वीर रस की कविताएँ तो बचपन से ही पढ़ते सुनते आए हैं। दिनकर व सुभद्रा कुमारी चौहान जैसे कवि कवयित्रियों की रचनाएँ छुटपन से ही हमारी शिराओं में रक़्त प्रवाह को तेज कर देती थीं।
पर ये बताइए कि कितनी ग़ज़लों को पढ़ने के बाद भी वैसे ही अहसासात से आप रूबरू हुए हैं। निश्चय ही अपेक्षाकृत ये संख्या कम रही होगी। ग़ज़लें अपने स्वाभाव से ही कोमल भावनाओं को समाहित करती चलती हैं पर जैसा हम सभी जानते हैं कि कई ग़ज़लकारों ने बदलते वक़्त और माहौल के साथ इनमें अलग अलग रंग भरने की कोशिश की है। फ़ैज की कई नज़्में इसी श्रेणी की रही हैं पर जब ग़ज़लों के बारे में सोचता हूँ तो मेरे ज़हन में दुष्यन्त कुमार जी की कई ग़ज़लें एक साथ उभर कर सामने आती हैं।
भारत में हिंदी ग़ज़लों के जनक कहे जाने वाले दुष्यन्त कुमार की ऍसी ही एक ग़ज़ल आपके सामने पेश कर रहा हूँ। ये ग़ज़ल हमें उत्प्रेरित करती है इस बात के लिए कि किसी भी कार्य को पूरा करने के लिए, दूसरों की तरफ़ आशा भरी नज़रों से देखने के बजाए ख़ुद कुछ करने की ललक होनी चाहिए। दुष्यन्त जी ने इस ग़ज़ल के हर शेर में विभिन्न रूपकों की मदद से इस बात को पुरज़ोर ढंग से रखा है।
दुष्यन्त जी को कभी सुनने का अवसर नहीं मिला इस बात का मुझे हमेशा अफ़सोस रहा है। इस महान शायर की लिखी ये प्रेरणादायक पंक्तियाँ मेरे दिल पर क्या असर डालती हैं इसे व्यक्त करने का सबसे अच्छा ज़रिया यही है कि इसे मैं पढ़कर आप तक पहुँचाऊँ। तो ये रहा मेरा प्रयास..
आज सड़कों पर लिखे हैं सैंकड़ों नारे न देख
घर अँधेरा देख तू, आकाश के तारे न देख।
एक दरिया है यहाँ पर दूर तक फैला हुआ
आज अपने बाजुओं को देख पतवारें न देख।
अब यक़ीनन ठोस है धरती हक़ीक़त की तरह
यह हक़ीक़त देख, लेकिन ख़ौफ़ के मारे न देख।
वे सहारे भी नहीं अब, जंग लड़नी है तुझे
कट चुके जो हाथ, उन हाथों में तलवारें न देख।
दिल को बहला ले, इजाज़त है, मगर इतना न उड़
रोज़ सपने देख, लेकिन इस क़दर प्यारे न देख।
ये धुँधलका है नज़र का, तू महज़ मायूस है
रोग़नों को देख, दीवारों में दीवारें न देख।
राख, कितनी राख है, चारों तरफ़ बिखरी हुई
राख में चिंगारियाँ ही देख, अँगारे न देख।
आशा है इसे सुनने के बाद ऍसी ही कुछ भावनाओं का संचार आपके दिल में भी हुआ होगा..
पर ये बताइए कि कितनी ग़ज़लों को पढ़ने के बाद भी वैसे ही अहसासात से आप रूबरू हुए हैं। निश्चय ही अपेक्षाकृत ये संख्या कम रही होगी। ग़ज़लें अपने स्वाभाव से ही कोमल भावनाओं को समाहित करती चलती हैं पर जैसा हम सभी जानते हैं कि कई ग़ज़लकारों ने बदलते वक़्त और माहौल के साथ इनमें अलग अलग रंग भरने की कोशिश की है। फ़ैज की कई नज़्में इसी श्रेणी की रही हैं पर जब ग़ज़लों के बारे में सोचता हूँ तो मेरे ज़हन में दुष्यन्त कुमार जी की कई ग़ज़लें एक साथ उभर कर सामने आती हैं।
भारत में हिंदी ग़ज़लों के जनक कहे जाने वाले दुष्यन्त कुमार की ऍसी ही एक ग़ज़ल आपके सामने पेश कर रहा हूँ। ये ग़ज़ल हमें उत्प्रेरित करती है इस बात के लिए कि किसी भी कार्य को पूरा करने के लिए, दूसरों की तरफ़ आशा भरी नज़रों से देखने के बजाए ख़ुद कुछ करने की ललक होनी चाहिए। दुष्यन्त जी ने इस ग़ज़ल के हर शेर में विभिन्न रूपकों की मदद से इस बात को पुरज़ोर ढंग से रखा है।
दुष्यन्त जी को कभी सुनने का अवसर नहीं मिला इस बात का मुझे हमेशा अफ़सोस रहा है। इस महान शायर की लिखी ये प्रेरणादायक पंक्तियाँ मेरे दिल पर क्या असर डालती हैं इसे व्यक्त करने का सबसे अच्छा ज़रिया यही है कि इसे मैं पढ़कर आप तक पहुँचाऊँ। तो ये रहा मेरा प्रयास..
आज सड़कों पर लिखे हैं सैंकड़ों नारे न देख
घर अँधेरा देख तू, आकाश के तारे न देख।
एक दरिया है यहाँ पर दूर तक फैला हुआ
आज अपने बाजुओं को देख पतवारें न देख।
अब यक़ीनन ठोस है धरती हक़ीक़त की तरह
यह हक़ीक़त देख, लेकिन ख़ौफ़ के मारे न देख।
वे सहारे भी नहीं अब, जंग लड़नी है तुझे
कट चुके जो हाथ, उन हाथों में तलवारें न देख।
दिल को बहला ले, इजाज़त है, मगर इतना न उड़
रोज़ सपने देख, लेकिन इस क़दर प्यारे न देख।
ये धुँधलका है नज़र का, तू महज़ मायूस है
रोग़नों को देख, दीवारों में दीवारें न देख।
राख, कितनी राख है, चारों तरफ़ बिखरी हुई
राख में चिंगारियाँ ही देख, अँगारे न देख।
आशा है इसे सुनने के बाद ऍसी ही कुछ भावनाओं का संचार आपके दिल में भी हुआ होगा..
24 टिप्पणियाँ:
दिल को बहल ले...
खूबसूरत गज़ल के खूबसूरत शेर से परिचय कराने का शुक्रिया.....!
लाजवाब गज़ल के लिये धन्यवाद्
दुष्यंत जी की यह गजल पहली बार पढनेको मिली, शुक्रिया।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाएं, राष्ट्र को प्रगति पथ पर ले जाएं।
दिल को बहला ले, इजाजत है, मगर इतना न उड़
रोज सपने देख , लेकिन इस कदर प्यारे न देख।
वाह वाह वाह ........... बहुत बेहतरीन गजल। मनीष जी ना जाने आप कहाँ कहाँ से खजाना ले आते है। शुक्रिया आपका।
मनीष जी, मज़ा आ गया.
वाह... अद्भुत ग़ज़ल....शुक्रिया इस लाजवाब रचना का परिचय करवाने के लिए...
आनन्द आ गया...दुष्यन्त कुमार की यह गज़ल पढ़कर.
दुष्यंत...बस एक नाम ने हम जैसों की एक पूरी पीढ़ी को जिस तरह से छुआ है, शायद ही किसी और रचनाकार ने...
दिन में ही ये पोस्ट दिखी थी लेकिन अभी इसलिए पढ़ा की आराम से सुनूंगा ! अच्छा किया आपने जो पढ़कर डाल दिया.
मै तो दुश्यंत जी का बचपन से फैन हूँ मै उनकी गज़ले संगीतबद्ध कर गाता भी हूँ ।
हिंदी गज़कारों में दुष्यंत ने जीस तरह से अपनी जड़े और छांव से प्रभावित कर रक्खा है शायद ही अब कोई नाम सामने आये ,... ..
अर्श
बहुत ही बढिया !!!
दुश्यत कुमार के शेर जादुई रूप से सिहरती थी... सत्ता के गलियारों में उनकी हुंकार आज भी कायम है... पार्लियामेन्ट सत्र के दौरान विरोधी दल उनके शेर सत्ता पक्ष पर उछालते हैं...
jahan nazar daal rahi hoon khwabo aur khyaalo ki hi duniya nazar aa rahi hai ,ye to mere shauk se juda hua blog nikala .dushyant kumar ki kitne kitabe main logo ko bhet kar chuki aur unke niji niwas par pariwar se bhi mil chuki hoon ,dushyant kumar paandulipi sangrahaalye me unke haath se likhi rachana aur dairy bhi padhi hoon .aur bahut kuchh suni dekhi jo abhi kahna muskil hai .bahut shaandar blog .dushyant ji ki hi ek rachna kahte huye badhti hoon --
is nadi ki dhaar me thadi hawa aati to hai ,nao jarjar hi sahi laharon se takraati to hai .shukriya
दुष्यंत जी के क्या कहने.....
आपको पढ़ कर यही कहूँगा
सारा बदन बोझ से दुहरा हुआ होगा
मैं सजदे में नहीं था आपको धोखा हुआ होगा
शुभकामनाये...
Itni sureelee aur prernadayak gazal ko sunwane ke liye aapka bahut bahut aabhaar...Sachmuch sunkar man romanchit ho gaya...
आप सब को दुष्यंत जी की ये ग़ज़ल पसंद आई ये जानकर खुशी हुई।
Dushyant Kumar ki ek kitaab hai mere pass "saye me dhoop"maine usme kuch chuni hui kavitaye phadi hai,ye shayari jo aap ne sunai bahut achhhi hai unki ek aur kavita hai jo badi inspirational hai ek jangal hai teri aankhon mein mujhe yakin hai apne phadi hogi uskeo gaane ke roop me pehli baar maine radio pe suna tha par woh net par bhi hai ye jaankar bahut achha laga asha hai aap use sunege aur sabhi logo apni taraf se juroor sunayenge waise is ghazal ke liye shukriya
Shangrila Mere paas bhi wo kitab hai. Aur ye ghazal bhi usi kitaab mein hai.
Aap jis rachna ki baat kar rahi hain use Meenu Purshottam ne gaya hai. Use haal hi mein mere ek blogger mitra ne sunvaya tha. Link ye rahi
http://radiovani.blogspot.com/2009/05/meenu-purushottam-ek-jungle-hai.html
Shangrila, Dushyant kumar ki Kavitaye aur sher ki to baat hi kuchh aur hai, Since long I am looking for Sayne me Dhup can you help me to get the copy of it
blog manch ke jariye aap tah pahunch,,muddaton se jiskee talash thee us jagah aaj pahuch gaya.itna shandaar collection ..aapke prayas ke liye hardik badhayee
Bahut hi umda Kavita hai....
post karne ke liye bahut bahut dhanyavaad.
बहुत ही सुन्दर कविता है
बहुत सुंदर ।
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