शनिवार, जनवरी 16, 2010

वार्षिक संगीतमाला 2009 : पायदान संख्या 22 - ये जिंदगी भी क्या क्या हमको दिखलाती है..

तो भाइयों और बहनों वार्षिक संगीतमाला की 22 वीं पायदान पर गाना वो जिसे लिखा जावेद अख्तर साहब ने धुन बनाई एक संगीतकार तिकड़ी ने और गीत को गाया एक दूसरे संगीतकार ने। प्रतिस्पर्धा के इस युग में आजकल ये स्वस्थ परंपरा चली है कि संगीतकार कुछ दूसरे संगीतकारों को अपने गानों पर गवा रहे हैं। विशाल ददलानी, सलीम मर्चेंट इसके कुछ उदहारण हैं जिन्हें दूसरे संगीतकारों ने अपनी फिल्मों में गवाया है।


पर आज मैं इन दोनों की नहीं बल्कि विशाल शेखर की जोड़ी वाले शेखर रवजियानी की बात कर रहा हूँ जिन्होंने पहली बार किसी दूसरे संगीत निर्देशक के लिए गाना गाया। वैसे इससे पहले शेखर अपनी आवाज़ का हुनर झंकार बीट्स, ब्लफमॉस्टर, गोलमाल आदि फिल्मों में दिखा झुके हैं। पर ये फिल्में विशाल शेखर की खुद की फिल्में थीं। फिर शंकर अहसॉन लॉय द्वारा संगीत निर्देशित फिल्म लक बाई चांस में उन्होंने माइक्रोफोन कैसे उठा लिया ?

अधिकतर पाश्चात्य रिदम पर संगीत रचने वाले पर साथ ही हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत में पारंगत शेखर इस बारे में कहते हैं

"मैंने अपने लिए ऐसा कोई नियम नहीं बना रखा था कि दूसरों के लिए ना गाऊँ पर मुझे किसी विशिष्ट गीत का इंतजार था। इसलिए जब शंकर अहसॉन लॉय मेरे पास ये जिंदगी भी.... गाने का प्रस्ताव ले के आए तो मुझे लगा कि इस गीत में वो खास बात है। मुझे इस गीत में एक मुलायमियत दिखी। वैसे भी जावेद साहब जब बोल लिखें तो उनमें कुछ तो अलग होता ही है।"

तो आइए देखें वाकई क्या खास बात है इस गीत में. पहली तो इसकी आरंभिक बीट्स जो गीत के मूड को बना देती है। मुखड़ा तो ठीक ठाक है ही पर मुझे असली आनंद तब आता है जब शेखर जावेद कर इन बोलों को खत्म कर.. ..

जाने हमको क्या पाना है सोचो क्या है अपनी मंजिल
समझाने से कब माना है देखो करता ज़िद है
ये दिल

छूने हैं....तारे इसे चाहिए... सारे इसे .....से अपने सुर को ऊपर उठाते हैं और फिर शंकर अहसान लॉय द्वारा दिया गया इंटरल्यूड मन को प्रसन्न कर देता है। तो मेरी राय ये है कि अगर आपका मन कुछ बुझा बुझा है तो इस गीत की खुराक लीजिए। विश्वास कीजिए आप पहले से अच्छा महसूस करेंगे।

ये जिंदगी भी क्या क्या हमको दिखलाती है सपनों की धुँधली राह में
ये जिंदगी भी हमें कहाँ ले के आ जाती है इक अनजानी सी चाह में
जाने हमको क्या पाना है सोचो क्या है अपनी मंजिल
समझाने से कब माना है देखो करता ज़िद है ये दिल
छूने हैं....तारे इसे चाहिए... सारे इसे

ये जिंदगी भी कितनी बातें कह जाती है इक सीधी साधी बात में
ये जिंदगी भी क्यूँ इतने ख्वाब सजाती है हर सूनी सूनी रात में
ख्वाबों में कोई अरमाँ है पूछो दिल से अरमां क्या है?
मुश्किल है या वो आसाँ है सुन लो ये दिल कहता है
छूने हैं....तारे इसे चाहिए... सारे इसे

जो पलकों के तले है अपने सपने ले के चले ये कह दो वो चले सँभल के
ना करना कोई गिले कहीं जो ठोकर ऍसी लगे कि सपने टूटे आँसू छलके



अगर आपको याद नहीं आ रहा कि फिल्म में ये गीत कब था तो ये बता दूँ कि ये गीत लक बाइ चांस की शुरुआत में प्रयुक्त हुआ है



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14 टिप्पणियाँ:

राज भाटिय़ा on जनवरी 16, 2010 ने कहा…

बहुत सुंदर लेख ओर बहुत ही सुंदर गीत
धन्यवाद

Manish Singh "गमेदिल" on जनवरी 16, 2010 ने कहा…

awesome post!!!!!!!


apka her - ek prastuti....... dil ko chhu lene wali hoti....... hai.....

aur dil kah udta hai...."Wah kya baat hai"

Thanks........

सुशील छौक्कर on जनवरी 16, 2010 ने कहा…

मनीष जी गीत के बोल प्यारे और मन को भाय।

Alapana on जनवरी 16, 2010 ने कहा…

More than the voice quality or the music its the lyrics of this song which makes me listen to it again.

गौतम राजऋषि on जनवरी 16, 2010 ने कहा…

न उम्हुहु...ये गाना मैंने नहीं सुना है। कुछ गेस मैं अपना भी लगा रहा हूं...देखता हूं कि मेरे गेस आपके संगीतमाला में शामिल हो पाते हैं या नहीं।

Manish Kumar on जनवरी 17, 2010 ने कहा…

गौतम सारे गीत तो आपने नहीं सुने होंगे जो इस गीतमाला में बजेंगे पर उनमें से आधे से अधिक आपके भी पसंदीदा होंगे ऐसी उम्मीद है।:)

Himanshu Pandey on जनवरी 17, 2010 ने कहा…

यह सही है कि लगभग सारे अपेक्षित गीत ही शामिल होते हैं इस चयन में । बहुत से गीत यहाँ सुनकर ही लगता है कि मूल्यवान हैं, सुने जाने योग्य !

गौतम राजऋषि on जनवरी 17, 2010 ने कहा…

मनीष जी एक मदद चाहिये थी। दुष्यंत जी एक ग़ज़ल "हो गयी है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिये" मेरे ख्याल से फिल्म "हल्ला बोल" में संगीतबद्ध हुआ था। यदि आपके पास इसका mp3 हो तो प्लीज देंगे....अपने ब्लौग पर एक पोस्ट में लगाना चाहता था।

Manish Kumar on जनवरी 17, 2010 ने कहा…

Gautam aap wo poora gana chahte hain ya sirf wo hissa jismein dushyant ji ki kavita ka kuch hissa (jo sukhwinder singh ne gaya hai)?

Waise is kavita ko khud padh kar sunane mein maza hai wo us geet mein poori tarah ubhar kar nahin aaya hai.

अपूर्व on जनवरी 17, 2010 ने कहा…

मुझे भी लगता है कि आज कल के नये संगीतकारों मे एक दूसरे के प्रति एक्सेप्टिबिलिटी बढ़ती जा रही है..और एक संगीतकार दूसरे के लिये गा कर सम्मान ही महसूस करता है. विशाल ददलानी को एक इंटर्व्यू मे देख रहा था जिन्होने विशाल भारद्वाज के लिये टेन-टेणेन गाया है और जो सम्मान विशाल जी के लिये उनके शब्दों मे दिखा वह उनके एक अच्छे संगीतकार के साथ ही एक अच्छे इन्सान होनी को भी प्रदर्शित करता है..
जिस तरीके से आप एक-एक गीत को यहाँ रखते हैं..कि वह सिर्फ़ एक गाना न रह कर कुछ और ही हो जाता है..आभार!

अपूर्व on जनवरी 17, 2010 ने कहा…

हाँ अगर वार्षिक गीतमाला के सारे गीत उनके क्रम मे कही साइडबार, लेबल या किसी पोस्ट पर एक साथ मिल जाय, रेवाइंड करने के लिये, तो और मज़ा आये.

Archana Chaoji on जनवरी 18, 2010 ने कहा…

maine nahi suna tha....dhanyawaad bahut achcha laga...

रंजना on जनवरी 18, 2010 ने कहा…

Pata nahi kaise yah sundar geet isse poorv kaano tak na pahuncha tha.....

Bahut sundar geet hai sachmuch....bada aanand aaya sunkar....Dhanywaad sunwane ke liye...!!!

Manish Kumar on जनवरी 30, 2010 ने कहा…

आप सबको ये गीत पसंद आया जानकर खुशी हुई। वार्षिक संगीतमाला का लेबल इस पोस्ट में छूट गया था वो अब लगा दिया है। संगीतमाला के बीच में पिछले गीतों की लिंक भी एक साथ देने की कोशिश करूँगा।

 

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