सो मैंने फेसबुक पर जाकर उनसे अपनी निराशा प्रकट कर दी पर फिल्म में उनके गीतों का सफ़र देख इतना जरूर लग गया था कि काव्यात्मकता से हिंगलिश गानों का सफ़र उन्होंने फिल्म की स्क्रिप्ट के लिए ही तय किया होगा। और जब मैंने फिल्म देखी तो वहीं गीत जो बस ठीक-ठाक लग रहे थे फिल्मांकन के बाद बेहतरीन लगने लगे।
खुद स्वानंद साहब ने दैनिक हिंदुस्तान में दिए अपने साक्षात्कार में इस बारे में कहा
दरअसल गाने फिल्म की स्क्रिप्ट के हिसाब से लिखे जाते हैं। जैसे ‘खोया-खोया चाँद’ 1950 के आस-पास की फिल्म थी तो अल्फ़ाज़ भी वैसे ही ज़हीन थे।
परिणिता’ में बंगाल से जुड़ी कहानी थी तो गानों में भी काव्यात्मक्ता वैसी ही थी। ‘लगे रहो मुन्नाभाई’ टपोरी और भाईगीरी पर थी, तो गाने भी वैसे ही टपोरीनुमा थे। एक एक्टर जैसे फिल्म की स्क्रिप्ट की तरह मेकअप बदलता है तो वैसे ही एक गीतकार भी फिल्म की थीम की तरह ही अपना रूप बदलता है। ‘थ्री-इडियट्स’ जींस और टी-शर्ट पहनने वाले आज के स्टूडेंट्स की कहानी है तो लफ़्ज़ भी जींस-टी शर्ट वाले होने चाहिए।
तो वार्षिक संगीतमाला की 25 वीं पॉयदान पर इसी फिल्म का एक लोकप्रिय गीत जो आजकल अपने सर्वप्रिय जुमले 'आल इज्ज वेल' के लिए घर घर में चर्चित है। मुर्गे की बाँग से शुरु होता ये गीत सोनू निगम अपने अटपटे बोलों की वजह से आपका ध्यान पहले खींचता है, फिर गीत की मस्ती आपको झूमने पर विवश कर देती है। पर झूमने के साथ स्वानंद हँसी हंसी में आज के छात्र वर्ग की मानसिक स्थिति का भी बेहतरीन आकलन करते हैं। मुर्गी और अंडे के रूपक को विद्यार्थियों के लिए प्रयोग करने की बात पर उनका कहना है किमैंने इंटरनेट पर एक कार्टून देखा था, जिसमें मुर्गी का एक बच्चा हाफ-फ्राई देख रहा है और पूछ रहा है- ‘ब्रदर इज़ दैट यू’ (भाई क्या ये तुम हो)। तो यही इस गाने की फिलॉसफी भी रही कि ‘मुर्गी क्या जाने अंडे का क्या होगा, लाइफ़ मिलेगी या तवे पे फ्राई होगा...’, ये बात एक स्टूडेंट के भविष्य के लिए भी फिट बैठती है कि ‘कोई ना जाने अपना फ्यूचर क्या होगा...होंठ घुमाओ, सीटी बजाओ..सीटी बजाके बोल भइया...ऑल इज़ वेल..’।
शान्तनु मोइत्रा के मस्त संगीत पर बने इस गीत को सोनू निगम ने स्वानंद किरकिरे और शान के साथ मिलकर पूरे मन से गाया है जिसे सुन कर आप महसूस कर सकते हैं..
जब लाइफ हो आउट आफ कंट्रोल
होठों को कर के गोल
होठों को कर के गोल
सीटी बजा के बोल
आल इज्ज वेल
मुर्गी क्या जाने अंडे का क्या होगा
लाइफ मिलेगी या तवे पे फ्राइ होगा
कोई ना जाने अपना फ्यूचर क्या होगा
होठ घुमा सीटी बजा.. भैया आल इज्ज वेल
अरे भइया आल इज्ज वेल
अरे चाचू आल इज्ज वेल
कनफ्यूजन ही कनफ्यूजन है
साल्यूशन कुछ पता नहीं
साल्यूशन जो मिला जो साला
क्वेश्चन क्या था पता नहीं
दिल जो तेरा बात बात पे घबराए
दिल पे रख के हाथ उसे तू फुसला ले
दिल ईडीयट है प्यार से उसको समझा ले
होठ घुमा सीटी बजा.. भैया आल इज्ज वेल
अरे भइया आल इज्ज वेल
अरे चाचू आल इज्ज वेल
स्कॉलरशिप की पी गया दारू
ग़म तो फिर भी मिटा नहीं
अगरबत्तियाँ राख हो गईं
गॉड तो आखिर मिला नहीं
बकरा क्या जाने उसकी माँ का क्या होगा
सींक घुसेगी या साला कीमा होगा
होठ घुमा सीटी बजा.. भैया आल इज्ज वेल
हँसी की फुहारों के साथ ये गीत इंजीनियरिंग कॉलेज के उन पुराने दिनों की याद दिला देता है जिसमें ये इडियोटिक लमहे भी अपने से लगने लगते हैं। यू ट्यूब पर इस गीत की झलक आप यहाँ देख सकते हैं
12 टिप्पणियाँ:
Manish Ji
3 Idiots ke gano pe aapki tippani pasand aayi.
Vishal
Film dekhate samay gaanaa achha lagata hai...Binaka,aur Cibaka ke baad is geetmala ka bhi swaagat hai ....
Swanand Kirkire sahab ne to likh diye par ye bol professor's ke kano me padte kahan hain.AAJ HI KA KISSA HAI,HAMARE EK PROFESSOR FARMA RAHE THE KI KISI BADE COLLEGE ME ADMISSION BACHCHE APNI MEHNAT SE LETE HAIN AUR FIR SUCIDE KAR LETE HAIN TO YAHAN AATE HI KYUN HAIN,AAPNE GHAR PAR BHI WE YE SAB KAR SAKTE HAIN.
Khair ye to ek badi warta aur fir kuch na karne ka vishay , 'Daurane Tafteesh' padhi aur padh chukne ke baad dukh hua ki ye masla kyun itni jaldi hal ho gaya aur tafteesh khatm ho gayi!
Dhanyawaad
शुक्रिया जी.. आपके ब्लॉग पर गीतों के बारे में काफी दिनों से पढ़ता आ रहा हूं। मुझे भी गीतों और गीतकारों से काफी लगाव है। उनके बारे में जानने के लिए अक्सर आपके ब्लॉग पर आता रहता हूं। स्वानंद किरकिरे का ये इंटरव्यू मैंने ही लिया था। अपने ब्लॉग पर स्वानंद किरकिरे के इंटरव्यू के बारे में संदर्भ देने के लिए शुक्रिया।
पुनीत अच्छा लगा आपको यहाँ देखकर। आपने इंटरव्यू में स्वानंद जी से जो सवाल किये वो ऍसे प्रश्न थे जो हमारे जैसे संगीतप्रेमी अक्सर अपने चहेते गीतकार से पूछना चाहते हैं। इस के लिए आप भी बधाई के पात्र हैं। मेरी शुभकामना है कि पत्रकारिता में आपका सफ़र यूँ ही उज्ज्वल रहे।
बहुत सुंदर जानकारी दी. धन्यवाद
संगीतमाला की शुरुआत हो गयी !
सुन्दर विश्लेषण ! आभार ।
गाने की धुन अच्छी लगती है मुझे...! २५ वीं पायदान के लिये फिट...!
वैसे इसलिये भी अच्छा लगता है कि क्योंकि कुछ कुछ अपनी भी फिलॉसफी यही हैं जिंदगी के प्रति... इतनी अनिश्चितता में जो भविष्य को ले कर चिंता करना कभी कभी वर्तमान को भी गड़बड़ कर देता है।
और इसीलिये नदी के द्वीप की क्षणों में जीने का दर्शन भला लगा था।
गाने के बोल आपकी पोस्ट पर पढकर हमारा दिल भी होने लगा है इस गाने को सुनने का।
गीत का पूरा लिरिक्स यहां पढ़कर अब हमें भी ये गाना अच्छा लगने लगा है। वैसे किरकिरे साब के दीवाने तो हम "बावरा मन" से हो रखे हैं...
अरे किस गीत की याद दिला दी गौतम आपने बावरा मन तो स्वानंद का पहला गीत था जिसने उन्हें संगीत प्रेमियों के बीच पहचान दिला दी। 2005 की संगीतमाला में ये मेरे दूसरे नंबर का गीत बना था। चलिए इसकी लिंक को भी पोस्त का हिस्सा बनाता हूँ ताकि सनद रहे.
I wish not approve on it. I regard as polite post. Expressly the appellation attracted me to be familiar with the whole story.
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