वैसे निर्देशिका जोया अख्तर का कहना था कि गर उनका बस चलता तो इस फिल्म के सारे गीत शंकर महादेवन से ही गवा लेती। वहीं गायक शंकर महादेवन कहते हैं कि कुछ गीत ऐसे होते हैं जिन्हें मन में बैठने में वक़्त लगता है। पश्चिमी वाद्य यंत्रों ड्रम्स, बेस के बैकग्राउंड और राग भैरवी में ठुमरी स्टाइल गायिकी के स्ममिश्रण से बना गीत इसी श्रेणी में आता है। इस गीत के जिन हिस्सों में शास्त्रीयता का पुट अधिक है वो मन को गहरा सुकून देते हैं। जावेद साहब ने ऐसे रूपको का इस्तेमाल किया जो गीत की शास्त्रीयता से मेल खाए।
फिल्म उद्योग में जब भी कोई कलाकार कदम रखता है तो सबसे पहले उसे काम पाने के लिए विभिन्न स्टूडिओ में आडिशन देना पड़ता है। पहली बार कैमरे के सामने की घबराहट, ठुकराए जाने के डर से लेकर सफल होने की आशा इन सभी मिश्रित भावनाओं से हर अभिनेता को गुजरना पड़ता है।
पर जावेद अख्तर सफल होने की इस सर्वव्यापी चाह और उसे पाने के लिए अपने सभी मूल्यों को दाँव पर लगाने की प्रवृति पर चोट करते हुए बेहद वाज़िब परंतु कठिन प्रश्न करते हैं। जावेद साहब हम सब के समाने ये सवाल करते हैं कि
सिर्फ अपना लक्ष्य पूरा करने से सुख की अनुभूति तो आती है पर क्या दिल में चैन आ जाता है?
सुख हमारे से बाहर हैं या इसकी तलाश दिल के अंदर करनी चाहिए ?
हमने अपने जीवन में सुख के मापदंड बना रखे हैं वो क्या मन को सुकून देने वाले होते हैं?
तो आइए सुनें इस गीत में शंकर महादेवन की लाजवाब गायिकी को..
बगिया-बगिया बालक भागे,तितली फिर भी हाथ ना लागे!
इस पगले को कौन बताये,
ढूँढ रहा है जो तू जग मैं,कोई जो पाये तो मन में ही पाए!
सपनों से भरे नैना, तो नींद है न चैना!
ऐसी डगर कोई अगर जो अपनाए,
हर राह के वो अंत पे रस्ता ही पाए!
धूप का रस्ता जो पैर जलाए,
मोड़ तो आए छाँव ना आए,
राही जो चलता है चलता ही जाए,
कोई नही है जो कहीं उसे समझाए!
सपनों से भरे नैना,
तो नींद है ना चैना!
नैना रे नैना रे......
दूर ही से सागर जिसे हर कोई माने,
पानी है वो या रेत है ये कौन जाने,
जैसे के दिन से रैन अलग है,
सुख है अलग और चैन अलग है,
पर जो ये देखे वो नैन अलग है,
चैन तो है अपना सुख हैं पराए!
सपनों से भरे नैना,
तो नींद है न चैना.....
पर ना तो आदमी सफल होने की इच्छा छोड़ सकता है ना इसे पाने के लिए होने वाली जद्दोज़हद से दूर रह सकता है। सफल होने की चाह ही तो शायद जिंदगी का टॉनिक है जो हमें विषम परिस्थियों में भी जूझने के लिए प्रेरित करता रहता है। इस गीत की शूटिंग के दौरान अपनी किस्मत आज़माने आए एक कलाकार द्वारा कहा गया ये शेर सब कुछ कह जाता है...
कि दिल मे चुभ जाएँगे जब अपनी जुबाँ खोलेंगे
हम भी शहर में काँटों की दुकाँ खोलेंगे
और शोर करते रहे गलियों में हजारों सूरज
धूप निकलेगी तो हम भी अपना मकाँ खोलेंगे
6 टिप्पणियाँ:
इस गीत में शाश्त्रियता का पुट बस ... मन मोह लेता है.....गीत और संगीत दोनों ही लाजवाब हैं...
आपकी पसंद लाजवाब है....
इस मनमोहक पोस्ट के लिए आपका बहुत बहुत आभार...
ye Geet philosophic lagta hai mujhe. bahut pasand hai...! ye film bhi bahut bhali lagi thi aur anim sher
waaaaaaaaah
बढ़िया ! मैं भी शादी अटेंड कर आया एक लखनऊ में.
फिल्म नहीं देखी, पर गाने सुने थे । इस गाने का प्रशंसक तो था ही । प्रस्तुति का आभार । शनैः शनैः बढ़ती श्रृंखला ।
हिमांशु भाई क्या करें घर में शादियों का ऐसा चक्कर लगा कि पहले वाराणसी, फिर लखनऊ और अभी अभी पटना का चक्कर लगा कर लौटा हूँ। ऍसे में गीतमाला शनैः शनैः ही तो चलेगी। अब तक सफ़र में साथ रहने के लिए धन्यवाद।
फिल्म मुझे भी भायी थी और गीत भी!
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