वाराणसी यात्रा और घर में शादी की व्यस्तताओं की वज़ह से संगीतमाला में लगे इस ब्रेक के लिए क्षमाप्रार्थी हूँ। तो चलिए फिर शुरु करते हैं संगीतमाला की पॉयदानों पर क्रमवार ऊपर बढ़ने का सिलसिला।
वार्षिक संगीतमाला की 18 वीं पॉयदान पर का गीत थोड़ा अलग हट कर है। आज जिस तरह युवा निर्देशक नई-नई थीमों पर फिल्में बना रहे हैं उसी तरह कुछ संगीतकार भी लीक से अलग हटकर चलने को तैयार हैं। वैसे जब फिल्म का गीत और संगीतकार एक ही शख़्स हो और निर्देशक को उसकी काबिलियत पर पूरा विश्वास हो तो नए प्रयोग करने का साहस और बढ़ जाता है। इस लिए तो पीयूष मिश्रा को जब निर्देशक अनुराग कश्यप ने 'गुलाल' फिल्म का गीत संगीत रचने की कमान सौंपी तो इश्क और हुस्न से लबरेज़ फिल्मी मुज़रों की जगह एक पॉलटिकल मुज़रा (Poltical Mujra) ही लिख दिया।
पीयूष ने अपने लिखे इस गीत में देश और विश्व से जुड़े कुछ मसलों पर अपने शब्द बाणों से करारे व्यंग्य कसे हैं।
चाहे वो आतंकवाद के नाम पर अमेरिका की इराक और अफगानिस्तान में घुसपैठ हो..
या फिर देश में शीतल पेय के बाज़ार में अधिक सेंध लगाने वाले लोक लुभावन विज्ञापन हों..
या सबको अपने विचार रखने की आज़ादी देने के लोकतंत्र की बुनियादी उसूल पर आए दिन लगने वाले प्रतिबंधों द्वारा की जा रही आधारभूत चोट हो..
या फिर उच्च वर्ग में अंग्रेजीदाँ संस्कृति का अंधानुकरण करने की होड़ हो..
इस गीत में पीयूष सब पर सफलता पूर्वक निशाना साधते नज़र आए हैं। तो क्या फितर चढ़ा रंगमंच से सालों साल जुड़े इस गीतकार के मन में। अंतरजाल पर सलीमा पूनावाला को दिए गए साक्षात्कार में इस गीत के बारे में बात करते हुए पीयूष कहते हैं...
राणाजी म्हारे, गुस्से में आए, ऐसो बल खाए, अगिया बरसाए, घबराए म्हारो चैन
जैसे दूर देस के,
जैसे दूर देस के, टावर में घुस जाए रे एरोप्लेन
राणाजी म्हारे ...
राणाजी म्हारे, एसो गुर्राए, एसो थर्राए, भर आये म्हारे नैन
जैसे सरे आम ही,
जैसे सरे आम इराक में जाके जम गए अंकल सैम
राणाजी म्हारे...
राणाजी म्हारी सास ननद के ताने, राणाजी म्हारे जेठ ससुर की बानी
राणाजी थापे भूत परेत की छाया, राणाजी थापे इल बिल जिन का साया
सजनी को डियर बोले, ठर्रे को बीयर बोले, माँगे है इंग्लिस बोली, माँगे है इंग्लिस चोली
माँगे है इंग्लिस जयपुर, इंग्लिस बीकानेर
जैसे बिसलेरी की ,
जैसे बिसलेरी की बोतल पी के बन गए इंग्लिस मैन
राणाजी म्हारे...
राणाजी म्हारी सौतन को घर ले आये
पूछे तो बोले फ्रेंड हमारी है हाए
राणाजी ने ठंडा चक्कू यूँ खोला
बोले कि हाए ठंडा माने कोका कोला
राणाजी बोले मोरों की बस्ती में है शोर राणी
क्यों की ये दिल मांगे मोर, मोर रानी, मोर राणी, मोर राणी ..
म्हारी तो बीच बजरिया, हाए बदनामी हो गयी
म्हारी तो लाल चुनरिया, सरम से धानि हो गयी
म्हारो तो धक् धक् होवे, जो जो बीते रैन
जैसे हर इक बात पे ...
जैसे हर इक बात पे डिमोक्रिसी में लगने लग गयो बैन ...
जैसे दूर देस के, टावर में घूस जाए रे एरोप्लेन
जैसे सरे आम इराक में जाके जम गए अंकल सैम
जैसे बिना बात अफगानिस्ताँ का
जैसे बिना बात अफगानिस्ताँ का बज गया भैया बैंड
जैसे दूर देस के, टावर में घुस जाए रे एरोप्लेन
राणाजी म्हारे ...
वार्षिक संगीतमाला की 18 वीं पॉयदान पर का गीत थोड़ा अलग हट कर है। आज जिस तरह युवा निर्देशक नई-नई थीमों पर फिल्में बना रहे हैं उसी तरह कुछ संगीतकार भी लीक से अलग हटकर चलने को तैयार हैं। वैसे जब फिल्म का गीत और संगीतकार एक ही शख़्स हो और निर्देशक को उसकी काबिलियत पर पूरा विश्वास हो तो नए प्रयोग करने का साहस और बढ़ जाता है। इस लिए तो पीयूष मिश्रा को जब निर्देशक अनुराग कश्यप ने 'गुलाल' फिल्म का गीत संगीत रचने की कमान सौंपी तो इश्क और हुस्न से लबरेज़ फिल्मी मुज़रों की जगह एक पॉलटिकल मुज़रा (Poltical Mujra) ही लिख दिया।
पीयूष ने अपने लिखे इस गीत में देश और विश्व से जुड़े कुछ मसलों पर अपने शब्द बाणों से करारे व्यंग्य कसे हैं।
चाहे वो आतंकवाद के नाम पर अमेरिका की इराक और अफगानिस्तान में घुसपैठ हो..
या फिर देश में शीतल पेय के बाज़ार में अधिक सेंध लगाने वाले लोक लुभावन विज्ञापन हों..
या सबको अपने विचार रखने की आज़ादी देने के लोकतंत्र की बुनियादी उसूल पर आए दिन लगने वाले प्रतिबंधों द्वारा की जा रही आधारभूत चोट हो..
या फिर उच्च वर्ग में अंग्रेजीदाँ संस्कृति का अंधानुकरण करने की होड़ हो..
इस गीत में पीयूष सब पर सफलता पूर्वक निशाना साधते नज़र आए हैं। तो क्या फितर चढ़ा रंगमंच से सालों साल जुड़े इस गीतकार के मन में। अंतरजाल पर सलीमा पूनावाला को दिए गए साक्षात्कार में इस गीत के बारे में बात करते हुए पीयूष कहते हैं...
फिल्म जगत में कोई जल्दी कुछ नया करना नहीं चाहता। सभी इस्तेमाल किए हुए सफल फार्मूलों का दोहराव करने को आतुर हैं। मैंने 'राणाजी' इसलिए लिखा क्योंकि मैं एक 'Political Mujra' लिखना चाहता था। फिर अन्य गीतों की अपेक्षा फिल्म की परिस्थिति के हिसाब से इस गीत में कुछ नया करने का अवसर ज्यादा था। वैसे भी जो कुछ हमारे अगल बगल हो रहा है, जो भी घटनाएँ घट रही हैं क्या ये जरूरी नहीं कि उन्हें सुनने वालों तक गीत के माध्यम से पहुँचाया जाए। मैं चाहता था कि जब आने वाली पीढ़ियाँ इस गीत को सुने तो उन्हें आज की वास्तविकता को जानने का मौका मिले।ये तो हुई इस गीत के पीछे उपजे विचारों की बात। पीयूष ने इस मुज़रे में राजस्थानी लोक संगीत का जो रंग भरा है वो रेखा भारद्वाज की आवाज़ में और निखर के सामने आया है। ताल वाद्यों की अद्भुत जुगलबंदी के साथ जब रेखा जी का आलाप उभरता है जो सहज ही श्रोता को गीत के मूड से एकाकार कर देता है। गायिकी के लिहाज़ से ये साल रेखा जी के लिए बेहतरीन सालों में से एक रहा है। उनकी गायिकी के बारे में बाते आगे भी होंगी फिलहाल तो इस गीत का आनंद लीजिए
राणाजी म्हारे, गुस्से में आए, ऐसो बल खाए, अगिया बरसाए, घबराए म्हारो चैन
जैसे दूर देस के,
जैसे दूर देस के, टावर में घुस जाए रे एरोप्लेन
राणाजी म्हारे ...
राणाजी म्हारे, एसो गुर्राए, एसो थर्राए, भर आये म्हारे नैन
जैसे सरे आम ही,
जैसे सरे आम इराक में जाके जम गए अंकल सैम
राणाजी म्हारे...
राणाजी म्हारी सास ननद के ताने, राणाजी म्हारे जेठ ससुर की बानी
राणाजी थापे भूत परेत की छाया, राणाजी थापे इल बिल जिन का साया
सजनी को डियर बोले, ठर्रे को बीयर बोले, माँगे है इंग्लिस बोली, माँगे है इंग्लिस चोली
माँगे है इंग्लिस जयपुर, इंग्लिस बीकानेर
जैसे बिसलेरी की ,
जैसे बिसलेरी की बोतल पी के बन गए इंग्लिस मैन
राणाजी म्हारे...
राणाजी म्हारी सौतन को घर ले आये
पूछे तो बोले फ्रेंड हमारी है हाए
राणाजी ने ठंडा चक्कू यूँ खोला
बोले कि हाए ठंडा माने कोका कोला
राणाजी बोले मोरों की बस्ती में है शोर राणी
क्यों की ये दिल मांगे मोर, मोर रानी, मोर राणी, मोर राणी ..
म्हारी तो बीच बजरिया, हाए बदनामी हो गयी
म्हारी तो लाल चुनरिया, सरम से धानि हो गयी
म्हारो तो धक् धक् होवे, जो जो बीते रैन
जैसे हर इक बात पे ...
जैसे हर इक बात पे डिमोक्रिसी में लगने लग गयो बैन ...
जैसे दूर देस के, टावर में घूस जाए रे एरोप्लेन
जैसे सरे आम इराक में जाके जम गए अंकल सैम
जैसे बिना बात अफगानिस्ताँ का
जैसे बिना बात अफगानिस्ताँ का बज गया भैया बैंड
जैसे दूर देस के, टावर में घुस जाए रे एरोप्लेन
राणाजी म्हारे ...
17 टिप्पणियाँ:
ये आई एक और पसंद... फिल्म और इसके गाने दोनों ही पसाद आये थे.
मनीष जी ,
ये जरूरी था... यह बहुत ही जरूरी है... लीक तोड़ने वाले लोग हमारे बीच होना बहुत जरूरी है... यह वो लोग हैं जो यह बताते हैं की विकल्प भी दमदार है और तैयार बैठा है बशर्ते हम अनुभवी को ही सब कुछ मानना छोड़ दें ...
बहुत ही सोची समझी रणनीति थी ये... यह गुलाल की पूरी टीम ही ये बताते हैं... की हम सो नहीं रहे जाग रहे हैं... हमारा फ़िल्मी उद्योग जहाँ क्लब में , बार में और फ्लिएर्ट में उलझना हो, विदेशों में नाचने को ही दुनिया मान बैठी है तो उनको शयद ये पाता चल गया होगा की इस बीच गुलाल का क्या महत्त्व है... एक दमदार कहानी , समसामयिक घटना पर व्यंग करता गीत , स्टुडेंट politics और अवसाद में कटे युवती के बाल को बेसिन में बहते दिखाना अपने आप में एक अद्भुत प्रयोग था... सब मिलकर इस फिल्म को एक यादगार और लाजवाब बनाते हैं...
... बहुत जूनून चैये ऐसा काम करने के लिए ... आपका शुक्रिया
सुंदर चर्चा की आप ने गीत भी बहुत पसंद आया,
इस गाने को खूब सुना था, पर लिखा किसने और किस मिज़ाज से लिखा, यह तो यहीं पता चला । बहुत जानकारी बढ़ जाती है मेरी ।
सुन्दर गीत ! कितना गज़ब है क्रमशः गीतों से इस तरह रूबरू होना ! आभार ।
मनीश:
एक अच्छे गीत से परिचय करवाने के लिये धन्यवाद । तुम्हारा ब्लौग न पढते तो शायद यह गीत सुनते ही नहीं । ’पोलिटिकल मुज़रा’ अपने आप में एक ’प्रयोग’ है । गुलज़ार साहब नें एक ऐसा गीत लिखा था ’आंधी’ में , फ़िर ’हु तू तु’ में और अभी हाल में एक गीत था ’वेल्कम टु सज्जनपुर’ में ।
आभार ..
Anoop Ji
Namaskaar
Sahi Kaha aapne desh ki rajneeti par kataksh karte geet pehle bhi bante aaye hain. Waise Welcome to Sajjanpur ka wo geet 'Satta ki bhookh vikat aadi hai na ant hai....' mujhe behad priya raha hai aur isiliye wo mere Varshik Sangeetmala 2008 ka hissa bana tha. Uski link ye rahi
Piyoosh ne ek qadam aur badhakar antarashtriya rajneeti par bhi apne vicharon ko is geet me samahit kiya hai. Is abhinav prayog ke liye wo badhai ke patra hain.
Geetmala ke sath bane rahne ke liye aabhar
बाकी कमेंट बाद में करुँगा पहले ये बता दीजिए कि इस फिल्म की सीडी और बैशक गानों की सीडी मार्किट बहुत ढूढने पर भी नही मिलती क्या बात? वैसे इसके गानों की बात ही कुछ ऐसी है जब सुनने बैठता हूँ तो डूबता चला जाता हूँ इन गानों में।
Sushil Jiवैसे तो इसकी सीडी टी सीरीज पर निकली है। पर नेट पर मार्केटिंग SOUNDZ UNION के द्वारा की जा रही है। नेट पर खरीदने के लिए इस लिंक पर जाएँ।
http://shopping.indiatimes.com/i/f/t/Gulaal_28Audio_CD_29-pid-2494737-ctl-20375412-cat-110001-pc--&bid=&prc=&sid=&q=&
दर्ज कर लिया- ताकि सनद रहे,वक्त पर काम दे !
...लाजवाब! आपका लाख-लाख शुक्रिया मनीष जी जो ये संगीतमाला श्रृंखला आप शुरु न करते मैं तो यकीनन इस अद्भुत मुजरे से वंचित रह जाता...
piyush mishra is superb!
is film ke to sare hi gane mere favourite hain aur film dekhane ke baad Piyush Mishra ke to ham fan hop gaye...1
is film ke to sare hi gane mere favourite hain aur film dekhane ke baad Piyush Mishra ke to ham fan hop gaye...1
जबर्दस्त..एकदम मेरी पसंद का..पीयूष मिश्रा ने इस फ़िल्म के संगीत द्वारा दिखा दिया कि बालीवुड मे प्रयोगधर्मिता और नयापन अभी मरा नही है..इस फ़िल्म का पूरा संगीत ही मेरे लिये आउट-ऑफ़-वर्ल्ड किस्म का अनुभव था...वैसे अब मेरी उत्सुकता और बढ़ गयी है...कि इस फ़िल्म एक अन्य गीत किस पायदान पर होते हैं..
सबसे पहली बात तो ,जिन वाद्य यंत्रों का प्रयोग इस गीत में किया गया है,आंचलिकता की सोंधी खुशबू इसमें से ऐसे आती है जो मन को महका देती है,यह गायन गावों में हारमोनियम तबला के सांगत वाले नौटंकी के गीत का आनंद देती है और सबसे बढ़कर जितना अर्थपूर्ण इसका गीत है....हज़ार गीतों के बीच भी यह मन मस्तिष्क तक पहुँचने और उसपर छाने की क्षमता रखता है...
मैंने पहली बार ही जब इस गीत को सुना था,इसकी फैन हो गयी थी....आपने बहुत ही अच्छा किया जो अपने चयन में इसे स्थान दिया है.
इस गीत का सोफ्ट फाइल प्लीज मुझे भेज दीजिये न....
मनीष जी मैंने फिल्म की सीडी परसो खरीद ली थी। आज आपके ब्लोग पहली पोस्ट देखी तो रहा नही इस गाने के बारे में पढने के लिए। पर देखा तो मैं यहाँ पहले भी आ चुका हूँ। खैर......
मैं रंजनाजी की बातों से इत्तेफ़ाक रखता हूं.
आपका शततः धन्यवाद इस गाने को सुनवाने के लिये. अब फ़िल्म भी देखनी ही पडेगी.
while staying in delhi some time i wonder, is Hindi dying?
but some blogs like this reassure me
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