पर ये तो हमारे आपके दिखाने की बात है। अंदर ही अंदर तो हम दर्द-ए-दिल को भी शिद्दत से महसूस करना चाहते हैं। फ़राज़ ऍसे तो नहीं कह गए
पहले पहल का इश्क़ अभी याद है फ़राज़
दिल खुद से चाहता है कि रुसवाइयाँ भी हों
पर जहाँ ये बात सही है, वहाँ इस सच्चाई से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि जब हमारी समझ से अपने स्तर से बहुत अच्छा हमें अपना लेता है तो एक ओर तो हमें बड़ी खुशी मिलती है पर दूसरी ओर रह रह कर अंदर की हीन ग्रंथि हमें अपनी तुच्छता का अहसास भी दिलाती रहती है।
तो आज ऍसे ही भावनाओं से ओतप्रोत इस गीत की बात करना चाहता हूँ। इसे लिखा था मजरूह सुल्तानपुरी ने और इसकी धुन बनाई थी चित्रगुप्त ने। मजरूह ने ये गीत शायद ऍसे ही किसी क़िरदार के लिए लिखा होगा। शायद इसलिए कि जिस फिल्म का ये गीत है वो मैंने देखी नहीं। फिल्म का नाम था 'आकाशदीप' जो १९६५ में प्रदर्शित हुई थी। वैसे यू ट्यूब के वीडिओ से ये स्पष्ट है कि इसे फिल्माया गया था धर्मेन्द और नंदा जी पर।
ये गीत रफ़ी साहब के गाए मेरे पसंदीदा गीतों में से एक है तो सुनिए रफ़ी की गायिकी का कमाल ..
वैसे यू ट्यूब के वीडिओ में इस गीत के तीनों अंतरे सुनने को मिलेंगे।
मुझे दर्द-ए-दिल का पता ना था
मुझे आप किसलिए मिल गए
मैं अकेला यूँ ही मजे में था
मुझे आप किसलिए मिल गए....
यूँ ही अपने अपने सफ़र में गुम
कही दूर मैं, कही दूर तुम
चले जा रहे थे जुदा, जुदा
मुझे आप किसलिए मिल गए....
मैं गरीब हाथ बढ़ा तो दूँ
तुम्हें पा सकूँ कि ना पा सकूँ
मेरी जाँ बहुत हैं ये फ़ासला
मुझे आप किसलिए मिल गए....
ना मैं चाँद हूँ, किसी शाम का
ना च़राग हूँ, किसी बाम का
मैं तो रास्ते का हूँ एक दीया
मुझे आप किसलिए मिल गए....
वैसे चलते चलते कुछ बाते संगीतकार चित्रगुप्त यानि चित्रगुप्त श्रीवास्तव के बारे में। यूँ तो चित्रगुप्त भोजपुरी फिल्मों के मूर्धन्य संगीतकार माने जाते हैं, पर हिंदी फिल्मों के लिए भी उन्होंने कुछ नायाब नग्मे दिए। चित्रगुप्त का ताल्लुक बिहार से था और रोचक तथ्य ये है कि मुंबई की मायानगरी में संगीतकार बनने के पहले वो कॉलेज में लेक्चरर थे। वैसे क्या आपको पता है कि चित्रगुप्त की सांगीतिक विरासत को किसने आगे बढ़ाया ? वही 'क़यामत से क़यामत तक ' की संगीतकार जोड़ी आनंद-मिलिंद ने, जो चित्रगुप्त के सुपुत्र हैं।
18 टिप्पणियाँ:
बहुत बढ़िया प्रस्त्तुति।धन्यवाद।
आप तो मुझे मेरे बचपन में ले गए...स्कूल में था जब ये फिल्म देखी थी...अभी भी याद है...वाह मनीष जी शुक्रिया...
नीरज
बहुत ही बढि़या प्रस्तुति आभार ।
तहे दिल से शुक्रिया बहुत बेहतरीन लिखा है और यह गाना तो हर वक़्त याद रहता है .
धर्मेन्द्र मेरे फेवरेट हीरो रहे है ..ओर रफी की आवाज में ये गाना एक मूड में.एक समय में बेहद पसंद था ....खासतौर से ये लाइन जिस तरह रफी ने गायी है .....मुझे आप किस लिए मिल गये
बहुत सुंदर गीत और आपके लेख ने उसमें चार चांद लगा दिये ।
shaam suhaani ho gayee sahib... main akele yun maje me thaa mujhe aap kisliye mil gaye...????
arsh
bahut sundar sir ji, mood theek kar diya aapne...
Jai Hind...
आह, किस गीत का जिक्र छेड़ दिया मनिष जी आपने...एकेडमी के ट्रेनिंग वाले दिनों की यादें जुड़ी हुई है इस गीत से!
न मैं चांद हूं किसी शाम का...वाला अंतरा मेरा हमेशा से पसंदीदा रहा है।
आदमी की फितरत ही ऐसी है जी कहता कुछ और करता कुछ और।
बहुत ही प्यारा गाना। सुबह सुबह आनंद आ गया जी।
इस गीत के लिये धन्यवाद,
मस्ती भरी किशोरावस्था में प्रेम का रोग लग जाना और बाद में विरह का सामना करना यही सोचने को मजबूर करेगा.
रफ़ी साहब नें उस पीडा को अपने सुरों में यूं व्यक्त किया है कि हम हमसफ़र हो गये उनके साथ.यही इस गाने का यू एस पी है.
सुन कल से रही हूँ कमेंट आज दे रही हूँ....! क्योंकि कहने को कुछ था ही नही था सिवाय इसके कि सबकी तरह मेरा भी फेवरिट गीत है और धर्मेंद्र जी का फैन होने माँ से विरासत में मिला है....!!!
माता जी के फेव है ये....! :)
मैं गरीब हाथ बढ़ा तो दूँ,
तुम्हे पा सकूँ कि ना पा सकूँ,
मेरी जा बहुत है ये फासला
क्या बताये कितना असर करती हैं ये पंक्तियाँ
जानकर खुशी हुई कि आप सब को भी ये गीत पसंद आया।
bahut hi khoobsurat geet sunvaya apne maaza aagaya meri samajh nahi ata aap logo ki nabz kaise pakad lete hai waqt aur mahoul ke saath aap sahi cheez lakar samne rakh dete hai thanku manishji
क्या लिखू?क्या कहूँ? आँखे मूँद कर इस गाने को सुनने दीजिए और डूब जाने दीजिए.शायद आपको मालूम हो कि हिंदी फिल्म्स के बेस्ट सोंग्स प्रदीप कुमार,अशोक कुमार और धर्मेन्द्र जी पर फिल्माए गये थे.धर्म जी के ऐसे ही कई गाने मुझे बहुत बहुत पसंद है.थेंक्स मनीष ! आपने इतना प्यारा गाना सुनाया,दिखाया.और.....लिखते भी अच्छा हो भुलक्कड़ हूँ इसलिए ब्लॉग को ही बुक मार्क कर लिया मैंने.
क्या करू? ऐसीच हूँ मैं तो.
इंदु जी ये गीत आपको भी पसंद है ये जानकर खुशी हुई।
RAFI SAHAB KA GAYA BEHATAREEN GANA HE YE JIKI YAADE AAPNE AAJ PHIR TAJA KARWA DI HE.....
AAPKE PRAYAS SE IS GEET KI ITNI JANKARI MILI HE ,JO KI ANMOL HE....
MAI UMRA ME AAP SAB SE CHOTA HU PAR CINE SANGEET ME MERI RUCHI BACHPAN SE HI THI... CHITRAGUPT JI KE BARE ME KAFI KAM JANKARI HAI,PAR MANISHJI NE ISE SAKAR KIYA DHANYWAAD
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