गुलशन बावरा नहीं रहे..पिछले सप्ताहांत टीवी पर ये ख़बर सुनी तो सत्तर और अस्सी के दशक में उनके रचे वो रसीले-सुरीले गीत एकदम से घूम गए जिन्हें सुनकर हमारी पीढ़ी पली और बड़ी हुई है। आज की ये प्रविष्टि गुलशन मेहता की जिंदगी के सफ़र में झांकने का एक प्रयास है जिनके बावरे मस्तमौला व्यक्तित्व ने अपनी कलम के ज़रिए करोड़ों भारतीयों को उनके गीतों को गुनगुनाने पर मज़बूर कर दिया।
लाहौर से करीब तीस किमी दूर शेखपुरा नामक कस्बे में जन्मे इस बालक ने बचपन में ही विभाजन के दौरान रेलगाड़ी से भारत आते वक्त अपने पिता को तलवार से कटते और माँ को सिर पर गोली लगते देखा था। भाई के साथ भागकर ये जयपुर आ गए जहाँ इनकी बहन ने इनकी परवरिश की। पर गौर करने की बात ये है कि इस भयावह त्रासदी की यंत्रणा को झेलने वाले गुलशन बावरा ने इसे अपनी जिंदगी अपने व्यक्तित्व और अपने लिखे गीतों पर कभी हावी नहीं होने दिया। बाद में भाई को दिल्ली में नौकरी मिलने की वज़ह से वो दिल्ली चले गए। 1955में रेलवे में क्लर्क की नौकरी मिलने पर ये मुंबई चले आए।
लिखने का शौक गुलशन बावरा को बचपन से था। बचपन में माँ के साथ भजन मंडली में शिरकत करते की वज़ह से भजन लिखने से उनके लेखन का सफर शुरु हुआ जो कॉलेज के दिनों में आते आते आशानुरूप रुमानी कविताओं में बदल गया। इसलिए मुंबई में नौकरी करते वक़्त फुर्सत मिलते ही उन्होंने संगीतकार जोड़ी कल्याण जी आनंद जी के दफ़्तर के चक्कर लगाने नहीं छोड़े। गुलशन मेहता को पहली सफलता इसी जोड़ी के संगीत निर्देशन में रवींद्र दावे की फिल्म सट्टा बाजार (1957) में मिली जब उनका लिखा गीत .....
तुम्हें याद होगा कभी हम मिले थे,मोहब्बत की राहों में मिल कर चले थे
भुला दो मोहब्बत में हम तुम मिले थे, सपना ही समझो कि मिल कर चले थे
...(जिसे हेमंत दा और लता जी ने अपना स्वर दिया था) बेहद लोकप्रिय हुआ था।
इस फिल्म के वितरक शांतिभाई पटेल ने जब बीस साल से कम उम्र वाले इस नवोदित गीतकार को भड़कीले रंग के कपड़ों में देखा तो उन्हें विश्वास नहीं हुआ कि ये लड़का ऍसे गंभीर गीत की रचना कर सकता है । तभी से उन्होंने गुलशन मेहता का नामाकरण गुलशन बावरा कर दिया। आगामी कुछ साल गुलशन जी के लिए मशक्कत वाले रहे और इन सालों में वे कई फिल्मों में अभिनय कर अपना गुजारा चलाते रहे। वैसे उनके जिस गीत ने पूरे भारत मे उनके के नाम का सिक्का जमा दिया उसके लिए सारा श्रेय उनकी गुड्स क्लर्क की नौकरी को देना उचित जान पड़ता है। दरअसल रेलवे के मालवाहक विभाग में गुलशन बावरा ने अक्सर पंजाब से आई गेहूँ से लदी बोरियाँ देखा करते थे और वही उनके मन में इन पंक्तियों का संचार कर गई
मेरे देश की धरती,मेरे देश की धरती सोना उगले
उगले हीरे मोती, मेरे देश की धरती..
जब उन्होंने अपने मित्र मनोज कुमार को ये पंक्तियाँ सुनाईं तो उसी समय मनोज ने इसे अपनी फिल्म उपकार के लिए इसे चुन लिया। ये गीत उन्हें १९६७ के सर्वश्रेष्ठ गीत का फिल्मफेयर पुरस्कार दिला गया।
वैसे सही माएने में उपकार के इस गीत ने गुलशन बावरा को भारत की जनता से जोड़ दिया। सत्तर की शुरुआत में सबसे पहले 1974 में फिल्म हाथ की सफाई में लता जी द्वारा गाए उनके गीत तू क्या जाने बेवफा.. और वादा करले साजना... बेहद लोकप्रिय रहे। फिर 1975 में आई फिल्म जंजीर में उनके गीतों दीवाने हैं दीवानों को ना घर चाहिए... और यारी है ईमान मेरा यार मेरी जिंदगी.... ने पूरे देश में धूम मचा दी। इन दोनों ही फिल्मों का संगीत कल्याण जी आनंद जी ने दिया था।
फिर आया गुलशन बावरा और पंचम की गीत संगीतकार जोड़ी का दौर। दरअसल गुलशन बावरा के गीतों से मेरा प्रथम परिचय सत्तर के उत्तरार्ध में हुआ जब गीत संगीत सुनने की रुचि मन में जाग्रत हो चुकी थी। इस दौरान इस जोड़ी की जो भी सफल फिल्में आईं वो सभी मैंने सिनेमा के पर्दे पर देखीं। लाज़िमी है कि इस दौर में उनके लिखे गीत मेरी जुबाँ पर सबसे ज्यादा रहते हैं।
सबसे पहले जिक्र करना चाहूँगा 1975 में आई फिल्म खेल खेल का जिसके तकरीबन सारे गीत मुझे बेहद प्रिय थे। बचपन में जब अंत्याक्षरी खेला करते तो पहली बार किसी का 'ह' आया नहीं कि वो शुरु हो जाता था
हमने तुमको देखा तुमने हमको देखा ऐसे
हम-तुम सनम सातों जनम मिलते रहे हों जैसे
और मामला यहीं खत्म नहीं होता था । मुखड़े के बाद सारे बड़े छोटे बच्चे मिल कर अंतरा जरूर गाते थे
बसते-बसते बस जायेगी इस दिल की बस्ती
तब ही जीवन में आयेगी प्यार भरी मस्ती
बसते-बसते बस जायेगी इस दिल की बस्ती
हाय तब ही जीवन में आयेगी प्यार भरी मस्ती
हमारी दास्ताँ कहेगा ये जहाँ ,हो हमारी दास्ताँ कहेगा ये जहाँ
हमने तुमको देखा तुमने हमको देखा ऐसे ...
और इसी फिल्म का वो गीत उसे कौन भूल सकता है भला
खुल्लम-खुल्ला प्यार करेंगे हम दोनों
इस दुनिया से नहीं डरेंगे हम दोनों
प्यार हम करते हैं चोरी नहीं
मिल गए दिल ज़ोरा-ज़ोरी नहीं
हम वो करेंगे दिल जो करे
हमको ज़माने से क्या
खुल्लम-खुल्ला प्यार ......
तब तक प्यार वार का मतलब भी ठीक पता नहीं होता था। अब इसे गुलशन जी के बावरे शब्दों का कमाल कहें या आशा किशोर की जबरदस्त जुगलबंदी, इस गीत को गाने में इतनी खुशी मिलती थी कि आज भी इसे गुनगुनाते वक़्त ऍसा लगता है कि मैंने अपनी जिंदगी के दस पंद्रह वर्ष घटा लिए हों।
साल बीतते गए गुलशन एक के बाद एक हिट गीत देकर हमें कभी मुस्कुराने,कभी हुल्लड़ मचाने और कभी संज़ीदा होने का मौका देते गए।1978 में आई फिल्म कस्मे वादे का ये गीत हो
आती रहेंगे बहारें जाती रहेंगी बहारें
दिल की नज़र से दुनिया को देखो ,दुनिया सदा ही हसीं है
या 1979 में आई फिल्म झूठा कहीं का ये गीत
जीवन के हर मोड़ पर,मिल जाएँगे हमसफ़र
जो दूर तक साथ दे,ढूँढे उसी को नज़र
या फिर में सत्ते पर सत्ता (1982) का शीर्षक गीत
दुक्की पे दुक्की हो ,या सत्ते पे सत्ता
गौर से देखा जाए ,तो बस है पत्ते पे पत्ता,कोई फरक नहीं अलबत्ता..
ये सारे गीत हमने उस ज़माने में बेहिसाब गुनगुनाए। अस्सी के दशक में भी सनम तेरी कसम
कितने भी तू कर ले सितम,हँस हँस के सहेंगे हम
ये प्यार ना होगा कम, सनम तेरी कसम
जवानी
तू रुठा तो मैं रो दूँगी, आ जा मेरी बाहों में आ ...
और अगर तुम ना होते के लिए उनके लिखे गीत बेहद चर्चित हुए । इस फिल्म के शीर्षक गीत के अंतरे को देखिए
हमें और जीने की चाहत ना होती अगर तुम ना होते
हमें जो तुम्हारा सहारा ना मिलता,भँवर में ही रहते किनारा ना मिलता
किनारे पे भी तो लहर आ डुबोती, अगर तुम ना होते...
गुलशन बावरा की खासियत थी कि वो अपने गीतों में बिना ज्यादा लच्छेदार काव्यात्मक भाषा का प्रयोग किए हुए अपनी बातों को श्रोताओं तक सहजता से पहुँचाना जानते थे। वो कहा करते थे कि गीत व्याकरण की अशु्द्धियों और वैचारिक गड़बड़ियों से परे होने चाहिए। एक साक्षात्कार में उन्होंने आवारा फिल्म में शैलेंद्र के लिखे लोकप्रिय गीत के बारे में कहा था कि
आवारा हूँ आवारा हूँ या गर्दिश में हूँ आसमान का तारा हूँ की जगह आवारा हूँ आवारा हूँ मैं गर्दिश में भी आसमान का तारा हूँ लिखना ज्यादा बेहतर होता क्यूँकि गर्दिश शब्द जीवन में आए संघर्ष या उथलपुथल का प्रतीक है और इस अवस्था को तारों से जोड़ना प्राकृतिक सत्य के विपरीत है। सिर्फ गीत के मीटर को दुरुस्त रखने के लिए प्राकृतिक और सांसारिक तथ्यों से छेड़ छाड़ नहीं करनी चाहिए।
अपने चालीस साल के लंबे संगीत के सफ़र में गुलशन बावरा ने मात्र 250 गीत लिखे जिसमें 150 पंचम और करीब 70 कल्याण जी आनंद जी द्वारा संगीत निर्देशित फिल्मों के लिए लिखे गए। गुलशन जी का कहना था कि
जिंदगी में ज्यादा काम करने या काम पाने के लिए जद्दोज़हद करने की उनकी प्रवृति नहीं रही। इसका एक कारण है कि मेरी कोई संतान नहीं है। मैं तब एक फिल्म के लिए ९०००० रुपये पारिश्रमिक लेता था जब मुंबई में एक घर की कीमत ६५००० रुपये हुआ करती थी। ना मैंने अपने पारिश्रमिक से कभी समझौता किया, ना अपने काम की गुणवत्ता से...
आज जबकि गुलशन बावरा हमारे बीच नहीं है मुझे खेल खेल में लिखा ये गीत बारहा याद आ रहा है जिसेमें उन्होंने लिखा था
सपना मेरा टूट गया
अरे वो ना रहा कुछ ना रहा
रोती हुईं यादें मिलीं
बस और मुझे कुछ ना मिला
ये गीत मुझे आशा जी और पंचम का गाया सबसे बेहतरीन युगल गीत लगता है। इस गीत के साथ ही छोड़ रहा हूँ आपको गुलशन बावरा जी की इन यादों को आत्मसात करने के लिए.... ।
वैसे उनसे जुड़ी कुछ यादें अगर आपके पास हैं तो जरूर बाँटें ...
17 टिप्पणियाँ:
बहुत कुछ जाना सुना रहता है..मगर गालिब का अंदाजे बयां कुछ और...
और आपको पढ़कर, सुनकर बस ये ही निकलता है हर बार दिल से..
बहुत बधाई एवं शुभकामनाऐं.
manish ji,
aap ka blog dekh kar mohalla live par likhi abraham hindiwala ki baat sahi lagi.galat tasveer chhp rahi hai.bhai yah tasveer anand bakhshi ki hai.kahin se khoj kar gulshan bawra ki lagayen.
mohalla live ki post yahan padhen...
http://mohallalive.com/2009/08/08/anand-bakshi-replace-the-image-of-gulshan-bawra-in-toi/
अजय भाई इस ओर ध्यान दिलाने का शुक्रिया ! तसवीर बदल दी है।
उपकार से वे अमर हो गये है ......
बहुत खूब मनीष भाई..गुलशन बावरा जी के गीतों को याद करने के लिए...सच है सीधी साधी भाषा में जो उन्होंने गीत रचे वो जनता जनार्दन की जुबान पर झट से चढ़ गए...अच्चे और सच्चे गीतकार की येही विशेषता होती है....उन्हें और उनके गीतों को भूलना असंभव है...
नीरज
मनीष गुलशन बावरा से कई बार की मुलाक़ात रही । उनकी किस्सागोई और सादगी के बारे में क्या कहूं । कमाल की बात है कि देश के शीर्षस्थ अखबार ने उनके निधन की ख़बर को आनंद बख्शी की तस्वीर के साथ छापा । दरअसल इंटरनेट पर शायद कई जगह ऐसी गड़बड़ी है जिससे ये ग़लती बार बार हो रही है ।
दैनिक भास्कर के मेरे कॉलम में गुलशन बावरा पर केंद्रित अंक में कुछ महीनों पहले ऐसा ही हुआ था । अफ़सोसनाक है ये बात । ख़ासतौर पर तब जब कोई भी देशभक्तिपूर्ण आयोजन उनके 'मेरे देश की धरती' के बिना पूरा नहीं होता । इस गाने का सारा क्रेडिट मनोज कुमार और महेंद्र कपूर ले गए । गुलशन बावरा और कल्याण जी आनंद जी को तो इस गाने से जोड़कर भी नहीं देखा जाता ।
गुलशन बावरा और आर डी की जोड़ी तो वाक़ई कमाल है । हर युवा पीढ़ी की पसंद । कई एफ एम चैनलों की दुकान ही इन गानों से चल रही है । इसके अलावा मैं कुछ ऐसे गानों का जिक्र करना चाहता हूं जो उनके शुरूआती गाने भले हैं पर यक़ीन करना मुश्किल होता है कि ये उनके गाने हैं, इनमें से कुछ आपने सुने होंगे । जैसे उनका पहला गाना---
मैं क्या जानूं क्यों लागे ये सावन मतवाला रे /चंद्रसेना/ लता / कल्याण जी ।
मिलके भी हम मिल ना सके / सुनहरी नागिन / तलत लता
ये मौसम रंगीन समां/मॉडर्न गर्ल / मुकेश सुमन / रवि
बीते हुए दिन कुछ ऐसे हैं / फर्स्ट लव/ सुमन / दत्ताराम
ये सारे गाने आसानी से उपलब्ध हैं और सबने सुने होंगे
बहुत सारी जानकारियाँ होती हैं आपकी पोस्ट में। अब ये बात कि गुलशन जी ने अपने पिता का सिर तलवार से कटते और माँ को सिर पर गोली खाते देखा था...! कितना त्रासद है..!
और बावजूद इसके बावरा बना रहना....! हिम्मत का काम है ये तो..! जितने भी गीत आपने उल्लिखित किये उनकी रचनात्मक क्षमता की विविधता का उदाहरण दे रहे हैं।
इन सारी जानकारियों का शुक्रिया....!
गुलशन बावरा जी के बारे में इनता तफ्शील से लिखने के लिए आप बधाई के पात्र है .
गुलशन बावरा जी मेरे भी पसंदीदा गीतकार में से एक थे ..जी हां उन्होंने जो गीत भी लिखे ..आम लोगो को आसानी से समझ में आ जाते थे ..और शायद यही वजह है की उन्होंने जो भी गीत लिखे वे हिट है .
एक महान गीतकार को समर्पित इस पोस्ट को लिखने के लिए आप को ढेर साडी शुभकामना .
ब्लॉग पर ज्यादातर पोस्ट बकवास होते है ..लेकिन इस भीड़ में अच्छा पोस्ट देख कर दिल को सुकून मिला की आज भी ऐसे सोच के लिखने वाले लोग है .
लतिकेश
मुंबई
युनुस जी और केसरवानी जी को ही अखवार में पढता रहता हूँ आपका आर्टिकल भी काफी अच्छा रहा बहुत खोज और प्रयास है आपका
गुलशन बावरा जी के बारे में युनुस जी ने बहुत सही बात कही की उनके बारे में लोग कम ही जानते हैं जबकि मनोज कुमार, महेंद्र कपूर सारे गाने का क्रेडिट ले गये।
गुलशन जी ने इतने सुंदर सुंदर गीत रचे थे ये अब जाकर पता चल रहा है।
गुलशन बावरा जी के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए धन्यवाद वर्षों से सुनते आ रहे .बहुत सारे लोकप्रिय गीत बावरा जी ने रचे थे, यह आपके इस लेख से ही ज्ञात हुआ.
गुलशन बावरा जी के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए धन्यवाद वर्षों से सुनते आ रहे .बहुत सारे लोकप्रिय गीत बावरा जी ने रचे थे, यह आपके इस लेख से ही ज्ञात हुआ.
इस आलेख में उल्लिखित गीतों को छोड़ बाकि सबकुछ मेरे लिए नया था...इसलिए आपको अतिरिक्त धन्यवाद देना चाहती हूँ....
बहुत ही रोचक और सुन्दर ढंग से आपने यह आलेख प्रस्तुत किया है...इसके लिए आपका बहुत बहुत आभार...
"मेरे देश की धरती" के रचनाकार के बारे में अच्छा लगा जानकर। और शैलेन्द्र जी के गीत पर गुलशन जी का कमेण्ट प्रभावित करता है। कुल मिलाकर सार्थक पोस्ट है। बधाई।
आज़ादी की 62वीं सालगिरह की हार्दिक शुभकामनाएं। इस सुअवसर पर मेरे ब्लोग की प्रथम वर्षगांठ है। आप लोगों के प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष मिले सहयोग एवं प्रोत्साहन के लिए मैं आपकी आभारी हूं। प्रथम वर्षगांठ पर मेरे ब्लोग पर पधार मुझे कृतार्थ करें। शुभ कामनाओं के साथ-
रचना गौड़ ‘भारती’
बहुत खूब।😍😍😍एसे ही जानकारी मिलती रहे।आभार व्यक्त करती हूँ।
Bhavna Bhandari was in pharmacy. Any idea abhi woh kahan hai? vishal67@gmail.com
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