गीत गिटार की मधुर तान से शुरु होता है। फिर आता है लड़कियों का कोरस और उसमें से उभरता अभिजीत दा का मखमली स्वर। ये तो नहीं कहूँगा कि गुलज़ार ने अपने शब्दों में कुछ नए बिंबों का इस्तेमाल किया है फिर भी उनका करिश्मा इतना जरूर है कि गीत को सुनकर इसके मुखड़े को गुनगुनाते रह जाएँ।
तो आखिर ये गीत कौन सा है। ये गीत है साल के शुरु में सुर्खियाँ बटोरने वाली फिल्म बिल्लू का और अगर अब तक आपने इसे नहीं सुना तो मैं तो बस इतना ही कहूँगा कि खुदाया खैर :)...
प्रीतम ने इस गीत के बनने की बातों को याद करते हुए कहते हैं
मैंने इस गीत की शुरुआत ओ रब्बा हो ओओ ओओ..से करने की सोची थी पर गुलज़ार ने उसे ख़ुदाया खैएएएर कर गीत का प्रभाव ही बढ़ा दिया। मैं अपने गीतों का कोई हिस्सा खाली नहीं छोड़ता, यानि मेरे गीतों में आर्केस्ट्राइसेशन खूब होता है। पर इस गीत में मैंने अपने बहुत सारे वाद्य यंत्र हटा किये to make it simple.दरअसल प्रीतम की ये 'imposed simplicity' हमारे जैसे सुनने वालों के कानों को सुकून देने वाली हो गई। तो आइए सुनें पहले अभिजीत दा की आवाज़ में इस गीत को
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इसी गीत के दूसरे वर्जन को गाया है सोहम चक्रवर्ती,आकृति कक्कड़ और मोनाली ने। पर मुझे दूसरे वर्सन से कहीं ज्यादा अभिजीत का सोलो प्रभावित करता है।
रातों रात तारा कोई, चाँद या सितारा कोई
गिरे तो उठा लेना
ओ सुनियों रे
तारा चमकीला होगा,चाँद शर्मीला होगा
नथ में लगा लेना
जरा सी साँवरी है वो
ज़रा सी बावरी है वो
वो सुरमे की तरह मेरी
आँखों में ही रहती है
सुबह के ख्वाब से उड़ाई है
पलकों के नीचे छुपाई है
मानो ना मानो तुम
सोते सोते ख्वाबों में भी ख्वाब दिखाती है
मानो ना मानो तुम
परी है वो परी की कहानियाँ सुनाती है
खुदाया खैर, खुदाया खैर, खुदाया खैर, खुदाया खैर
रातों रात तारा कोई...नथ में लगा लेना
तू हवा मैं ज़मी, तू जहाँ मैं वहीँ
जब उडे मुझे ले के क्यूँ उड़ती नही
तू घटा मैं ज़मी,तू कहीं मैं कहीं
क्यों कभी मुझे लेके बरसती नही
जरा सी साँवरी है वो... रहती है
सुबह के ख्वाब....खुदाया खैर
जब दाँत में ऊँगली दबाये
या ऊँगली पे लट लिपटाये
बादल ये चढ़ता जाए, हो...
कुछ कर के वो बात को टाले
जब माथे पे वो बल डाले
अम्बर यह सिकुड़ता जाए हो........
वो जब नाखून कुतरती है,तो चंदा घटने लगता है
वो पानी पर कदम रखे, सागर भी हट जाता है
सुबह के ख्वाब....
खुदाया खैर,खुदाया खैर,खुदाया खैर,खुदाया खैर
16 टिप्पणियाँ:
बहुत सुंदर गीत ओर बहुत अच्छी जानकारी के लिये आप का धन्यवाद
jordar geet ki jordar peshkash, shukriya
ek baat par aapki pratikriya janna chahta hoon,baat kuch aisi hai ki aaj mai ek pustak mele ke samapan samarooh me gaya tha,waha ek waqta ne pustkoon ki kimtoon ko kam karne par zor diya,jisse ki we jansaamanya ke liye aasani se uplabdh ho sake aur kuch aisi sansthain banayi jaye jahan kisi pustak ke liye inkaar na kiya jaye.
Not a song which i listen very often but i love the lines "Raato.n raat tara koi, chand sitara koi,gire tho utthalena..." beautiful.
wow....itni detail.....gulzaar to mere fav hai to unka likha....pasand na aaye kaise mumkin hai
Priyank sach kahoon to jahan tak Hindi Pustakon ka sawal hai unke moolya Angrezi ki kitaabon se kahin kam hain. Penguin ka koyi bhi title 250 se kam nahin milta jabki hindi aur urdu ki kitabein aasani se 100 se 200 rupye tak mein uplabdha ho jati hain.
Par humari mansikta aisi ho gayi hai ki Hindi kitabon pe 50 -100 rupye bhi kharch karna humein naagwwar lagta hai.
Waise in general kisi bhi bhasha ki pustakon ko aam jan tak pahuchane ke liye library jaise sansthanon ne mahtwapoorna bhoomika ada ki. Samay ke sath logon ke ghatti ruchi aur sarkari udaseenta ne se pustakalayon ki sankhya aur prasar mein bhari kami aayi hai. Ruchi jagrat karne ka kaam to hum sabhi ka hai par ise jaroori maankar aise sansthanon ko aage badhane ke liye sarkaari bhoomika ki bhi avshyakta hai.
bahar haal geet aur post pasand karne ke liye shukriya.
aapne meri baat par gaur kiya isliye,dhanyawaad.
vishay atyant mahatv ka hai aur vicharneey bhi,ise kam shabdon me bandh pana zara mushkil hai.kabhi bhavishya me sambhav ho to 'pustak pathn' par bhi aapki pravishti ka intzaar rahega.
सुन्दर गीत चुना है..आनन्द आया.
गीत सुनना और भी सुन्दर हो जाता है इतने सधे हुए विवरण के बाद !
कई जानकारियाँ भी मिलती रहती हैं साथ-साथ !
आभार ।
फिर कर्णप्रिय धुन और गुलज़ार जी के शब्दो की तो बात ही क्या...!
Isse poorv kitni baar is geet ko yun hi udte udte suna, kah nahi sakti..par kabhi gambheerta se na to iske geet ko jaanne sunne ka prayaas kiya na hee sangeet ko....
Aaj aapne jis prakaar ise prastut kiya ki sunkar kahna hee pada...WAAH !!!!
Bahut hi aanand aaya...Aabhar.
लाजवाब गाना।
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अपना ब्लॉग सबसे बढ़िया, बाकी चूल्हे-भाड़ में।
ब्लॉगिंग की ताकत को Science Reporter ने भी स्वीकारा।
imposed simplicity...आह, क्या बात कही है मनीष जी।
आपके साथ-साथ हम भी चल रहे हैं पायदान-दर-पायदान
गीत पसंद करने और उस पर अपने विचार प्रकट करने के लिए आप सभी का आभार !
शायद इसी फिल्म का गाना है मरजानी मरजानी। वो आपके ब्लोग पर कहीं लगा हुआ है क्या। अगर हाँ तो लिंक दे प्लीज।
manishji,
Aaj pehli baar aap se sambhodhit ho raha houn. aap ki site ka niyamit visitor houn.
Abhijeet aur pritam ki jori ne ek aur amar geet diya hain film gangster mein" Lamha Lamha duri youn pighalti hain" mujhe bahut pasand hain. Yedhi pichle dushak ke best romantik gaanon ki baat kere to iss gaane ko bhi shikhar mein hona chahiye.
Aap ke iss bahigirath prayaas ke liye aap ko sadhuwaad deta houn.
Allah kare jore kalam aur jyadha.
vineet,
Parag Dimri
पराग डिमरी जी मैं हर साल वार्षिक संगीतमाला में सिर्फ उस साल के पच्चीस बेहतरीन गीतों का चयन करता हूँ। आपने साल २००९ की संगीतमाला पर अपना कमेंट चस्पा किया है जबकि जिस गीत का आप जिक्र कर रहे हैं वो मेरी वार्षिक संगीतमाला २००७ के प्रथम दस गीतों में जगह बना चुका है और मुझे भी बेहद प्रिय है। उस वक़्त दो छोटी छोटी पोस्टस उस पर लिखी थीं..
http://ek-shaam-mere-naam.blogspot.in/2007/02/10.html
http://ek-shaam-mere-naam.blogspot.in/2006/06/blog-post_29.html
आपसे यहाँ पहली बार मुख़ातिब होना अच्छा लगा। आशा है कि भविष्य में भी आपकी राय व सुझाव मिलते रहेंगे।
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