सबसे पहले इस ग़ज़ल को सुनने का मौका १९९६ में मिला था जब मैं रुड़की विश्वविद्यालय के छात्रावास में रहा करता था। शीघ्र ही मैंने इसे एक ब्लैंक कैसेट में रिकार्ड कर सुरक्षित कर लिया था। कुछ सालों तक तो ये ग़ज़ल बारहा सुनी गई और फिर सीडी युग आते ही बाकी कैसटों की तरह कहीं कोने में दुबक गई। करीब दो साल पहले जब IIT Mumbai का अपना चक्कर लगा तो विकास ने मुलाक़ात के दौरान बताया कि अगर आपको किसी खास ग़ज़ल की तलाश हो तो वो IIT Mumbai के LAN (Local Area Network) पर आसानी से मिल जाएगी और तब मैंने इस ग़ज़ल की गुहार लगाई और थोड़ी ही देर की सर्च के बाद विकास ने ये ग़ज़ल सामने हाज़िर कर दी।
तो चलें अब इस ग़ज़ल के सुनें गुलाम अली की आवाज़ में। गुलाम अली साहब मतले की शुरुआत कुछ यूँ करते हैं..
ऐ हुस्न ए लालाफ़ाम ज़रा आँख तो मिला
खाली पड़े हैं जाम ज़रा आँख तो मिला
वैसे तो सच बताऊँ जनाब तो 'जाम' से अपना रिश्ता दूर-दूर तक का नहीं है पर अगर चेहरे पर प्यारी सी लाली लिए कोई सुंदरी अपने नयनों से नयन लड़ाए तो कुछ मदहोशी तो दिल पर छाएगी ना! वैसे भी शायर की चले तो आँखें लड़ाना भी भक्ति का एक रूप हो जाए। अब यही शेर देखिए...
कहते हैं आँख आँख से मिलना है बंदगी
दुनिया के छोड़ काम ज़रा आँख तो मिला
बिल्कुल जी हम तो तैयार हैं बस बॉस को बगल की केबिन से हटवा दीजिए और एक बाला सामने की टेबुल पर विराजमान करवा दीजिए फिर देखिए हमारा भक्ति भाव :)
क्या वो ना आज आएँगे तारों के साथ साथ
तनहाइयों की शाम ज़रा आँख तो मिला
हम्म गर वो चाँद जैसे होंगे तो जरूर आएँगे तारों के साथ वर्ना तो ऍसी परियों के साथ अक्सर उनके अमावसी मित्र ही होते हैं जो आशिकों को अपनी शाम, ग़म और तनहाई में बिताने पे मज़बूर कर देते हैं!
साकी मुझे भी चाहिए इक जाम ए आरज़ू
कितने लगेंगे दाम ज़रा आँख तो मिला
उफ्फ ये तो जुलुम है भाई आँखों पर...आँखों से मन की आरज़ू तो पढ़ने की तो बात सुनी थी पर शायर सागर तो आँखों से ही भावनाओं का मोल पूछना चाहते हैं !
है राह ए कहकशाँ में अज़ल से खड़े हुए
सागर तेरे गुलाम ज़रा आँख तो मिला
बताइए सागर साहब ने तो जिंदगी भर की प्रतीक्षा कर ली इस आकाशगंगा को निहारते निहारते और वो हैं कि इतनी गुलामी के बाद भी नैनों का इक़रारनामा नहीं दे रहीं। पुराने ज़माने के लोगों की बात ही अलग थी। ग़ज़ब का धैर्य था लोगों के पास और आज...!
तो चलें अब इस ग़ज़ल के सुनें गुलाम अली की आवाज़ में। गुलाम अली साहब मतले की शुरुआत कुछ यूँ करते हैं..
ऐ हुस्न ए लालाफ़ाम ज़रा आँख तो मिला
खाली पड़े हैं जाम ज़रा आँख तो मिला
वैसे तो सच बताऊँ जनाब तो 'जाम' से अपना रिश्ता दूर-दूर तक का नहीं है पर अगर चेहरे पर प्यारी सी लाली लिए कोई सुंदरी अपने नयनों से नयन लड़ाए तो कुछ मदहोशी तो दिल पर छाएगी ना! वैसे भी शायर की चले तो आँखें लड़ाना भी भक्ति का एक रूप हो जाए। अब यही शेर देखिए...
कहते हैं आँख आँख से मिलना है बंदगी
दुनिया के छोड़ काम ज़रा आँख तो मिला
बिल्कुल जी हम तो तैयार हैं बस बॉस को बगल की केबिन से हटवा दीजिए और एक बाला सामने की टेबुल पर विराजमान करवा दीजिए फिर देखिए हमारा भक्ति भाव :)
क्या वो ना आज आएँगे तारों के साथ साथ
तनहाइयों की शाम ज़रा आँख तो मिला
हम्म गर वो चाँद जैसे होंगे तो जरूर आएँगे तारों के साथ वर्ना तो ऍसी परियों के साथ अक्सर उनके अमावसी मित्र ही होते हैं जो आशिकों को अपनी शाम, ग़म और तनहाई में बिताने पे मज़बूर कर देते हैं!
साकी मुझे भी चाहिए इक जाम ए आरज़ू
कितने लगेंगे दाम ज़रा आँख तो मिला
उफ्फ ये तो जुलुम है भाई आँखों पर...आँखों से मन की आरज़ू तो पढ़ने की तो बात सुनी थी पर शायर सागर तो आँखों से ही भावनाओं का मोल पूछना चाहते हैं !
है राह ए कहकशाँ में अज़ल से खड़े हुए
सागर तेरे गुलाम ज़रा आँख तो मिला
बताइए सागर साहब ने तो जिंदगी भर की प्रतीक्षा कर ली इस आकाशगंगा को निहारते निहारते और वो हैं कि इतनी गुलामी के बाद भी नैनों का इक़रारनामा नहीं दे रहीं। पुराने ज़माने के लोगों की बात ही अलग थी। ग़ज़ब का धैर्य था लोगों के पास और आज...!
गुलाम अली अपनी गायिकी और बोलों की बदौलता माहौल में रूमानियत तो लाते ही हैं, साथ ही संगीत संयोजन भी मन को आकर्षित करता है। ग़ज़ल, तबले की थाप और बांसुरी की तान के बीच से निकलती हुई निखरती चली जाती है इस तरह कि मन खुद गुनगुनाने को करने लगता है..
14 टिप्पणियाँ:
बहुत भावभीनी प्रस्तुति...आभार
मज़ा आ गया
जाम से अपने रिश्ते की काहे सफाई देते है हजूर.....वैसे एपी नायब मोती चुन के लाये है ...हमारे हॉस्टल में जाम के साथ अक्सर कुछ सरूर आने के बाद गजलो का दौर शुरू होता था ..जगजीत सिंह ,मेहदी हसन ...अक्सर होते थे .गुलाम अली साहब का एक सिर्फ नगमा कभी कभी हमारे यहाँ गुनगुनाया जाता था ."वो था ये दिल ये पागल दिल मेरा ".एक रोज हमारी महफ़िल में इंजीयरिंग कॉलेज के एक साहब बतोर गेस्ट आये जो हमारे दोस्त के दोस्त थे ....जानते है उन्होंने दो नगमे सुनाये ...एक यही जिसका जिक्र आज आपने किया......दूसरा कुछ यूँ था ...पूरा याद नहीं .
बैठकर खुदा के सामने
. पढ़कर नमाज पीता हूँ
कल जो पी थी अजी
ये तो उसका नशा है
तुम्हारी कसम आज पी ही नहीं ....
कुछ तो नशा आपकी बात है
ओर थोडा नशा धीमी बरसात का है
हमें आप यूँ ही शराबी न कहिये
हम पे असर तो मुलाकात का है
हिचकिया आ रही है
ये क्या माजरा है ..तुम्हारी कसम मैंने पी ही नहीं.....ab aap baataye kis ka hai..
वाह अनुराग बड़ी प्यारी ग़ज़ल लग रही है! ये ग़ज़ल मैंने पहले सुनी है या नहीं ये तो याद नहीं आ रहा पर शायद इसे पंकज उधास ने गाया होगा क्योंकि शराब से मुताल्लिक जितनी ग़ज़लें उस ज़माने में मशहूर हुई थीं ज्यादातर उन्होंने ही गाई थीं।
बहुत सुन्दर रचना।
ham to madahosh ho gaye
वाह मजा आ गया ! अनुरागजी की टिपण्णी भी मजेदार रही. उसे हमने गूगल भी किया पर कुछ मिला नहीं.
अभिषेक अनुराग जी ने जिस ग़ज़ल का जिक्र किया है वो पंकज उधास के एलबम Endless Love में है जो गूगत में आसानी से मिल जाएगा। कल सुना भी पर जितनी अच्छी ग़ज़ल है उतना अच्छा गाया नहीं पंकज जी ने !
शुक्रिया मनीष .....कल जब टिपण्णी की थी तो फिर व्यस्त हो गया था ...बाद में मैंने इसे कही सुना था ..किसी ओर की आवाज में .पंकज उदास की नहीं थी ..शायद किसी ओर ने भी गायी है ...आप ढूंढें .मै भी पुराने दोस्तों को खंगालता हूँ
bahut hi baRia hai ghzal bhi blog bhi aur aapka andaz bhi..jo aap ghazal ki vyakhya karte haiN
Zara aankh to mila..uff! Kya lutf aa gaya...!
http://shamasansmaran.blogspot.com
http://aajtakyahantak-thelightbyalonelypath.blogspot.com
http://kavitasbyshama.blogspot.com
http://shama-kahanee.blogspot.com
http://shama-baagwaanee.blogspot.com
आनंद आ गया जी। सुबह से बोर हो रहा था। कहते आज दोस्ती का दिन है। और इधर हम बोर हो रहे है। पर एक दोस्त तो आया जिन्होनें एक इतनी बेहतरीन गजल सुनवाई कि मजा आ गया। वैसे मनीष जी जो लिंक दिया आपने वहाँ से क्या बेझिक गजल डाऊनलोड की जा सकती है।
Wah! bahut khoob lagi ghazal...kis ki likhi hai ye likhi nahi ya mein hee chuk gayee?
Waise bahut dino baad yahan aana hua...accha laga blog ka template
Keep it up
Cheers
Satpal, Shama aur Shushil bhai ghazal pasand karne ka shukriya.
DawnMaqte mein 'Sagar' Naam aaya hai isiliye post mein last sher ke pahle maine Sagar sahab ka jiqr kiya hai.
Kuch sunne ka man ho to aate rahiye. Yahan to jyadatar sangeet ki hi batein hoti rahti hain
एक टिप्पणी भेजें