे सराहने जलाओ सपने...

कभी बुलाता है कोई साया
कभी उड़ाती है धूल कोई
मैं एक भटकी हुई सी खुशबू
तलाश करती हूँ फूल कोई
जरा किसी शाख पर तो बैठूँ
जरा तो मुझको हवा झुलाए
मेरे सराहने जलाओ सपने...

तो आइए सुनें हृदयनाथ मंगेशकर के संगीत निर्देशन में लता मंगेशकर की मधुर स्वर लहरी से सुसज्जित ये गीत..


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15 टिप्पणियाँ:

नीरज गोस्वामी on जून 30, 2009 ने कहा…

लाजवाब गीत...गुलजार साहेब की कलम का जादू..."एक हसीं ख्वाब का दिल पे साया है...प्यार है जूनून है कैसी माया है...."फिल्म का ये गीत हमेशा कानों में गूंजता रहता है...मीता वशिष्ट राज बब्बर और शाहरुख़ की बेमिसाल अदाकारी वाली ये फिल्म मेरे पास है और इसे कभी कभी देख लेता हूँ...
नीरज

ओम आर्य on जून 30, 2009 ने कहा…

guljar sahab par kuchh kahane ke kabil nahi hai ham

Yunus Khan on जून 30, 2009 ने कहा…

स्‍कूल के ज़माने में जेबख़र्च से खरीदा था ये कैसेट ।
बेहद यादगार ।
अगर आप सुना ही रहे हैं तो छाया जागी सुनाएं हदयनाथ की आवाज़ में ।

डॉ .अनुराग on जून 30, 2009 ने कहा…

शुक्रिया मेरा पसंदीदा गीत सुनवाने के लिए ...इसी फिल्म का एक ओर गाना है .....जादू है जनून है कैसी माया है ...वो भी बेहद खूबसूरत है ...हाँ एक गाना था मनीष ...किस मूवी का था याद नहीं आ रहा है .उसके बोल कुछ ऐसे थे "हर जन्म में हमारा मिलन....मै तुम्हे देवता मान लूँ....हाँ रहे न रहे....हर जन्म .किसी झूले पे फिल्माया गया था शायद शैलेन्द्र की आवाज थी .कुछ मदद करोगे ...

Manish Kumar on जून 30, 2009 ने कहा…

दरअसल इस पोस्ट में इक हसीन निगाह का दिल पे साया है और छाया जागी.. का जिक्र किया था क्यूँकि ये दोनों गीत इस फिल्म के सर्वप्रिय गीतों में रहे हैं, पर ये सोचकर कि उन गीतों का मूड कुछ दूसरा है इस पोस्ट से उस अनुच्छेद का जिक्र हटा दिया और आज देखिए नीरज जी और अनुराग आपने इक हसीन निगाह की बात की और यूनुस आपने छाया जागी की..:)

छाया जागी .. को तो वैसे भी सुनवाना था यूनुस अब सोच रहा हूँ उसके साथ हृदयनाथ मंगेशकर का एक और प्यारा नग्मा भी जोड़् दूँ मेरी तरह आपको भी पसंद है। तब तक आप गेस करें और इंतज़ार करें अगली पोस्ट का...

Manish Kumar on जून 30, 2009 ने कहा…

अनुराग आपने जिस गीत का जिक्र किया वो फिल्म क़ागज़ की नाव का है और उसे गाया था मनहर उधास ने
बोल कुछ यूँ थे..

हर जनम में हमारा मिलन
दो दिलों का उजाला रहे
मैं तुम्हें देवता मान लूँ
मन मेरा इक शिवाला रहे..

Manish Kumar on जून 30, 2009 ने कहा…

और हाँ नीरज भाई आप कहीं दीपा शाही जो बाद में दीपा मेहता हो गईं को मीता वशिष्ठ से कनफ्यूज तो नहीं कर रहे।

Udan Tashtari on जून 30, 2009 ने कहा…

आभार इस गीत को सुनवाने का!!

सुशील छौक्कर on जुलाई 01, 2009 ने कहा…

फिल्म तो नही देखी पर गाने जरुर सुने है जो कानों में शहद घोलते है।

डिम्पल मल्होत्रा on जुलाई 03, 2009 ने कहा…

awesome....really enjoying....

सर्वत एम० on जुलाई 04, 2009 ने कहा…

सच कहा! सपने सबके चाँद तोड़ लाने के होते हैं ,पर सीडियों से छत तक जाने की भी मेहनत नहीं करता कोई

सर्वत एम० on जुलाई 04, 2009 ने कहा…

सच कहा! सपने सबके चाँद तोड़ लाने के होते हैं ,पर सीडियों से छत तक जाने की भी मेहनत नहीं करता कोई

रचना. on जुलाई 04, 2009 ने कहा…

गीत अच्छा है और भूमिका, उससे भी ज्यादा अच्छी!:)

संजय पटेल on जुलाई 05, 2009 ने कहा…

सुन्दर कम्पोज़िशन है मनीष भाई.
कम्पोज़िशन किसका है ? क्या ह्र्दयनाथ जी हैं.

सुशील छौक्कर on अगस्त 18, 2009 ने कहा…

फिर से आ गए जी। एक बार आकर जल्दी से जाया नही जाता इस ब्लोग से क्या करें मनीष जी।

 

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