पूरे कार्यक्रम में एक और बात कमाल की थी वो थी गायकों को जबरदस्त सपोर्ट देता हुआ मनभावन आरकेस्ट्रा। वैसे भी जी टीवी के संगीत कार्यक्रमों में कई सालों से मँजे हुए साज़कारों को बजाते देखता रहा हूँ और पंचम की धुनों में तो इनकी विशेष भूमिका हमेशा ही रहा करती थी। पंचम के संगीतबद्ध गीतों का पार्श्व संगीत उनकी अनूठी शैली की गवाही देता है। दरअसल तरह तरह की आवाज़ों को पारंपरिक और गैर पारंपरिक वाद्य यंत्रो से निकालने में राहुल देव बर्मन का कोई सानी नहीं था।
तो लौटें अपने इस सुरीले बालक की ओर। हेमंत की दमदार प्रस्तुति यादगार तब बन गई जब उसने गीत के बाद आशा जी को बुल्लेशाह के लिखे सूफ़ियत में रँगे पंजाबी लोकगीत का वो टुकड़ा सुनाया।
चरखा दे मिट्टा दियाँ दूरियाँ...........
हो..मैं कटि जावाँ तेरी होर पिया दूरियाँ
गद सखरी रा गद सखरी रा ...
गद.. सख...रीरा..
गद सखरी रा वरण दिए कुड़िए...........
मैं पैया और सिपहयिए
सच मानिए हेमंत ने उन चंद पंक्तियों में ली गई हरक़तों ने ऐसा समा बाँधा कि हजारों दर्शकों के साथ-साथ आशा जी की भी आँखें गीली हो गईं और वे कह उठीं
हेमंत अगर सबसे बड़ी कला कोई मानी जाती है तो वो कला है संगीत कला। संगीत कला भगवान के नज़दीक होती है। और तुम्हारा जो गाना है वो भगवान के बहुत नज़दीक है।
नौ साल की आयु से अपने पिता और गुरु हुकुमचंद बृजवासी से संगीत सीखना शुरु करने वाले हेमंत को शास्त्रीय और सूफ़ीयाना नग्मे गाने में महारत हासिल है। मात्र दो साल संगीत की शिक्षा लेने के बाद ये बालक गीतों में अपनी और से जोड़ी हुई विविधताओं का इस तरह समावेश करता है मानों गीत से खेल रहा है। हेमंत की आवाज़ और उच्चारण एक शीशे की तरह साफ और स्पष्ट है पर उसके साथ दिक्कत यही है कि वो अपनी शैली के गीतों से अलग तरीके के गीतों में वो कमाल नहीं दिखला पाता। पर शायद आज के युग में इसकी जरूरत भी नहीं है। हर गाने के पहले अपनी जिह्वा को बाँके बिहारी लाल की जयकार से पवित्र कराने वाला ये बालक नुसरत और आशा जी को अपना आदर्श मानता है। गीत संगीत के आलावा क्रिकेट भी खेलता है और मौका मिले तो शाहरुख और करीना की फिल्में देखना भी पसंद करता है।
तो अगर आपने उस दिन इस प्रसारण का आनंद नहीं लिया तो अब ले लीजिए..
वैसे इस सूफ़ी लोकगीत को पूरा सुनने की इच्छा आप के मन में भी हो रही होगी। दरअसल इस लोकगीत को सबसे पहले लोकप्रिय बनाया था सूफ़ी के बादशाह नुसरत फतेह अली खाँ साहब ने और फिर इस गीत को नई बुलंदियों पर ले गए थे जालंधर के पंजाबी पुत्तर सलीम शाहजादा। बादशाह और शहज़ादे द्वारा इस लोकगीत की प्रस्तुति को आप तक पहुँचाने की शीघ्र ही कोशिश करूँगा।
10 टिप्पणियाँ:
बहुत ही सुंदर,
धन्यवाद
वाह वाह वाह !! सचमुच अद्भुत ...........
मैं तो सुन ही न पायी थी...सुनवाकर बड़ा उपकार किया आपने....
बालक के लिए मन से स्वतः ही दुआएं निकल रही है....
एकदम रोंगटे खड़े हो गए....क्या कहूँ...वाह !!
गीत तो बढिया है, मगर आपने यहां सुनवा दिया बालक क आवाज़ में तो बस मज़ा आ गया.
वाकई में बडी ही सुरीली प्रस्तुति है, इसके बावजूद कि इस गाने में बेसुरा होनें की कई जगह थी.खासकर स्थाई पर लौटते हुए .
बधाई ,
मनीष जी कोटिश धन्यवाद इस प्रस्तुति को पुनः सुनवाने दिखाने के लिए...आनंद आ गया...
नीरज
bahut hi badhiya.........
navratri ki shubhkaamnaayen.......
जहाँ से ये पोस्ट पढ़ी थी वहां विडियो चल नहीं पाया था. आज देखा तो... गाना तो गया ही बच्चे ने. लेकिन उसके बाद सेंटी देख मैं भी सेंटी हो गया. खास कर उसके पिता को.
किताब पढने के साथ-साथ टीवी देखने की भी जरुरत नहीं है अब तो. बस आपके ब्लॉग पर नियमित आना है !
ese bachchon ka youn hi hoslaa badhaate rahen.
hemant ko sunaa hai maine bahut hi surila hai bahut mehnati bhi hai sangeet ke prati... bahut bhut badhaayee aur duaayen is baalak ke liye..
arsh
यह एपिसोड मैने भी देखा था और मुझे भी इस बालक मे कुछ बात नज़र आई थी
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