सोमवार, जनवरी 18, 2010

वार्षिक संगीतमाला 2009 : पायदान संख्या 21 - क्या आपकी जिंदगी से भी कोई शख्स गुमशुदा है?

हिंदी फिल्म संगीत में कई बार ऍसा होता है कि जब आप किसी गीत को सिर्फ सुनते हैं तो वो आप पर जबरदस्त प्रभाव डालता है पर फिल्म को देखते समय वो गीत कहानी में घुलता मिलता नज़र नहीं आता। पर दूसरी ओर परिस्थितिजन्य गीत होते हैं जो कहानी की पटकथा के अनुसार अपने आप को ढाल लेते हैं। ऐसे गीत एकबारगी सुनने में तो वो असर नहीं डालते पर फिल्म देखने के बाद धीरे धीरे मन में बैठने लगते हैं। वार्षिक संगीतमाला 2009 की 21 वीं पॉयदान पर एक ऐसा ही गीत विराजमान है। इस गीत की धुन बनाई शान्तनु मोइत्रा ने, इसे लिखा स्वानंद किरकिरे ने और अपनी मखमली आवाज़ से इसमें रंग भरे गायक शान ने।

स्वानंद किरकिरे को फिल्म '3 Idiots' की पटकथा लिखते समय से ही इस परियोजना में शामिल कर लिया गया था। इसलिए इस फिल्म के सारे गीतों के बोल पटकथा की धारा के साथ बहते नज़र आए। All Izz Well की उत्पत्ति के बारे में स्वानंद जी की राय से मैं आपको पहले ही अवगत करा चुका हूँ। आज जानते हैं कि स्वानंद के जोड़ीदार शान्तनु क्या कहते हैं इस गीत के बारे में ।

वैसे शान्तनु मोइत्रा एक ऐसे संगीतकार हैं जो अपनेआप को पूर्णकालिक संगीतकार नहीं मानते। एड जिंगल करते करते फिल्म उद्योग का रास्ता देखने वाले शान्तनु को संगीत से उतना ही प्यार है जितना कि खगोल विज्ञान, घुमक्कड़ी और पर्वतारोहण से। साल में वो चुनिंदा फिल्म करते हैं। हजारों ख्वाहिशें ऐसी और परिणिता के माध्यम से 'एक शाम मेरे नाम' की वार्षिक संगीतमाला 2004 और 2005 में ऊपर की पॉयदानों पर धूम मचा चुके हैं।

शान्तनु इस गीत के बारे में कहते हैं
हमारा ये गीत ऍसे एक शख़्स की कहानी कहता है जो हमारी जिंदगी में आया,हमें जानने की कोशिश की,जिसने हमारे दिल को छुआ और फिर अपने विचारों से आगे बढ़ने की रोशनी दिखाकर इतनी सहजता से हमारी जिंदगी से अलग हो गया जैसे कुछ हुआ ही ना हो। सालों बाद जब आप उसके बारे में सोचते हैं तो लगता है अरे वो तो कभी स्मृति पटल से दूर गया ही नहीं। और मन अनायास ही उद्विग्न हो उठता है कि आखिर वो गया कहाँ?

शान्तनु ने जो बात कही है उसकी सच्चाई से शायद ही मुझे या आपको संदेह होगा। इसी बात को पुरज़ोर ढंग से रखने में गायक गीतकार और संगीत निर्देशक की जोड़ी कामयाब हुई है। स्वानंद के सहज बोल,शान्तनु का बहता संगीत खासकर मुखड़े के बाद का टुकड़ा और इंटरल्यूड्स मन को बेहद सुकून देते हैं। शान की आवाज़ की मुलायमियत आपको अतीत की यादों की पुरवाई में भटकने को बाध्य करती है।

तो आइए इस गीत के बोलों को पढ़ते हुए सुनें इस गीत को


बहती हवा सा था वो
उड़ती पतंग सा था वो
कहाँ गया उसे ढूँढो...

हम को तो राहें थीं चलाती
वो खुद अपनी राह बनाता
गिरता सँभलता मस्ती में चलता था वो
हम को कल की फिक्र सताती
वो बस आज का जश्न मनाता
हर लमहे को खुल के जीता था वो
कहाँ से आया था वो
छूके हमारे दिल को
कहाँ गया उसे ढूँढो

सुलगती धूप में छाँव के जैसा
रेगिस्तान में गाँव के जैसा
मन के घाव में मरहम जैसा था वो
हम सहमे से रहते कुएँ में
वो नदिया में गोते लगाता
उल्टी धारा चीर के तैरता था वो
बादल आवारा था वो
प्यार हमारा था वो
कहाँ गया उसे ढूँढो

हम को तो राहें थीं चलाती.....
.........कहाँ गया उसे ढूँढो




चलते चलते एक मज़ेदार तथ्य जो इस से गीत से जुड़ा है वो आपसे बाँटता चलूँ। जब इस गीत की रिकार्डिंग पूरी हो चुकी थी तो निर्देशक राजकुमार हिरानी के बुलावे पर आमिर स्टूडिओ आए।

हिरानी ने तब आमिर से कहा जानते हो फिल्म में इस गीत के आलावा कब ये गीत पूरे देश में बजेगा? आमिर असमंजस में थे कि राजकुमार जी ने अपनी बात पूरी करते हुए कहा ये तुम्हारा Funeral Song होगा ये। मरोगे तब टेलीविजन पर इसी गीत के माध्यम से तुम्हें याद किया जाएगा। ये सुनकर आमिर हँस पड़े।

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12 टिप्पणियाँ:

रंजना on जनवरी 18, 2010 ने कहा…

Abhi to yah sound file khul nahi rahi..par itna kah sakti hun ki cinema hall me jab yah geet dekh sun rahi thi to sachmuch royen khade ho gaye the...sach maayne me ise romanchak kah sakte hain....

Prastut karne aur vivran hamtak pahunchane ke liye bahut bahut aabhar...

Udan Tashtari on जनवरी 18, 2010 ने कहा…

बहुत उम्दा चयन, मनीष भाई...



यहाँ तो साउंड फाइल चल गई..

अफ़लातून on जनवरी 18, 2010 ने कहा…

आपकी गीतमाला अब तक आईपॉड में चढ़ रही है । आभार ।

Abhishek Ojha on जनवरी 18, 2010 ने कहा…

मैं भी सोच रहा हूँ आईपॉड में गीतमाला नाम से फोल्डर बनाऊं.

Himanshu Pandey on जनवरी 19, 2010 ने कहा…

गीतमाला का एक और मनका !
सुन तो नहीं पा रहा इस वक्त , मजा विश्लेषण पढ़ने में है ।
आभार ।

कंचन सिंह चौहान on जनवरी 19, 2010 ने कहा…

ये सही कहा कि ये गीत फिल्म देखते समय अधिक प्रभावशाली लगता है।

वैसे अंतिम पैरा में बाँटा गया तथ्य मजेदार था।

सागर on जनवरी 19, 2010 ने कहा…

यह ब्लॉग बहुत अच्छा है.. बहुत - बहुत - बहोत ही अच्छा... लगा जैसे विविध भारती पर "मुझे याद सब है जरा - जरा" सुन रहा हूँ...

Henry J on जनवरी 19, 2010 ने कहा…
इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.
गौतम राजऋषि on जनवरी 20, 2010 ने कहा…

गीत तो निसंदेह लाजवाब है...

वैसे अचानक से ये ख्याल आया मनीष जी कि साल के आखिरी में अगर कोई बढ़िया सुमधुर कर्णप्रिय गीत रीलिज हो जाता है तो फिर वो स्वयमेव ओवरपावर कर लेता शेष अन्य गीतों को जो साल के पूरवार्ध में आये होते हैं....

Manish Kumar on जनवरी 20, 2010 ने कहा…

गौतम, आपने सही कहा अक्सर ज़ेहन में आस पास रिलीज़ हुई फिल्मों के गीत ज्यादा घूमते हैं पर जहाँ तक इस गीतमाला का सवाल है इसमें गीतों का चुनाव साल २००९ में रिलीज हुई सारी फिल्मों के गीतों को सुन कर ही करता हूँ और संयोग की बात ये है कि अगली पॉयदान का गीत २००९ की जनवरी में रिलीज फिल्म का है।

Priyank Jain on जनवरी 21, 2010 ने कहा…

aapki tag line se bahut kuch milta hai ye geet aur is geet par pravishti ke kuch ansh.
Shan mere pasandeeda gayakoon me to hain hi saath hi we doordarshan sanchalak(TV anchor) bhi bahut achche hain.
Dhanyawaad

Manish Kumar on जनवरी 30, 2010 ने कहा…

Sahi kaha Priyank Shaan ek mastmaula sootradhaar aur behtareen gayak hain.

 

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