दीपावली एक ऐसा त्योहार है जिसकी गहमागहमी में ब्लॉग की ओर भी रुख करने को जी नहीं चाहता। साल के इन दिनों में पुरानी स्मृतियों से गुजरना अच्छा लगता है। आप कहेंगे दीपावली से पुरानी स्मृतियों का क्या लेना देना? दरअसल जब भी घर की साफ सफाई में अपने आप को लगाता हूँ, कुछ पुराने ख़तों, तसवीरों,काग़ज़ातों और उनसे जुड़ी यादों से अपने आप को घिरा पाता हूँ। दीप से लेकर पटाखे जलाने तक में अपने बच्चे के साथ खुद भी बच्चा बनने की ख़्वाहिश रहती है मेरी। फिर भला एक बार नेट से दूर जाने पर ब्लॉग की बात भी क्यूँ याद आए?
पर अब तो दीपावली भी खत्म हो गई है। और शुक्र की बात है कि इस बार की दीपावली बिना किसी मानव निर्मित हादसे के बिना ही गुजर गई। पर मन अभी भी अनमना सा है। क्यूँ है ये अनमनापन पता नहीं। शायद छुट्टियों से लौट कर फिर दैनिक दिनचर्या से बँधने की खीज़ है या मन में अटका कोई बिना बात का फ़ितूर। दीपावली के पहले फ़ैज़ के एक क़लाम को ढूँढ कर रखा था तबियत से सुनने के लिए और आज वही कर भी रहा हूँ ...
और जब फैज़ की ग़ज़ल के कुछ अशआरों को रूना लैला की खनकती आवाज़ का सहारा हो तो ग़जल की तासीर ही कुछ और हो जाती है
आए कुछ अब्र1 कुछ शराब आए
उसके बाद आए जो अज़ाब2 आए
1-बादल, 2-मुसीबत
बाम-ए-मीना3 से महताब4 उतरे
दस्त-ए-साकी5 में आफ़ताब6 आए
3 - स्वर्ग की छत, 4- चाँदनी, 5 - साकी के हाथों में, 6 - सूर्य किरणें
हर रग-ए-ख़ूँ में फिर चरागाँ हो
सामने फिर वो बेनक़ाब आए
कर रहा था ग़म-ए-ज़हाँ का हिसाब
आज तुम याद बेहिसाब आए
ना गई तेरे ग़म की सरदारी7
दिल में यूं रोज इनकिलाब आए
7 - तांडव, आतंक
इस तरह अपनी खामोशी गूँजी
गोया हर सिमत8 से जवाब आए
8 - तरफ़
‘फ़ैज़’ थी राह सर-बसर मंज़िल
हम जहाँ पहुँचे क़ामयाब आए
ऐसी आवाज़..ऍसी कम्पोजीशन को सुने अब अर्सा बीत गया। वैसे पिछले महिने रूना जी म्यूजिक टुडे के विभिन्न अवसरों में गाए जाने वाले पंजाबी गीतों के इस एलबम के लिए दस साल बाद भारत की यात्रा पर आईं थीं। रूना जी ने उस दौरान दिए गए एक साक्षात्कार में बताया
मैंने जब गाना शुरु किया तो मैं बारह साल की भी नहीं थी। उस ज़माने की फिल्में परिवारोन्मुख सामाजिक परिवेश से जुड़ी होती थीं। ऍसा नहीं कि आज की फिल्में ऍसी नहीं हैं पर आजकल ध्यान स्टंट और सुंदर स्थलों पर की जाने वाली शूटिंग पर कहीं ज़्यादा है। उस ज़माने की बात करूँ तो संगीत बेहद अहम हिस्सा हुआ करता था फिल्मों का। उस वक़्त लोग संगीत सुनने के लिए फिल्म देखते थे। संगीत रिकार्डिंग एक सामाजिक उत्सव लगता था जहाँ सब अपने किरदारों को बिना थोड़ी सी गलती के निभाना अपना कर्तव्य समझते थे। आज तो स्टूडिओ में आए पूछा गाना क्या है, अलग अलग पंक्तियाँ या कभी कभी तो शब्द गा दिए और हो गया जी गीत तैयार। ये बेहद आसान है पर मुझे लगता है कि ऍसा करते वक़्त उन भावनाओं को खो देते हैं जो पूरे गीत को एक साथ गाने में आती हैं।
बिल्कुल वाज़िब फर्माया रूना लैला जी ने ! वैसे मुझे तो लगता है कि आज भी लोग अच्छे संगीत की वज़ह से सिनेमा देखने जाना चाहते हैं। पर वैसा संगीत देने के लिए जिस मेहनत की जरूरत है उस मापदंड को साल में चार पाँच फिल्में ही पूरी तरह पैदा कर पाती हैं। अगर हमारे रूना लैला जैसे शैदाइयों की खुशकिस्मती रही तो हिंदी फिल्म जगत में भी रूना की आवाज़ को सुनने का मौका एक बार फिर मिल पाएगा।
17 टिप्पणियाँ:
आपके ब्लॉग पर कभी टाइम पास पोस्ट नहीं मिलती. हर पोस्ट में आपकी मेहनत दिखाती है. और इसीलिए मैं कभी कोई पोस्ट मिस नहीं करता :) ऐसे ही मोती चुन कर लाते रहिये.
एक ही लफ्ज़ बेहतरीन पोस्ट है यह
बहुत सुंदर लिखा आप ने, बेहतरीन ....
धन्यवाद
कर रहा था ग़म-ए-ज़हाँ का हिसाब
आज तुम याद बेहिसाब आए
kya kah dia hai!
Sublime !
manishji sabse pahle diwali ki shubhkaamnaye swekar kijiye. aapne aaj ''runa lailaji ''ki yaad taza kar di, bahut barson pahle durdarshan par unka geet ''mera babu chel-chabila, me toh nachugi ''sunkar hum jhum-jhum jaya karte the, uske baad samya ki gart me ye gaayika pata nahi kaha kho si gai, aaj unhe sunkar barbus hi man bhig utha. aapko bahut -bahut dhanyawad
कठिन शब्दों के अर्थ ने पूरा समझने में मदद की ।
बेहद खूबसूरत प्रविष्टि । आभार ।
कुछ पुराने खतों , तस्वीरों , कागजातों ने कई खूबसूरत पलों से रूबरू करवाया ......तस्वीर बहुत ही प्यारी .....फैज की कलाम लाजवाब लगा ......शुक्रिया....!!
Shubhkaamnaon ke liye shukriya Manisha ji ! Runa ji ek bar phir se Bollywood ke music directors ke sath kaam karne ki ikshuk hain aur is babat unki baat bhi chal rahi hai. Waise unhin dinon Gharonda film ka gana Mujhe ho na ho ..bhi unki aawaaz mein behad famous hua tha. Aur damadam mast qalandar to unka evergreen hit hai hee.
वाह!! क्या चीज सुनवाई है..बहुत आभार.
पढने और सुनने दोनों में आनंद आ गया जी। बहुत खूब।
आह, मनीष जी। क्या कहूँ...फ़ैज साब की इस ग़ज़ल को एक बचपन से मेहदी साब की आवाज में सुनता आया हूँ, गुनता आया हूँ। आज पहली बार रूना जी की कशिश भरी आवाज में सुनना...आह!
एक अर्ज कर सकूँ यदि कि जो आप भेज सकें इसका mp3 मेरे मेल में...
manish ji aapka varnan adbhut hai...!
आज तुम याद बेहिसाब आये..इस का तो एक एक शेर भीतर तक है ,,
hi, mein abhi shayad aaj hi pehli baar ye phad pai aur sun pai hoon par kush kismat hoon ki aaj yaha tak pahuch pai ye baat ko kehne ka dhang aur bhooli hui yadon ko dhoondne ka tarika kai apne jaisa laga bahut shukriya jo ye ghazal aapne sunai likhne wale ne kya likh diya aue gaane wale ne baaki ke sare aahasas usme jod diye jhukh kar salam hai faiz ji ko aur runa ji ko
Ghazal pasand karne ke liye aap Sabka Shukriya.
Shangrila Achchha laga jaankar ki beete huye dinon ki batein aap bhi isi terah sanjoti hain. Ek Shaam Mere Naam par aapka swagat hai. Asha hai aage bhi aap apne views deti rahengi.
Ghazal pasand karne ke liye aap Sabka Shukriya.
Shangrila Achchha laga jaankar ki beete huye dinon ki batein aap bhi isi terah sanjoti hain. Ek Shaam Mere Naam par aapka swagat hai. Asha hai aage bhi aap apne views deti rahengi.
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