आप भी सोच रहे होंगे कि ये बंदा पहेलियाँ ही बुझाता रहेगा या गायिका का नाम भी बताएगा। तो चलिए आपकी उत्सुकता भी शांत किए देते हैं। ये गायिका हैं श्रुति पाठक जिनका फैशन फिल्म के लिए गाया गीत मर जावाँ... बेहद लोकप्रिय हुआ था और पिछले साल मेरी संगीतमाला की 16 वीं पॉयदान पर बजा भी था। पर उस पोस्ट में श्रृति के बारे में आपसे ज्यादा बातें नहीं हो पाई थीं।
27 वर्षीय श्रुति पाठक गुजरात से ताल्लुक रखती हैं। संगीत की प्रारंभिक शिक्षा श्रुति ने अपने गुरु दिवाकर ठाकुर जी से अहमदाबाद में ली। स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के बाद वो मुंबई आ गईं। फिलहाल वो सुनील गुरगावकर से संगीत की शिक्षा ले रही हैं। यूँ तो श्रुति का नाम फैशन फिल्म के संगीत रिलीज होने के बाद चमका पर उन्हें गाने का पहला मौका ले के पहला पहला प्यार... के रीमिक्स वर्सन (एलबम - बेबी डॉल) को गाने में मिला था। अगला मौका मिलने में श्रुति को 3 साल लग गए और इसके लिए नवोदित संगीतकार अमित त्रिवेदी से उनकी जान पहचान काम आई जिन्होंने फिल्म Dev D में उन्हें गाने का मौका दिया।
आपको जानकर आश्चर्य होगा कि श्रुति गाने के साथ साथ गीत लिखने का शौक भी रखती हैं। देव डी के गीत पायलिया .... को गाने के साथ उसे अपनी कलम से सँवारने का काम भी उन्होंने किया। श्रुति सोनू निगम की जबरदस्त प्रशंसक हैं और रोज़ कम से कम दो घंटे का समय रियाज़ में देती हैं।
आखिर क्या खास है श्रुति की आवाज़ में.. कुछ ऐसा कि आप उस आवाज़ की गहराइयों में डूबते चले जाएँ। ऐसी आवाज़ रूमानियत भरे नग्मों को आपकी संवेदनाओं के काफी करीब ले जाने की क्षमता रखती है। इसीलिए फैशन के बास फिल्म कुर्बान में जब संगीतकार सलीम सुलेमान के सामने एक शादी शुदा जोड़े के बीच प्रणय दृश्य की परिस्थिति आई तो एक बार फिर उन्होंने श्रुति पाठक को ही चुना। और श्रृति ने गीतकार प्रसून जोशी के शब्दों में निहित भावनाओं को बखूबी अपनी आवाज़ के साँचे में ढाल कर श्रोताओं तक पहुँचा दिया।
तो आइए सुनें कुर्बान फिल्म का ये गीत।
ओ रसिया...रसिया..
बावली सी प्रीत मोरी
अब चैने कैसे पावे
आ जा रसिया मोहे
अंग लगा ले
अंग लगा ले..अंग लगा ले
गेसुओं सी काली रतियाँ
अधरों पे काँपे बतियाँ
सांवली सी साँसे मोरी
अरज सुनावें
आके मोरी श्वेत प्रीत पे
रंग सजा दे
बावली सी प्रीत मोरी ....
और हाँ अगर पहले अंतरे के बाद की आवाज़ आपको अलग तरह की लगे तो बता दूँ कि गीत के बीच की ये पंक्तियाँ करीना कपूर ने पढ़ी हैं।
तन एक, जाँ एक
अपना खूँ ज़हाँ एक
ऐसे लिपटे रुह से रुह
कि हो जाए ईमाँ एक...
आशा है श्रुति की इस खास आवाज़ का फ़ायदा संगीतकार आगे भी उठाते रहेंगे जिससे हम जैसे संगीतप्रमियों को उनकी आवाज़ के अन्य आयामों का भी पता चल सके।
10 टिप्पणियाँ:
धुन बहुत नयी तो नहीं मगर सुन ने में अच्छी लग रही है
Prasoon mahoday ki prashansa se khud ko nahi rok sakta,bahut sundar likhte hain.Baat aai Shrutiji ki to -'its a single ray which when enters the diamond and it sparkles'-apne peshe ke ek bade samman ko itna jalidi prapt kar chuki hain to nishchit sarahniy to hain hi.
"pranay prem ki parakashtha hai jisme katai sharirik milan avashyak nahi keval ehsasoon ki chuwan hoti hai."
Aabhar
हम ठहरे पुराने संगीत के आशिक,वेसे यह गीत पहली बार सुना है.
धन्यवाद
प्रियंक प्रसून उत्तराखंद जो कि पहले उत्तरप्रदेश का अंग था से ताल्लुक रखते रहे हैं इसलिए यहां की लोकभाषाओं और हिंदी खड़ी बोली पर उनकी पकड़ समकालीन गीतकारों से कहीं अच्छी है। श्रृति की गायिकी में आगे के लिए भी काफी उम्मीदें हैं।
राज भाई, पुराना संगीत तो शायद ही किसी को अच्छा ना लगता हो। पर आज के संगीत में भी कुछ कुछ अच्छा होता रहता है। वार्षिक संगीतमालाओं के रूप में ऐसे ही गीतों की ओर आप जैसे संगीतप्रेमियों का ध्यान आकृष्ट करने की कोशिश कर रहा हूँ।
बढ़िया ! अब देखते हैं टॉप १० कौन होते हैं.
बोल वाकई बेहतरीन है। सुनने का मौका बाद में ही मिलेगा जी।
दो दिन से अटकाये हुआ था रीडर में । आज पढ़ा भी, सुना भी । पढ़ने का चाव रहता है खूब इन गानों के बारें में आपका लिखा ।
आभार ।
Thanks, Manish Bhai ! Aapki varshik geetmaala se har saal ke naye acche geeton ki jankari mil jaati hain. bahut accha selection hain.
शुक्रिया दीप जानकर खुशी हुई की मेरी पसंद के गीत आपको भी अच्छे लगे।
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