शीर्षक पढ़ कर कहीं आपको ऍसा तो नहीं लगा कि आप खुद ही इस श्रेणी में आते हैं। वैसे कहीं आपको इस शीर्षक ने भ्रमित कर दिया हो तो बता दूँ कि ये अंग्रेजी की एक किताब का नाम है जिसे अभिजीत भादुरी (Abhijit Bhaduri) ने लिखा है। जबसे चेतन भगत की 'Five Point Someone' हिट हो गई है तब से एक नया ट्रेंड चल पड़ा है अपनी कॉलेज लॉइफ को पुस्तक के माध्यम से परोसने का।
किसी भी रेलवे प्लेटफार्म पर आपको इस तरह कि किताबें धड़्ल्ले से बिकती मिलेंगी। शीर्षक भी एक से एक मसालेदार ! मिसाल के तौर पर 'Offcourse I love you till I found someone better' या फिर 'Anything for You Maam' या ऐसा ही बहुत कुछ। ज्यादातर किताबों के आगे बेस्ट सेलर का टैग भी झाँकता मिलेगा। सफ़र में जब और कुछ करने को नहीं हो तो सौ से दो सौ रुपये तक मूल्य वाली ये किताबें समय का सदुपयोग ही लगती हैं।
किशोरों और युवाओं को ऍसी किताबें खासी आकर्षित कर रही हैं और उसके पीछे कई कारण हैं। पहली तो ये कि नए नवेले लेखक अपनी कहानी कहने के लिए ज्यादा कठिन भाषा या क्लिष्ट शब्दों का इस्तेमाल नहीं करते। कथानक में घटनाएँ तेजी से घटित होती रहती हैं और बीच बीच में आते घुमाव और तड़के में आपका समय सहजता से बीत जाता है। दूसरी ये कि कहीं ना कहीं इन किताबों में आपको वो बात नज़र आ जाती है जो आपने अपने कॉलेज के दिनों में खुद अनुभव की हो। Five Point Someone की सफलता का यही राज था।
अभिजीत भदुरी की पहली किताब Mediocre But Arrogant भी इसी श्रेणी की पुस्तक थी और काफी चर्चित भी हुई। फर्क सिर्फ इतना था कि किताब का परिदृश्य IIT Delhi की बजाए देश के नामी प्रबंधन संस्थान XLRI Jamshedpur का था।
वैसे तो भदुरी साहब ने अपनी स्नात्क की पढ़ाई दिल्ली के श्री राम कॉलेज आफ कामर्स से की पर मानव संसाधन में पीजी की डिग्री XLRI Jamshedpur से ली। अपनी पहली किताब में भदुरी ने XLRI Jamshedpur में दो साल की पढ़ाई से मूख्य पात्र अभय की जिंदगी और रिश्तों के स्वरूप में आए परिवर्तन को पुस्तक केंद्र बिंदु बनाया। उनकी दूसरी किताब पहली किताब की कहानी को आगे बढ़ाती है। यानि एक sequel के तौर पर इस बार उन्होंने कॉलेज की जिंदगी से निकल कर एक MBA के नौकरी के प्रथम दस सालों को अपनी पुस्तक की कथा वस्तु बनाया है।
हार्पर कालिंस द्वारा प्रकाशित, २८० पृष्ठों की ये किताब अभय (written as Abbey) की नौकरी, परिवार, प्रेमिका और पत्नी के बीच घूमती रहती है। पर इस उपन्यास की कहानी का शीर्षक से कोई लेना देना नहीं है। यानि ये किताब वैसे लोगों के बारे में हरगिज़ नहीं है जो शादी के बाद भी नए रिश्तों की तलाश में भटकते रहते हैं। पुस्तक की भूमिका में इसके नाम लिए हल्के फुल्के लहज़े में एक तर्क भी ढूँढा गया है। Mediocre But Arrogant (MBA) इसीलिए Married But Available (MBA)। पर सिर्फ MBA acronym को बरक़रार रखने के लिए ऍसे नामाकरण की बात गले नहीं उतरती। ये लेखक और प्रकाशक का पाठकों को आकर्षित करने का स्टंट भर है।
उपन्यास की बात करें तो अभिजीत ने अभय की कहानी ईमानदारी से कही है।
ये बात इसलिए महत्त्वपूर्ण हो जाती है क्यूँकि इस तरह की किताबों में मुख्य किरदार के चरित्र को बहुत कुछ पाठकों द्वारा लेखक की निजी जिंदगी से से जोड़ कर देखा जाता है। उपन्यास के प्रमुख पुरुष और स्त्री किरदारों में अहम की लड़ाई में किसी का पक्ष लेने से बचने में लेखक सफल रहे हैं। तेजी से ऊपर बढ़ने की चाह किस तरह रिश्तों के बीच के नेतिक मूल्यों को गर्त में ढकेल देती है इसे भदुरी सही तरीके से उभार पाए हैं। मानव संसाधन प्रबंधक के तौर पर कार्य करने में किस तरह की कार्यकुशलता चाहिए इस का भी अंदाज इस किताब को पढ़ने से लगता है।
पर कुल मिलाकर उनकी ये किताब बहुत कुछ उनकी पहली किताब के शीर्षक से मिलती जुलती नज़र आती है यानि Mediocre। इसलिए अगर आपका मानव संसाधन यानि Human Resources से दूर का भी नाता ना हो तो इस किताब से आप सहज दूरी बनाए रख सकते हैं।
आशा करता हूँ कि आप सबके लिए दीपावली का पर्व अपने परिवार के साथ सोल्लास बीतेगा और आप इस दौरान और आगे भी 'Married But Unavailable' रहेंगे। :)
8 टिप्पणियाँ:
शीर्षक देख के लगा 'आपको ये क्या हो गया आज :)'
हमे तो मिलने से रही यह किताब, आप का धन्यवाद इस के बारे जानकरी देने के लिये.
आप को ओर आप के परिवार को दीपावली की शुभ कामनायें
कक्षा दो में मेरी एक सहपाठी प्रीति माथुर की एक किताब पर एक पूज्य शिक्षक ने आवरण पर चित्र सहित लिखा ’पूड़ी-मटर’,’पोस्ट मास्टर’,’प्राइम मिनिस्टर’ ! प्रस्तुत किताब के शीर्षक तर्क से यह याद आ गया ।
आपको और पूरे परिवार को दिवाली की शुभकामनायें.
प्रस्तुत पोस्ट ज़रा हट के है, मगर रोचक!!लगे रहो मनीषभाई!!!
हां ह्येद्रबाद के एयरपोर्ट पर ऐसी किताबो के ढेर लगे देख मुझे लगा ...वाकई इंग्लिश के राइटर को प्रकाशक मिलना आसान है बनिस्बत हिंदी के नए नवेले लेखक के .पर एक चीज तो है .आज का युवा भी कई बार भरी भरकम शब्दों या विम्बो से गिरी रचनाये नहीं चाहता .कई बार लेखन पक्ष इतना हैवी हो जाता है की मूल कथा को ढक देता है ....
पर फिर भी गंभीर रचनायों के अपने पाठक होते है ......
आज आपका शीर्षक देख के मुझे एक सीरियल याद आ गया ..दी माइंड ऑफ़ अ मेरिड मेन.......
ise aap manav-man ki visheshta samajhiye ya burai,hamesha asaan cheezon ki talash.jin pustakoon ka aapne zikra kiya unme se kariban sabhi mere haathoon se guzar chuki hain aur aashcharya dekhiye ki unhe padhne me koi dimagi warjish nahi karni padti,shayad unke bestseller hone ke peeche bhi yahi karan hai.....(aisa isliye ki aur bhi bahut ho sakte hain).jahaan sahitya jiwan ke vibhinn aayamoon se hame parichit karata hai wahin ye pustake bhi aise hi ek aayam ko bade spicy tareeke se prastut karti hain.
waise mai bhi aapni college life ko aisi hi koi abhivyakti dena chahta hoon,par kuch alag andaaz me, "My College Life in SNAPS"
maina socha thoda aadhunik ho jaon isliye trend to wahi follow karonga par likh kar nahi dikha kar.
लगता है यह किताब पढ़नी पड़ेगी ।
Abhishek kya socha tha wo kya kahte hain ki ki " bauraa gaya hoon ":)
Anurag aur Priyank aapki baton se sahmat hoon
Afloo Bhai : mazedaar baat batayi aapne..
Waise Priyank bura idea nahin hai tumhara :)
Raj Bhatia sahab, Dileep ji aap sabhie ki shubhkaamnaon ka shukriya
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