रविवार, अक्टूबर 11, 2009

वो इश्क़ जो हमसे रूठ गया...अथर नफ़ीस के शब्द, फरीदा खानम की आवाज़ और उस्ताद नफ़ीस खान का सितार वादन !

पिछली पोस्ट में हम बात कर रहे थे शिक़वे और शिकायतों की जो रिश्तों की चमक बनाए रहते हैं। पर यही शिकायतें इस हद तक बढ़ जाएँ कि मामला प्रेम से विरह का रूप ले ले, तब कितने कठिन दौर से गुजरता है ये तनहा दिल! सच पूछिए तो जिंदगी बदमज़ा हो जाती है। कोई हँसी ठिठोली हमें बर्दाश्त नहीं होती। हम दूसरों से तो दूर भागते ही हैं अपनी यादों से भी पीछा छुड़ाने की कोशिश में लगे रहते हैं। पर कमबख़्त यादें नहीं जातीं। वो रहती हैं हमारे आस पास.... हमारे एकाकीपन के अहसास को और पुख्ता करने के लिए।

पाकिस्तानी शायर अथर नफ़ीस की मशहूर ग़ज़ल वो इश्क़ जो हमसे रूठ गया, अब उसका हाल बताएँ क्या, में कुछ ऍसी ही भावनाओं की झलक मिलती है। अथर साहब ने शायद ज्यादा लिखा नहीं। उनकी निजी जिंदगी के बारे में तो पता नहीं पर अपनी डॉयरी में उनके लिखे कुछ अशआर हमेशा से दिल को छूते रहे हैं। मसलन ये शेर मुलाहज़ा फ़रमाइए
जल गया सारा बदन इन मौसमों की आग में
एक मौसम रूह का है जिसमें अब जिंदा हूँ मैं

या फिर इसे ही देखिए
मेरे होठों का तबस्सुम दे गया धोखा तुझे
तूने मुझको बाग जाना देख ले सेहरा हूँ मैं

और उनकी लिखी ये पंक्तियाँ भी मुझे पसंद हैं
टूट जाते हैं कभी मेरे किनारे मुझ में
डूब जाता है कभी मुझ में समंदर मेरा

तो आइए लौटते हैं अथर साहब की ग़ज़ल पर..

वो इश्क़ जो हमसे रूठ गया, अब उसका हाल बताएँ क्या,
कोई मेहर नहीं, कोई क़हर नहीं, फिर सच्चा शेर सुनाएँ क्या
क़हर - विपत्ति

जो मेरी प्रेरणा, मेरी भावनाओं की स्रोत थी जब वो ही मुझसे रूठ कर चली गई फिर उसके बारे में बातें करने से क्या फ़ायदा। उसके जाने से ज्यादा बड़ी आफ़त कौन सी आ गई जो इस बुझे दिल में सच्चे अशआरों की रवानी भर दे! मुझे अपने वियोग के साथ कुछ पल तो एकांत में जीने दीजिए। एक बार जिस ग़म को पी लिया उसे सब के सामने दोहरा कर बेमतलब तूल देना मेरे दिल को गवारा नहीं है।

एक हिज़्र जो हमको लाहक़ है, ता-देर उसे दुहराएँ क्या,
वो जहर जो दिल में उतार लिया, फिर उसके नाज़ उठाएँ क्या
हिज्र -वियोग, लाहक़- मिला हुआ, नाज़ - नखरे

एक आग ग़म-ए-तन्हाई की, जो सारे बदन में फैल गई,
जब जिस्म हीं सारा जलता हो, फिर दामने-दिल को बचाएँ क्या

आप कहते हैं सँभालो अपने दिल को? सवाल तो ये है कि किस किस को सँभाले ? अब तो इस जिस्म का कोई भी हिस्सा उसकी तड़प से अछूता नहीं रह गया है। ठीक है दोस्त कि हमने भी जिंदगी में चंद हसीन ख़्वाब देखे हैं..इस महफिल में कुछ ग़ज़लें गाई हैं पर वो तब की बात थी। आज इस उदासी, इस तन्हाई के आलम में मुझसे कुछ सुनने की उम्मीद आप कैसे रख सकते हैं। इस व्यथित हृदय में तो अब सपनों के लिए भी कोई जगह नहीं बची।

हम नग़्मासरा कुछ गज़लों कें, हम सूरतगर कुछ ख्वाबों के,
बेजज़्बा-ए-शौक सुनाएँ क्या, कोई ख़्वाब न हों तो बताएँ क्या
नग़्मासरा - गायक

इस ग़ज़ल को इतनी मक़बूलियत दिलाने में जितना अथर नफ़ीस का हाथ है उतना ही श्रेय पाकिस्तान की मशहूर ग़ज़ल गायिका फरीदा खानम को भी मिलना चाहिए। फरीदा जी की गायिकी से तो आप सब वाकिफ़ ही हैं। फ़रीदा जी की आवाज, का लुत्फ उठाइए और फिर...




और फिर होठों पर वही ग़ज़ल गुनगुनाइए सितार पर इसकी धुन के साथ जिसे बजाया है उस्ताद नफ़ीस अहमद खाँ ने। नफ़ीस प्रसिद्ध सितार वादक उस्ताद फतेह अली खाँ के सुपुत्र हैं। हो गया ना मज़ा दोगुना...


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13 टिप्पणियाँ:

विनोद कुमार पांडेय on अक्टूबर 11, 2009 ने कहा…

ग़ज़ल तो बहुत ही अच्छी लगी...सुंदर प्रस्तुति

Udan Tashtari on अक्टूबर 11, 2009 ने कहा…

वाह!! क्या जबरदस्त ताना बाना बुना है और क्या उम्दा कलेक्शन लाये हैं. आनन्द आ गया.बहुत आभार.

Kulwant Happy on अक्टूबर 11, 2009 ने कहा…

शेयरों की तरह आपकी पोस्ट भी जानदार है,

राज भाटिय़ा on अक्टूबर 11, 2009 ने कहा…

बहुत सुंदर जी, बहुत अच्छी तरह से सजाया है आप ने इस लेख को इन सितारो से.
धन्यवाद

कंचन सिंह चौहान on अक्टूबर 11, 2009 ने कहा…

आहहा ....
सुन कर ये गज़ल क्या हाल हुआ अब उसका हाल बतायें क्या
बस सुनते हैं, फिर सुनते हैं, सुनने का मज़ा जतलायें क्या.....!


खूब...

Arvind Mishra on अक्टूबर 11, 2009 ने कहा…

दिल में गहरी उतरती गजल

Priyank Jain on अक्टूबर 11, 2009 ने कहा…

galat mat samajhiyega par aapki ye virah prerit post mujhe maza na de payi,ab kya kar sakta hoon meri umr hi kuch aisi hai(abhi tak koi mila nahi aur apne chosne ki baat kar di)
khair ye to ek mazaak ki baat hui,waaqi bahut gahrayi thi aur premi se judai thi
"mohabbat ka maza to doobne ki kashmkash me hai,ho gar mallom gahrai to dariyaa par kya karna"
kai tarane hain afsane hain aur lambe-lambe comments hain ishq cheez hi aisi hai kya kiya ja sakta hai.........,apko bahut-bahut dhanyawaad

Manish Kumar on अक्टूबर 11, 2009 ने कहा…

PriyankEngg. college ke char salon mein agar khud pe na bhi beete to doosron pe beette jaroor dekh paoge :) Apni college life mein to maine aise kayi ghamzada charitron ko dekha hai aisi haalat mein.

Priyank Jain on अक्टूबर 11, 2009 ने कहा…

waise mere comment me koi adhaar nahi hai bas aapka pratyotar janna chahta tha

शरद कोकास on अक्टूबर 14, 2009 ने कहा…

रबर इतनी न खींची जाये कि टूट जाये

Sonal Singh on दिसंबर 22, 2014 ने कहा…

आपके पोस्ट्स पढ़कर सोच में पड़ जाती हूँ...एक दोस्ती कितना कुछ भेंट कर जाती है हमें. जैसे कि ये नज़्म. शुक्रिया आपका करूँ या तकदीर का, आप ही बता दीजिये.

Manish Kumar on दिसंबर 22, 2014 ने कहा…

Sonal जब व्यक्ति कुछ लिखता है और उसे ये लगे कि सामनेवाला उस भावना को सहज ही आत्मसात कर लेगा तो मन में बाँटने की खुशी दोहरी हो जाती है।

आजकल इस ग़ज़ल से ज्यादा इसकी धुन सुना करता हूँ..शब्द तो अपने आप होठों पर आ जाते हैं।

Unknown on मार्च 10, 2015 ने कहा…

बेहतरी प्रस्तुति ,..

 

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